शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

अपने घर से विलुप्त होती प्रजाति

विश्व की अनेक प्रजातियां, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी विलुप्त हो चुके हैं। इनमें से अनके ऐसे हैं जिनके बारे में  हमें  जानकारी ही नहीं है। अनेक ऐसे हैं जो अब नहीं हैं  लेकिन उनके कंकाल, चित्र, अन्य जानकारियाँ विश्व के संग्रहालयों (म्यूजियम) की धरोहर हैं और वहाँ देखे जा सकते हैं। अनेक विलुप्त होने के कगार पर हैं और बचा कर रखने की पहल लगातार हो रही है।  इनमें केवल पेड़-पौधे और पशु-पक्षी ही नहीं बल्कि मानव की भी प्रजातीय हैं।  इनमें वनवासी और जनजाति ही नहीं पूरी तरह से सभ्य, शिक्षित और होनहार जातियाँ भी हैं। प्राचीन चीन, ग्रीस, रोमन ऐसी ही कुछ सभ्यताएं हैं जिनके वाहक अब समाप्त हो चुके हैं और उनके विलुप्त हो जाने के कारण ही  किसी समय संसार की गिनी चुनी श्रेष्ठ सभ्यताओं का नामोनिशान नहीं रहा। आज हम बड़े गर्व से गाते हैं:
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।।
सारे जहाँ से अच्छा ......
लेकिन सावधान! हमारी इस सभ्यता के वाहक भी धीरे धीरे समाप्त होते जा रहे हैं और अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारी सभ्यता का भी नामों निशान मिट जाएग। इसे बचा कर हम ही रख सकते हैं क्योंकि हमारी सभ्यता के ये वाहक हमारे ही घरों रहते हैं।

आने वाले १०-१५ वर्षों में  एक पीढ़ी संसार छोड़ कर जाने वाली है। कड़वा है लेकिन सच है। इस पीढ़ी के लोग बिलकुल ही अलग हैं। मसलन रात को जल्दी सोने वाले, सुबह जल्दी जागने वाले और भोर में घूमने निकलने वाले। आँगन और पौधों को पानी देने वाले, देव पूजा के लिए फूल तोड़ने वाले, पूजा अर्चना करने वाले, प्रतिदिन मंदिर जाने वाले। रास्ते में  मिलने वालों से बात करने वाले, उनका सुख दुख पूछने वाले, दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करने वाले, पूजा किए बगैर अन्न जल ग्रहण न करने वाले। उनका अजीब सा संसार ...... तीज, त्यौहार, मेहमान, शिष्टाचार, अन्न, धान्य, सब्जी, भाजी की चिंता। तीर्थयात्रा, रीति रिवाज, सनातन धर्म के इर्द गिर्द घूमने वाले। पुराने फोन पे ही मोहित,  फोन नंबर की डायरी मेंटेन करने वाले, रोंग नंबर से भी बातें करने वाले, समाचार पत्र को दिन भर में २-३ बार पढ़ने वाले। हमेशा एकादशी याद रखने वाले, अमावस्या और पूर्णिमासी याद रखने वाले। भगवान पर प्रचंड विश्वास रखने वाले लोग, समाज का डर पालने वाले लोग, पुरानी चप्पल, बानियान, चश्मे वाले लोग। गर्मियों में अचार-पापड़ बनाने वाले लोग, घर का कूटा हुआ मसाला इस्तमाल करने वाले लोग और हमेशा देशी टमाटर, बैंगन, मेथी, साग सब्जी ढूँढने वाले लोग। नजर उतारने वाले, सब्जी वाले से १-२ रुपए के लिए झिक झिक करने वाले। क्या आप जानते हैं ये सभी लोग धीरे-धीरे हमारा साथ छोड़ कर जा रहे हैं? क्या घर में कोई ऐसा है? यदि हाँ, तो उनका बेहद ख्याल रखें, अन्यथा एक महत्वपूर्ण सीख उनके साथ ही चली जाएगी। वो है, संतोषी जीवन, सादगी पूर्ण जीवन, प्रेरणा देने वाला जीवन, मिलावट और बनावट रहित जीवन, धर्म सम्मत मार्ग पर चलने वाला जीवन और सबकी फिक्र करने वाला आत्मीय जीवन।

   दैनिक विश्वामित्र से

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