शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

ऑस्ट्रेलिया – आइए सिडनी घूमें, कम खर्च में


ऑस्ट्रेलिया – आइए सिडनी घूमें, कम खर्च में

ऑस्ट्रेलिया की गिनती विश्व के मंहगें देशों में होती है। उस पर भी सिडनी, यहाँ का व्यापारिक केंद्र, तो और भी महंगा है। यहाँ के दार्शनिक स्थलों में प्रवेश की टिकटें मंहगी हैं। कई दर्शनीय स्थलों की टिकिट एक साथ लेने से अच्छी छूट मिलती है लेकिन फिर भी जेब पर भारी पड़ती है। अनेक सुविधाओं और छूटों के बावजूद परिवहन भी सस्ता नहीं पड़ता। तब कैसे समय व्यतीत करें, कैसे घूमें? सबसे पहली बात, दूर जाने की जगहें रविवार के लिए बचा कर रखें। रविवार को पूरे दिन का सफर ओपल कार्ड से एयूडी 2.80 में हो जाता है – बस, ट्रेन और फेरी सब मिला कर। दूसरी बात, रविवार छोड़ कर अन्य दिन सुबह 7 से 9 और शाम 4 से 6.30 के मध्य किसी भी परिवहन में यात्रा प्रारम्भ करने से बचें। यह व्यस्त समय है, इस समय भाड़ा 30% ज्यादा हो जाता है।  बहुत सी जगहें हैं जहां बिना किसी प्रवेश शुल्क के जाया जा सकता है – यानि बिलकुल मुफ्त। ये कहने के लिए मुफ्त हैं लेकिन अच्छी हैं, जाने लायक हैं। उनमें से केवल 10 जगहे ये हैं:


1। न्यू साउथ वेल्स चित्र संग्रहालय – नाम पर न जाएँ केवल चित्र नहीं, अनेक कलात्मक वस्तुओं का बेहतरीन विश्वस्तरीय संग्रह है। इसकी इमारत अपने आप में कला  का एक उत्कृष्ट नमूना है। विश्व की अनेक वस्तुओं की प्रदर्शनी चलती रहती हैं और प्रदर्शित करने के लिए नियमित रूप से देश विदेश से आती रहती हैं।  देश के अन्य संग्रहालयों से इनका संपर्क बना रहता है और कलात्मक वस्तुएँ आपस में आदान-प्रदान करते रहते हैं। इतना ही नहीं अपने खुद के संग्रह को भी नियमित रूप से बदलते रहते हैं।

2। सिडनी ओबजरवेटरी यानि वेधशाला या जंतर-मंत्र1850 में बनी इस वेधशाला में रखे यंत्रों से सौर मण्डल के बारे में अच्छी जानकारी तो मिलती ही है उनकी गति भी समझ आती है। ये यंत्र प्राचीन हैं और इसका निर्माण सही समय की गणना के लिए किया गया था। कुछ डॉलर खर्च कर यहाँ की दूरबीन से दिन में सूर्य और रात में तारे देखे जा सकते हैं।  सीमित स्थान होने के कारण दूरबीन से देखने के लिए अग्रिम आरक्षण करवाना उचित है। इस दूरबीन का निर्माण 1874 हुआ था।
100 वर्ष पुराना पेड़
3। रॉयल बोटानिक गार्डेन – 1816 में बना 200 वर्ष पुराना, यह बगीचा विस्तृत, हरा-भरा, रंगीन और बेहद सुंदर है। यहाँ की रेशमी घास पर चलना और उस पर लेटना, पेड़ की शीतल छाँह में गप-शाप करते हुए शीतल हवा का आनंद नहीं लिया तो फिर क्या सिडनी आए? इसके अलावा एक 100 वर्षों से ज्यादा पुराना विशालकाय पेड़ तथा सागर किनारे लंबी सैर जरूर से करें। एक छोर पर सिडनी ओपेरा हाउस और दूसरी छोर पर श्रीमती मक्कुयरी की कुर्सी है। इस जगह से ओपेरा हाउस और हार्बर ब्रिज को एक साथ देख सकते हैं।


4। मैनली समुद्र तट – यहाँ जाने के लिए फेरी से जाना ही ठीक है। समुद्र तट के साथ साथ फेरी का भरपूर आनंद लिया जा सकता है। जिन्हे समुद्र पसंद है, उन्हे यह जगह जरूर पसंद आएगी।


5। कोक्काटू द्वीप -  2010 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल (world heritage site) घोषित किया है। पैरामाटा और लेन कोव नदी के मुहाने पर यह छोटा सा द्वीप है। जाहीर है द्वीप होने के कारण यहाँ जाने के एकमात्र साधन फेरी है। 1839 से 1869, तीस वर्षों तक यह द्वीप प्रमुखत: कैदियों का जेल 
रहा। 1857 से 1991 तक यह द्वीप ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े शिपयार्डों में से एक था। अब यहाँ अनेक सरकारी और निजी छोटे-बड़े कार्यक्रम, त्योहार, समारोह आदि का आयोजन होता रहता है। यहाँ रात में ठहरने के लिए कैंप के अलावा आलीशान बंगले भी बने हुआ हैं। 



6। सिडनी से पैरामाटा बोट की यात्रा – वैसे तो और कई जगहों पर, कोक्काटू द्वीप-मैनली समुद्र तट आदि, जाने से बोट की यात्रा हो गई है। लेकिन ये बोट यात्रायें समुद्री यात्रा थीं, जबकि पैरमाटा की बोट यात्रा नदी की यात्रा है। जाते समय दोनों किनारों का नजारा देखना अपने आप में एक अलग अनुभव है।
7। ओपेरा हाउस और सिडनी हार्बर ब्रिज – ओपेरा हाउस के परिसर में चारों तरफ घूमना और हार्बर ब्रिज से पैदल समुद्र पार करना सुकून तो देता ही है, आँखें भी तृप्त होती हैं। ये दोनों ही ऑस्ट्रेलिया के प्रतीक पर्यटन स्थल हैं।

कस्टम हाउस, क्वीन विक्टोरिया इमारत की घड़ी, संत मैरी कैथेड्रल 

8। कस्टम हाउस, विक्टोरिया भवन और संत मैरी काथेड्रल – ये तीनों ही इमारतें देखने लायक हैं। बाहर से नहीं भीतर से। 145 वर्षों से लगातार कार्यरत सिडनी का कस्टम हाउस ऑस्ट्रेलिया का सबसे पुराना कस्टम हाउस है। इस में बने शीशे के फर्श पर से पैरों के नीचे शहर का प्रारूप देखते ही बनता है।  विक्टोरिया भवन का निर्माण 1893 से 1898 के मध्य हुआ। भवन में लगी हैं दो अद्भुत और विचित्र घड़ियाँ, इनकी घंटी ही नहीं बल्कि इनकी चाल भी देखने लायक हैं। 1928 में बनी संत मैरी काथेड्रल की भव्यता भी दर्शनीय है।


9। पुस्तकालय – वैसे तो शहर और हर निगम का अपना अपना पुस्तकालय है लेकिन न्यू साउथ वेल्स 

पुस्तकालय सबसे बड़ा है। खास बात यह है कि सब पुस्तकालयों में बैठने और पुस्तक-पत्रिका पढ़ने के लिए किसी प्रकार की सदस्यता की आवश्यकता नहीं है। बेधड़क घुसें, मन पसंद की पुस्तक या पत्रिका उठाएँ और किसी भी कुर्सी या सोफ़े पर जम जाएँ। सारे दिन बैठे रहें कोई टोकने नहीं आयेगा। सबसे बड़ी बात यह कि अँग्रेजी के अलावा विश्व की अनेक भाषाओं की जिनमें हिन्दी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी पुस्तकें रहती हैं। हाँ, अगर पुस्तक ले जाना चाहते हैं तब सदस्यता आवश्यक है – लेकिन बिना किसी सदस्यता शुल्क के।

डार्लिंग हार्बर की शाम 

डार्लिंग हार्बर की सुबह 
10। डार्लिंग हार्बर – अगर सिडनी आकर यहाँ का चक्कर नहीं लगाया तो सिडनी आना ही बेकार हो गया। समय के साथ साथ इसका रंग और रूप भी बदलता रहता है। यहाँ बैठे बैठे सारा दिन ही नहीं शाम भी बिता सकते हैं, बोर नहीं होंगे। सुबह से लेकर रात तक, बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सब के लिए कुछ न कुछ तो है ही यहाँ।

ये तो मैंने 10 ही जगहें बताई हैं। लेकिन इनके अलावा और भी अनेक जगह जाया जा सकता है। यथा मैरिटाइम संग्रहालय, समकालीन चित्र तथा कला संग्रहालय, रॉक्स संग्रहालय, हायड पार्क, राष्ट्रीय उद्यान, केंद्रीय उद्यान। मुफ्त की पैदल यात्रा तो सिडनी भ्रमण का एक आवश्यक अंग है। इसकी विस्तृर चर्चा मैंने अपने 18 अक्तूबर 2019 के पोस्ट में की है। इनके अलावा शॉपिंग मॉल तथा खाने-पीने की तो कोई चर्चा की ही नहीं। इनमें जाने का तो कोई खर्च नहीं है जब तक कुछ खरीददारी नहीं करते, न कुछ खाते हैं, न पीते हैं। लेकिन फिर जाना क्यों? मॉल में तो फिर भी विंडो शॉपिंग की जा सकती है लेकिन रेस्तरां में? आपकी श्रद्धा पर निर्भर करता है। जितना गुड डालो उतना मीठा।

शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

ऑस्ट्रेलिया – सिडनी में परिवहन की खास बातें


ऑस्ट्रेलिया – सिडनी में परिवहन की खास बातें

विश्व को तीन प्रकार के देशों में बांटा गया है – विकसित, विकासशील और अल्पविकसित या पिछड़े देश। हर वर्ष विभिन्न आंकड़ों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ एक तालिका तैयार करता है जिस के आधार पर देशों को इन वर्गों में बांटते हैं। इस तालिका के आधार पर ऑस्ट्रेलिया विश्व के विकसित देशों में तीसरे स्थान पर है। हर देश की अपनी खासियत होती है। सबका देखने का नजरिया भी अपना अपना होता है। मैं आज बताना चाहता हूँ, एक आम आदमी की नजर से, ऑस्ट्रेलिया या शायद सिडनी के परिवहन व्यवस्था की 10 खास बातें। ये क्रम बद्ध नहीं है, यानि यह नहीं कहा जा सकता कि ये प्रथम दस खास बातें हैं, या इनसे ज्यादा खास बातें और हैं ही नहीं। जैसे जैसे मैंने देखा, समझा, अनुभव किया और स्मरण रहा बस उसी प्रकार लिख रहा हूँ। आज जिन बातों की मैं चर्चा कर रहा हूँ  वे केवल ऑस्ट्रेलिया या सिडनी की ही नहीं कमोबेश विश्व के किसी भी विकसित देश या शहर की हो सकती है। अत: अगर किसी भी विकसित देश में भ्रमण किया हो तो इनसे थोड़ा बहुत परिचय हुआ होगा। तो प्रारम्भ करता हूँ, सिडनी के परिवहन व्यवस्था की 10 खास बातें :

1। परिवहन व्यवस्था यानि सरकारी बस, ट्रेन और स्टीमर आधुनिक तकनीक से लैस हैं। “ओपल” कार्ड तीनों में मान्य हैं अलग अलग लेने की आवश्यकता नहीं है। ये राज्य सरकार द्वारा संचालित हैं। एक ही कार्ड से इन तीनों में सफर कर सकते हैं। हर बस में, स्टेशन पर घाट पर इस कार्ड को स्कैन करने की सुविधा है जिसमें चढ़ते और उतरते समय स्कैन करना आवश्यक होता है। अब ओपल के अलावा अमेरीकन एक्सप्रेस, मास्टर और वीसा कार्ड में भी यह सुविधा दी गई है।
एक खाली ट्रेन की सीटें, स्टेशन पर लगे डिजिटल बोर्ड जो हर क्षण ट्रेन की खबर देते रहते हैं , ट्रेन में ऊपर जाने और नीचे उतरने की सीढ़ियाँ, ट्रेन के अंदर  सीटें 
2। बहुत से रूट ऐसे हैं जहां भाड़े का भुगतान इसी या अन्य क्रेडिट कार्ड के द्वारा ही किया जा सकता है। नकद भुगतान की कोई व्यवस्था नहीं है।
3। ट्रेन ही नहीं बस और फेरी की भी समय सारिणी है। हर बस स्टॉप पर वहाँ आने वाले बस की जानकारी और समय सारिणी लिखी रहती है और कमोबेश वे सही समय से आती हैं। यही नहीं, अपने फोन पर बस की वर्तमान स्थिति देख सकते हैं जिससे पता लगता रहता है कि बस अपने समय से चल रही है या नहीं और अभी कहाँ पर है।
3। “ओपल कार्ड कई प्रकार के हैं यथा वयस्क, अल्पवयस्क, छात्र, वरिष्ठ, बेरोजगार आदि। इनके अनुसार भाड़ा भी अलग अलग है।
4। समय और दिन के अनुसार भाड़े अलग अलग हो जाते हैं। यथा सप्ताह के 5 दिन, सोम से शुक्र सुबह 7 से 9 और शाम 4 से 6.30 व्यस्त समय है। इस समय सफर करने से भाड़ा 30% ज्यादा लगता है। शनि और रवि तथा छुट्टी के दिन सामान्य भाड़ा लगता है। सप्ताह में 8 सफर कर लेने पर भाड़े में 50% की छूट मिल जाती है। रविवार को अधिकतम कुल भाड़ा AUD 2.80 ही लगना है चाहे जितना बार और जितनी दूर का सफर करें। कई अवस्थाओं में रविवार को सब सफर में 100% की छूट उपलब्ध है। एक रविवार हमने बस, ट्रेन, ट्राम और स्टीमर मिला कर लगभग 100 किमी का सफर किया। भाड़ा लगा 0.00।
5। ये सब परिवहन व्यवस्था एयरकंडिशन हैं और कुछ रूट में कुछ समय के अतिरिक्त हर समय बैठने की जगह मिलनी निश्चित है।  सभी ट्रेनें दो मंजली हैं।
6। ट्रेन के स्टेशन को शहर के अंदरूनी भागों से जोड़ने की व्यवस्था मेट्रो ट्रेन से है। इसे और विकसित किया जा रहा है। मेट्रो के अलावा बसों से भी जुड़ाव लगातार मिलते रहते हैं।
7। हर मेट्रो स्टेशन पर और शहर के बाहर के ट्रेन के स्टेशन पर बिना किसी भाड़े के गाड़ी खड़ी करने की व्यवस्था है। कहीं कहीं तो इसके लिए बहुमंजली इमारत भी बनी हुई हैं।
8। अगर ट्रेन / बस / फेरी की दूसरी यात्रा पहली यात्रा के समाप्त होने के एक घंटा पहले प्रारम्भ हो जाती है तो उस दूसरी यात्रा को पहली यात्रा का ही हिस्सा समझा जाता है और भाड़ा भी उसी प्रकार लिया जाता है। यानि मनाइए ऑफिस से ट्रेन में आये और स्टेशन से घर तक बस में जाने के पहले बाजार से पावरोटी या कुछ और लेना है। उसे खरीद कर एक घंटे के अंदर ही बस ले लेते हैं तो यह यात्रा दूसरी नहीं बल्कि पहली का ही भाग है। इस कारण भाड़ा कम हो जाता है।  
9। हर स्टेशन पर स्वचालित सीढ़ियाँ एवं लिफ्ट दोनों या कम से कम तो निश्चित रूप से लगी होगी।
10। हर स्टेशन पर अपने ओपल कार्ड को चार्ज करने के लिए मशीनें लगीं हैं जहां खुद कार्ड चार्ज किया जा सकता है। अन्यथा काउंटर पर भी करवा सकते हैं।

 तो आइए सिडनी और लुफ्त लीजिये शहर का यहाँ की अत्याधुनिक परिवहन व्यवस्था से।

शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

ऑस्ट्रेलिया – वेस्टमीड से मार्सडेनपार्क

ऑस्ट्रेलिया – वेस्टमीड से मार्सडेनपार्क
बंगाल झारखंड की सीमा पर एक छोटा सा गाँव है - दुबड़ा। यही है वह जगह, जहां हमारे पूर्वज राजस्थान छोड़ कर आ बसे। मेरा यहाँ रहना कभी नहीं हुआ। लेकिन बचपन में लंबे समय के लिए हम यहाँ आते थे। बचपन के वे दिन, जो हमने यहाँ बिताए, मानस पटल पर खुद गए हैं। वे सुहावने दिन बार बार याद आते हैं। सुबह उठना और बगीचे में सैर के लिए जाना, वहीं जंगल में शौच से निपटना, दतुवन करना, कुएं पर बैठ कर स्नान करना।  झूला झूलना, धमा चौकड़ी मचाना, मंदिर जाना, पूजा करना, आरती के दर्शन करना। पिकनिक पर जाना। यहीं हमने जाना कि पिकनिक में बाजार का बना ही नहीं बल्कि घर का पका सामान भी लेकर नहीं जाते। केवल कच्चे सामान ले जाते हैं और वहीं पकाते हैं। बड़े बुजुर्गों के साथ घर के बाहर निवार या नारियल रस्सी की बनी खाट या फिर लकड़ी के तख्त पर बैठ कर हवा खाना, मालिश करवाना या धूप सेंकना।  तास-चौपड़ खेलना या फिर देखना। सूर्योदय, सूर्यास्त और रात को तारों से भरा आसमान देखना तो साधारण सी बात थी, क्योंकि खुली छत पर जो सोते थे। नल नहीं थी, लोटा और बाल्टी का प्रयोग होता था। मिट्टी की भट्टी में लकड़ी का ईंधन, धान की खमार, कूटने की धौंकनी जिसे पैर से ठोंकना पड़ता था।  पिछवाड़े में गौशाला। सुबह शाम बगीचे जाते समय मवेशियों के गले में बजती घंटी की टुनटुन। कच्ची सड़क पर टनटन कर चलती बैल गाड़ी या फट फट की आवाज करती मोटर साइकल। कभी कभार किसी गाड़ी के दर्शन हो जाते थे।  त्यौहार पर लगता था कि पूरा गाँव ही अपना परिवार है। सब मिलकर एक साथ मनाते थे। रोज़मर्रा की हर वस्तु आसपास मिल जाती थी। नहीं है, तो पड़ोसी से ले-लीजिये या फिर वो ला देगा। पहला कस्बा रघुनाथपुर लगभग 12 किमी और शहर पुरुलिया 40 किमी की दूरी पर। दिन में कई बार सरकारी बस की सवारी मिल जाती थी, बस क्या खटारा।  गाँव में कामचलाऊ डॉक्टर थे, दवाखाना भी। लेकिन अस्पताल नहीं था। छोटा सा विद्यालय भी था और एक धर्मशाला भी, शादी-व्याह या अन्य किसी प्रकार के अनुष्ठान के लिए। पैसे का बोलबाला नहीं था। आपसी प्रेम, संबंध और सौहार्द के सीमेंट से जुड़े थे हम
घर के दरवाजे से सूर्यास्त 

सिडनी से वेस्टमीड बड़े शहर से छोटे शहर में और फिर वेस्टमीड से मार्सडेन पार्क जाना ऐसा ही है जैसे छोटे शहर से गाँव में आ गए। वेस्टमीड से 30 किमी और सिडनी से लगभग 50-55 किमी दूर। ऐसी शांति कि अपनी सांस लेने की आवाज तक सुन पड़े। छोटे छोटे एक या दो-मंज़िले बंगलानुमा मकान। हर मकान के साथ एक छोटा सा बगीचा। साफ शुभ्र आकाश। घर के दरवाजे से सूर्योदय और सूर्यास्त के दर्शन। सूर्योदय पूरब से, आसमान लाल पश्चिम का। घर से बाहर निकलो और सैर शुरू, वैसे कई छोटे बड़े मैदान भी हैं। बड़ों के खेलने, दौड़ने और टहलने के लिए। बच्चों के खेल के लिए भी उनके लायक उपकरणों से भरा पूरा। बड़ों का मैदान भले ही खाली नजर आ जाए, बच्चे तो भरपूर फायदा उठाते हैं। दूर जंगल के पेड़ और उसके पार पर्वत शृंखला घर बैठे दिखती है। धूल कहीं नहीं। कहीं कोई जानवर नहीं दिखाई देता सवाय किसी के पालतू कुत्ते 

सैंत ल्यूक स्कूल
या आसमान में कांव कांव करते कौवे के। कभी कभार दूसरे पंक्षी और बगल के जंगल से भटक कर आए जानवर भी दिख जाते हैं। कहीं कोई कच्ची सड़क नहीं। सब पक्की साफ सुथरी चौड़ी सड़क और उस पर तेजी से दौड़ती गाडियाँ, ट्रक, डंपर और ट्रेलर। नये निर्माण पूरे ज़ोर शोर से जारी है। इतने लोग रहते हैं लेकिन फिर भी सब अलग अलग। इस पूरे क्षेत्र में कहीं भी किसी भी प्रकार की कोई दुकान नहीं। न चाय-कॉफी, न साग-सब्जी, न मिर्च-मसाले। इसके लिए कम से कम 7-8 किमी की दौड़ लगानी पड़ेगी। पास पड़ोस से भी लेने का रिवाज नहीं है। अपने सामानों पर नजर रखिए और समाप्त होने के पहले ही ले आइए। अपने रेफ्रीजरेटर का पूरा इस्तेमाल कीजिये और हर समय भर कर रखिए। बिजली जाने का कोई भय नहीं। रसोई में गैस की सीधी सप्लाइ होने के कारण सिलिंडर का कोई झंझट ही नहीं। न कोई डॉक्टर, न दवाखाना। अस्पताल का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। हाँ, एक स्कूल है। पूरे क्षेत्र में एक सरकरी बस की व्यवस्था है। बसें नियमत समय सारिणी से चलती ट्रेन की तरह। उनके समय के अनुसार ही कार्यक्रम बनाना पड़ता है या फिर अपनी गाड़ी के भरोसे। सुरक्षा के लिए हर घर में अपने अपने कैमरे- साइरन लगे हैं, वैसे कुछ भी दुर्घटना होने की उम्मीद कम ही रहती है। पड़ोसी से इतनी तो उम्मीद रख सकते हैं कि किसी भी प्रकार का साइरन बजा तो पुलिस में खबर कर देगा और शायद पुलिस आ भी जाएगी।  अभी अभी बसा है यह गाँव, या यह कहना बेहतर होगा कि अभी भी बस ही रहा है। लोग आ रहे हैं। नए निर्माण हो रहे हैं। शायद कुछ समय बाद दैनिक जीवन की सुविधाएं आस-पास मिल जाएँ। एक उन्नत देश का एक आधुनिक गाँव। सुख सुविधाओं से भरा पूरा, जहां आदमी तो रहते हैं इंसान का पता नहीं
मार्सडेन पार्क का एक दृश्य

हर समय मन में बना रहता है क्या पुराने दिन वापस आएंगे? क्या कभी वापस अपने गाँव में जा कर कुछ समय बिता सकेंगे?  अपना गाँव भी अब अपना जैसा रहा नहीं, विदेश का गाँव अपना जैसा हो नहीं सकता। दरअसल दोनों में अपनी खूबियाँ हैं, अपनी कमियाँ हैं और ये व्यक्ति और समय सापेक्षिक हैं।  सब खूबियाँ एक साथ हो नहीं सकतीं, सब कमियाँ भी एक साथ नहीं हो सकती। यह मनुष्य को तय करना होता है कि उसे क्या चाहिए और उसका क्या मुल्य चुकाने के लिए तैयार है। कौनसी खूबियों और कमियों के बदले कौन सी कमी और खूबी का विनिमय करना है। यहाँ भुगतान पैसों में नहीं, बल्कि, सुख त्याग कर या दुख अंगीकार कर के ही किया जाता है। यही जीवन का मूल मंत्र है। जो इतनी से बात समझ लिया वही सुखी है। एक के रहते हुए दूसरे के लिए दुखी होने वाला, तो वही बात हुई कि पानी में रहते हुए पानी को तरसे। लेकिन कमल पानी में रहते हुए भी पानी से असंपृक्त। जाहे विधि रखे राम, ताही विधि रहिए। 









मार्सडेन पार्क में खेलते बच्चे और बड़े


सूर्योदय के समय पश्चिम क्षैतिज पर लालिमा


शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

ऑस्ट्रेलिया – ओपेरा हाउस


ऑस्ट्रेलिया – ओपेरा हाउस

शनिवार, 20 अक्तूबर 1973। सिडनी ही नहीं ऑस्ट्रेलिया के लिए एक यादगार दिन। यही वह दिन है जब ब्रिटेन की रानी एलिज़ाबेथ-2 ने सिडनी ओपेरा हाउस का उद्घाटन किया था। यह कोई साधारण कंसर्ट हॉल नहीं है। 10000 व्यक्ति, 14 वर्ष और $102 मिलियन, यानि 10 करोड़ 20 लाख ऑस्ट्रेलियन डॉलर, आज की विनमय दर के अनुसार लगभग 5 अरब रुपए की राशि लगी इसे बनाने में। सिडनी ओपेरा हाउस, 



पर्यटकों का सबसे चहेता पर्यटन स्थल। सिडनी ओपेरा हाउस, जहां वर्ष भर में 2000 से ज्यादा कार्यक्रम होते हैं। सिडनी ओपेरा हाउस जहां 15 लाख से ज्यादा लोग इन कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं। यहाँ जब सिडनी सिम्फ़नि ऑर्केस्ट्रा बज रहा होता है अंदर का  तापमान 22.5  पर बनाए रखा जाता है, क्योंकि इस और्केस्ट्रा की सर्वोत्तम ध्वनि के लिए इस तापमान को बनाए रखना आवश्यक है। अगर श्रोता को कम सुनता है या सुनने की दिक्कत है या सुनने के लिए किसी भी प्रकार का ध्वनि यंत्र या कोहलर का भी प्तयोग कर रहा है तो सही ढंग से सुन पाने के लिए उसे विशेष यंत्र भी बिना किसी भाड़े के प्रदान किया जाता है।

इस ओपेरा हाउस की दास्तां अद्भुत है। फ्रैंक गहरी  ने  वास्तुकला (आर्किटैक्चर) के उच्चतम पृत्ज़्कर (Pritzker) पुरस्कार की घोषणा करते हुए 2003 में कहा था “जोर्न उत्ज़ोन (Jorn Utzon)  ने एक ऐसे भवन का निर्माण किया है जो अपने समय से बहुत आगे और उस समय की उपलब्ध तकनीक से कहीं ज्यादा 
जोर्न उत्ज़ो 
दूर भविष्य पर दृष्टि रखते हुए किया है। इसने विश्व में ऑस्ट्रेलिया की छवि को एकदम से बदल दिया”। उत्ज़ोन  का चयन ओपेरा हाउस का नक्शा बनाने की एक प्रतियोगिता से किया गया था जिसमें उत्ज़ोन को 5000 पाउंड का प्रथम पुरस्कार भी मिला। आयोजित प्रतियोगिता के सम्मेलन में घोषणा की गई हमें एक ऐसा भवन चाहिए जो हमारे देश को आने वाली कई  शताब्दियों तक सम्मान दिला सके। जजों ने उत्ज़ोन के नक्शे को चुनते हुए घोषणा की “यह नक्शा विवादास्पद है क्योंकि यह एक मौलिक नक्शा है लेकिन हम इसकी विशेषताओं से संतुष्ट हैं”।  विडम्बना यह कि उत्ज़ोन को निर्माण कार्य अधूरा ही छोड़ कर जाना पड़ा और फिर कभी लौट कर वापस नहीं आया। उद्घाटन समारोह में उन्हे बुलाने की कोशिशें की गई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।

सिडनी घूमने आने वाला हर व्यक्ति ओपेरा हाउस तो देखने आता ही है। लेकिन इसे केवल बाहर से देख कर जाने का मन मत बनाइये। जब तक इसका पूरा इतिहास न समझें, इसे अंदर से न देखें, देखने का कोई मतलब ही नहीं है। इसे अंदर से देखने और समझने के लिए दो विशेष टूर हैं। पहला टूर 1 घंटे का दिन में 9 से शाम 5 बजे तक उपलब्ध है और दूसरा टूर मंच के पीछे दिन में केवल एक बार सुबह 7 बजे से 2 घंटे 30 मिनट का है।  दोनों न भी करें तो एक तो करना जरूरी सा ही है।

ओपेरा हाउस की सीपनुमा छत को बनाना, तकनीकी दृष्टिकोण से, अपने आप में बहुत कठिन कार्य था। उत्ज़ोन और निर्माण करने वाले अन्य तकनीशियनों को समझ नहीं आ रहा था कि यह कार्य कैसा संभव है। खर्च को नियंत्रण में रखते हुए समय से पूरा करना, एक बेहद दुष्कर कार्य प्रतीत हो रहा था। तीन वर्ष सोच-विचार और अनुसंधान करते रहे।  नक्शे को बदलने का दबाव भी बना। लेकिन उत्ज़ोन ने हार नहीं मानी 
सिडनी टाइल्स 

और अंतत: इसका हल ढूंढ ही लिया। छत पर लगी टाइल्स भी संसार भर  में खोजने के बाद, उत्ज़ोन को जापान में इसका हल मिला। छत में कुल 10,56,006 टाइल्स लगीं। जब बन कर तैयार हुआ तो विश्व भर के कला मर्मज्ञों ने इसकी भूरी भूरी प्रशंसा की। अमेरिकन वास्तुकार लुइस कहन ने कहा सूर्य को भी पता नहीं होगा कि उसकी रौशनी इतनी सुंदर है जब तक उसने इस भवन से आती अपनी रौशनी खुद नहीं देखी”। ये टाइल्स सिडनी टाइल्स के नाम से विख्यात हुईं।


लेकिन  उत्ज़ोन अपने सपने को साकार होते नहीं देख सका। ऑस्ट्रेलिया की सरकार बदल गई। नई सरकार से उसकी नहीं पटी। लालफ़ीताशाही, नौकरशाही और अभिमान की लड़ाइयों में ओपेरा हाउस का निर्माण और उत्ज़ोन फंस गया।  उत्ज़ोन के कठिन, दुष्कर और नई सोच से कोई भी जल्दी से सहमत नहीं हो पाता था। यह अलग बात है कि उत्ज़ोन उनका नायाब रास्ता ढूंढ लेता था। लेकिन इस चक्कर में समय और खर्च बे-हिसाब बढ़ते जा रहे थे।  अनेक प्रकार के रोड़े रास्ते रोकने लगे  और आखिर उत्ज़ोन को त्यागपत्र देने के लिए विवश होना पड़ा। उत्ज़ोन ने ऑस्ट्रेलिया से मुंह मोड़ लिया और फिर कभी वापस नहीं आया। उसने अपनी बनाई इमारत को कभी नहीं देखा।  उत्ज़ोन के त्यागपत्र देने पर सिडनी के कलाकारों, गणमान्य लोगों ने सरकार के फैसले का विरोध किया और उत्ज़ोन को फिर से काम पर लगाने की  मांग की। लेकिन सरकार और उत्ज़ोन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।

अब तक निर्माण का पहला और दूसरा चरण समाप्त हो चुका था। तीसरे और अंतिम चरण के लिए पीटर हाल को 1966 में नियुक्त किया गया।  लेकिन पीटर इसके लिए तैयार नहीं हुआ। उसे इस बात  का भरोसा दिलाया गया कि उत्ज़ोन वापस नहीं आयेगा। उसने उत्ज़ोन से विचार विमर्श करने के बाद ही अपनी स्वीकृति दी। और फिर आया वह ऐतिहासिक दिन, शनिवार, 20 अक्तूबर 1973, ब्रिटेन की महारानी एलीज़ाबेथ-2 ने सिडनी ही नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया के प्रतिष्ठित भवन का उद्घाटन किया।

कहानी यहीं समाप्त नहीं होती है। दूर दृष्टि रखते और सृजनात्मक सोच अपनाते हुए किसी भी इमारत को कालजयी बनाना दुरूह है। सपने देखना आसान है, कठिन है उसे साकार करना। 1973 में बनी इमारत कालजयी नहीं हो सकती अगर समय के साथ इसमें परिवर्तन नहीं किया जाए। पुरानी वस्तुओं को निरंतर नवीन नहीं किया जाए, यंत्रों का नवीनीकरण नहीं किया जाय और इन्हें अंजाम देते हुए इसके प्राचीन सिद्धांतों को बरकरार नहीं रखा जाए, तो समय के साथ ऐसे सृजन इतिहास के पन्नों में सीमिट कर रह जाते हैं। ऐतिहासिक धरोहर बन का रह जाती हैं।

राज्य सरकार की सोच इससे आगे तक थी। वह इसे शताब्दियों तक बनाए रखने के लिए कटिबद्ध थी। यह कार्य शायद निर्माण से भी ज्यादा कठिन था।   इसके लिए भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों पर एक साथ नजर रखना आवश्यक था। इसकी व्यवस्था करने के लिए एक और केवल एक ही व्यक्ति सही था – जोर्न उत्ज़ोन खुद। 1999 में  व्यापक मोलभाव और खुशामद  के बाद उत्ज़ोन तैयार हो गया। एक लंबे समय के बाद आखिर इसके मूल निर्माता और कलाकार तथा कलाकृति  का पुनर्मिलन हुआ। उसे उन सिद्धांतों को प्रतिपादित करने का उत्तरदायित्व दिया गया जिसके आधार पर भविष्य में इस भवन का रख-रखाव तथा नवीनीकरण किया जाए। उत्ज़ोन ने एक तरफ अपने मौलिक रचना और निर्माण तथा दूसरी तरफ आधुनिकता को ध्यान में रखते हुए अपने उत्तरदायित्व का भली भाँति निर्वाह किया जिसके आधार पर देश की यह प्रतिष्ठित इमारत शताब्दियों तक अपने प्रतिष्ठा को बनाए रख सके। 19 अगस्त 2000 को उत्ज़ोन ने ओपेरा हाउस के अध्यक्ष श्री जो स्क्र्यज़्न्स्कि (Joe Skryznski) को लिखे अपने पत्र में इन बातों का उल्लेख किया।

सितंबर 2004 में स्वागत कक्ष को नए स्वरूप में फिर से खोल दिया गया। यह स्वगत कक्ष उत्ज़ोन द्वारा ही  निर्मित किया गया। इसका नामकरण भी उसी के नाम पर उत्ज़ोन कक्ष रखा गया। पूरे ओपेरा हाउस में यह अकेला कक्ष है जिसके आंतरिक भाग का निर्माण उत्ज़ोन ने किया।

2013 में भवन की 40वीं वर्षगांठ मनाई गई। 17 दिन चले इस कार्यक्रम को 30,000 लोगों ने देखा। डलॉइट ने अपनी एक रिपोर्ट में इस भवन का मुल्य $4.6 बिलियन, यानि 460 करोड़ ऑस्ट्रेलिया डॉलर, यानि लगभग 22435.6 करोड़ रुपए आँका। 2016 में ओपेरा हाउस ने इमारत के  नवीनीकरण के लिए $202 मिलियन का बजट बनाया। सरकार ने इसकी मंजूरी दे दी है। 1973 के निर्माण के बाद यह सबसे बड़ा नवीनीकरण का कार्य प्रारम्भ किया गया है। इसके 2022 तक पूरा होने का लक्ष्य रखा गया है।

तो, याद रखें। जब भी सिडनी जाएँ, ओपेरा हाउस जरूर देखें, अंदर से।

शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

सूतांजली नवंबर २०१९


सूतांजली नवंबर २०१९ में ३ लेख हैं।
१.  झंझटों से मुक्ति का कठिन उपाय
झंझट हमारे मन में हैं, हमारी सोच में है। इसके हम इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि आए हुए सुख और प्रसन्नता के क्षण को हम पहचान नहीं पाते। वे अवसर भी हमें झंझट लगने लगे हैं। जरूरत है उन्हे समझने और उत्सव की तरह मनाने की।
२. समय का उपयोग और सेवा कार्य  
हमारे जीवन का हर क्षण अनमोल है। गया हुआ समय वापस नहीं आता। हर क्षण का उपयोग करना आसान नहीं है। अगर हमें इसका अभ्यास नहीं है तो नहीं कर पाएंगे। इसी प्रकार सेवा कार्य भी उतना ही मत्वपूर्ण है जितना दैनिक जीवन के अन्य कार्य। इसके लिए यह आवश्यक नहीं कि  अलग से समय निकालें। अपने हर बचे हुए समय को सेवा कार्य में लगाएँ।
३. सुख की  खोज  
दूसरे का सुख खोजने में ही अपना सुख छिपा होता है।

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