शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

हम आभारी हैं / नहीं हैं !

 हम आभारी नहींहैं!                                                   खबरें, जरा हट के

(यह खबर किसी अखबार में नहीं छपी, न ही टीवी चैनल पर सुना गया और न ही सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा हुई। इसे पढ़ा एक पत्रिका में। अमेरिका में 9/11 के आतंकी हमले के समय क्या किया इन अनपढ़, अनजान आदिवासियों ने कि नैरोबी स्थित अमरीकी दूतावास के डिप्टी चीफ विलियम ब्रांगिक को उनका आभार जताने और उनकी सौगात लेने के लिए भाग कर वहाँ जाना पड़ा और अमेरिकन जनता ने अपनी सरकार को उनकी बात मानने के लिए बाध्य किया और उन आदिवासियों की सौगात अमेरिका लानी पड़ी। और हम भारतीयों ने, अपने देश में कोरोना के द्वितीय चरण में उनकी सौगात का कैसे आभार जताया यह भी जानिए। पढ़ें पूरी खबर।)

 

आपने अमरीका का, उसके मैनहटन का भी और उसके वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का और फिर ओसामा बिन लादेन का नाम तो सुना ही होगा। ज्यादातर लोगों ने जो नाम नहीं सुना होगा वो है इनोसाइन गांव का जो पड़ता है केन्या और तंजानिया के बॉर्डर पर। यहां की जनजाति है- मसाई ! अमरीका पर हुए 9/11 के हमले की खबर मसाई लोगों तक महीनों बाद तब पहुंची जब उनके गांव के पास के ही कस्बे में रहने वाली, स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी की मेडिकल स्टूडेंट किमेली नाओमा छुट्टियों में वापस केन्या आई। उसने मसाइयों को 9/11 का 

आंखों देखा हाल सुनाया। कोई बिल्डिंग इतनी ऊंची भी हो सकती है कि वहां से नीचे गिरने पर आदमी की जान चली जाए, मसाइयों के लिए यह लगभग अविश्वसनीय बात थी। फिर भी वे सब अमेरीकियों के दुःख से दुःखी हुए और उसी मेडिकल स्टूडेंट के माध्यम से केन्या की राजधानी नैरोबी स्थित अमरीकी दूतावास के डिप्टी चीफ विलियम ब्रांगिक को एक पत्र भिजवाया। पत्र क्या मिला कि विलियम ब्रांगिक बेचैन हो उठे। उन्होंने नैरोबी जाने वाली पहली फ्लाइट का टिकट लिया और पहुंचे नैरोबी, वहां से कई मील टूटी-फूटी सड़कों पर कठिन सफर पूरा कर पहुंचे इनोसाइन गांव, और फिर बैठे मसाइयों के सामने। मसाइयों को जैसे ही पता चला कि उन्होंने जिसे पत्र लिखा था वह गांव में आ पहुंचा है, वे सब जमा हुए। उनके साथ थीं एक कतार में खड़ी 14 गायें! मसाइयों के एक बुजुर्ग ने गायों से बंधी रस्सी डिप्टी चीफ के हाथों में पकड़ा दी और फिर उस तख्ती की तरफ इशारा किया जिस पर लिखा था कि दुःख की इस घड़ी में अमेरीका के लोगों की मदद के लिए हम ये गाये उन्हें दान कर रहे हैं।" जी हां, यही तो पत्र था कि जिसे पढ़ कर दुनिया के सबसे ताकतवर और समृद्धि देश का राजदूत सैकड़ों मील चल कर चौदह गायों का दान लेने आया था।

          गायों के ट्रांसपोर्ट की कठिनाई और कानूनी बाध्यता के कारण गायें तो अमरीका नहीं जा भेजी जा सकती थी अतः उन्हें बेचकर मसाई परंपरा का एक आभूषण खरीद कर 9/11 मेमोरियल म्यूजियम में रखने की पेशकश की गई। जब यह बात अमेरीका के आम नागरिकों तक पहुंची तो एक दूसरा ही नजारा सामने आया। नागरिकों ने आभूषण की जगह 14 गाएं ही लेने की जिद्द पकड़ ली। ऑनलाइन पिटीशन साइन करने का अभियान चल पड़ा : 'आभूषण नहीं, गाय!' अधिकारियों के पास ईमेल का अंबार जमा होने लगा। नेताओं से बात की गई और करोड़ों अमेरीकियों ने मसाइयों और केन्या के लोगों को इस अभूतपूर्व प्रेम के लिए कृतज्ञ भाव से धन्यवाद दिया, उनका अभिनंदन किया।

अब एक छोटा-सा अलग वाकया भी पढ़िये। (यह रिपोर्ट भी उपरोक्त रिपोर्ट का ही अंश है।)

कोरोना कहर का हालिया विवरण (भारत का) टीवी पर देख कर केन्या द्वारा हमें (भारत को) भेजी गई 12 टन अनाज की सहायता का बहुत से लोग मजाक उड़ा रहे हैं। सोशल मीडिया पर केन्या को भिखारी, भिखमंगा, गरीब आदि-आदि कहा जा रहा है और यह भी सुनाया जा रहा है कि हमें उनके 12 टन अनाज की जरूरत ही क्या थी! उनके आभारी होने के बजाय हम उनकी खिल्ली उड़ाने में मशगूल रहे।



          बात 12 टन अनाज की नहीं, जिसे दुनिया का कोई तराजू तौल न सके, उस प्रेम की है। दान नहीं, दानी का हृदय देखिए; कंकड़ नहीं, कंकड़ उठा कर सेतु में लगाने वाली गिलहरी की श्रद्धा देखिए। केन्या का भेजा 12 टन अनाज हम सिर झुका कर और भरे हृदय से कबूल करेंगे तो कोरोना के घाव पर एक मरहम ही लगेगा। खिल्ली उड़ाने से, हमारी ही खिल्ली उड़ेगी।

(गांधी मार्ग से)

(क्या हम आभार का अर्थ जानते हैं? क्या आप आभार जताना जानते हैं? क्या यही तरीका है हम भारतीय ऋषि-पुत्र, संस्कार-युक्त, आर्य-पुत्र का? होंगे हम ऋषि पुत्र, संस्कार युक्त, आर्य पुत्र, पाँच हजार वर्ष पूर्व, आज नहीं। आज तो हम बर्बरता की पराकाष्ठा पर हैं। हमारी नज़र में आभार जताने का अर्थ है अपने को छोटा मानना। ऐसा नहीं है कि हमारे देश में ऐसे गाँव-लोग नहीं थे, बहुतायत में थे, शायद अब भी हों, लेकिन कौन बताएगा हमें उनके बारे में? हम, आधुनिक शिक्षा से सन्नद्ध हैं  – मैं और तुम, तुम और मैं, तू और मैं, और फिर तू तू-मैं मैं।)

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आपने भी कहीं कोई ऐसी खबर, हट कर पढ़ी है और दूसरों को बताना चाहते हैं तो हमें उसकी कतरन भेजें।

आप चाहें तो उसकी फोटो या स्कैन कॉपी भी भेज सकते हैं।

हम उसे यहाँ, आपके संदर्भ के साथ  प्रस्तुत करेंगे।

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शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

जियो, आज के लिए - मेरे दोस्त




ये सिर्फ खूबसूरती से सजाये गए शब्द नहीं हैं, यही यथार्थ है, जीवन है। इन्हें शब्द या लेख या अनेकों में और एक समझ कर न पढ़ें, इसे ध्यान से आत्मसात करते हुए पढ़ें, धार्मिक पाठ की तरह एक सांस में न पढ़ें बल्कि एक व्यावसायिक अनुबंध, जीवन की सच्चाई समझ कर धीरे-धीरे, समय निकाल कर  समझते हुए पढ़ें, सत्यता को जानने का प्रयत्न करते हुए पढ़ें, और फिर इस पर विचार करें।

यह सभी के लिए काम का है, अगर अभी समय नहीं है तो इसे पढ़ना मुल्तवी रखें, बाद में इतमीनान से पढ़ें, ध्यान से पढ़ें विचार करते हुए पढ़ें, इनके अर्थों में डूब कर पढ़ें।

          मैंने सबसे पहले इस पोस्ट को पढ़ना शुरू किया और तीसरे वाक्य तक पहुंचने तक तेजी से पढ़ रहा था। मैं तब रुका और फिर से शुरू किया, धीरे-धीरे पढ़ना और हर शब्द के बारे में सोचना... अगर यह आपको रुकने और सोचने पर मजबूर नहीं कर रहा है तो अभी रहने दें, बाद में पढ़ें, क्योंकि यह आपको मजबूर करता है रुकने के लिये सोचने के लिए।

         "तो कृपया धीरे-धीरे पढ़ें !!”

 

और लीजिये, अब यह सर्दी का मौसम आ गया है।

          क्या आप जानते हैं कि समय तेजी से आगे बढ़ रहा है और अनजाने रूप से वर्ष के बाद वर्ष गुजरते जा  रहे हैं? ऐसा लगता है जैसे कल मैं छोटा था, अभी-अभी शादी हुई है, और अपने साथी के साथ अपने नए जीवन की शुरुआत कर रहा हूँ। फिर भी एक तरह से, यह युगों पहले की तरह लगता है, और मुझे आश्चर्य है कि वे सभी वर्ष कहाँ गए?  

          मुझे पता है कि मैंने उन सभी को जिया है। मेरे पास उस समय की और मेरी सारी आशाओं और सपनों की झलक है। लेकिन, यहाँ है... मेरे जीवन की सर्दी, और इसने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया... मैं यहाँ इतनी जल्दी कैसे पहुँच गया? वे वर्ष कहाँ गए और मेरी जवानी कहाँ गई? मुझे याद है कि मैं वर्षों से वृद्ध लोगों को देख रहा था और सोचता था कि वे "वृद्ध लोग" मुझसे वर्षों दूर हैं और वह सर्दी इतनी दूर थी कि मैं इसकी थाह नहीं ले सकता था या पूरी तरह से कल्पना नहीं कर सकता था कि यह कैसा होगा।

          लेकिन वह सर्दी अब, यहाँ यह है...मेरे दोस्त-परिचित सेवानिवृत्त हो रहे हैं और वृद्ध हो रहे हैं ... वे धीमी गति से आगे बढ़ते हैं और मैं अब अपने आप में एक बूढ़ा व्यक्ति देखता हूं, कुछ मुझसे बेहतर और कुछ बदतर स्थिति में हैं..। लेकिन, मैं महान परिवर्तन देखता हूं.. उन लोगों की तरह नहीं जो मुझे याद हैं कि कौन युवा और जीवंत थे...लेकिन, मेरी तरह, उनकी उम्र दिखने लगी है और हम अब हैं वे पुराने लोग जिन्हें हम देखते थे और कभी नहीं सोचा था कि हम भी कभी ऐसे होंगे।

          अब हर दिन, मुझे लगता है कि सिर्फ स्नान करना ही दिन के लिए एक वास्तविक और एकमात्र लक्ष्य है! और झपकी लेना अब कोई इलाज नहीं है...यह अनिवार्य है! क्योंकि अगर मैं अपनी मर्जी से नहीं करता तो... मैं जहां बैठता हूं वहीं सो जाता हूं!

और इसलिए...अब मैं अपने जीवन के इस नए मौसम में प्रवेश करता हूं, जो सभी दर्द और पीड़ा के लिए तैयार नहीं है और उन चीजों को करने की ताकत और क्षमता में  कमी है जिन्हें  काश मैंने किया होता लेकिन कभी नहीं किया !! लेकिन, कम से कम मुझे पता है, सर्दियों के माध्यम से कि यह अब आ गया है, और मुझे यह पता नहीं है कि यह कब तक रहेगा ... यह मुझे पता है, कि जब यह इस धरती पर खत्म हो जाएगा ... तब सब समाप्त हो जाएगा और एक नया रोमांच शुरू होगा!

          हाँ, मुझे खेद है। कुछ चीजें हैं जो मैंने की, काश मैंने नहीं की होती...ऐसी भी चीजें जो मुझे करनी चाहिए थीं, लेकिन नहीं की। वास्तव में, कई चीजें ऐसी भी हैं जिन्हें, मुझे खुशी है, मैंने की। यह सब एक जीवन में।

          इसलिए, यदि आप अभी तक अपनी सर्दी में नहीं हैं ... तो मैं आपको याद दिला दूं, कि यह आपके विचार से ज्यादा तेज गति से आयेगा। इसलिए, आप अपने जीवन में जो कुछ भी हासिल करना चाहते हैं, कृपया उसे जल्दी से करें! चीजों को ज्यादा देर न टालें!! जीवन जल्दी बीत जाता है। तो, आज आप जो कर सकते हैं वह करें, क्योंकि आप कभी भी सुनिश्चित नहीं हो सकते कि यह आपकी सर्दी है या नहीं!

 

          आपसे कोई वादा नहीं है कि आप अपने जीवन के सभी मौसम देखेंगे... इसलिए आज के लिए जियें और वे सभी बातें कहें जो आप चाहते हैं कि आपके प्रियजन याद रखें... और आशा करें कि वे उन सभी चीजों के लिए आपकी सराहना करें और आपसे प्यार करें, जो आपने पिछले सभी वर्षों में उनके लिए किया है !!

"जीवन" आपके लिए एक उपहार है। जिस तरह से आप अपना जीवन जीते हैं, वह आपके बाद आने वालों के लिए आपका उपहार है। आप इसे अलौकिक, विलक्षण बनाएँ।

याद रखें: "स्वास्थ्य ही वास्तविक धन है, न कि सोने और चांदी के टुकड़े।"

अब आपके बच्चे आप बन रहे हैं... लेकिन आपके पोते परिपूर्ण हैं!

बाहर जाना अच्छा है... पर घर आना और भी अच्छा है!

आप नाम भूल जाते हैं... लेकिन यह ठीक है, क्योंकि दूसरे लोग भूल गए हैं, वे आपको जानते भी नहीं हैं!!!

आपको एहसास होता है कि आप कभी भी किसी भी चीज़ में अच्छे नहीं होंगे... ख़ासकर अपने पसंदीदा खेल में।

जिन चीजों को करने के लिए आप पहले परवाह करते थे, अब आप उन्हें करने की परवाह नहीं करते हैं, लेकिन आप वास्तव में परवाह करते हैं कि अब आप उन्हें और करने की परवाह नहीं करते हैं।

          आप बिस्तर के बजाय लाउंज कुर्सी पर, ऊंची आवाज में चलते टीवी के सामने सोना पसंद करते हैं। इसे "पूर्व-नींद" कहा जाता है। आप उन दिनों को याद करते हैं जब सब कार्य सिर्फ  हाँ  और "ना" के बटन से करते थे। लेकिन अब आप अधिकतर... "क्या?"... "कब?"... “कहाँ?”….. “क्यों?” शब्दों का प्रयोग करते हैं।

अब, जब आप महंगे आभूषण - पोशाक खरीद सकते हैं, तब अब इसे कहीं भी पहनना सुरक्षित नहीं लगता है।

आप देखते हैं कि वे दुकानों में जो कुछ भी बेचते हैं वह "बिना आस्तीन का है?" – आपके काम का नहीं।

सब फुसफुसाते हैं।

आपकी अलमारी में अब तीन आकार के कपड़े हैं...  जिनमें से दो आप कभी नहीं पहनेंगे।

लेकिन "पुरानी" कुछ चीजें ज्यादा अच्छी होती हैं, जैसे पुराने गाने, पुरानी फिल्में, पुराने .....

 

और सबसे अच्छा, हमारे प्यारे..... दोस्त  – पुराने दोस्त !!

अच्छे से रहो, मेरे  "पुराने दोस्त!"

एक बार तो मुस्कुराओ।

(रबीन्द्र सरोवर फ़्रेंड्स फोरम से अनूदित)

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शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

सूतांजली जुलाई 2022


 

सूतांजली के जुलाई अंक में कुछ विचार, लघु कहानी और धारावाहिक कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी का समापन किश्त है।

१। विडम्बना  

विडम्बना यह है कि हम धर्म मानते हैं, ईश्वर पर विश्वास करते हैं। पैगंबर के पीछे चलने को, उनका अनुगामी बनाने को भले ही तैयार हों, परमात्मा के पीछे चलने को तैयार नहीं।  धर्म ही, प्रत्येक व्यक्ति के अंदर जलनेवाली ज्वाला को प्रज्ज्वलित करने में सहायता करती है। धर्म केवल सहायता करती है, उसे जलाना और जलाए रखना हमारा ही काम है।

२। ईश्वर को एक अर्जी       

ईश्वर ने हमें यहाँ धरती पर भेज दिया, लेकिन किस अवस्था में, किस वातावरण में, किनके बीच? और जब हम तैयार हुए हमें बुला लिया? यह भी कोई बात हुई?

३। जिंदगी ......, जरूरी यह है कि वह कुछ बेहतर दे

हमारे पास करने के लिए बहुत अच्छे-अच्छे विचार हैं, योजना हैं, अवधारणाएँ लेकिन हमें यह भी पता है कि हम वह सब नहीं कर सकते। तब क्या, वे जो उसे बेहतरीन ढंग से कर सकते हैं, उन्हें नहीं दे सकते?

४। चरित्र बल     लघु कहानी - जो सिखाती है जीना

सी.वी.रमण भौतिकशास्त्र के प्रख्यात वैज्ञानिक के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग।

५। कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी

धारावाहिक का समापन किश्त

 

यू ट्यूब का संपर्क सूत्र (लिंक) : à

https://youtu.be/h5azbOcbxXQ

 

ब्लॉग  का संपर्क सूत्र (लिंक): à  

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