शुक्रवार, 16 दिसंबर 2022

सस्ते बहाने, महंगी सफलता

 शेक्सपीयर ने कहा था, 'जो मक्खी के डंक से डरता है, वह कभी शहद नहीं पा सकता।' उन्नति की पहली शर्त है जोख़िम लेने का साहस और चुनौतियां स्वीकारने का जज्बा - यदि हम जीवन को भय और असुरक्षा के ख़याल से बांधे रखेंगे, तो कभी भी नई शुरुआत की हिम्मत नहीं पा सकेंगे। जीवन चाहता है कि हम उसे मक्खी का डंक नहीं शहद का छत्ता मानें और चुनौतियों का सामना करने के लिए साहस का कंबल खोज लें।


         

विलियम काबेट ने लिखा है, 'मैंने आठ साल तक खेत में हल चलाया। जब मुझे छह पैसे मज़दूरी के एवज में मिल रहे थे, तब मैं रात को व्याकरण पढ़ा करता था। खाने के पैसों में कटौती करके काग़ज़ क़लम ख़रीदता था। मुझे वह दिन बार-बार याद आता है, जब मैंने 1 सेंट बचाकर जेब में रख लिया था, मछली ख़रीदने के इरादे से। पर वह सिक्का जाने कहां गुम हो गया। मैं भूख और तक़लीफ़ से रात भर रोता रहा। ये जीवन के कठिन दिन थे, पर मैं इन कठिनाइयों के आगे की सपनीली भोर के बारे में सोचता था। और ये कठिनाइयां मेरे जीवन का सबसे बड़ा सबक़ बन गईं। यह सबक़ सीखने के बाद न कोई बाधा मुझे डरा सकी। न कोई कठिनाई मेरा रास्ता रोक सकी।' क्या आप जीवन की एकरसता से ऊबकर जम्हाइयां लेते हैं?

         विलियम काबेट जैसे अनगिनत जीवन हमारे लिए सबक़ की तरह बिखरे पड़े हैं। उनकी संघर्ष और जीवटता से भरी कहानियां हमें सिखाती हैं कि जिंदगी की किताब को कभी भी इस वजह से बंद मत कीजिए कि जो पन्ना सामने है, वह आपको पसंद नहीं। थोड़ा जोख़िम उठाइए और पन्ना बदलकर देखिए, क्योंकि जीवन के सबसे उजले पन्ने संघर्ष के उस पार छिपे होते हैं। बेशक पीछे मुड़कर नया अंत लिखना मुमकिन नहीं, पर एक नई शुरुआत करके एक सुखद अंत लिखा जा सकता है। इसीलिए ख़तरों, प्रतिकूलताओं और जीवन की अनिश्चितता से बचकर मत भागिये, योद्धा की तरह उनका सामना कीजिए।

·       एक चीज दुनिया की सारी सेनाओं से भी ताक़तवर है – वह है आपकी विचार शक्ति। जीवन में नया उजास लिखने के लिए आप इस शक्ति का आह्वान कीजिए।

·       जो बेहतर है, वह अभी घटित नहीं हुआ है। द बेस्ट इज़ येट टु बी... याद रखिए कि जैसे बेहद अजीज होने के बावजूद आप किताब के पन्ने को एक सीमा के बाद पलट देना चाहते हैं। उसी तरह जिंदगी का कोई लम्हा भले कितना ही ख़ास क्यों न हो, आप उसी पर ठहरे नहीं रह सकते, कितना ही सुखद क्यों न हो, आपको चलना होगा। क्योंकि अगर आप नहीं चले, तो कभी एक नया अध्याय नहीं लिख पाएंगे। कभी नहीं जान पाएंगे कि अगले पन्ने पर जिंदगी आपके लिए कौन-सा मौक़ा कौन-सा आश्चर्य कौन-सा सुख लेकर खड़ी थी।

·       ठीक वैसे ही ज़ो बुरा-से-बुरा भी घटित हुआ है, वह ठहरा हुआ नहीं रहेगा। उसका पन्ना भी पलटेगा ही। एक नया पन्ना खुलेगा, एक नया इतिहास रचेगा ही। और प्रायः जीवन की सबसे बड़ी सफलता का पन्ना ऐसे प्रतिकूल पन्नों के बाद ही खुलता है। अतः हिम्मत बनाए रखिए, उसी पन्ने पर मत चिपकिये, नए पन्ने को पलटने का साहस बनाये रखिये, सफलता आपके कदम चूमेगी।

·       याद रखिए बहाने बड़े सस्ते होते हैं और हर मोड़ पर, क्षण-क्षण में, बहुतायत में  मिलते रहते हैं। लेकिन सफलता बड़ी मंहगी होती है और इसकी विशालता सब विषादों को भुला देती है, पूरे जीवन में  फैल जाती है।

बहाने मत ढूंढिये, सफलता के पथ पर निडर होकर चलिये।

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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

जीने का सलीका, मरने का तरीका

  यह जीवन एक चक्र है जो आरंभ हुआ है तो पूरा भी होगाबचपन के बाद किशोरावस्था, युवावस्था के पश्चात प्रौढ़ावस्था और उसके बाद वृद्धावस्था। ये वर्तुल है जो सबको देखना है। यह उम्र हमारी कड़ी परीक्षा लेता है क्योंकि शरीर कमजोर पड़ रहा है, कान बढ़ गई है, उदासी घेर रही है, आत्म-विश्वास की कमी हो रही है, कमाई-धमाई बंद हो चुकी हैशारीरिक कष्ट बढ़ रहे हैंबीमारी, घुटनों में दर्द, कमर में जकड़न, पेट साफ न होना, नींद न आना, याददाश्त कमजोर होना, कम दिखना, कम सुनाई पड़ना जैसी अनेक समस्याएँ हैं। इनके साथ-साथ इस उम्र में एक और बड़ी समस्या रहती है कि अपना समय कैसे व्यतीत करें? लोगों की नजरें भी बदली-बदली दिखाई पड़ती हैं, उपेक्षा होती है, मान-सम्मान कम होता दिखाई पड़ता है।

          हमारी कच्छाएँ और अभिलाषाएं, अपना पेट भरने की तलाश में अधूरी रह गई थी, उन्हें पूरा करने का यह सबसे माकूल समय है। इस उम्र में अब आप दबावमुक्त है, स्वतंत्र हैआपके पास समय ही समय है, अपने मन की धूरी आस पूरी कर डालिए, और युवा पीढ़ी को मुक्त कीजिये, उन्हें स्वतन्त्रता दीजिये। संगीत सीखना चाहते थे या गाना, फोटोग्राफी करना चाहते थे या पेंटिंग, कविता लिखना चाहते थे या लेख, बागवानी करना चाहते थे या खेती, व्यापार करना चाहते थे या नौकरी, तीर्थ करना चाहते थे या विश्व भ्रमण, परिवार की देखरेख करना चाहते थे या जनसेवा अपने मन का कर डालिए, अच्छा मौका है। यह अवसर अधिक दिन के लिए नहीं मिला है क्योंकि आपके पास समय कम है। कुछ पता नहीं आप कब कुछ भी करने लायक न रह जाएँ या दूत बुलाने आ जाए। यह जरा भी न सोचें कि इस उम्र में अब नया क्यों प्रारम्भ करें? जैसे-जैसे आप की उम्र बढ़ेगी आपकी उम्मीद भी बढ़ेगी, यही आपको दुख पहुंचायेगी। अब खुद से और दूसरों से भी उम्मीद करना बंद करिए। लेकिन अगर अपने मन की करने में लग गए तब उम्मीद बढ़ाने का समय ही नहीं मिलेगा। इस उम्र में आपको कोई पहचान ले, जो जितना कर दे, उतना बहुत है। सारा संसारिक व्यवहार, उपयोगिता पर आधारित हैयदि आपकी उपयोगिता समाप्त हो गई है तो चुप बैठिए या जैसा संभव हो, खुद को उपयोगी बनाइएआपके आसपास अब आपको खुशियाँ खोजनी होंगी, खोजिएआनन्द सब तरफ बिखरा हुआ है, अपना नजरिया बदलिए, बहुत कुछ नया दिखाई पड़ेगा। टीका टिप्पणी करने की सोच और बोल आपके लिए अब घातक हैइस आदत को तुरंत फुल स्टॉप कर दें, अन्यथा आपका शेष जीवन जीना दूभर हो जाएगा, अब आपका रुबा नहीं चलने वाला। जैसा बचपन था, जवानी थी, वैसा ही यह बुढ़ापा हैजीवन का सर्वाधिक महत्ववाला हिस्सा, इसे तटस्थ होकर देखिए कि यह कैसा गुजर रहा है। असुविधा और तकलीफों पर नजर गड़ाए रखेंगे तो वे आपके दिमाग पर हावी रहेंगे, आपका चैन छीन लेंगेजो हो रहा है, वह सही है की सोच बनाये, तब ही आपका मन शांत रहेगा वरन नये जमाने का  व्यवहार, बातचीत, आदतें और वेषभूषा आपको ये सब तकलीफ देने वाले हैं। नया जमाना अपने ढंग से चलेगा, आपके कहने से नहीं। उन्हें अपना काम करने दें, आप अपना काम करें।

          आपके पास सबसे प्रबल विकल्प है आपका दीर्घ अनुभवइस अनुभव का उपयोग खोजेंअब आप युवा नहीं है, इसे समझते हुए अपनी क्षमता और योग्यता का आकलन करके उसके अनुरूप काम खोजिए। आप नई पीढ़ी को बहुत कुछ सिखा सकते हैं। उन्हें बहुत कुछ देकर जा सकते हैं, बच्चों को पढ़ा सकते हैं, उनके साथ खेल सकते हैं, खेल सिखा सकते हैं, गरीब और बेसहारा लोगों के लिए सहारा बन सकते हैं, लेकिन उन्हें मछली खिलाकर पुण्य न कमाएं बल्कि मछली पकड़ना सिखाएं। अपने जीवन के जीवनोपयोगी अनुभवों को लिख डालिए। धार्मिक, समाज-सेवी, साहित्यिक संस्थाओं से रुचि अनुसार जुड़िये और अपन बहुमूल्य समय तथा अनुभव उनसे साझा कीजिये।

          स्वयं स्वस्थ रहें और दूसरों को स्वस्थ रहने के उपाय सिखाएं, व्यायाम और योग से जोड़ें, उन्हें खानपान की अच्छी आदतों से जोड़ें, मोहल्ले के बच्चों और युवाओं से दोस्ती बनाएं और निभाएं, यह बहुत रोचक काम है। लायब्रेरी से जुड़ें और विविध विषयों पर नई जानकारियाँ लें और उन्हें युवाओं में वितरित करें। इस बात का सदैव ध्यान रखें कि आपके पास समय ही समय है लेकिन शेष लोगों के पास नहीं है, इसलिए उनके समय के महत्व को समझते हुए उन पर बोझ न बनें अन्यथा लोग आपसे बिकने लग जाएंगे और आपको देखते ही मन ही मन में कहेंगे ‘बुढ़ऊ आ गया दिमाग चाटने’।

          अगर आपको रुचता हो तो घर के काम सम्भालना आरम्भ करें। सुबह जागने के बाद बिस्तर, चादर, रजाई, कम्बल और मच्छरदानी अपने हाथों समेटें। अपने हाथ से सुबह की चाय सबके लिए बनाएं ड्राइंगरूम को व्यवस्थित कर दें, लेकिन शान्तिपूर्वक किसी को बाधा न हो। अन्यथा, सुबह सैर के लिए निकल सकते हैं, किसी सार्वजनिक स्थान में जाएं और नये लोगों से पहल करके मित्रता स्थापित करें, व्यायाम करें, चर्चा में भाग लें और प्रकृति की खूबसूरती को निहारें, दोनों हाथों को आकाश की ओर उठाकर खुद में उसकी विशालता को समेटने का प्रयास करें और दृश्यमान देवता सूर्य को प्रणाम करें। अपने काम खुद करने का प्रयास करें, किसी पर बोझ न बनें बल्कि सहायक बनने का उपक्रम करेंयाद रखिए, आपका शरीर तनिक वृद्ध हो चला है, मन अभी युवा है, उसकी ताजगी बनाए रखें लेकिन सतर्कता के साथहर समय मुस्कुराने की आदत बना लें तो आप भी खुश और दूसरे भी

          अंत में, मृत्यु के स्वागत के लिए हर समय तैयार रहें। आप अपनी पारी खेल चुके, अब नये लोगों को मौका देना है। मृत्यु का आगमन एक सुखद अंत है, इस कष्टप्रद शरीर का शरीर से मुक्त होना अपने जन्म से मुक्त होना है, वर्तुल तो पूरा होगा, होने दीजिये, जो आप कर सके, वह आपने कर लिया अब मुक्ति के आगमन के उत्सव को मनाने की तैयारी में भिड़ जाएँ।


         

सद्गुरू जग्गी वासुदेव ने कहा है आप जीवन में जो भी काम करते हैं उनमें मरना सबसे आखिरी काम है और इसे आप एक ही बार कर सकते हैं। दूसरे सब कार्य आप कई बार कर सकते हैं लेकिन आप एक ही बार मर सकते हैं इसलिए यह काम तो आपको विशेष तरीके से हँसते-खेलते प्रसन्नता से करना चाहिए। यह बड़ा महत्वपूर्ण है, आपको मरने का काम विशेष तरीके से हँसते-खेलते प्रसन्नता से करना चाहिए।

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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022

सूतांजली दिसंबर 2022


 

सूतांजली के दिसम्बर अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-

इस अंक में हैं:

१। बड़ी-बड़ी छोटी-छोटी बातें               मेरे विचार

जीवन की छोटी-छोटी बातें ही बड़ी-बड़ी बातों को जन्म देती हैं। सबसे छोटे कण, अणु, में ही अपरिमित ऊर्जा होती है। यह ध्यान रखें, आप अकेले भी उसी दिव्य के अंश हैं।

२। परमात्मा यानी क्या ?                  मैंने पढ़ा  

कौन है यह परमात्मा और कैसे मिले वह? क्या बुद्धि से उसे खोज सकते हैं? जहां बुद्धि हार जाती है वहाँ से शुरू होता है प्रेम का प्रभाव।

 

यू ट्यूब पर सुनें : à

https://youtu.be/ugAohn2uySU

ब्लॉग  पर पढ़ें : à 

https://sootanjali.blogspot.com/2022/12/2022.html


 


शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

त्रिविध परीक्षण


 

यूनानी दार्शनिक सुकरात से उनकी जान-पहचान का व्यक्ति एक दिन उनसे मिलने आया। वह सुकरात से कुछ कहने के लिए बड़ा उद्विग्न था। उसने छूटते ही सुकरात से कहा: "क्या बताऊं! आपके उस दोस्त के बारे में मैंने क्या सुना?"

उसकी बात पूरी होने के पहले ही सुकरात बीच में बोल पड़े “जरा ठहरो! तुम कुछ कहो, इससे पहले मैं तुम्हारी और तुम्हारी बात की जांच तो कर लूं!" दोस्त सुकरात को देखता रह गया, उसे सुकरात की बात समझ नहीं आई। खैर, सुकरात ने अपनी बात जारी रखी। "इससे पहले कि तुम इस दोस्त के बारे में कुछ बताओ, मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या तुम पूरी तरह आश्वस्त हो कि तुम जो कहने जा रहे हो वह सत्य है?"

हकलाते हुए रुक-रुक कर दोस्त ने कहा, "नहीं......., ऐसा तो मैं नहीं कह सकता! दरअसल मैंने ये सारी बातें किसी से सुनी हैं और चाहता हूं कि आपको भी बताऊँ।"

“वो तो ठीक है", सुकरात ने कहा, “ जिस बात की सच्चाई का तुम्हें भरोसा नहीं है वह बात तुम मुझसे बांटना चाहते हो तो बताओ, जो बात तुम मेरे दोस्त के बारे में कहने जा रहे हो क्या वह कुछ अच्छी, शुभ बात है?

"नहीं, बल्कि बात तो इसकी उलटी..."

सुकरात ने उसकी बात काटते हुए पूछा, अच्छा तो बात यह है कि तुम मुझे ऐसी बुरी बात बताने जा रहे हो जिसके बारे में तुम यह भी नहीं जानते कि वह सत्य है या नहीं, तो मुझे यह बताओ कि जो तुम मुझे बताना चाहते हो क्या वह मेरे लिए उपयोगी है?

सामने वाला आदमी थोड़ी परेशानी से बोला, “हां, नहीं... नहीं, कुछ खास उपयोगी तो नहीं..."

"अच्छा तो अब सुनो," सुकरात ने अपनी बात पूरी की, "तुम मुझे जो बात बताना चाहते हो वह न सत्य है, न अच्छी है और न उपयोगी ही है, तो उसे सुनने और उसे सुनाने में क्या लाभ?... हम वक्त क्यों जाया करें! आओ, मेरे साथ काम करो!"

सुकरात अपने काम में उसे आदमी को जोड़ कर व्यस्त हो गए। यह कथा संसार भर में 'सुकरात का त्रिविध परीक्षण' नाम से प्रचलित हुई। और सभी इसे अपनी-अपनी तरह से सुनाते हैं। लेकिन इस त्रिविध परीक्षण का सार तो हर कहीं एक ही है : जो व्यर्थ है उसे कहने सुनने में समय व्यर्थ न करो

(अगला कोई किस्सा कहने-सुनने, व्हाट्सएप्प किसी को भेजने के पहले इस त्रिविध परीक्षण को दुबारा पढ़ें और उसका त्रिविध परीक्षण करें। दूसरों की बात कहने के बजाय अपनी बात, अपना अनुभव साझा कीजिये। कबीर को याद कीजिये:

“सार-सार को गही रहे, थोथा देई उड़ाय”

तोड़ने की बात उड़ा दीजिये, जोड़ने की बात रख लीजिये। सत्य को रख लीजिये अफवाह को उड़ा दीजिये। अफवाहों को फैलाना बंद कीजिये। किसी की लिखी / पढ़ी / सुनी बात अच्छी लगे तो उसके साथ अपने विचार, अपने अनुभव भी जोड़ कर भेजिये। इससे आपका ही फायदा होगा क्योंकि:  

1। जो अच्छी बात आप आगे भेज रहे हैं, उसे पहले खुद को समझना होगा, उस पर मनन करना होगा, अपने अनुभव जोड़ने होंगे, और  

2। इस प्रकार छान कर भेजी हुए बात को पढ़ने वाला, सुनने वाला ज्यादा महत्व देगा।)

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शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

कैसे चढ़ें, सफलता की चढ़ाई

 निरंतर सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते चले जाना बड़ा आनंददायक होता है। लेकिन इसके लिए अथक परिश्रम और प्रयास ही नहीं बल्कि बड़ी सूझ-बूझ और समझदारी का हुनर भी आवश्यक होता है। मंजिल तक ले जाने वाला हमारा हर प्रयास महत्वपूर्ण होता है।  केवल प्रयास ही नहीं बल्कि विश्राम, धैर्य आदि का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। इन तथ्यों को सही ढंग से समझना और उन पर अमल करना जरूरी होता है। एक गलत कदम, हमें मंजिल से कोसों दूर ले जाता है। आज के इस आधुनिक युग में इस विषय पर बोलने वाले और लिखने वालों को भी कमी नहीं है। अपनी समझ, सहूलियत, संसाधन और ऊर्जा के अनुसार ही उन्हें अपनाना चाहिए। यह आवश्यक नहीं कि किसी की सफलता का राज आपके लिए भी कारगर साबित होगा। अतः अपना संतुलन रखते हुए ही निर्णय लेना उचित है। इस यात्रा के कुछ कम चर्चित अंग इस प्रकार हैं:

1.   लक्ष्य की स्पष्टता - मंजिल तक पहुँचने के लिए हर व्यक्ति को प्रयास करना पड़ता है, श्रम करना पड़ता है। ये सार्थक तब माने जाते है, जब इनसे हमें मनोवांछित परिणाम मिलते हैं या लक्ष्य हासिल होता है। बहुधा हमें अपने लक्ष्य के बारे में स्पष्टता नहीं होती। अतः कई बार मंजिल पर पहुंच कर भी लक्ष्य-भेदने से चूक जाते हैं लक्ष्य-भेदन का आनंद नहीं ले पाते। मार्ग और मंजिल को हम बहुधा एक ही मान बैठते हैं, ये दोनों अलग-अलग हैं। धन कमाना मार्ग भी हो सकता है मंजिल भी। लेकिन अगर यह मंजिल है और धन का माप निश्चित नहीं है तब यह जीवन पर्यंत मार्ग ही बना रहता है मंजिल कभी नहीं। अतः कितना धन चाहिए, यह स्पष्ट होना चाहिए। धन क्यों चाहिए – तब धन मंजिल नहीं मार्ग ही है, और इस क्यों में आपकी मंजिल छिपी है। धन चाहिए, रहने के लिए बंगले के लिए। कहाँ, कितना बड़ा। इसका एक मानसिक चित्र बनाइये और धन का अनुमान कीजिये। उतना धन मिल जाने पर लक्ष्य-भेदन कीजिये, बंगला खरीदिए और इसका जश्न मनाइए। अन्यथा कब मंजिल मार्ग में परिवर्तित हो गई पता ही नहीं चला। मार्ग पर चलने में इतने व्यस्त हो गए कि हमें मंजिल का ध्यान ही नहीं रहा और उसे पार कर गए। लक्ष्य-भेदन के बाद, उसका आनंद लीजिये और एक नई मंजिल तय कर फिर से चल पड़िये।

2.   विश्राम – जी हाँ। अथक प्रयास ही नहीं विश्राम की भी सफलता के मार्ग में बड़ी भूमिका है। इसकी चर्चा कहीं नहीं मिलती और प्रायः लोग इसे नज़र अंदाज़ भी कर देते हैं। लेकिन कई बार मंजिल के नजदीक पहुँच कर हाथ में आई हुई सफलता भी छूट जाती है। विश्राम न समय की बरबादी है न लक्ष्य से भटकाव। बल्कि पाँवों को भलीभाँति जमा कर आगे बढ़ने का कारगर सूत्र है। मार्ग में ईंधन के लिए रुकना आवश्यक है, अन्यथा मंजिल के करीब पहुँच कर भी, ईंधन की कमी के कारण, व्यक्ति लक्ष्य से वंचित रह जाता है। लक्ष्य तक पहुँचने के लिए जितना महत्व प्रयास व श्रम का है, उतना ही महत्व विश्राम का भी है। विश्राम करने से हमें थकान से राहत मिलती है और आगे बढ़ने के लिए मानसिक और शारीरिक ऊर्जा भी मिलती है। अति उत्साह और लालच का परिणाम नुकसानदायक व हानिकारक हो सकता है। इसलिए मंजिल तक पहुँचने के लिए उत्साह तो बनाए रखना चाहिए, लेकिन अति-उत्साह में अपना नियंत्रण नहीं खोना चाहिए। विश्राम के अभाव में अंतिम क्षणों में धैर्य छूटने लगता है, एकाग्रता भंग हो जाती है, ध्यान भटक जाता है, सांस टूट जाती है और हम गलती कर बैठते हैं,

3.   हर कदम महत्वपूर्ण – वर्ष में 12 महीने होते हैं और छः ऋतुएँ। क्या कोई बता सकता है कि कौन-सा महीना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है? अगर एक भी महीना बाद दे दें तो क्या वर्ष पूरा होगा? कौन-सी ऋतु खास है? सब ऋतुओं की अपनी अहमियत है, सब का अपना रंग है, किसी एक के न रहने से संतुलन बिगड़ जाएगा। इसी प्रकार जीवन में चलते हुए हर कार्य का अपना महत्व है, किसी भी कार्य को छोटा या बड़ा न समझें। जिस तरह एक-एक ईंट को कुशलतापूर्वक रखकर और जोड़कर ही किसी श्रेष्ठ भवन का निर्माण किया जाता है, एक-एक सीढ़ी चढ़कर ही किसी भवन की ऊपरी मंजिल तक पहुँचा जा सकता है- उसी तरह हमारे द्वारा किए जाने वाले छोटे-छोटे कार्यों द्वारा ही हम जीवन की बड़ी मंजिल को बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। छोटे-छोटे कार्यों की उपेक्षा करके अपनी महत्वाकांक्षाओं को सार्थक करने का स्वप्न देखना बहुत बड़ी भूल है।  छोटी-छोटी सफलताएँ प्राप्त करते हुए चलने से जीवन में बड़ी सफलताएँ स्वतः प्राप्त होती हैं। महात्मा बुद्ध के अनुसार-'आपके सामने जो कार्य हैं, उन्हें पूरे उत्साह एवं पूरी शक्ति के साथ करें। छोटा समझकर किसी कार्य की उपेक्षा न करें।'  हमारा प्रत्येक कदम लक्ष्य की प्राप्ति का सूचक है, इसलिए छोटे-छोटे कदमों की अवहेलना न करते हुए उन्हीं कदमों को आत्मसात करना चाहिए और स्वयं पर विश्वास रखना चाहिए।

4.   एक कदम पीछे – फूटबॉल का खेल हो या क्रिकेट, दंगल हो या कुश्ती, टैनिस हो या बैडमिंटन, हर जगह देखा होगा कि खिलाड़ी और कैप्टन अपनी रणनीति बदलते रहते हैं। कभी हमलावर, एटैकिंग, खेल खेलते हैं तो कभी रक्षात्मक, डिफ़ेन्स। इसमें न कोई बुराई है, न शर्मिंदगी और न ही अपमान का अनुभव। बल्कि युद्ध के मैदान में भी सेनापति अनेक बार पीछे लौट कर फिर से आक्रमण करता है। जब जीवन के अनेक स्थानों पर एक कदम पीछे की नीति सफलता पूर्वक अपनाते हैं तब अन्य अनेक जगहों पर एक कदम पीछे लेने से हम क्यों घबराते हैं, क्यों अपमानित अनुभव करते हैं, क्यों शर्मिंदगी अनुभव करते हैं? सफलता की ऊंचाइयों पर चढ़ते समय कई बार ऐसे संयोग बनते हैं जहां एक कदम पीछे लेने में कोई हर्ज नहीं बल्कि चोटी तक पहुँचने के लिए आवश्यक भी होता है। ऐसी अवस्थाओं में बढ़ाए हुए कदम को वापस खींचने में कोई हर्ज नहीं होता क्योंकि उस बढ़ाये हुए कदम में ही अंतिम सफलता की कुंजी होती है।

5.   लगातार प्रयास – लक्ष्य भेदने में असफल होने से निराश नहीं होना चाहिए। किए गए पूरे प्रयास को निरर्थक नहीं मानना चाहिए। प्रयास व श्रम - मनोवांछित परिणाम न मिलने पर भले ही निरर्थक प्रतीत हों, फिर भी इनका महत्व होता है; क्योंकि इनके कारण हम अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं, इनसे हमें अनुभव की प्राप्ति होती हैं, इनके कारण हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

          दुनिया में कोई भी कार्य एकाएक पूरा नहीं होता, लगातार प्रयास करने पर, निरंतर जुटे रहने पर, श्रम का सम्पुट जोड़ने पर कार्य पूरा होता है। जैसे कोई भी मकान एकाएक नहीं बन जाता है। पहले मकान का नक्शा बनाया जाता है, फिर नींव खोदी जाती है, मकान बनाने के लिए आवश्यक सामग्री जुटाई जाती है, फिर योजनानुसार धीरे-धीरे मकान बनकर तैयार होता है। यदि हमारे दस छोटे प्रयासों में से पाँच प्रयास असफल होकर हमें हतोत्साहित करते हैं, तो वे पाँच प्रयास जो सफल कदम हो गए हैं, हमें उत्साहित भी करते हैं।

          एक छोटा बालक जब चलना सीखता है, तो पहले वह घुटनों के बल चलता है, फिर किसी वस्तु का सहारा लेकर धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करता है, फिर डगमगाते कदमों से आगे बढ़ता है। खड़े होकर चलने के इस प्रयास में बच्चा कई बार गिरता है, उसे चोट लगती है, वह रोता भी है, लेकिन हार नहीं मानता। बार-बार प्रयास करता है और एक दिन वह अपने प्रयास में सफल होता है। फिर वह न केवल चलता है, बल्कि दौड़ता भी है।

6.   अध्यात्म को अपनायें – जी हाँ, यह आपको बड़ा अजीब लग रहा होगा, शायद इसे सिरे से खारिज कर दें। लेकिन ठहरिये, उपरोक्त पांचों में सबसे महत्वपूर्ण यही है। इसे पहले नंबर पर न रख कर यहाँ केवल इसलिये रखा हूँ क्योंकि अनेकों के मन में अध्यात्म के प्रति विरोध रहता है, इसे स्वीकार नहीं करते। लेकिन याद रखें जब बार-बार लगातार असफल हो रहे हों, निराश जो रहे हों, किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे हों, दुविधा में हों, कोई रास्ता न सूझ रहा हो तब यही सबसे बड़ा मित्र, सहायक और मार्ग दर्शक होता है। इसकी क्षमता अपरिमित है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। यह कैसे काम करता है, कोई नहीं जानता। इसकी सहायता कब, कहाँ, कैसे प्राप्त होगी यह भी कोई नहीं जानता। यह इतने चुपके से काम करता है कि हमें इसका भान तक नहीं होता, और यह अपना काम कर के निकल जाता है। इसे नजरंदाज मत कीजिये। आध्यात्मिक जीवन शैली में विश्वास रखिये। याद रखिए प्रत्येक रविवार को चर्च में जाना या मंदिर जाना या मस्जिद जाना या गुरुद्वारा जाना न धर्म है, न धार्मिकता न अध्यात्म। इसके बजाय, मेरी समझ से जीवन के प्रति समादरपूर्ण दृष्टि का होना ही धार्मिक या आध्यात्मिक होना है।

          कहने का तात्पर्य है कि जिन रास्तों पर हमें चलने का अभ्यास नहीं है, उन रास्तों में से आगे बढ़ने पर पहले हमारे कदम लड़खड़ाते हैं, धीरे-धीरे ही जब हम उन राहों पर चलना सीख जाते हैं, तब ही हम दौड़ पाते हैं। मंजिल तक पहुँच सकते हैं।

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यूट्यूब  का संपर्क सूत्र à

https://youtu.be/DNUbF5S841U


शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

सूतांजली नवम्बर 2022

 सूतांजली के नवम्बर अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-



इस अंक में हैं:

१। अस्तित्व      

ईश्वर दिखते नहीं, तब हम कैसे स्वीकार करें उनका अस्तित्व।

और ईश्वर कहते हैं, ‘…अब अगर देखते हुए भी कहो कि नहीं दिख रहे हो, तो इसमें मेरा क्या दोष?

२। प्रकृति की शक्तियाँ 

क्या हमें प्रकृति की विशालता का अंदाज है? विज्ञान भी कहता है कि यहाँ तक तो हम जानते हैं, लेकिन इसके बाद और कितना? इसकी हमें जानकारी नहीं।

३। रहम के देवता

अगली बार कभी मन में ईश्वर की तलाश का प्रश्न उभरे तो किसी को माफ करके  देखिएगा, किसी रोते हुए के चेहरे पर हंसी की रंगोली बनाकर निहारिएगा, यकीनन जगदीश्वर आपकी आँखों के सामने होंगे।

 

यू ट्यूब पर सुनें : à

https://youtu.be/mrnEtYOCGJk

 

ब्लॉग  पर पढ़ें : à 

https://sootanjali.blogspot.com/2022/11/2022.html