हम घर के बाहर भी राजस्थानी हैं
मंच पर उपस्थित हमारे विशिष्ट अतिथि श्री सुदर्शन कुमारजी बिरला, हमारे आज के विशिष्ट अतिथि गण, राजस्थान पत्रिका और राजस्थानी प्रचारिणी सभा के अधिकारी एवं कार्यकर्ता, सभा में उपस्थित अन्य गणमान्य एवं अतिथि जन को राजस्थान दिवस पर बहुत बहुत बधाई। हम पिछले तीन सालों से राजस्थान दिवस मना रहे हैं, यह चौथा साल है। पहले दो वर्षों में हमने आपका ध्यान इस बात की तरफ आकर्षित किया था कि हमें कम से कम अपने घरों में, आपस में, बच्चों से, औरतों से मारवाड़ी में बातें करनी चाहिए। पिछले वर्ष मैंने यह बात आगे बढ़ाई। मैंने कहा कि हमें कम से कम की बात नहीं करनी चाहिए। लक्ष्य छोटा नहीं बड़ा होना चाहिए। यदि कोई बच्चे से पूछे कि क्यों बेटे परीक्षा में पास तो हो जाओगे न? बच्चे का इतिहास समझ में आ जाता है। तो लक्ष्य पास होने का नहीं प्रथम आने का होना चाहिए। और दूसरी बात मारवाड़ी हम केवल घर में और आपसी संबंधियों से ही नहीं हर मारवाड़ी से घर में हो या बाजार में, दुकान में हो या गद्दी में, कारखाने में हो या गोदाम में, शहर में, देश में, विदेश में, चीन में या जापान में, रूस में या अमरीका में, इंगलैंड में या जर्मनी में जहां भी मिलेंगे मारवाड़ी में ही बात करेंगे।
माइक पर महेश लोधा, मंच पर सर्वश्री संदीप गर्ग, राजीव हर्ष, सूर्य प्रकाश बगला, प्रहलाद गोएनका, रतन शाह, सुदर्शन बिरला, काशी प्रसाद खेरिया, नंदलाल रुंगटा, रवि पोद्दार, रतन अगरवाल |
इस संबंध में मैं आप को
अपनी एक आपबीती सुना रहा हूँ। अभी पिछले
वर्ष नवम्बर २०१५ में हम आस्ट्रेलिया घूमने गए थे। मार्केटिंग के लिए कई चीजें साथ
ले गए थे। कई जगहों पर बातें हुई। माल भी
दिखाए। लेकिन कहीं भी मन लायक काम नहीं हुआ। एक दिन, एक स्टोर में घुस गए। चारों तरफ नजर घूमाने के
बाद मैं अपनी पत्नी से मारवाड़ी में बोला, “ म न लाग ह अठे काम कोणी होवगो”। (मुझे लगता
है यहाँ काम नहीं होगा)। यह सुनते ही वहाँ बैठी एक औरत तुरंत खड़ी हो गई और बोली,”क्या आप मारवाड़ी हैं?” मेरा पूरा काम वहाँ मेरे
मन लायक बहुत अच्छे तरीके से हो गया। इसे कहते हैं मातृ भाषा, और यह है मातृ भाषा की
ताकत। मातृ भाषा हमारी पहचान है। यह तुरंत संबंध बनाती है, अपनत्व पैदा करती है, विश्वास जगाती है। हमें
अपनी मातृ भाषा पर गर्व होना चाहिए।
भाषा केवल बातचीत के शब्द
नहीं हैं। भाषा, साहित्य और संस्कृति समाज की पहचान होती है। साहित्य हमारे समाज का मापदंड है, बैरोमीटर है। हमारी भाषा, हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति जितनी
समृद्ध होगी हमारा समाज उतना ही उन्नत समझा जाएगा। अपनी भाषा ककी उन्नति हमारे
हाथों में है। हम केवल मारवाड़ी में बात करके और मारवाड़ी में बात करने के किए कह कर
यह मान लेते हैं कि हमारे उत्तरदायित्व का निर्वाह हो गया? भाई वाह! क्या केवल इतना
भर कर लेने से हमारी भाषा का उत्थान हो जाएगा?
करने के लिए तो बहुत कुछ है, लेकिन जो और जितना हमसे हो
सकता है उतना तो करें? तो आइये इस साल हम दो शपथ लेते हैं। पहला – राजस्थानी में
दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक अनेक पत्र एवं पत्रिकाएँ प्रकाशित होती हैं। तो हम तीन पत्रिका, कम से कम एक पत्रिका, जरूर से मँगवाएँ। इस से
हमें, अपने घर वालों को, संबंधियों को और आने वाले मेहमानों को इसके बारे में पता
चलेगा, और इसके साथ साथ राजस्थानी साहित्य के सृजन को भी प्रोत्साहन मिलेगा। और
दूसरा – यहाँ उपस्थित प्रत्येक परिवार रोज भाषा के लिए कुछ करने का अभ्यास करें।
यह अभ्यास करने के लिए प्रत्येक परिवार अपने घर के ड्राइंग रूम में एक “भाषा कलश”
स्थापित करे। कठिन लग रहा है ना। इसी बात को दूसरी तरह से कहते हैं, कलश नहीं गुल्लक रखेँ। यह
तो आसान है। गुल्लक न कह कर “भाषा कलश” कहें, तो एक अच्छे उद्देश्य का अनुभव होता है। इस कलश
में रोज कुछ न कुछ रुपये अवश्य डालें, कम से कम १० रुपये और इसका उपयोग मातृ भाषा के
प्रचार-प्रसार-सृजन-संरक्षण के लिए करें। मैं आप को बता दूँ कि हमसे प्रेरणा लेकर
समाज के कई लोगों ने ऐसे भाषा कलश स्थापित किए हैं और उनका सहयोग हमें निरंतर मिल
रहा है।
मुझे विश्वास है कि आप
प्रबुद्ध राजस्थानी नागरिकों का हमें पूर्ण सहयोग मिलता रहेगा जिससे हम राजस्थानी
भाषा के प्रचार, प्रसार, सृजन और संवर्धन का कार्य कुशलता पूर्वक करते रहें।
राजस्थान दिवस -२०१६ समारोह में मेरा वक्तव्य
(यह वक्तव्य मारवाड़ी में दिया गया था)
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