शुक्रवार, 27 मार्च 2020

कोरोना से संग्राम


कोरोना से संग्राम

विश्व एक अप्रत्याशित संकट से गुजर रहा है। समस्त देशों की सरकार उससे जूझने के लिए प्रयत्नशील है और हर संभव प्रयास करने में लगी है। वैज्ञानिक और ज्ञानीजन इससे छुटकारा पाने के उपाय ढूँढने में व्यस्त हैं। ऐसे समय में यह हमारा उत्तरदायित्व भी बनता है और कर्तव्य भी कि  हम अपनी सरकार और प्रशासन का साथ दें।  इसके साथ साथ हम एक नई दुनिया भी देख, सुन और अनुभव कर रहे हैं। शायद दुनिया अब वैसी नहीं रहे जैसी थी। लेकिन यह विश्वास रखना चाहिए कि जैसी भी होगी अभी से बेहतर होगी। हमार यह विश्वास ही हमें एक बेहतर दुनिया दे सकेगा। साकार वही होगा, जो हम देखेंगे

इस संकट के समय मुनाफाखोरी, जमाखोरी और बेईमानी से दूर रह कर इंसानियत का रास्ता अपनाएं। सुख और प्रसन्नता अपने लिए कैद करने से बचें, इन्हे मुक्तहस्त बांटें। संकट के समय अपना संतुलन न खोएँ, हताश न होएं, दुखी न होएं, चिंता न करें। यह मान कर चलें कि प्रकृति अपना कार्य कर रही है। हम खुला आसमान देख पा रहे हैं, चिड़ियों का चहकना सुन पा रहे हैं, परिचितों से दिल खोल  कर बातें कर पा रहे हैं, जिन्हें भूल गए थे उन्हें याद कर पा रहे हैं, पड़ोसियों को देख और उनसे बातें कर रहे हैं। वातावरण शुद्ध हो रहा है, प्रदूषण कम हो रहा है,  हमारे पास हमारे परिवार के लिए समय है, हम समय का सदुपयोग कैसे करें? यह सीख रहे हैं। सबसे बड़ी बात हमारे पास हमारे लिए समय है। हमें क्षितिज पर काली रेखा नहीं दिख रही है। ऐसा नहीं है कि ये सब पहले कभी नहीं था। बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की भी है जिन्हे उस दुनिया की कोई जानकारी नहीं, कोई अनुभव नहीं। नई दुनिया, हमें इनसे कोसों दूर ले आई थी, हम परिवार को, मित्रों को, प्रकृति को, भूल गए थे। अब तो बस फिर से उन्हे याद करना सीख रहे हैं, उन्हे देखना सीख रहे हैं, उन्हे सुनना सीख रहे हैं। यह कार्य कोई नहीं कर रहा था, अत: प्रकृति ने यह बीड़ा उठाया है। हमें उन सब कार्यों को करने के लिये मजबूर कर दिया है जिन्हे हम भूल गए थे। ज़िंदगी की आपाधापी में हमारे आँख, कान, नाक, बंद हो गए थे अब खुल रहे हैं।

जहां भी हैं जैसे भी हैं आशावान रहिए। यह विश्वास रखिए कि एक नए भविष्य का, एक नए जगत का निर्माण हो  रहा है। भविष्य कि चिंता छोड़, वर्तमान को जीएं, उसका आनंद उठाएँ।

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