शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

पुस्तकालयों के शहर में

(ऑस्ट्रेलिया से निकलने के ठीक पहले मैंने सिडनी के पुस्तकालयों के सम्बंध में लिखा था। लेकिन भारत पहुँचते पहुँचते विश्व और भारत की अवस्था में अप्रत्याशित बदलाव आ गया; यह लिखा हुआ पड़ा रह गया। अब जब परिस्थिति यह है कि लोग यह मानने लगे हैं कि स्थिति जल्द सामान्य होने वाली नहीं; बल्कि सामान्य की परिभाषा भी बदलने लगी है, मैंने विचार किया अब इसे प्रकाशित किया जा सकता है।)
पुस्तकालयों के शहर में

2018 के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 369 पुस्तकालय हैं। और 2017-18 में
-      339 लाख लोग इन पुस्तकालयों में गए,
-      402 लाख लोगों ने पुस्तकें लीं,
-      148 लाख लोगों इंटरनेट से जुड़े,
-      103 लाख लोगों ने इंटरनेट से पुस्तकें आरक्षित करवाईं,
-      12,40,512 ई-पुस्तकें पढ़ी गईं।

यह आंकड़ा है ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स राज्य की पुस्तकालयों का। ये आंकड़े यह बताते हैं कि यहाँ के लोग शिक्षित हैं और पुस्तकालयों का भरपूर प्रयोग करते हैं। यहीं नहीं, यह  भी सिद्ध होता है कि इन पुस्तकालयों का संचालन और नियम सुरुचिपूर्ण और पाठकों  की सुविधानुसार है। यहाँ आकर बैठना, पढ़ना, आयोजनों में भाग लेना सुविधापूर्ण भी है और उत्साहवर्धक भी। जनता की सुविधा के लिए ये सभी पुस्तकालय रेल स्टेशन के नजदीक हैं, ज्यादा से ज्यादा पैदल 5 मिनट की दूरी पर।  इस कारण नागरिक इन सुविधाओं का भरपूर प्रयोग करते हैं।
 


सिडनी के बारे में बताएं और पुस्तकालय की चर्चा न करें तो इस शहर का परिचय अधूरा ही  रह जाएगा। पुस्तकालय इस शहर की जान है जिसकी शाखाएँ इसके उपनगरों तक फैली हुई हैं। सिडनी के न्यू साउथ वेल्स राष्ट्रीय पुस्तकालय के अलावा मैं पैरामेटा, वेन्टवर्थविल, रिवरस्टोन, ब्लॅक टाउन पुस्तकालयों में घूमा, बैठा, पुस्तकें देखीं और पढ़ीं। हर जगह दोस्ताना व्यवहार, पुस्तकें पढ़ने, छाँटने, ढूँढने और घर ले जाने की सुविधा है। ऑस्ट्रेलिया अप्रवासियों का देश है। अँग्रेजी की पुस्तकें बहुतायत में हैं लेकिन इनके अलावा विश्व की अनेक भाषाओं की पुस्तकें और  डीवीडी उपलब्ध हैं। भारतीय भाषाओं में हिन्दी के अलावा गुजराती, पंजाबी, उर्दू, और कई दक्षिण भारतीय भाषाओं की भी अनेक पुस्तकें यहाँ मिल जाएंगी।  पुस्तकों के अलावा सीडी, डीवीडी और पत्रिकाएँ, फोटोकॉपी और दस्तावेजों को प्रमाणित करवाने की व्यवस्था भी है। साथ ही बच्चों के लिए खिलौने और बुजुर्गों के लिए चेस भी। वातानुकूलित भवन में आरामदेह बैठने की व्यवस्था  और साथ में सटा हुआ समुचित जलपान गृह। जगह और आबादी के अनुसार हर पुस्तकालयों में कमोबेश यह सब कुछ, कम या ज्यादा, उपलब्ध हैं।



भाषा और विषय की विविधता के अलावा पाठकों की रुचि के अनुसार आयोजन होने के कारण लोगों का आना, बैठना, रुचि लेना और पुस्तकें पढ़ना और ले जाना बड़ी संख्या में लगातार चलता रहता है। पुस्तकालय की सदस्यता का कोई शुल्क नहीं लगता। और तो और पुस्तकें घर ले जाना चाहें तो भी कोई पैसा जमा करने की आवश्यकता नहीं है। यही नहीं एक साथ 2 या 3 नहीं, 25 पुस्तकें हम ले जा  सकते हैं, तीन सप्ताहों के लिए। आवश्यकता हो तो घर बैठे ही फिर से तीन सप्ताहों के लिए नवीनीकरण कराया जा सकता है। सदस्यता के लिए हमें केवल अपने स्थानीय पते का एक प्रमाण पत्र देना पड़ता है। यह, यह भी सिद्ध करता है कि जनता आम तौर पर ईमानदार है और नियमों का पालन करती है। लोग पुस्तकें ले जाते  हैं और सही सलामत अवस्था में वापस भी करते हैं। साधन सम्पन्न देश होने के कारण तकनीक का भी बहुलता से प्रयोग है जिसके कारण कई कठिन कार्य आसान हो जाते हैं। पुस्तकों की वापसी और निकासी के लिए स्कैनर और मशीनें लगी है, जिनमें हम खुद दोनों कार्य सम्पन्न कर लेते हैं, किसी व्यक्ति की आवश्यकता नहीं। पुस्तकालयों का प्रयोग केवल पुस्तकें जमा करने के लिए नहीं किया जाता है बल्कि उसे सुरुचिपूर्ण बनाने के तरीके भी ईजाद किये जाते हैं। बच्चों के लिए समूहिक कविता – कहानी  का पठन पाठन, चित्रकारी, संगीत और नृत्य आदि कई प्रकार की प्रतियोगिता आदि का आयोजन होता रहता है। बुजुर्गों के लिए अनेक अखबार, पत्रिकाएँ, चेस खेलने की सुविधा भी है। पुस्तकों पर समीक्षा, लेखकों से मुलाक़ात, साहित्य चर्चा, परिचर्चा आदि आम बाते हैं।

इन पुस्तकालयों में अनेक गतिविधियां भी निरंतर होती रहती हैं जिनका कोई खर्च नहीं लिया  जाता है। यथा – अपने पुस्तकालय को जानें, कम्प्युटर पर इंटरनेट, आई-पैड को समझें, साइबर क्राइम से कैसे बचें, आदि।

पुस्तकालय के कर्मचारी भी मुस्तैद हैं। लौटाई गई पुस्तकें लगभग 15 मिनटों में अपने शेल्फ पर पहुंचा दी जाती हैं। प्राय: पुस्तकालयों में सब पुस्तकें खुली शेल्फों पर ही रखी हुई रहती हैं और पाठक स्वयं अपनी पुस्तकों का चयन करते हैं। इससे पुस्तकों का चयन करना आसानी और द्रुत गति से होता है और अलग से कर्मचारी की भी आवश्यकता नहीं होती है।

मैंने जैसा देखा और समझा उसके अनुसार जनता अपने कार्यों के प्रति सजग, समर्पित और ईमानदार है। वह यह मानती है कि नियम हमें नहीं बचातीं बल्कि हम नियमों को बचाते हैं।  तकनीक का प्रयोग एक अलग बात है। विशेष बात है जनता का सहयोग, समर्पण, ईमानदारी और सकारात्मक रुख। यह न सरकार के हाथ में हैं और न कर्मचारी के हाथ में। यह है जनता के हाथ में। सरकार और कर्मचारी भी जनता के ही अंग हैं; एक विभाग का कर्मचारी दूसरे विभाग के लिये जनता ही है। बस हमारी समझ का फर्क है।  

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