शुक्रवार, 26 मार्च 2021

शीत काल में केदार-बद्री की तीर्थ यात्रा

आदिशंकराचार्य ने देश के चार कोनों में चार धाम स्थापित किए थे। उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, 

पूरब में जगन्नाथ और पश्चिम में सोमनाथ। लेकिन सामान्यत: यानि जेनेरली स्पीकिंग चार धाम से हम प्राय: पहाड़ों पर बसे चार धाम की बात करते हैं। ये हैं - यमुना के उद्गम स्थल यानि ऑरिजिन पॉइंट पर यमुनोत्री (3353 - ३३५३मी.), गंगा के उद्गम स्थल पर गंगोत्री (3100 - ३१०० मी.), महादेव का धाम केदारनाथ (3553 - ३५५३ मी.) और विष्णु का स्थान बद्रीनाथ (3300 - ३३०० मी.)। हिमालय की गोद में काफी ऊंचाई पर होने के कारण छ: महीने ये चारों स्थान भारी हिमपात यानि स्नो फॉल के कारण बर्फ से ढकें रहते हैं और इनका मार्ग यातायात के लायक नहीं रहता है। अत: इनकी 

यात्रा बंद रहती है। गरमी के मौसम में ही इन स्थानों पर जाया जाता है। समयानुसार इन चारों मंदिरों के दर्शन बंद और प्रारम्भ होने की तिथियों की घोषणा होती है।  सामान्यत: दिवाली के आसपास यात्रा बंद हो जाती है और आखा तीज के नजदीक  यात्रा प्रारम्भ होती है। इन छ: महीनों के लिए देव के प्रारूप यानि इमेज को पहाड़ों पर कुछ नीचे लाया जाता है और वहीं उनकी विधिवत पूजा-अर्चना होती है। इन स्थानों को ठाकुर की शीत कालीन गद्दी यानि ऑफिस कहते हैं। यमुनोत्री की खरसाली में, गंगोत्री की मुखबा में, केदारनाथ की उखीमठ में और बद्रीनाथ की जोशिमठ में यह शीतकालीन गद्दी लगती है।

कोरोना काल के पश्चात महीने भर के ऋषिकेश प्रवास के दौरान ठाकुर के शीतकालीन गद्दी के दर्शन करने की तीव्र इच्छा हुई। चार धाम की यात्रा तो किये हुए हैं लेकिन शीतकाल में कभी यात्रा नहीं हुई।  अत: यात्रा पर जाने का मन बना लिया, और २८ (28) फरवरी २०२१ (2021) को हम केदार-बद्री के शीत कालीन गद्दी के दर्शन करने निकल पड़े।  इस यात्रा के लिए हमने स्विफ्ट डिजायर भाड़े पर ली जिसका कुल खर्च १५५०० (15500) पड़ा। पहाड़ों पर बने नवीन मार्ग यानि न्यूली बिल्ट रोड को देख कर बड़ा आनंद मिला। चौड़ी-सपाट सड़क। सड़कों को सर्द-गरम-वर्षा यानि ऑल वेदर के अनुकूल बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है। बड़ी मशीनें, नए पुल, सुरंगे यानि टनेल आदि से सुसज्जित किया जा रहा है। रुद्रप्रयाग तक का कार्य प्राय: समाप्ती पर है। कार्य की प्रगति से लगता है कि शायद 2 वर्षों में कार्य पूरा कर लिया जाए और फिर इन तीर्थ स्थलों की यात्रा सुगम, कम जोखिम भरी और तेज हो जाएगी।  

वानप्रस्थ आश्रम, ऋषिकेश से हम प्रात: ८ (8) बजे रवाना हुए। देवप्रयाग में, मन्दाकिनी और भागीरथी नदी के संगम पर स्नान किया। घाट तक जाने के लिए अनेक सीढ़ियाँ लांघनी पड़ी लेकिन हमने हिम्मत नहीं 

देवप्रयाग

हारी और घाट तक पहुँच ही गए। यहाँ स्वच्छ निर्मल मन्दाकिनी उछलती-दौड़ती वेग से आगे बढ़ती है जब कि भागीरथी मटमैली, शांत और चुपचाप आकर मन्दाकिनी में मिल जाती है। इसी प्रयाग के बाद नदी का नामकरण गंगा हुआ है। स्नान के पश्चात हम श्री रघुनाथ मंदिर में रघुनाथ जी के दर्शन करने गए। बड़ी अजीब बात हुई। ठाकुर के चेहरे पर ध्यान कर उनकी आँखें देख रहा था तो अचानक लगा कि मैं तो बाँके बिहारी के दर्शन कर रहा हूँ। आँखों को झटका दे कर फिर से पूर्ण शृंगार पर नजर जमाई तो श्री 

देवप्रयाग में रघुनाथ मंदिर

राम दिखे। लेकिन फिर जैसे ही आँखों से आँख मिली बाँके बिहारी प्रगट हो उठे। इसके पहले कि इस पहेली को समझता बगल में खड़े आचार्य जी के पुत्र ने जानकारी दी। बताया कि रघुनाथजी के इस विग्रह की यह खास बात है। इनका  स्वरूप तो  श्रीकृष्ण का है लेकिन शृंगार श्री राम का। अत: स्वरूप में श्री कृष्ण और शृंगार में श्री राम के दर्शन होते हैं। मंदिर के पूरे परिसर में भ्रमण कर वहाँ स्थापित नए पुराने 

रघुनाथ मंदिर में आधुनिक शिलालेख

शिलालेख, परिक्रमा गद्दी आदि के दर्शन कर हम देवप्रयाग से आगे बढ़े। रात का पड़ाव देवप्रयाग से लगभग ७५ (75) कि.मी.,  रुद्रप्रयाग के नजदीक, पहाड़ों की गोद में,  तिलवाड़ा में गड़वाल मण्डल विकास निगम (GMVN) के  मन्दाकिनी रिज़ॉर्ट में था। तिलवाड़ा रुद्रप्रयाग के नजदीक केदारनाथ मार्ग पर है। 

जीएमवीएन मन्दाकिनी रिज़ॉर्ट, तिलवारा

स्थान अत्यंत रमणीक, स्वच्छ, प्रकृति की गोद में, मन्दाकिनी के तट पर है। मंदाकिनी तक जाने के लिए रिज़ॉर्ट से ही सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। शीतल पवित्र जल में स्नान किया जा सकता है। यहाँ एक रात ही रहने का कार्यक्रम था लेकिन यहाँ का वातवरण हमें इतना पसंद आया कि हम यहाँ दो रात ठहर गए।

तिलवाड़ा से हम तीसरे दिन प्रात: ८ (8) बजे निकले। ३३ (33) किमी का सफर  लगभग डेढ़ घंटे में तय कर गुप्तकाशी पहुंचे। मार्ग में चौखम्बा पहाड़ शृंखला की सफ़ेद बर्फीली चोटियाँ (स्नो पीक्स) दिखीं। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव महादेव के दर्शन करना चाहते थे। लेकिन पांडव जहां भी उन्हें

गुप्तकाशी
 खोजते पहुँचते महादेव वहाँ से लुप्त हो जाते। युद्ध में भीषण नर-संहार एवं शिव भक्तों की भी हत्या के कारण वे पांडवों से नाराज थे। महादेव को खोजते हुए पांडव गुप्तकाशी भी पहुंचे लेकिन वे यहाँ से भी लुप्त हो गए थे। अंत में पांडवों ने नारदाजी की सहायता से केदारनाथ में भैंसे के स्वरूप में महादेव को पकड़ा और उनके दर्शन किए। गुप्तकाशी में अगल बगल दो मंदिर हैं, जिनमें शिवलिंग और अर्धनारीश्वर के दर्शन होते हैं। मंदिर के सामने कुंड में पहाड़ों से निरंतर जल आता रहता है। यहाँ शिवलिंग की दूध से अभिषेक करने की इच्छा हुई। दुकानें खुली नहीं थी और पुजारी ने भी लाचारी बताई। तभी एक स्थानीय दर्शनार्थी से मुलाक़ात की और उसके बताए रास्ते से जाकर प्रसाद और दूध लाकर मनोकामना पूरी की। यहाँ से १४ (14) किमी की यात्रा 

उखीमठ
४५ (45) मिनट में पूरी कर उखीमठ पहुंचे। यहाँ के श्री ओंकारेश्वर मंदिर में केदारनाथजी की शीतकालीन गद्दी लगती है। यहाँ भी पूजा अर्चना, प्रसाद तथा दूध से अभिषेक किए। यहाँ पंच  केदार के लिंग रूप में दर्शन भी हैं। यहाँ से हम आगे चोपता की तरफ बढ़े। चोपता का रास्ता थोड़ा दुर्गम है। रास्ता अच्छा है लेकिन सँकड़ा है, चालू रास्ता न होने के कारण चमोली तक वीरान सा है लेकिन किसी प्रकार की बदमाशी नहीं है।  बसें प्राय: लंबा रास्ता लेकर रुद्रप्रयाग हो कर चमोली तक जाती हैं। चोपता से बर्फीली चोटियों को देखने का अद्भुत आनंद है। यहीं से तुंगनाथ आदि के लिए पैदल मार्ग जाता है। सैलानियों के लिए यह जगह अतिउत्तम है। यहाँ ठहरने की कोई उत्तम व्यवस्था नहीं है, लोग प्राय: टेंट में ठहरते हैं। हम यहाँ से बर्फीली चोटियों का नजारा देख अपने अगले पड़ाव जोशीमठ की तरफ बढ़ गए। जोशीमठ में श्री नरसिंघ मंदिर में श्री बद्रीनाथ की  शीतकालीन गद्दी लगती है। हम सीधे मंदिर ही पहुंचे और मंदिर के अतिथि भवन में ठहरे। भवन, रात गुजारने लायक है। लंबे सफर की थकावट तथा मंदिर परिसर में ही होने के कारण वहीं रुकने का निश्चय किया। मंदिर का कुछ वर्ष पूर्व ही जीर्णोद्धार 

श्री नरसिंघ मंदिर, सूर्योदय से पहले

किया गया है। अत: पूरा मंदिर परिसर स्वच्छ एवं आधुनिक प्रारूप लिए हुवे है। संध्या कालीन आरती के पश्चात मंदिर के पुजारी से चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि वहाँ स्थापित श्री नरसिंघ भगवान का विग्रह आदि शंकरचार्य द्वारा स्थापित है। विग्रह की दाहिनी भुजा स्वत: धीरे धीरे क्षीण यानि पतली होती जा रही है। जैसे जैसे यह प्रतिमा क्षीण हो रही है उधर भविष्यबद्री का विग्रह स्वत: स्वरूप ले रहा है। समयानुसर नर-नारायण पर्वत मिल जाएंगे, श्री नरसिंघ की प्रतिमा खंडित हो जाएगी, भविष्यबद्री का स्वरूप पूर्ण हो जाएगा और वही श्री बद्रीनाथ के रूप में स्थापित होगा।

प्रात: अभिषेक का दर्शन कर हम अतिथि भवन से निकल कर जोशिमठ में ही गढ़वाल मण्डल विकास निगम (GMVN) के अतिथि गृह में चौथी रात बिताने पहुँच गए। यहाँ से बर्फीली चोटी कमरों से ही साफ 

लाल बर्फीली चोटी, जोशीमठ


दिखती है। सुबह सुबह सूर्योदय के समय सूर्य की लाल किरणें सफेद चोटियों पर पड़ती हैं तो ऐसे लगता है मानो चोटी पर आग लगी हो, लेकिन कुछ ही देर बाद ये स्वर्णिम हो जाती हैं।  उड़नखटोला (रोप वे) से औली जाने का कार्यक्रम था। इस वर्ष कोरोना और फिर बर्फ न होने के कारण यात्री बहुत कम थे। अत: रोप वे के लिए पहले से आरक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ी। अन्यथा नेट पर अग्रिम आरक्षण करना उचित है। औली से सैलानी खच्चरों पर ४-५ किमी की यात्रा कर बर्फ का आनंद लेने जा रहे थे। औली में सिर्फ बर्फीली हवा के थपेड़े और बर्फीली चोटी को निहारें और साथ में गरमा गरम चाय-कॉफी, मैगी-नूडल्स आदि का स्वाद लीजिये।  

पांचवे दिन सुबह ९ बजे हम रुद्रप्रयाग के लिए प्रस्थान किये। राह में नन्दप्रयाग एवं कर्ण प्रयाग के दर्शन करते हुए लगभग ३ बजे रुद्रप्रयाग पहुंचे। मुख्य मार्ग पर ही एक होटल में ठहरे। सड़क की ऊंचाई से ही प्रयाग के दर्शन किए। छठे दिन प्रयाग तक जाने के लिए सुबह ८ बजे निकल गये। प्रयाग के नजदीक ही बाबा काली कमली वाले की धर्मशाला है। एक रात गुजारने के लिए ठीक है। यहाँ से संगम नजदीक है लेकिन बाजार दूर। बाजार में भी इनकी धर्मशाला है। संगम तक पहुँचने के लिए काफी नीचे तक जाना पड़ता है, सीढ़ियों से, फिर भी घाट तक नहीं पहुँच पाया। मुझे छोड़ और कोई नहीं उतरा। केदारनाथ की बाढ़ की आपदा में यहाँ बहुत नुकसान हुआ, उसके बाद से सही व्यवस्था नहीं हो पाई  है। सौभाग्य से आसाम से एक बेटी अपने पिता को लेकर वहाँ आई हुई थी। उसने मेरी परेशानी समझ कर अंजली भर जल लाकर मुझे दिया। उसीसे आचमन और छिड़काव कर संतोष कर लिया। और फिर यात्रा समाप्त करते हुए वहाँ से सीधे जॉली ग्रांट (देहरादून) हवाई अड्डे के तरफ निकल पड़े। अड्डा लगभग 2.30 बजे पहुंचे। हवाई अड्डा छोटा है, विस्तार की आवश्यकता है।

यात्रा बहुद ही सुखद एवं आनंद दायक रही। हर जगह कोरोनाकाल की छाप दिखी। मंदिर वीरान पड़े थे। रास्ते में अनेक जलपान गृह बंद थे, यात्री नदारद थे। इससे जहां कई जगह सुविधा हुई तो असुविधा भी। मंदिरों का विरानापन खटका तो होटलों में अच्छी छूट (डिस्काउंट) मिली। खाने-पीने की जगहों में कमी थी तो रास्ते फाँका मिले। दरअसल सुविधा-असुविधा अलग अलग नहीं है। दोनों एक ही परिस्थिति के दो छोर हैं। जैसे की गर्मी और सर्दी तापमान के ही मापदंड हैं। अगर तापमान कम है तो सर्दी है लेकिन ज्यादा है तो गर्मी है।  जहां सुख है वहीं दुख है, धूप के साथ छाँव है, आनंद के साथ गम है। अगर हमारी नजर सुविधा, सुख, आनंद पर है तो हमारे लिए वसंत है लेकिन अगर असुविधा, दुख, गम पर ही विचार करते रहें तो सूखा है।  परिस्थिति एक ही है नजर अपनी अपनी है।   

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