शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

गप-शप की अहमियत

 क्या बैठे गप में समय बर्बाद कर रहे हो, कुछ करते क्यों नहीं।

न कुछ करना, न धरना, बस बैठे ठाले गप में समय गँवाना।

जब देखो तब फोन कान पर, कोई मतलब की बात नहीं केवल इधर-उधर की गप।

क्या यही हश्र है गप का, केवल समय की बरबादी है और कुछ नहीं?

नहीं, ऐसा नहीं है। हमारे जीवन में गप की बड़ी अहमियत है।

गप-शप को हल्के में न लें। यह हमारे जीवन का एक अभिन्न ही नहीं बल्कि एक अतिआवश्यक कार्य-कलाप है। अगर इसे जीवन से निकाल दिया जाए तो जीवन केवल नीरस ही नहीं बोझिल भी हो जाएगा।

गप-शप सिद्धांत एक मजाक की तरह लग सकता है, लेकिन अनेक अध्ययन इसका समर्थन करते हैं। आज अधिकांश मानव हास्य - ईमेल, फोन कॉल या समाचार कॉलम के रूप में - गपशप ही है। यह हमारे पास इतने स्वाभाविक रूप से आता है कि ऐसा प्रतीत होता है कि क्या हमारी भाषा इसी उद्देश्य के लिए विकसित हुई है। जब इतिहास के प्रोफेसर दोपहर के भोजन के लिए मिलते हैं, तो क्या वे प्रथम या द्वितीय विश्व युद्ध या वैसी ही किसी ऐतिहासिक घटना के कारणों के बारे में बात करते हैं, या कि परमाणु भौतिकविद वैज्ञानिक सम्मेलनों में कॉफी ब्रेक में किस विषय पर चर्चा करते हैं? यह देखा गया है कि अधिकतर वे अपने पति को धोखा देने वाले प्रोफेसर के बारे में गपशप करते हैं, या विभाग और डीन के बीच झगड़ा, या इन अफवाहों पर कि एक कर्नल ने मंहगी गाड़ी खरीदने के लिए अपने शोध निधि का इस्तेमाल किया। कौन से नेता ने क्या किया, कौन से बाबा का पर्दाफाश हुआ, किसका किससे चक्कर चल रहा है? गपशप आमतौर पर गलत किए गए कार्यों पर होती है। अफवाह फैलाने वाले चौथे दर्जे के पत्रकार हैं जो ऐसी बातें समाज में फैलाते हैं और सही माने में इस प्रकार समाज को धोखेबाजों और झूठों के बारे में सूचित कर उन्हें सावधान करते हैं।         

          इतिहास वेत्ताओं का यह मानना है कि शायद भाषा की उत्पत्ति भी इसी गप-शप को अंजाम देने के लिए हुई हो। खोजों से यह तो सिद्ध होता है कि आदि-मानव जिसके पास संवाद का कोई जरिया नहीं था ऐसी पद्धतियाँ तैयार कर लीं थीं जिससे दैनिक जीवन के लिए आवश्यक संवाद को वे अंजाम दे देते थे, जैसे भूख-प्यास का लगना, ठंड-गरम का अहसास होना, प्रेम-क्रोध-ईर्ष्या का इजहार करना, प्रदर्शित करना, आसन्न खतरे से सावधान करना वगैरह-वगैरह। लेकिन पूरा संवाद रस-विहीन था। इन संवादों में रस डालने का अर्थ था तथ्य से हट कर बातें करना, जो नहीं घटा है उसकी चर्चा करना, झूठ और सच को मिलाकर एक खिचड़ी तैयार करना। और जब इस प्रकार की बातें विस्तारित हो जाएँ तब उनमें चटकारे ले-लेकर बातें करना। इससे दिमागी गाठें खुल जातीं, मन हलका हो जाता, जीवन को एक नया रस मिलता है। और इसी प्रयत्न में भाषाओं की उत्पत्ति हुई होगी।

          अगर गप-शप आपकी जिंदगी में नहीं है तो प्रयत्न कीजिये। इसे अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा बनाइये जिसे कि दैनिक भोजन और नींद आवश्यक है वैसे ही गप-शप भी दैनिक जीवन का अंग होना चाहिए। अगर आप ध्यान दें तो पायेंग कि वे जो गप-शप नहीं करते प्रायः गंभीर रहते हैं और उदास-उदास से दिखते हैं। वहीं गपशप करने वाले लोग प्रफुल्लित और मुसकुराते रहते हैं। गप कीजिये – प्रसन्नचित्त रहिए।  

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