शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

अच्छा दिखना, अच्छा महसूस करना, अच्छा होना



हमारे ये तीन स्वरूप हैं – हमें अच्छा दिखना है, हमें अच्छा महसूस करना है और हमें अच्छा होना भी है। और इन्हें हासिल करने के लिए प्रारम्भ करते हैं अच्छा दिखने से, अच्छा दिखते हैं तो लोग सराहना करते हैं तब अच्छा लगने लगता है और जब अच्छा लगता है तब समझते हैं कि अच्छे हो गए हैं। क्या यह सही है? इस पर थोड़ा विचार करें।

          घबराहट तब होती है जब खुद को दूसरों की नजरों से देखते हैं। खुद को खुद की नजर से देखना होगा, खुद का सम्मान करना होगा। बिल्ली के अपने गुण होते हैं और कुत्ते के अपने, शेर के अपने गुण होते हैं और गाय के अपने। व्यक्ति को अपनी क्षमता का अनुकूलन करना चाहिए और दूसरों की क्षमता के साथ तुलना नहीं करनी चाहिए। जब दूसरों के सामने प्रस्तुति, व्याख्यान देना होता है तो घबरा जाते हैं क्योंकि दूसरों की नजर से देखने लगते हैं।

          अच्छा दिखना वह स्वरूप है जिसके लिए हम में से अधिकांश लोग काम करते हैं। इसके लिए हम कड़ी मेहनत करते हैं और अपनी आय से एक मोटी रकम भी इसके लिए खर्च करते हैं। अच्छा दिखना दूसरों के समर्थन पर निर्भर करता है। यह सोचकर हमें घबराहट होती है कि वे हमारी सराहना करेंगे या नहीं।           प्रश्न है, हम अपने इस स्वरूप को अच्छा दिखने से अच्छा महसूस करने में और अच्छा महसूस करने से अच्छा होने में कैसे परिवर्तित करें?

          आवश्यकता है अच्छा दिखने के महत्व को छोड़ना। हम दूसरों से अपनी सराहना पाने के लिए पागल बने रहते हैं । व्यापार जगत में दूसरों की सराहना की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन इसके लिए पागल होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी पागल ऊर्जाएँ हमें असंतुलित कर देती हैं। असंतुलित ऊर्जा एक रोग है। बीमारी तब होती है जब आराम भंग हो जाता है।

          अच्छा दिखने से अच्छा महसूस करने और अच्छा महसूस करने से अच्छा होने को महत्व देना प्रारम्भ करें। हम स्नान करते हैं और हमें तुरंत महसूस होता है कि हमें अच्छा लग रहा है। बस यहाँ न रुकें, अपने आप से कहें कि हमें यह बहुत अच्छा लगता है, हम सहज अनुभव कर रहे हैं, हमें अच्छा लग रहा है। अपने आप से बात करें और अंग-प्रत्यंग से यह प्रदर्शित कीजिये कि हम अच्छा महसूस कर रहे हैं। इस अच्छे महसूस को शारीरिक अभिव्यक्ति दें। फिर एक कदम और आगे बढ़ें, केवल महसूस न करें बल्कि  पूरी सिद्दत से यह मानें कि रोजाना स्नान करना अच्छा है। यह हुआ अच्छा बनना।

          सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने जीवन मूल्यों को इस विश्वास में बदलना कि अच्छा होना ही सबसे महत्वपूर्ण है। मूल्यवान तभी मूल्यवान है जब उस मूल्यवान का मूल्य हो। उन लोगों की संगति में रहें जो अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में अच्छे होने को महत्व देते हैं। उनकी ऊर्जाएं हमें प्रभावित करेंगी।

          जब भी आपको घबराहट महसूस हो तो खुद को निहारें-परखें और खुद को अच्छा बनने के लिए बदलें। घबराहट भी एक ऊर्जा है इस ऊर्जा को न दबाएं। इन ऊर्जाओं को तब्दील करने  के लिए मनोवैज्ञानिक अभ्यासों को अपनाएं जैसे हँसना, नाचना, ध्यान करना। अगर अपनी इस घबराहट को शारीरिक रूप से बाहर नहीं निकालते हैं, तब वे हमारे शरीर में जमा होने लगती हैं और हमारे जीवन, हमारे विचार और हमारे फैसलों  को नियंत्रित या प्रभावित करने लगती हैं। अपने विभिन्न हरकतों और क्रियाओं के माध्यम से अपनी घबराहट को व्यक्त करने लगते हैं, जैसे पाँवों को हिलाना, नाखून चबाना, इधर-उधर ताकना। यदि घबराहट को बुद्धि में नहीं बदलते तो वह बुद्धिमान होने के बजाय खुद को सही ठहराने की कोशिश करने में लग जाता है, कुतर्क करने लग जाता है।  

एक युवा ने महात्मा से पूछा, "पुण्य का फल सुख होता है?” “हाँ

“और पाप का फल दुख होता है?” “बिलकुल”

“कर्ज लेने में सुख मिलता है, तो लें पुण्य है और कर्ज चुकाने में दर्द होता है, वापस न करें पाप है”।

 

1965 के पाकिस्तान युद्ध के बाद शांतिवार्ता के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को ताशकंद जाना था। निमंत्रण सपत्नीक था। श्रीमती ललिता जी शास्त्री ने घोषणा कर दी कि वे किसी भी हाल में नहीं जाएंगी। उनका न जाना गंभीर संकेत दे सकता था। शास्त्रीजी ने ललिता जी से बात की और उनका मन टटोला। फिर उन्हें समझाया, तुम्हें डर इस लिए लग रहा है क्योंकि तुम वह दिखना / दिखाना चाहती हो जो तुम नहीं हो। तुम सहज रहना, हिन्दी में ही बात करना  और वही पोशाक पहनना जो तुम यहाँ पहनती हो। तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी। ललिता जी ने वही किया। रूस में मीडिया को बता दिया गया कि ललिता जी को केवल हिन्दी आती है और वे एक साधारण भारतीय गृहिणी हैं। ललिता जी अभूतपूर्व प्रशंसा लेकर लौटीं।

          अच्छा दिखने की कोशिश में हमें घबराहट होने लगती है, घबराहट हमें अच्छा महसूस नहीं करने देती फलस्वरूप हम अच्छा नहीं बन पाते। लेकिन अगर हम अच्छा बनने का प्रयत्न करें तो वह हमें अच्छा महसूस कराती है जिसका परिणाम होता है कि हम अच्छे दिखने लगते हैं। यह एक स्वाभाविक क्रिया है, अपने आप होती है इसके लिए आपको अलग से कुछ करना नहीं होता। ।

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