धर्म से अर्थ तक यात्रा संस्मरण
धर्म हमारे जीवन का एक आवश्यक
अंग है। धर्म हमारे अ-नियंत्रित अर्थ और काम को नियंत्रित करती है, उस पर लगाम लगती है और हमें सत-पथ पर
अग्रसर करती है। धर्म निम्न, कमजोर समुदाय को एक बड़ा आर्थिक
संबल भी प्रदान करती है। एक बहुत बड़ा वर्ग धर्म के खिलाफ भी है क्योंकि उनका मानना
है कि धर्म के नाम पर ही अवांछित युद्ध और नर-संहार हुए हैं। उस वर्ग का यह भी
मानना है कि धर्म के नाम पर धन और संसाधनों को बर्बाद भी किया जाता है। उनका मानना
है कि बड़े मंदिरों-मठों के निर्माण के बदले अस्पताल-विद्यालय-कारखाने आदि का
निर्माण कर उन्नति के कार्यों में निवेश किया जाना चाहिए और जीवन के मौलिक
आवश्यकताओं – रोटी, कपड़ा, मकान + इलाज, शिक्षा – आदि की समस्या के समाधान पर खर्च करना चाहिए। ऊपरी तौर पर देखने
से यह तर्क बड़ा कारगर प्रतीत होता है लेकिन थोड़ा गौर करें और गहराई से जाँचे तो
पाएंगे कि ये दोनों ही इल्जाम गलत और बे-बुनियाद हैं।
युद्ध में ‘हर-हर महादेव’, ‘अल्लाहो अकबर’ का उद्घोष युद्ध की धार्मिकता का परिचायक नहीं है। हर धावक दौड़ शुरू होने के पहले अपने ईष्टदेव को याद करता है, व्यापारी धन-की-देवी को प्रतिष्ठित करता है, हर खिलाड़ी खेल प्रारम्भ होने के पहले अपने देव को याद करता है, हर विद्यार्थी परीक्षा में अपने भगवान को याद करता है, इस प्रकार वह उस शक्ति को याद करता है जहां से उसे ऊर्जा प्राप्त होती है। इतिहास उठा कर देखें तो युद्ध प्रायः सत्ता, धन और नारी के कारण हुए हैं। अंतिम दो विश्व युद्ध सत्ता और धन के कारण लड़ा गया न कि धर्म के कारण। विश्व में होने वाले धार्मिक दंगे-फसाद की जड़ भी राजनीतिक कारण हैं। ये दंगे हुए नहीं करवाए गए, एक दूसरे के विरुद्ध भड़का कर, राजनीतिक कारणों से सत्ता हथियाने या सत्ता बनाए रखने के लिए।
धर्म के कारण न जाने कितने
लोगों का घर चलता है,
उन्हें दो जून की रोटी मिलती है।
पंडित-पंडों के विरुद्ध जहर उगलने वालों की भी कमी नहीं है। लेकिन क्या यही हाल
दूसरे धंधों के दलालों का नहीं है। ऑनलाइन ठगी का धंधा कैसे चलता है? अच्छे और बुरे हर जगह हैं, सस्ते और महंगे कहाँ
नहीं हैं? सवाल तो यह है कि आप उसे किस तरह नियंत्रित करते
हैं, अच्छे और बुरे की आपको कितनी और कैसी पहचान है। आप
सस्ते को रो रहे हैं या महंगे में फंसे हैं! आपको कितने सितारे की होटल या कैसी सेवा
चाहिए। सबसे बड़ी बात यह है कि धर्म के नाम पर किये गए खर्च की कमाई का एक बड़ा
हिस्सा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नहीं बल्कि भूमि-पुत्रों को जाता है। इसका बड़ा
अच्छा उदाहरण मुझे जसीडीह में और वहाँ से आते वक्त मार्ग में मिला।
मोहन कोठी का नव निर्माण, नव निर्मित मोहन कोठी पुनर्निर्मित गोकुल कुंज और 5 नंबर कोठी |
एक लंबे अंतराल के बाद हम फिर जसीडीह आरोग्य भवन पहुंचे। यह स्थान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक देवघर बाबा बैद्यनाथ धाम से मात्र 12 किमी की दूरी पर है। इसके नजदीक ही शिवजी का एक और प्रसिद्ध स्थान, बासुकीनाथ धाम है। इन दो पीठों के कारण इनके आस-पास के इलाकों में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। लोगों के सुझाव के कारण अपने परिचित मार्ग – बक्रेश्वर, सूरी, मेस्संजोर, दुमका, बसुकीनाथ से न जा कर
कोठियों का नव-निर्माण |
आसनसोल,
चित्तरंजन, सरथ होकर गए। लेकिन मुझे यह रास्ता सही नहीं लगा, अतः वापसी अपने पसंदीदा मार्ग, मेस्सेंजोर-दुमका, से ही आए। जसीडीह आरोग्य भवन दशकों तक कोलकाता के यात्रियों के लिए एक
प्रमुख आकर्षण का केंद्र रहा है। लेकिन फिर कालांतर में इसकी चमक धीरे-धीरे धुमिल
हो गई। अब पूरे परिसर का नए सिरे से जीर्णोद्धार और नवीनीकरण द्रुत गति से हो रहा
है और यह आशा की जा रही है कि 2023 के अंत तक यह कार्य पूरा कर लिया जाएगा। क्या
यह अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर पाएगा? फिलहाल
अभी इसका उत्तर नहीं दिया जा सकता लेकिन यह निश्चित है कि संस्था प्राण-प्रण से जुटी है इसे फिर से अपनी प्रतिष्ठा प्रदान कराने में। आशा और
विश्वास तो है कि हमें फिर से नव-युग के मुताबिक छुट्टियाँ बिताने और स्वास्थ्य
लाभ करने के लिए पूर्व-भारत में उचित व्यय पर लंबे समय तक रहने लायक एक स्थान मिल
जाएगा।
भवन के नजदीक ही ‘पागल बाबा’ का मंदिर
और आश्रम है। पिछले कई दशकों से यहाँ अखंड संगीतमय कीर्तन चल रहा है, 24 घंटे, बिना रुके। किसी ‘पागल
बाबा’ या ‘लीलानंद ठाकुर’ ने इसकी कल्पना की और इसे मूर्त रूप दिया। उनके चलाये हुए ऐसे कीर्तन कई
स्थानों पर अबाध रूप से चल रहे हैं। बाबा को ब्रह्मलीन हुए भी कई दशक हो चुके हैं।
उन्होंने इसके लिए समुचित धन की व्यवस्था
भी की थी। लेकिन तब भी इस व्यवस्था को चलाने वाले तो इसके पीछे लगे हैं, अपना समय, कौशल लगा रहे हैं। शायद धन भी लगा रहे
हों।
पागल बाबा आश्रम |
इस अखंड कीर्तन, धार्मिक कृत्य, के कारण मंदिर परिसर भी स्वच्छ रहता है, भक्त गण आते रहते हैं, उन के ठहरने की अच्छी व्यवस्था भी बन गई है। साथ-साथ मंदिर की अपनी गौशाला है। संस्था का विद्यालय है जिसमें छात्र-छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है। मंदिर प्रांगण में ही औषधालय है जहां बिना किसी भेद-भाव के निःशुल्क, दवा सहित, उपचार किया जाता है। ऐसी व्यवस्था देश के कई हिस्सों में हैं। कहीं कोई शिलालेख नहीं है जिसमें दाताओं के नाम उल्लखित हों। यह तो एक संस्था की बात हुई, ऐसी अनेक संस्था देश भर में कार्यरत हैं जो शांति से बिना किसी प्रकार का खुड़का किए सेवा कर रही हैं और लोगों का जीवन संवार रही है, इनका केंद्र बिन्दु है ‘अखंड कीर्तन’ या ऐसा ही कोई संकल्प।
लौटते समय हम बासुकीनाथ के
नजदीक से गुजरे। दोनों तरफ पेड़ों की अनेक दुकानें और ठहरने की व्यवस्था की भरमार। सब
स्थानीय लोगों की हैं। थोड़ा आगे बढ़ने पर एक बड़ी और साफ-सुथरी सी जगह देख हम
चाय-नाश्ता करने रुके। मालिक बंगाल से था लेकिन उसका स्थान पूरी तरह से निरामिष
था। पति-पत्नी कार्यरत थे। सब्जी-रोटी गरम और स्वादिष्ट थी। हम वहाँ काफी देर रुके
खटिया पर आराम भी किए। लेकिन इस दौरान एक भी यात्री नहीं आया। सड़क पर यातायात भी
नहीं के बराबर थी। बातचीत हुई। मैंने पूछा, यात्री तो है ही नहीं, गुजारा कैसे चलता
है। पता चला एक लंबे समय से वे वहाँ रहते हैं। पहले गुजारा मुश्किल से चलता था। लेकिन
अब वर्ष में सिर्फ एक माह काम चलता है। उस समय मुश्किल से 2 घंटे सोने मिलता है।
कभी-कभी वह भी नहीं। ‘बाबा’ की कृपा से
उस एक माह में इतना बच जाता है कि साल भर निकल जाता है।
मामा लाइन होटल |
हमारे देश की अर्थ व्यवस्था
टिकी हुई ही है ऐसे धार्मिक त्यौहार और अनुष्ठानों पर। देश के कोने-कोने में
अलग-अलग नाम से इनका आयोजन होता रहता है और देश की बड़ी जनता इनमें उत्साह के साथ
शरीक होती है। उनके मनोरंजन का साधन यही है और उनके कारण ही वहाँ के भूमिपुत्रों
का गुजारा चलता है। वे अपने स्थानों पर बने हुए हैं, शहरों की तरफ नहीं दौड़ रहें हैं। यात्री इन्हीं का भोजन करते
हैं, इन्हीं के घरों में ठहरते हैं और उनके कुएं का ही पानी
पीते हैं। ये बिसलेरी, पिज्जा और अन्य ब्रांडेड वस्तुओं का
प्रयोग करने वाले नहीं हैं।
मुझे कई युवा मिले जिनकी
राज-मार्ग पर पहली पसंद,
खाट लगे ढाबा हैं। ये ढाबे एयर-कंडीशन्ड नहीं हैं, न ही
वर्दी पहने बैरे यहाँ मिलेंगे। पूरा परिवार इसमें लगा होगा,
एक पका रहा होगा, एक गल्ले पर बैठा होगा, एक खिला रहा होगा तो एक सफाई कर रहा होगा। युवा वर्ग का यह रुझान देश की
अर्थ व्यवस्था को मजबूत कर रहा है। आप भी इनका हौसला बढ़ाइए,
अनजाने में ही सही, इन्हें अपनी जमीन से जुड़े रहने में सहयोग
दीजिये, देश को मजबूत कीजिये। महूसस कीजिये धर्म कहाँ-कहाँ, कैसे-कैसे सहयोग कर रहा है।
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आपने भी कहीं कोई यादगार यात्रा की है और
दूसरों को बताना चाहते हैं तो हमें भेजें। आप चाहें तो उसका औडियो भी बना कर भेज
सकते हैं। हम उसे यहाँ, आपके नाम के साथ प्रस्तुत
करेंगे।
यूट्यूब का संपर्क सूत्र à
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