शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

पुरी – नया क्या

                                                       यात्रा संस्मरण

पुरी, न जाने कितनी बार मैं हो आया हूँ। मैं क्या मेरा पूरा परिवार प्रयत्न कर के भी गिन नहीं पाएगा – कितनी बार। जब हम छोटे थे, विद्यालय में थे, तब से हमारे परिवार के विशेष पर्यटन स्थलों में पुरी  भी था। उसके बाद पिछले दो-तीन दशकों में भी अनेक बार गए हैं – सड़क मार्ग से भी और रेल से भी। लेकिन इस बार की यात्रा अलग भी थी और कई बदलाव भी नजर आए। अलग इस माने में कि कोरोना के कहर के बाद पुरी  की यह पहली यात्रा थी, हमलोग बारह लोग थे, तीन वयस्क और नौ बच्चे, मैं और मेरी पत्नी गाड़ी से - सड़क मार्ग से गए थे बाकी सब ट्रेन से। कोरोना के दौरान सरकार-प्रशासन ने कई विकास के कार्य किए हैं। 

          मार्च 2022 में हम इस यात्रा पर निकले। बंगाल की सड़क ओड़ीशा की तुलना में बेहतर अवस्था में मिली, पहले बंगाल - ओड़ीशा की बराबरी करने की अवस्था में नहीं था। लेकिन अभी लंबे समय से ओड़ीशा में जगह-जगह मरम्मत और निर्माण का कार्य चल रहा है। हाँ, यह निश्चित है कि पिछले यानि 2021 नवम्बर की तुलना में अब हालत काफी सुधार गए हैं। सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि राज मार्ग पर जगह-जगह बम्प्स तो बना दिये गए हैं लेकिन उसके साथ चालकों को होशियार करने के लिए किसी भी प्रकार की कोई सूचना-पट्टी (बोर्ड) नहीं हैं। वहीं बंगाल में सड़क ठीक है लेकिन बेलदा के नजदीक लगभग 5-6 किमी की लंबाई में सड़क तो अच्छी है लेकिन प्रत्येक 100-150 मीटर पर बंप्स बनाए हुए हैं जिनकी ऊंचाई सामान्य से ज्यादा और ढलान सामान्य से  कम है। चालक और यात्री की अवस्था और कष्ट का अंदाज लगाया जा सकता है। फिर, खड़गपुर के बाद, लौटते समय, अनेक जगहों पर मार्ग पर अवरोधक लगा कर सड़कों को संकड़ा कर दिया गया है, कोलाघाट के बाद अनेक ट्रेफिक सिग्नल हैं जहां ठहराव सामान्य से लंबा है, कोना-एक्स्प्रेस्स मार्ग के हालात तो खस्ता हैं। जाते समय, सुबह में तो यह रास्ता लिया ही नहीं जा सकता, अंडूल रोड से जाना ही सही निर्णय है। कई दशकों से यही हाल है, और सरकार बेखबर। कोशिशों में लगी है लेकिन कार्य और प्रगति न्यूनतम स्तर पर है और योजनाएँ तो है ही नहीं। आने वाले समय की तो बात छोड़ ही दें अभी वर्तमान की आवश्यकताओं के लिए भी नाकाफी हैं। कोलकाता से पुरी  तक का टोल खर्च आता है 705 रुपए, इसके बाद अप्रैल से इनमें बढ़ोतरी भी हुई है। उधर, ओड़ीशा में, भुवनेश्वर के बाद पुरी  तक का मार्ग कई वर्षों पहले ही 4-वे कर दिया गया था, अब एक वैकल्पिक मार्ग भी तैयार कर दिया गया है जिससे होते हुए बिना पुरी  में प्रवेश किए सीधे, चैरिएट होटल के बगल से होते हुए, समुद्र तट तक पहुंचाने का 4 मार्ग का चौड़ा सपाट रास्ता। एक आश्चर्य की बात है कि इस पूरे राज-मार्ग पर, कोलाघाट के बाद कहीं भी खाने की सही व्यवस्था नहीं है। केवल कोलकाता से 100 किमी के अंदर ही कई अच्छे ढाबे हैं। पिछली कई यात्राओं की तुलना में मैंने यह बात साफतौर पर महसूस की है कि इस मार्ग पर निजी वाहनों के यातायात में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। आशा करता हूँ कि शायद जल्दी ही किसी की नज़र पड़ेगी और अच्छे ढाबे की शुरुआत होगी। यह तो हुई सड़क मार्ग की बात।

          अब अगर रेल मार्ग की बात करूँ तो दो विशेष ध्यान देने की बात है। पहली तो यह कि कोरोना के बाद रेल की समय-तालिका में हेर-फेर हो गए हैं, उदाहरण के तौर पर धौली एक्सप्रेस पहले कोलकाता से प्रातः जल्दी छूटती थी, लेकिन अब देर से छूटती है और शाम तक पहुंचती है। और दूसरी बात, हमारे नैतिक पतन की है। रेलवे स्टेशन के बाहर एक स्तंभ पर गांधीजी की अर्धमूर्ति थी। स्तम्भ पर, ओड़िया-हिन्दी और अँग्रेजी में यह अंकित था कि गांधीजी अपनी यात्रा के दौरान पुरी  के नजदीक आए थे लेकिन जगन्नाथ महाप्रभू के दर्शन नहीं किए क्योंकि मंदिर में अछूतों का प्रवेश वर्जित था। सोचा था कि बच्चों को दिखाऊँगा और इस घटना की विस्तृत जानकारी भी दूँगा। लेकिन मैं हतप्रभ रह गया, स्तम्भ अभी भी मौजूद है लेकिन अब न वह शिलालेख है न गांधी।

          ओड़ीशा पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित कोणार्क-भुवनेश्वर यात्रा पर बच्चे गए थे। यात्रा अच्छी ढंग से आयोजित की गई थी, बस भी अच्छी थी। लेकिन यह यात्रा प्रातः 6.30 पुरी  से प्रारम्भ हो कर शाम 7 बजे पुरी  पर ही समाप्त हुई। यह बड़े खेद की बात है कि इस दौरान जलपान, भोजन तथा चाय के लिए किसी भी सही जगह पर ठहराव नहीं किया गया। पर्यटक प्रायः भूखे ही रहे या फिर बिसकुट, फल आदि से काम चलाया। विभाग को इस ओर ध्यान देना चाहिए। 

          पुरी, समुद्रतट और मंदिर के आसपास के क्षेत्र का नवीनीकरण कर दिया गया है। अनेक सड़कें सीमेंटेड कर दी गई हैं, रौशनी बेहतर हो गई है, समुद्रतट की सड़क चौड़ी और लंबी कर दी गई है। साइकल रिक्शे बहुत कम हो गए हैं। अब मरीन ड्राइव पर आहिस्ते-आहिस्ते रिक्शे पर सफर करने का आनंद उपलब्ध नहीं है। ऑटो और टोटो से सफर जल्दी तय हो सकता है लेकिन पर्यटकों को तो सैर का आनंद लेना होता है, जिससे अब हमें मरहूम कर दिया गया है। मंदिर के बाहर की व्यवस्था में अनेक बदलाव हो गए हैं। सभी वाहनों का प्रवेश वर्जित है। प्रमुख सड़क के मध्य में एक लंबा-चौड़ा  छायादार मार्ग बनाया गया है जिसके नीचे से श्रद्धालु-पर्यटक मंदिर तक पहुँच सकते हैं। बुजुर्गों के लिए बैटरी के वाहनों कि व्यवस्था की गई है। प्रवेश द्वार के समीप की अनेक दुकानों को हटा कर यात्रियों के लिए खुली जगह बना दी गई है। मोबाइल फोन तथा बैग वगैरह रखने की भी निःशुक्ल अच्छी व्यवस्था हो गई है। प्रवेश द्वार पर अब ऐसी व्यवस्था है कि पुरातन समय से बने जल-स्त्रोत से हाथ-पैर धोते हुए मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं।

          मंदिर प्रांगण में कहीं कोई हेर-फेर नहीं है। गर्भ-गृह में प्रवेश, महाप्रभु के नजदीक से दर्शन तथा मंजन-दतुअन आदि के दर्शन कई वर्ष पूर्व मंदिर के जीर्णोद्धार के कारण बंद कर दिये गए थे। जीर्णोद्धार का कार्य तो कई वर्ष पूर्व ही समाप्त हो गया है लेकिन महाप्रभु के दर्शन की व्यवस्था बहाल नहीं की गई है। जिज्ञासा करने पर यही पता चला कि सरकार, प्रशासन, श्रद्धालु और यात्री सब  बेखबर हैं। अब कोई श्रद्धालु-यात्री सरकार-प्रशासन को जगाये या फिर न्यायालय का आदेश उनके हाथ में पकड़ाये तभी शायद वह अवसर प्राप्त हो। फिलहाल अभी ऐसे कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। महाप्रभु के नयनाभिराम दर्शन, बलभद्र-सुभद्रा-कृष्ण के दर्शन एक साथ नहीं हो पाते – दरवाजा सँकडा है और महाप्रभु का दरबार बड़ा। 

          पुरी  के एक समुद्र तट को अंतर्राष्ट्रीय ‘Blue Flag’ का खिताब अभी कुछ समय पहले ही मिला है। कई पैमानों, जैसे स्वच्छता, पर्यावरण, सुविधाएं, सुरक्षा आदि के  पर खरा उतरने पर ही यह खिताब मिलता है। यह मानना पड़ेगा कि इस कारण अब जन साधारण के लिए निरापद और स्वच्छ समुद्र में स्नान करने, स्नान के पश्चात बालू और नमकीन पानी को साफ करने के लिए स्नानगृह, कपड़े बदलने की जगह आदि और साथ ही समुद्र तट पर सैर तथा धीमे-धीमे दौड़ने (jogging) की भी व्यवस्था हो गई है, वैसे इसकी चौड़ाई कम है।

          इस यात्रा में पहली बार स्वामी तोतारामजी की समाधिस्थल पर गया। मार्ग सँकडा लेकिन सीमेंटेड है, लोग प्रायः इस स्थल से परिचित हैं। जनता का आना कम है लेकिन वीरान भी नहीं है। स्वामी तोता राम जी 

स्वामी विवेकानंद के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस के गुरु थे। इनकी आयु तीन सौ वर्षों से ज्यादा की बताई जाती है। स्वामीजी किसी भी एक स्थान पर तीन-चार दिनों से ज्यादा नहीं ठहरते थे। इसी प्रकार घूमते हुए वे दक्षिणेश्वर के घाट पर पहुंचे और वहाँ उनकी मुलाक़ात स्वामी रामकृष्ण से हुई और वे वहाँ लगभग 11 महीने रहे। रामकृष्ण परमहंस ने 16 अगस्त 1886 में  समाधि ली थी। अपने जीवन के अंत काल में 40 वर्षों तक स्वामी तोता रामजी यहीं रहे और 360 वर्षों की आयु में 28 अगस्त 1961 में उन्होंने इसी प्रकार समाधि में बैठे हुए ही समाधि ली थी और उनकी समाधि यहीं इसी के नीचे बैठी हुई अवस्था में ही बनाई गयी थी। स्वामीजी कहीं आते-जाते नहीं थे, उनके भक्तगण या परमात्मा ही उनका ख्याल रखते थे। उनके जीवन की अनेक घटनाओं की चर्चा होती है। दशकों से आते रहने के बाद मुझे इसकी जानकारी नहीं थी। इस बार अपने एक हितैषी के बताने पर मैं यहाँ पहुंचा। 


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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

सूतांजली अप्रैल 2022

 सूतांजली के अप्रैल अंक के ब्लॉग और यू ट्यूब का  संपर्क सूत्र नीचे है।

इस अंक में कई विषय, लघु कहानी और धारावाहिक कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी की सोलहवीं किश्त है।

१। बड़ा कौन - मेरे विचार

शर्मा जी की आँखें खुल गयी, और उन्होंने दूसरे ही दिन अपना कारोबार-कारख़ाना फिर से शुरू कर दिया और संत शर्मा जी फिर से व्यवसायी शर्मा जी बन गए। अपने को ईश्वर का दूत ........

          ऐसा क्या हुआ कि शर्मा जी के विचार बदल गए। शर्मा जी की आँखें खुल गयी, और उन्होंने दूसरे ही दिन अपना कारोबार-कारख़ाना फिर से शुरू कर दिया और संत शर्मा जी फिर से व्यवसायी शर्मा जी बन गए। अपने को ईश्वर का दूत समझ वैसी ही भावना से कर्म-रत हो गए।

२। मूर्खता  

सोचने की एक पूरी श्रेणी होती है। जो लोग यह सोचते हैं कि उनकी बुद्धि वरतर है और जिस चीज़ को वे नहीं समझते उसे ठुकरा देते हैं, ऐसों की भरमार है – भरमार। और यह ठेठ मूर्खता का लक्षण है! दूसरी ओर, ऐसे भी कई हैं लोग हैं जिन्हें सामान्यतया “सीधा-सादा" माना जाता है, लेकिन मेरे हिसाब से ये ही सराहनीय हैं और मैं ऐसे भोले-भालों को ही पसन्द करती हूँ .......

          श्रीमाँ क्यों पसंद करती है उन्हें ?

३। आत्मा से तृप्त लोग ..... – मैंने पढ़ा

.........बच्ची ने मानवता की पराकाष्ठा का पाठ पढ़ा दिया। मैंने अंदर ही अंदर अपने आप से कहा, इसे कहते हैं आत्मा से तृप्त लोग, लोभवश किसी से.......

          कौन हैं वे जो आत्मा से तृप्त होते हैं?

४। माँ ईश्वर का प्रतिरूप है  -  मैंने पढ़ा  

क्या मेल है माँ और ईश्वर के स्वरूप में? .......

५। नम्रता          लघु कहानी - जो सिखाती है जीना

छोटी कहानियाँ लेकिन बड़े अर्थ

६।कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी (१६) – धारावाहिक

धारावाहिक की सोलहवीं किश्त

......... उसका फल हो सकता है फांसी के तख्ते पर मृत्यु या आजीवन कालापानी, किन्तु उस ओर दृष्टिपात न कर उनमें से कोई बंकिम का उपन्यास, कोई विवेकानन्द का राजयोग या Science of Religions, कोई गोठा, कोई पुराण तो कोई यूरोपीय दर्शन एकाग्र मन से पढ़......

 


ब्लॉग  का संपर्क सूत्र (लिंक): à  

https://sootanjali.blogspot.com/2022/04/2022.html

 

यू ट्यूब का संपर्क सूत्र (लिंक) : à

 

https://youtu.be/vU-He7SMjSA

शुक्रवार, 25 मार्च 2022

ऐसा भी एक समय था

मैंने पढ़ा

(धर्मवीर भारती हिन्दी के जानेमाने  लेखक, कवि, नाटककार हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में हैं गुनाहों का देवता, अंधायुग, कनुप्रिया, सूरज का सातवाँ घोड़ा आदि। काऊ बेल्ट की उपकथा के शीर्षक से, दशकों पहले  लिखा उनका लेख देश की हिन्दी पट्टी की सामाजिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता की कहानी कहता है। प्रस्तुत अंश उसी लेख से है। यह विचारणीय है कि हम किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.......)     

हिंदी प्रदेश से हजारों मील दूर, थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक। इतने दिनों से देश के बाहर चक्कर काट रहा हूँ कि देश की ऋतुओं और तिथियों का कोई अंदाज ही नहीं रहा। हवाई अड्डे से होटल बहुत दूर है और होटल पहुँचने के पहले ही बीच में रुककर एक मेले में जाना है। मेला काहे का? कुश्ती का। मैं हक्का-बक्का हूँ कि यह कैसा होगा और कुश्ती से मेरा क्या ताल्लुक? तीन ओर मकानों से घिरे एक खुशनुमा मैदान में हजारों भारतीयों की भीड़। बीच-बीच में छह सात अखाड़े खुदे हुए हैं। पहलवान अपनी मंडलियों के साथ 'बजरंगबली की जय' बोलते चले जा रहे हैं। मेजबान मुझको आश्चर्य चकित देखकर मुस्कुराते हैं और फिर आहिस्ते से समझाते है, 'आप बंबई में रहते हैं न, भूल गए होंगे कि आज नागपंचमी है। हम लोग सौ साल से यहाँ हैं, पर अपने त्यौहार नहीं भूले। नागपंचमी को हम लोगों ने युवा दिवस बना लिया है। उसी तरह अखाड़े खुदते हैं, जैसे यू.पी., बिहार में।  आज की कुश्ती के चैंपियन को पुरस्कार आपके हाथ से दिलाएंगे।' नागपंचमी की पुरस्कार विजेता थी, लछमन अखाड़े की युवा जोड़ी - इसाक गफूर और राघव मिसरा।

          ये थे 'काऊ बेल्ट'1 से जाकर बैंकॉक में बसे हुए प्रवासी भारतीय इनमें साधारण दरवान और चौकीदारों से लेकर लखपति, करोड़पति लोग थे। मालूम हुआ कि बैंकॉक का सारा लकड़ी का व्यापार, इमारती सामान की तिजारत, मकान बनाने का उद्योग, मशीनों और फ़ैक्टरियों को संचालित करने का उद्यम, कपड़े की आढ़तें सब भारतीयों के हाथ में हैं और इन सभी भारतीयों में नब्बे प्रतिशत यू.पी., बिहार के लोग हैं, पिछड़ी हुई हिंदी पट्टी के। अशिक्षाग्रस्त काऊ बेल्ट के।

शाम को डिनर रखा गया था, अब्दुल रज्जाक साहब के घर पर। वे बैंकॉक में इमारती लकड़ी के सबसे बड़े व्यापारी हैं, थाईलैंड के मिनिस्टरों और सेनापतियों के हम प्याला, हम निवाला। हज कमेटी के सर्वेसर्वा, मलेशिया और थाईलैंड के इस्लामिक कल्चर फेडरेशन के चेयरमैन, पर आज भी दिल उनका यू.पी. में रमा हुआ है। यू.पी. से कोई मेहमान आए, पहली शाम का डिनर उन्हीं के यहाँ होना जरूरी है। पता नहीं कैसे, उन्हें मालूम हो गया था कि मैं आया बंबई से हूँ, पर हूँ मूलत: यू.पी. का।

रज्जाक साहब तपाक से गले मिले। बैंकॉक के भारतीयों की समस्याएं बतलाते रहे। भारत का हालचाल पूछते रहे। फिर बोले, 'खाना मेज पर लगा है। पर दो मिनट ठहर जाइए। मेरा एक दोस्त आपसे मिलने आया है खासतौर से। हाथ-मुँह धोने गया है।' कौन है यह दोस्त?

दो तीन मिनट बाद बाथरूम  का दरवाजा खुला और उसमें से जो लंबे से अधेड़ साहब निकले, उनका हुलिया साक्षात 'काऊ बेल्टी' था। धोती का फेंटा कसते हुए भीगे जनेऊ से पानी सूंघते हुए, लंबी चोटी को फटकारते हुए उन्होंने नम्रता से नमस्कार किया। मालूम हुआ ये हैं रामभरोसे पंडित। बैंकॉक के हिंदू सेवादल के अध्यक्ष, भारत प्रवासी ट्रस्ट के प्रमुख ट्रस्टी, विश्व हिंदू परिषद के स्थानीय महामंत्री। शिखा बांधकर, बदन पर एक फतूही डालकर जब वे खाने की मेज पर बैठे तो पता चला कि रज्जाक और रामभरोसे की जिगरी दोस्ती पूरे देश में मशहूर है। आंधी हो, पानी हो, हफ्ते में कम से कम दो दिन, दोनों साथ डिनर लेते हैं, कभी रज्जाक साहब के यहाँ, कभी रामभरोसे पंडित के यहाँ।

रज्जाक साहब प्रेम से रामभरोसे की टांग खिचाई कर रहे थे- 'साहब यह हिंदू सभा का नेता है, पर महीनों तक जनेऊ नहीं बदलता। बार-बार मुझे याद दिलानी पड़ती है। परले सिरे का कंजूस है।' रामभरोसे कहाँ पीछे रहने वाले, बोले- 'साहब, इसकी बातों में न आइएगा। इसका कोई दीन-ईमान है। मस्जिद के मकतबे में जंगली लकड़ी का शहतीर लगवा रहा था। मैं आकर बिगड़ा तो इसने साख की लकड़ी लगवाई। अरे धरम के काम में तो मुनाफा न कमा।'

बहरहाल, खाना शुरू होता है तो यह भेद खुलता है कि हफ्ते में दोनों दो बार साथ खाना खाते हैं, वह इसलिए कि अपनी-अपनी संस्थाओं की समस्याओं के बारे में एक-दूसरे की सलाह  जरूरी होती है। रज्जाक साहब हिसाब-किताब, कानून-आईन में पक्के हैं और रामभरोसे पंडित को संस्था संचालन... लोकप्रियता के हथकंडे और तिकड़में खूब आती हैं। रामभरोसे के हिंदू सेवा दल वगैरह का हिसाब-किताब रज्जाक साहब के जांचे बिना पूरा नहीं होता और रज्जाक साहब की संस्थाओं में कोई झगड़ा झंझट उठ खड़ा होता है तो रामभरोसे की सूझबूझ काम में आती है। पिछले साल हज जाने वाले यात्रियों का मलायी और चीनी कुलियों से कुछ झंझट हो गया और मामला जरा तूल पकड़ने लगा। रज्जाक साहब ने संदेशा भेजा। रामभरोसे दौड़े हुए आए और डांट-फटकार, मान-मनुहार कर आधे घंटे में मामला रफा-दफा कर दिया। एक बार बैंकॉक के कलेक्टर ने जमीन का कोई पुराना कानून लागूकर नागपंचमी के मेले पर बंदिश लगा दी और पिछले दस साल का हर्जाना लाखों में मांग लिया। रज्जाक साहब पहुँच गए दो वकीलों को लेकर कानून पर बहस की, हर्जाने की रकम कम कराई और नागपंचमी के मेले की लिखित अनुमति लेकर डेढ़ घंटे में पहुँच गए। अखाड़े चालू करवा दिए।

ये किस्से सुनकर जब मैंने रज्जाक साहब से कहा कि 'खूब है आप लोगों की दोस्ती! तो रामभरोसे बोले, 'काहे की दोस्ती डॉक्टर भारती साहेब, असल में हम आजमगढ़ के हैं, इही सारू आजमगढ़ का है। एक माई का दुइ बेटवा समझी। ई बात जुदा है कि हम लायक बेटवा हैं, ई जरा नालायक निकल गया। मुला धन दौलत एही कमाता है। बात ई है कि लक्षमी मैया तो उल्लुऐ पर बैठती है न...' और रज्जाक साहब का एक घूंसा रामभरोसे की पीठ पर पड़ा, 'अबे देवी-देवताओं की तो इज्जत रख, हंसी-मजाक में उन्हें भी घसीटता है। जाने इसे हिंदू सभा का सेक्रेटरी किसने बना दिया?'

अपने-अपने धर्म पर अखंड आस्था दूसरे धर्म के प्रति गहरा निश्छल आदर और जात-पात संप्रदाय से ऊपर उठकर पूरी भारतीय जाति को अपना समझने वाले ये रज़्ज़ाक़ और रामभरोसे के चेहरे मेरे जेहन में गहरे दर्ज हैं, क्योंकि हिंदी पट्टी का, हम हिंदी भाषियों का यही असली चेहरा है।

आज जब मुरादाबाद, मेरठ, इलाहाबाद या बिहार में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव की खबर पढ़ता हूँ, तो बड़ी शिद्दत से याद आते हैं ये दोनों चेहरे उदास होकर सोचता हूँ कि कहाँ खोता जा रहा है हमारा असली चेहरा? ये नफरत के मुखौटे किसने लगा दिए हैं हमारे चेहरों पर? किसने हमारे होठों पर चिपका दिए हैं, ये ललकार भरे नारे? नहीं दोस्तों, यह जहर हमारी हिंदी पट्टी का नहीं, यह तो कोई साजिश कर रहा है, चुपचाप। हमारा तो असली चेहरा वही है जिसका मजहब कोई हो, जिसका असली धर्म प्यार है, निश्छल प्यार, उदारता, दिली भाईचारा

धर्मवीर भारती  अहा ! जिंदगी | सितम्बर 2017

'काऊ बेल्ट'1 हिन्दी भाषी प्रदेश, मतलब राजनीतिक भाषा में हिंदी पट्टी, अंग्रेजी परस्त अफसरों और पत्रकारों की भाषा में 'काऊ बेल्ट' मतलब अशिक्षा, पिछड़ेपन, जातिवादी और संप्रदायवादी कट्टरता में निमग्न अंधकार भरी पट्टी - देश की प्रगति और आधुनिकीकरण में सबसे बड़ा अवरोध; उपहास, उपेक्षा और अवमानना का पात्र!

(काऊ बेल्ट शब्द का प्रयोग अंग्रेज़ एवं अग्रेज़ परस्त लोग हिन्दी भाषा क्षेत्र के लिए करते थे जो एक प्रकार का अपमानसूचक शब्द था, एक प्रकार की सभ्य गाली।

नफरत करना और फैलाना बहुत आसान है असली भारतीय हों तो इसे रोकें, रोक न सकें तो कम-से-कम इसे फैलाने में सहयोग न करें और भाईचारा और सौहार्द का माहौल बनाने का प्रयत्न करें – संपादक)

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शुक्रवार, 18 मार्च 2022

हमारे मौलिक कर्तव्य

 हमारे मौलिक कर्तव्य                                            खबरें जरा हट के

 मुझे यह तो मानना ही चाहिए कि आप नियमित रूप से अखबारों में समाचार पढ़ते और टीवी पर समाचार  देखते होंगे। और इस बात से अच्छी तरह से परिचित हैं कि हमारी  मीडिया हमें क्या और कैसी बातें बताती-दिखती हैं, एक बार, बार-बार, दिन भर। लेकिन इन सब के बीच कभी-कभी अखबारों के भीतरी पृष्ठों पर, तो कभी छोटे रूप में ऐसी खबरें छप जाती हैं जो पढ़ने, समझने और एक भारतीय नागरिक हेतु हमें जानना चाहिए। ऐसी ही एक खबर मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022 को टाइम्स ऑफ इंडिया, कोलकाता में छपी –



SC seeks Centre and state’s reply on Fundamental Duties

(उच्चत्तम न्यायालय ने केंद्र और राज्यों से मौलिक कर्तव्यों पर जवाब माँगा)

          आगे बढ़ने के पहले मैं यह बता दूँ कि, मीडिया और सोशल मीडिया पर हर विषय पर पक्ष और विपक्ष में इतनी बातें धड़ल्ले से प्रचारित होती हैं कि क्या है सच और क्या है झूठ, क्या सही है क्या गलत यह हमारे लिए जान पाना असंभव सा ही होता है। यही नहीं खबर सुनाने के बजाय हर चैनल उस खबर पर अपनी टिप्पणी-प्रतिक्रिया देने के लिए इतना उतावला रहता है कि असली खबर गौण हो जाती है और हम उस प्रतिक्रिया के बहाव में बह जाते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए इस खबर पर मैंने अपनी तरफ से कोई टिप्पणी नहीं की है। केवल तथ्यों को ही प्रस्तुत किया है।

          खबर के अनुसार वादी के जनहित याचिका (PIL) पर पहले तो न्यायालय ने सुनवाई करने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह याचिका राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत है और जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही इस पर निर्णय ले सकते हैं। लेकिन फिर वादी के अनुरोध पर न्यायालय ने सरकार से इस पर जवाब माँगा, और उनको मौलिक कर्तव्यों के पालन के लिए एक उचित “संविधान की धारा पार्ट IV-A के अंतर्गत विस्तृत एवं समुचित कानून / नियम” बनाने के लिए कहा है ताकि नागरिक अपने मौलिक कर्तव्यों का सही और उचित ढंग से पालन करें।

          मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य की बात जरा सी समझने की है। “मौलिक अधिकार” (Fundamental Rights) हमें संविधान में प्रारम्भ, 1950 से ही प्राप्त हैं, इसके अंतर्गत अनेक मुकदमे हर समय चलते रहते हैं, इसकी चर्चा आप प्रायः सुनते रहते होंगे। यह अधिकार हमें कानून प्राप्त है और न मिलने पर, हम इसकी माँग न्यायालयों से कर सकते हैं।

          लेकिन मौलिक कर्तव्य (Fundamenatal Duties) का किस्सा अलग है। तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने इसे संविधान के 42 वें संशोधन के अंतर्गत 1976 में इसे संविधान में जोड़ा था। इनमें 10 कर्तव्यों का जिक्र है, बाद में  2002 में इसमें एक और जोड़ा गया। इस प्रकार अब इसकी संख्या 11 हो गई है। ये 11 कर्तव्य हिन्दी और अँग्रेजी में नीचे दिये गए हैं।

 मौलिक कर्तव्य

अनुच्छेद 51(क)

भाग 4(क) मौलिक कर्तव्य

यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा

(a) प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें;

(b) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करनेवाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;

(c) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;

(d) देश की रक्षा करे;

(e) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे;

(f) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे;

(g) प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे;

(h) वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे;

(i) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे;

(j) व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे;

(k) माता-पिता या संरक्षक द्वार 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना.

 

Fundamental Duties

List of Particulars

Fundamental Duties of Indian Citizens

Covered In

Part IV A, Article 51 –A

Borrowed from Country

USSR (Russia)

Amendment in Constitution

42nd Amendment 1976, introduced Article 51 A in the constitution

Recommended by

Mr.Swaran Singh Committee.

Numbers

Originally -10 duties Now -11 duties (added by 86th Amendment ACT, 2002)

List of Fundamental Duties

1.   Abide by the Constitution and respect national flag & National Anthem

2.   Follow ideals of the freedom struggle

3.   Protect sovereignty & integrity of India

4.   Defend the country and render national services when called upon

5.   Sprit of common brotherhood

6.   Preserve composite culture

7.   Preserve natural environment

8.   Develop scientific temper

9.   Safeguard public property

10.   Strive for excellence

11.   Duty for all parents/guardians to send their children in the age group of 6-14 years to school.

 इन  कर्तव्यों का कोई कानूनी औचित्य नहीं हैं, केवल नैतिकता के रूप में हैं। यानी इसके अंतर्गत कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है। सिर्फ यह अपेक्षा की जाती है कि आप इनका पालन करेंगे, एक आदर्श नागरिक के तौर पर आप इन पर अमल करेंगे।

          अपनी बात रखते हुए वादी ने कहा कि अभी एक ऐसा माहौल बन गया है जिसमें एक नागरिक अपने नागरिक अधिकारों और नागरिक कर्तव्यों के मध्य के संतुलन से हटती जा रही है। हर अधिकार के साथ कर्तव्य भी जुड़ा है। अतः इस परिप्रेक्ष्य में इसकी कानूनी व्यवस्था आवश्यक है।

          पत्र में छपी खबर भी आपकी विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दी जा रही है साथ ही “विकिपीडिया” का लिंक भी।

संपर्क सूत्र à

https://en.wikipedia.org/wiki/Fundamental_Rights,_Directive_Principles_and_Fundamental_Duties_of_India#Fundamental_Duties

वादी और न्यायालय के इस कदम पर हमारा क्या और कितना ध्यान होना चाहिए?

हमारा इससे क्या सरोकार होना चाहिए?

क्या इस पर हमें खुद मंथन करना है?

आप अपने विचार और सुझाव से हमें अवगत कराएँ। 

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आपने भी कहीं कोई विशेष खबर पढ़ी है जिसे आप दूसरों से बांटना चाहते हैं तो हमें भेजें। हम उसे यहाँ, आपके संदर्भ के साथ  प्रकाशित करेंगे।

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शुक्रवार, 11 मार्च 2022

 होली-का-उत्सव

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उत्सव यानि त्यौहार। त्यौहार यानि उमंग, उमंग यानि खुशी, खुशी यानि चमक, सुगंध, प्रेम और  अपनों का साथ। अलग-अलग नहीं, सबों का साथ, एक साथ। संक्षेप में कहूँ तो सबों के साथ खुशनुमा माहौल। इनमें से एक भी छूटा तो उत्सव फीका पड़ा। रोज की दिनचर्या से हट कर कुछ और करने का जज़बा। ये सब सामग्रियाँ किसी भी उत्सव के आवश्यक अंग हैं। इनमें भी अगर आप पूछें सबसे अहम अंग कौन सा है? तो इसका दिल है अपनों का साथ। सब कुछ हो लेकिन अपनों का साथ न हो तो न उत्सव, न त्यौहार। समय के साथ-साथ हमारे उत्सवों में से एक-एक कर ये सामग्रियाँ कम होती गईं और जैसे-जैसे ये कम होती गईं हमारे उत्सव फीके पड़ते गए।

          क्या आप बता सकते हैं इन में से वह कौनसी सामग्री है जो सबसे पहले छूटी? हाँ, आपने ठीक पहचाना, अपनों का साथ। ये अपने कौन थे? हमारे रिश्तेदार, हमारे परिचित, हमारे दोस्त और हमारे पड़ोसी। हम ने  अनेक बहाने खोजे, और खोज कर अपनों का दायरा सिकोड़ते चले गए। हम कहते हैं कि लोग अब रंग नहीं केमिकल-गोबर-गंदगी का प्रयोग करते हैं, गुलाल नहीं धूल लगाते हैं, प्रेम नहीं रहा, समय की बर्बादी है .......। झूठ कहते हैं हम। ये लोग कौन हैं, क्या ये हम या हमारे बच्चे ही नहीं हैं। ये तो केवल बहाने हैं। अपने आँसूओं को छिपाने के। क्या हमें याद है हमने पिछली होली कब, किस के साथ, कहाँ और कैसे खेली थी? अगर वे सब फिर जमा हो जाएँ तो क्या हम फिर वही हुड़दंग किए बिना रहेंगे? होली ही एक ऐसा त्यौहार है जब आदमी शिष्टाचार की चादर को थोड़ा हटा कर, अपने रंग में रंगता है! उन्मुक्त होकर हँसता-बोलता है। हाँ,कई बिछुड़ गए लेकिन नए तो आए हैं? उन नयों मिलाइए, उन्हें जोड़िए। हर उत्सव की जड़ तो वही अपनों का साथ ही है। उनके बिना हर उत्सव वैसा ही है जैसे बिना नमक का व्यंजन, बिना चीनी की मिठाई। जहाँ  जड़ मजबूत हुई ये सब बहाने नदारद हो जाएँगे और फिर से आ जाएगी वही खुशी, उमंग, चमक, सुगंध, त्यौहार। जहां ये जमा हुए, उत्सव राग बजने लगेगा। ढफली बजने लगेगी, धमाल शुरू हो जाएगा।

          बाजार से रंग नहीं फूल लाइये। गुलाल नहीं जड़ी बूटियाँ लाइये। अगर आप के पास समय नहीं है तो बच्चों, दादा, दादी, बुजुर्ग, मित्र, पड़ोसी को साथ लगाइये। अगर उन्हें नहीं आता तो उन्हें बता दीजिये, इंटरनेट में बनाने की विधियां मिल जायेगी। फूलों से प्राकृतिक रंग और जड़ी बूटियों से सुगंधित  गुलाल बनाइये। बच्चों को उत्सव और त्यौहार का अर्थ समझ आयेगा और वे उससे जुड़ेंगे। उनके उत्साह और उमंग में खुशी और सुगंध का तड़का लगेगा। मिठाई भले ही बाजार से लाइये, लेकिन कम से कम एक मिठाई घर पर ही बनाइये। रिश्तेदारों को शामिल कीजिये – उन्हें बुलाएँ या उनके पास जाएँ। उनके आमंत्रण का इंतजार मत कीजिये। क्या आप होली खेलने, बुलाने पर जाते थे? या बिना बुलाए ही जाते थे? बंद दरवाजों पर हुड़दंग मचा कर दरवाजे खुलवाते थे? नाराजगी की परवाह किए बिना सतरंगी रगों में रंग जाते थे। मित्रों और पड़ोसियों के दिलों पर दस्तक दीजिये। देखिये दरवाजे खुलने लगेंगे। अपने अहम का त्याग कर सरल-सहज बनिए। उत्सव का संगीत फिर से बजने लगेगा। होली की होलिका दहन मत कीजिये, बल्कि होली मंगलायें

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शुक्रवार, 4 मार्च 2022

सूतांजली मार्च 2022

 सूतांजली के मार्च अंक के ब्लॉग और यू ट्यूब का  संपर्क सूत्र नीचे है.



इस अंक में दो विषय और धारावाहिक कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी की पंद्रहवीं किश्त है।

१। दिखे, तब विश्वास हो – विश्वास हो, तब दिखे (मैंने पढ़ा)

जी हाँ, हम प्रायः कहते हैं “दिखे तब विश्वास हो” क्योंकि हम सदियों से यही सुनते-देखते-मानते आ रहे हैं। लेकिन क्या यह सही है? हमें दिख रहा है तब भी विश्वास कहाँ हो रहा है? भ्रांति मान कर उड़ा देते हैं। लेकिन इनका कहना है कि अगर विश्वास हो तो साफ-साफ दिखेगा, और जैसे-जैसे विश्वास बढ़ता जाएगा दिखना भी बढ़ता जाएगा।

२। बुद्धि या हृदय, चरित्र या शील    (मेरे विचार)

चरित्र हिन्दू का अलग होगा, मुसलमान का अलग होगा, ईसाई का अलग होगा, जैन का अलग होगा, सिक्ख का अलग होगा। शील सभी का एक होगा। शील वहाँ से आता है जहां......

३। कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी (१५) – धारावाहिक

धारावाहिक की पंद्रहवीं किश्त

......इस समाज को तोड़ दो, चूर-मार कर दो; इतने पाप, इतने दुःख, इतने निर्दोषों के तप्त निःश्वास और हृदय के खून से यदि समाज की रक्षा करनी हो तो बेकार है वह रक्षा......

 ब्लॉग  का संपर्क सूत्र (लिंक): à  

https://sootanjali.blogspot.com/2022/03/2022.html

 

यू ट्यूब का संपर्क सूत्र (लिंक) : à

https://youtu.be/b64tXWiAEX8