शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

दिल चाहिए, धन नहीं

                                                                                             पाठकों के कलम से

यह कहानी नहीं एक संस्मरण है अजय मिश्र जी का :  

          “यह घटना तब की है जब मैं मध्यप्रदेश के एक शहर में एक निजी विद्यालय में उच्च श्रेणी में शिक्षक के पद पर कार्यरत था। प्रायः लोक-मंचीय कार्यक्रमों में देर रात तक विभिन्न शहरों में प्रस्तुति देने भी जाया करता था। ऐसे में मुझे देर रात्रि तक कार्यक्रम पूर्ण करके शिक्षकीय कार्य हेतु अपने सुबह की पाली वाले विद्यालय में पहुंचने की अनिवार्यता भी रहती थी। एक रात मैं लोक-मंचीय कार्यक्रम देकर अपने कार्यस्थल से 100 किलोमीटर दूर वापस अपने विद्यालय पर पहुंचने के लिए मुख्य सड़क (मेन रोड) के किनारे खड़ा हुआ, किसी भी प्रकार के वाहन का इंतजार कर रहा था, जो मुझे अपने कार्यस्थल तक पहुंचा दे। दिसम्बर का महीना था, ठिठुरा देने वाली ठंडी रात थी। डेढ़ घंटे मैं रोड पर खड़ा रहा, पर कोई भी गाड़ी मुझे नहीं मिली। विद्यालय प्रबंधन के आक्रोश का डर और ऊपर से किसी वाहन का न मिलना मेरे लिए दुखदायी होता जा रहा था। तभी दूर से किसी वाहन की रौशनी मुझे नजर आई। मैं मदद की उम्मीद के साथ वाहन को रुकने के लिए हाथ देने लगा। वह वाहन मेरे करीब आकर रुका, तो मैंने देखा वह एक मिनी ट्रक थी।

          मैंने वाहन चालक से लिफ्ट मांगते हुए आग्रहपूर्वक कहा, 'भैया मुझे हर हाल में सुबह तक विद्यालय पहुंचना है। क्या मुझे वहाँ तक छोड़  देंगे?" उसने मजबूरी के भाव चेहरे पर लाते हुए कहा कि आगे की सीट पर तो मेरे छोटे बच्चे और पत्नी बैठी हुई हैं, सामने थोड़ी भी जगह नहीं है। ऐसे में आप चाहें तो ट्रक के पीछे बैठ सकते हैं। मैंने तत्काल हामी भर दी और ट्रक के पीछे जा बैठा। ट्रक में कुछ पुराने लोहे के टुकड़े, बॉटल, डिब्बे और रद्दी पेपर इत्यादि पड़े थे। ट्रक चल पड़ी। खुली ट्रक में बैठा ठंड में ठिठुरता हुआ मैं अपने गंतव्य पर पहुंचा। ट्रक से उतरने के बाद धन्यवाद देते हुए मैंने ट्रक चालक से पूछा, 'भैया कितना भाड़ा दे दूं?" प्रत्युत्तर में ट्रक चालक हाथ जोड़ते हुए बोला, 'साहब जी मैं कबाड़ी का काम करता हूं, कसाई का नहीं। भंगार (कबाड़ी) बेचता हूं, मदद नहीं। किसी की भलाई कोई फल पाने के लिए नहीं की जाती। माफ़ कीजिए!' कहता हुआ वह बिना देर किए ट्रक आगे बढ़ा ले गया। दूर जाती हुई ट्रक की बैक लाइट की रोशनी तब भी मुझे अंधेरे में चलने के लिए मददगार सिद्ध हो रही थी। मेरे पास कोई शब्द शेष नहीं रह गए थे, उसके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए।

          मैं आज भी उस अनजान ट्रक चालक को याद करता हूं। उसकी प्रेरणा से अपनी हर सुबह की शुरुआत आमजनों की भलाई का संकल्प लेते हुए करता हूं।"

          ट्रक वाले ने अनजाने में ही किसी को प्रेरित किया भलाई का संकल्प लेने के लिए। एक साहित्यकार ने लिखा है, जो खुद भी दूसरों के सहारे है, जिसे दो जून की रोटी भी नसीब नहीं, वह भी और कुछ नहीं तो मुस्कुरा तो सकता ही है, दो लब्ज प्यार के तो बोल ही सकता है।

          दशकों पहले, जब पिताजी थे, हमारे यहाँ एक संत आया करते थे। वार्तालाप के दौरान उन्होंने कहा समाज सेवा के लिए दिल और धन दोनों चाहिए। किसी एक के होने से नहीं होता। लेकिन धन के पहले दिल होना चाहिए, दिल है तो रास्ते अनेक हैं लेकिन अगर दिल ही नहीं हैं तो धन किस काम का

          उन्होंने स्पष्ट किया कि समाज के उत्थान के लिए बहुत बड़े धन की आवश्यकता है। समाज में ऐसे लोग बड़ी तादात में हैं जिन्हें जीवन की न्यूनतम आवश्यकतायें – रोटी, कपड़ा और मकान - उपलब्ध नहीं हैं। अगर आज की अवश्यकता अनुसार शिक्षा और स्वास्थ्य जोड़ लें तो संख्या और बढ़ जाती है। इन्हें पूरा करने के लिए बड़े धन की आवश्यकता है। लेकिन धन होने बावजूद भी अगर दिल नहीं है तब वह धन किसी काम का नहीं। लेकिन अगर धन नहीं है और दिल है तो सामर्थ्य अनुसार वह कुछ-न-कुछ तो करेगा है। ईश्वर और समाज भी उसकी सहायता के लिए पहुँच जाते हैं। ज्यादा नहीं भी तो कुछ लोगों को सहायता तो पहुँचती ही है और दूसरों को प्रेरणा तो मिलती ही है।

          एक सज्जन से मुलाक़ात हुई, एक आश्रम में। मैंने देखा वे आश्रम में प्रायः चले आते, 1000-500 का समान खरीदते, भुगतान करते, काउंटर पर बैठी महिला को चौकलेट देते और चले जाते। एक दिन मैंने उस महिला से पूछा ये कौन हैं। उसने जो बातें बताई मेरी उनसे मिलने की तीव्र इच्छा हुई। दूसरे दिन मैं उनकी प्रतीक्षा करने लगा।

          मिलनसार, हंसमुख और शहर के सरकारी विद्यालय से प्रिन्सिपल के पद से सेवानिवृत्त। कैमेस्ट्रि और अँग्रेजी में भी एम.ए. किया। सारा जीवन अध्ययन, अध्यापन में ही बिताया। पत्नी नहीं है। दो बेटियाँ हैं। ग्रैचुटी के मिले पैसों से दोनों का विवाह किया, एक छोटा सा फ्लैट लिया।  आगे उन्होंने बताया कि साठ हजार की पेंशन है, कट-कटा कर 40 मिलते हैं। मेरे लिए जरूरत से ज्यादा है, मैं क्या करूंगा इतने रुपयों का, घूमते-फिरते खरीदता रहता हूँ। घर छोटा है, खरीदा हुआ सामान रखने की जगह नहीं है अतः एक छोटा सा कमरा भाड़े पर ले लिया है। जब कमरा पूरा भर जाता है, टेम्पो में भर कर ले जाता हूँ, पिछले इलाके के गांवों में बाँट आता हूँ। बस यही क्रम चलता रहता है।  

          मेरी तो बोलती बंद हो गई, एक तरफ समाज रक्तबीजों से भरा है, जितना रक्त पीते हैं प्यास बुझती ही नहीं और रक्त पीने की लालसा बढ़ती जाती है, चर्चे भी इन्हीं के होते हैं और दूसरी तरफ ये हैं जिनकी कोई लालसा नहीं, समाज को देने में लगे हैं और इनकी कोई चर्चा ही नहीं।

          भला हो इस सरकार का जिनकी नजर ऐसे लोगों पर पड़ी और उनको सम्मान देना प्रारम्भ किया। ये लोगों की नजर में आए, जनता को भी प्रोत्साहन मिला। पता चला कि समाज में केवल रक्तबीज ही नहीं हैं बल्कि औक्सिजन देने वाले लोग भी हैं। ऐसे लोगों की चर्चा करो, इन कार्यों को प्रोत्साहित करो।

हित का कार्य, सत्कार्य, प्रेम के लिए करो, किसी पुरस्कार की आशा से नहीं।  अच्छे बने रहने के हर्ष के लिए अच्छे बनो, दूसरों की कृतज्ञता पाने के लिए नहीं।



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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

मैं उसे पसंद नहीं करता

  

          हर्ष, मेरा पड़ोसी,  एक लेखक, एक वक्ता, एक परामर्श कंपनी का प्रमुख है और मेरा रिश्तेदार भीहम दोनों को जानने वाले किसी ने मुझे एक परियोजना पर एक साथ मिलकर काम करने की सलाह दी और बताया कि हमारा साथ-साथ काम करना हमारे लिये लाभप्रद होगा। यह सलाह तो अच्छी थी लेकिन : मुझे हर्ष पसंद नहीं हैऐसा कुछ गलत है जो मुझे परेशान करता है। वह बहुत अधिक स्वार्थी या अहंकारी या आत्म-संतुष्ट प्रतीत होता है। मुझे नहीं पता कि वास्तव में वह क्या है, लेकिन मुझे पता है कि मैं उसे पसंद नहीं करता।

          मैंने इसका उल्लेख उस व्यक्ति से किया जो चाहता है कि हम एक साथ काम करें। उसने मुझसे कहा कि इस भावना को खत्म करो। उसने मुझे समझाया "उसके साथ काम करने के लिए उसे पसंद करने की ज़रूरत नहीं है, बस उके साथ जो भी व्यवसाय करने की आवश्यकता है, उसका लेन-देन करो, अपना काम निकालो और भूल जाओ, कोई भी भावनात्मक संबंध मत बनाओ।”

          जिन लोगों को हम पसंद नहीं करते उनके साथ काम करने या उनके साथ रहने के बारे में हम जो सामान्य सलाह सुनते हैं, वह केवल रिश्ते को अलग करना है, रिश्ते को तोड़ना है। “उसे छोड़ दो और अलग हो जाओ”। यानि, पूर्ण-रुपेण स्वार्थी बन जाओ, अपने रिश्तों को अहमियत मत दो, सिर्फ मैं और मेरा।

          कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं हैं, न रूप में, न रंग में, न आकार में। न ही प्रकृति, स्वभाव और सोच-विचार में। तब हर ऐसे व्यक्ति से अगर हम रिश्ता तोड़ते जाएँ तो हम कहाँ पहुंचेंगे? अकेले रह जायेंगे। लेकिन जिन लोगों को हम पसंद नहीं करते और हमारे आस-पास रहते हैं तो वे हमें पागल कर देते हैं। हम उनके बारे में शिकायत करने में बहुत अधिक समय बर्बाद भी करते हैं। लेकिन यह भी सही है कि हम किसी ऐसे व्यक्ति के साथ कैसे काम कर सकते हैं, कैसे रह सकते हैं जिसे हम पसंद नहीं करते?



          मैं उसे पसंद नहीं करता” - यह एक ऐसी कठिनाई है जिसका हम में से अधिकांश लोगों ने अपने जीवन में सामना किया है, वह चाहे अपना परिवार हो, रिश्ते-नाते हों, आस-पड़ोस हो या कार्य-जीवन के लोग हो। कैसे निपटें हम ऐसे लोगों से?

          मैं केवल किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ जो सही ढंग से काम नहीं करते। यह उन्हें नापसंद करने से अलग है। अगर हमें लगता है कि हम कोई कार्य उससे कम समय में और ज्यादा अच्छी तरह कर सकते हैं, तब झुंझलाहट का होना स्वाभाविक है। लेकिन, इस बात पर भी जरा विचार करें - जिसे आप पसंद करते हैं लेकिन जो काम सही ढंग से नहीं कर सकता आप उसकी सहायता करते हैं बनाम किसी से व्यक्ति के जो काम कर सकता है लेकिन जिसे आप पसंद नहीं करते आप उसके काम में रोड़े डालते हैं?  क्या यह अजीब नहीं है?

          यह याद रखें जिसे आप पसंद नहीं करते, वह यह जानता है कि आप उसे पसंद नहीं करते और इसलिए वह भी आपको पसंद नहीं करता। अगर आपको लगता है कि किसी ऐसे व्यक्ति के साथ काम करना मुश्किल है जिसे आप पसंद नहीं करते हैं, तो  इसे उलट लीजिये। किसी ऐसे व्यक्ति के साथ काम करने की कोशिश करें जो आपको पसंद नहीं करता है। यह वास्तव में सरल है। जिन लोगों के साथ आपकी बनती है वे आपकी मदद करने के तरीके खोज लेंगे और  जिन लोगों के साथ आपकी नहीं बनती वे आपके मार्ग में बाधा डालने के तरीके खोज लेंगे।

          क्या आप लालची, स्वार्थी, उपेक्षा करने वाले या कंजूस हैं? आप वास्तव में अपने आप का ह हिस्सा पसंद नहीं करते हैं, है ना? आप चाहते हैं कि आप अपने आप को इनसे दूर कर सकें, जैसे आप चाहते हैं कि आप उस नापसंद व्यक्ति से खुद को दूर कर सकें। दूसरे शब्दों में, संभावना यह है कि जिस कारण से प्रमुखतः आप उस व्यक्ति को पसंद नहीं करते, वह यह है कि वे आपको याद दिलाते हैं कि आप अपने बारे में क्या बर्दास्त नहीं कर सकते

          प्रायः एक दूसरे को पसंद न करने का मूल कारण एक ही होता है। एक क्षण के लिए इस बात पर विचार करें कि आप उसे पसंद क्यों नहीं करते? शायद आपको लगता है कि वे लालची हैं या स्वार्थी या एकदम मतलबी। दूसरे शब्दों में, उनके पास कुछ है, चारित्रिक दोष या अप्रिय लक्षण जो आपको परेशान करते हैं। ठहरिए, एक बार यह सोचें कि वह व्यक्ति बीमार है। क्या बीमारी है उसे, यह समझना आपके काम आ सकता है। क्योंकि उन्हें बेहतर तरीके से जानना, और उनके उन हिस्सों को स्वीकार करना जिन्हें आप पसंद नहीं करते, वास्तव में अपने आप को बेहतर तरीके से जानना और अपने उन हिस्सों को स्वीकार करना है जिन्हें आप पसंद नहीं करते हैंक्योंकि दोनों का एक दूसरे को अस्वीकार करने का कारण एक ही है। खुद को बेहतर समझने के लिए उसका इस्तेमाल करें। गौर कीजिए कि आपको उससे समस्या क्यों है? वह ऐसा क्या करता है जो आपको इतना परेशान करता है? सही ढंग से काम न करना, बात का सलीका न आना, एक अच्छा ईमेल या रिपोर्ट  लिखने में उसकी अक्षमता, उसकी आदतें, ये सब तो उसकी बीमारी के लक्षण हैं। इन्हें पीछे छोड़ें और उस चीज़ पर जाएँ जो वास्तव में आपको परेशान कर रही है। उसके व्यक्तित्व या व्यवहार में ऐसा क्या है जो आप में झुंझलाहट या घृणा पैदा करता है? आप उसके बारे में क्या नफरत करते हैं?

          फिर, इस बात पर विचार करें कि आपके उत्तर ही आपका प्रतिबिंब है। मेरे लिए, हर्ष ने अपने बारे में उन सब को प्रतिबिंबित किया जो मुझे नापसंद थे – स्वार्थी, अहंकारी और आत्म-संतुष्ट। उस समय के बारे में सोचें जब आप लालची या स्वार्थी या नीच महसूस करते हैं। क्या आप इसे सह सकते हैं? क्या आप आकर्षण और घृणा दोनों की अपनी भावनाओं को महसूस कर सकते हैं? यह अंधेरा या उजाला नहीं है, यह अंधेरा और उजाला है।

          तो किसी और के प्रति अपनी नापसंदगी को दूर करने का तरीका? अपनी उन नापसंदगी पर काबू पाना और अपने आप को उन कारणों से दूर करना है। अब जब बीमारी का पता चल गया तब उसका इलाज भी किया जा सकता है, उस दुर्गुण को दूर किया जा सकता है।

यह स्वीकार करना अभी भी कठिन है  लेकिन यह मेरा एक हिस्सा है और सही माने में, मैं अब अपने आप को ज्यादा अच्छी तरह समझता हूँ।

          हमें दूसरों की कमजोरियों और दोषों के प्रति दयालु और समझदार होना होगा और अगर हम यह देख और महसूस कर सकें कि हम दूसरे व्यक्ति में जो भी दोष या कमजोरियां देखते हैं... जो नफरत पैदा करती है... हमारे अपने भीतर बहुत अधिक है, यह इस करुणा और समझ को विकसित करने में मदद करता है। जैसा कि श्रीमाँ बताती हैं:

हम सब के प्रति उदार रहें,…. लेकिन जिस तरह हमें दूसरों के प्रति करुणामय और दयालु होना चाहिए, उसी तरह हमें खुद के साथ कठोर और सख्त होना चाहिए, क्योंकि हम अंधेरे में रौशनी  बनना चाहते हैं, रात में मशाल बनना चाहते हैं। (सीडब्ल्यूएम, खंड-2, पृष्ठ-92)

          अस्वीकृति के इस आंदोलन के साथ-साथ हमें अपने मन और हृदय के गुणों को विकसित करना होगा जो दया, समझ, पवित्रता, शांति, परोपकार, सद्भाव जैसे हमारे सच्चे स्व की प्रकृति के समान हैं। ये हमें अपने रिश्ते निभाने और नए लोगों से जुड़ने में मदद करेगा। हमारी दुनिया संकुचित होने के बदले फैलाने लगेगी।

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शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

काला धब्बा

  

(हमारे शास्त्र, पुराण, वेद छोटी-छोटी कहानियों से भरे हैं। इनका उद्देश्य है जीवन की गूढ़ बातों को सहज ढंग से पाठकों तक पहुंचाना। हम, लोगों का मूल्यांकन करने में बड़ी हड़बड़ी और गड़बड़ी करते हैं, विशेषकर तब, जब हमारे पास उस व्यक्ति को नापसंद करने के लिए एक ज्ञात या अज्ञात कारण या हमारा आलोचनात्मक स्वभाव होता हैयह एक ऐसी ही अति प्राचीन कहानी है जो इस तथ्य को सरल ढंग से समझाती है ।)

 

एक समय की बात है एक व्यक्ति किसी आश्रम में एक ऋषि के पास आया। ऋषि से कुछ देर वार्तालाप करने के बाद वह एक अन्य आश्रम के ऋषि की आलोचना करने लगा। ऋषि धैर्य पूर्वक उसकी बात सुनते रहे। अन्य शिष्यों को अच्छा नहीं लग रहा था और वे आश्चर्यचकित भी थे कि उनके गुरु शांति से अन्य ऋषि की आलोचना कैसे सुन रहे हैं। जब उसने अपनी बात पूरी कर ली तब ऋषि ने अपने शिष्य से सफ़ेद कागज का एक बड़ा पन्ना लाने को कहा। ऋषि ने अपने कलम से उस सफ़ेद कागज पर एक काला धब्बा बनाया और फिर उस आगंतुक को वह पन्ना दिखा कर पूछा, "यह क्या है?" आगंतुक ने मुसकुराते हुए कहा, "एक काला बिंदु।" ऋषि ने कुछ नहीं कहा और वे उस पन्ने को उसी तरह पकड़े रहे। आगंतुक को समझ आ गई की ऋषि उसके जवाब से संतुष्ट नहीं है। वह गंभीर हो गया और पुनः विचार कर बोला, “एक काला धब्बा।”

          अब ऋषि ने मुसकुराते हुए कहा, "लेकिन आप सफेदी के बड़े विस्तार को क्यों नहीं देख पा रहे हैं और केवल काले बिन्दु को ही क्यों देख रहे हैं? आपके द्वारा दूसरे की आलोचना इसी  तरह की है। आप उसके सभी सुंदर गुणों को नहीं देख पा रहे हैं, लेकिन केवल उसके छोटे दोषों को ही देख रहे हैं। जिस काले धब्बे को आप दूसरे व्यक्ति में देखते हैं वे और कुछ नहीं बल्कि आपके अपने काले धब्बे के अलावा और कुछ नहीं हैं। यह आपके अपने काले धब्बों का ही प्रतिबिंब है।"

          हाँ, यह सच है। निम्न आत्मादूसरों के दोषों को निकालने में तुच्छ और क्षुद्र आनंद लेता है और वह खुद अपनी प्रगति को बाधित करता है। यदि आप किसी में दोष देखते हैं, तो बहुत संभव है कि वह दोष आप में भी आ जाये। दूसरों के दोषों के बारे में बोलना निश्चय ही बहुत बुरा है; हर किसी के अपने दोष होते हैं और उनके बारे में सोचते रहना निश्चित रूप से उन्हें ठीक करने में मदद नहीं करता है, बल्कि इसके विपरीत वे दोष बढ़ जाते हैं और खुद में भी आ जाते हैं। अतः दूसरों की बुराई करने से बचें, उसमें काले धब्बे न देख कर उसके उजले भाग पर ही ध्यान केन्द्रित करें।

आप किसी कि बुराई से बचने के लिए कुछ साधारण नियम बना सकते हैं, जैसे :

१.     ऐसी किसी भी अवस्था में बोलने से बिल्कुल मना कर दें, पूर्ण मौन धरण कर लें।

२.     बिना किसी मोह, माया और दया के, खुद का अध्ययन करें और महसूस करें कि आप अपने आप में ठीक वही सब कुछ रखते हैं जो आपको दूसरों में बहुत हास्यास्पद, बेतुका और गलत  लगता है।

३.    अपने स्वभाव में उस अंधकार के विपरीत उजाले गुणों यथा, परोपकारिता, विनम्रता, सद्भावना आदि प्रकाशमान गुणों की खोज करें और इस बात पर जोर दें कि ऐसे तत्व अपने लाभ के लिए विकसित हों।

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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

क्या सस्ता .... क्या महंगा


 

सुबह उठा तो बिस्तर पर ही पड़े-पड़े पूरे दिन का जायजा लिया। आज तो बाहर जाना है, एक  परिचित के विवाह में! कपड़े तो होंगे, फिर भी एक बार देख लूँ। अलमारी खोली और एक नजर घुमाई। हूँ.....  सब है लेकिन मोजा और एक नई टाई और ठीक मिल जाए तो एक स्वेटर लेनी पड़ेगी। विचार किया, इधर-उधर भटकने के बजाय मॉल में ही चलता हूँ तीनों एक ही जगह पर मिल जायेगी, सुविधा से सब कार्य फटा-फट हो जायेगा। तैयार होकर निकल पड़ा।

          एक स्टोर में घुसा। मैंने 9000 रुपये के मूल्य टैग के साथ एक स्वेटर देखा। स्वेटर के बगल में 10000 रुपये की जींस की एक जोड़ी थी। मोज़े थे, 8000 रुपये के! और आश्चर्यजनक 16,000 की टाई। मैं पसीने-पसीने हो गया। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या है?

          मैं एक सेल्स मैन (विक्रेता) की तलाश करने लगा। घड़ी विभाग में मुझे एक दिखा। वह एक ग्राहक को घड़ी दिखा रहा था, 225 रुपये में रोलेक्स की घड़ी। मुझे वहीं एक शीशे के शो केस में 195 रुपये में एक 4 कैरेट हीरे की अंगूठी भी दिखी। मैं हैरान भी था, विस्मित भी। मन चिड़-चिड़ा भी रहा था। आखिर झल्ला कर मैंने सेल्समैन से पूछा, "रोलेक्स की घड़ी 225 रुपये में कैसे बिक सकती है? और मोजे की यह एक सस्ती जोड़ी 8000 रुपये में! यह क्या हो रहा है?” सेल्समैन बेचारा खुद भी परेशान था और भ्रमित भी। झिझकते हुए उसने कहा कि लगता है कि कोई स्टोर में आया है और उसने सब वस्तुओं के प्राइस टैग को उलट-पुलट कर दिया है।

          उसने आगे कहा, सर, यह तो कोई खास बात नहीं है, आश्चर्य चकित करने वाली बात तो यह है कि ग्राहक इन्हीं कीमतों पर शॉपिंग भी  कर रहे हैं। वे सस्ती चीजों को अनाप-सनाप दामों पर खरीद रहे हैं और अनमोल वस्तुएं  पानी के भाव भी उन्हें महंगी नजर आ रही हैं। वे उधर झांक भी  नहीं रहे हैं। लोग ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे उन्होंने अपनी समझ खो दी है। प्रतीत हो रहा है कि वे नहीं जानते कि वास्तव में क्या मूल्यवान है और क्या नहीं। क्या इन्हें कभी समझ आएगी? मुझे वास्तव में अफ़सोस हो रहा है, लोगों को सस्ती चीज़ों के लिए इतनी कीमत देते देखकर। और उससे ज्यादा इस बात पर कि अनमोल वस्तुओं को कोई छू भी नहीं रहा है।”

          मैं चौंका और विचार मग्न हो गया। लगा, वह कह तो ठीक ही रहा है लेकिन अभी मुझे न तो घड़ी चाहिए और न ही अंगूठी। तब क्या करूँ? बुझे मन से मैं भी मोजे और टाई की लिखी कीमत चुका कर वापस आ गया।

          लेकिन शांति से नहीं बैठ सका। तब से यही सोच रहा हूँ ...

क्या हमारा जीवन ऐसा ही नहीं है? क्या हमारे जीवन में भी कोई घुस गया है और उसने हर चीज का मूल्य अदल-बदल कर दिया है। प्रतिस्पर्धा, उपाधी, पद, मान, सम्मान, प्रसिद्धि, पदोन्नति, दिखावा, धन, शक्ति आदि साधारण चीजों को बहुमूल्य बना दिया है। और इन्हें हम लाइन लगा कर मुँह मांगे दामों पर खरीदते रहते हैं।

          ..और खुशी, परिवार, रिश्ते, शांति, संतोष, प्रेम, ज्ञान, दया, दोस्ती जैसी महंगी चीजों के मूल्यों पर भारी छूट दे... उन्हें कौड़ी के भाव कर दिया है! फिर भी हम इनकी तरफ से बे-खबर हैं। शायद हम सब इस सपने को जी रहे हैं.. कि महंगी चीजें ही अच्छी हैं! सस्ते में मिलने वाली चीजें बेकार हैं। महंगा रोये एक बार, सस्ता रोये बार-बार? क्या हम इस मोहजाल को छिन्न-भिन्न कर देंगे और समय रहते  ही जीवन के सही मूल्य को पहचान जाएंगे। ऐसे हालातों पर ही शायद संत कबीर ने लिखा होगा :

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा ज
नम अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।

 हम चंद्रमा तक पहुंचने, मंगल ग्रह का पता लगाने और प्लेटो और वृहस्पति पर रॉकेट भेजने में सक्षम हैं। लेकिन हम सच्चे प्यार पर आधारित एक छोटा सा समुदाय भी नहीं बना पा रहे हैं, जो कि चंद्रमा पर चलने की तुलना में, मानवता और हमारे ग्रह के लिए कहीं अधिक सकारात्मक परिणाम वाली एक बड़ी उपलब्धि है।

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शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

सूतांजली जनवरी 2023

सूतांजली के जनवरी अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-

इस अंक में हैं:

१। सद्गुणों के उत्सव में  -   मैंने पढ़ा

कौन सा है वह सद्गुण जो है तो महत्वपूर्ण लेकिन हमारे ख्याल में ही नहीं आता?

२। ययाति आख्यान  -  मेरे विचार

ययाति आख्यान से तो शायद आप परिचित हैं लेकिन क्या अपने कभी विचार किया कि पुरू, ययाति के छोटे पुत्र ने क्यों पिता का प्रस्ताव स्वीकार किया?

३। बड़े लोग, छोटे लोग   -   लघु कहानी - जो सिखाती है जीना

हम बड़े, छोटों को बहुत ज्ञान देते रहते हैं। लेकिन क्या हमारा खुद का आचरण उस ज्ञान के अनुरूप होता है?

 


यू ट्यूब पर सुनें : à

https://youtu.be/CfNuUI8K5JQ

ब्लॉग  पर पढ़ें : à 

https://sootanjali.blogspot.com/2023/01/2023.html