जो अपने मन में होता
है, वही सारे संसार में भासित होने लगता है.
~~~~~~~~~~
स्थापित सत्य को
चुपचाप मान लेना धर्म है या अधिकार के औचित्य का प्रश्न उठाना धर्म है? ........
धर्म कि गाति अति सूक्ष्म है.
~~~~~~~~~~
अपनी भूल के लिए क्षमा
नहीं, दण्ड मांगना सीखो. न्याय और सत्य का सिद्धांत यह कहता है कि यदि हम अपने
धनात्मक कार्य के लिए पुरस्कार कि अपेक्षा रखते हैं, तो अपने ऋणात्मक कार्य के लिए
दण्ड कि अवग्या नहीं करनी चाहिए.
~~~~~~~~~~
पुरुष पर उसकी माँ से
अधिक उसकी पत्नी का नियंत्रण होता है. माँ बनकर स्त्री प्रतिद्वंद्विता में सदा
हांरी है.
~~~~~~~~~~
पुरुष स्वयं को कितना
ही शक्तिशाली माने, कितना संकल्पवान और दृढप्रतिग्य माने ..... वह सब तभी तक है,
जब नारी उसे विजय करने के अभियान पर नहीं निकलती.
~~~~~~~~~~
ऋषियों ने जो नियम
बनाये हैं, वे समाज का हित ध्यान में रखकर बनाये हैं; और वे लोग आज भी उस पर दृढ़
हैं. ..... उसमें उनका निजी स्वार्थ नहीं है. ...... किन्तु राज समाज जो नियम बना
रहा है, वह अपने स्वार्थ और अहंकार के अधार पर बना रहा है. उसमें व्यक्तिगत दृष्टि
ही है .....समाज का हित उनके ध्यान में नहीं है.
~~~~~~~~~~
जब कभी शत्रुभाव
रखनेवाला कोई व्यक्ति बहुत आत्मीयता जताए तो उसे शंका कि दृष्टि से ही देखना
चाहिए.
~~~~~~~~~~
बुढापे कि सबसे बड़ी
पीड़ा, अपने अंगों के शिथिल होने कि नहीं है, अपने संबंधों के शिथिल होने से होती
है. अपने ही परिवार में अनावश्यक और उपेक्षित हो जाने कि पीड़ा वृद्धावस्था को
असह्य कटुता से भर देती है.
~~~~~~~~~~
ऋषि का पुत्र स्वत: ही
ऋषि नहीं बन जाता. उसे ऋषि बनने के लिए वह सारी साधना करनी पड़ती है, जो उसके पिता
ने कि थी. किन्तु राजा का पुत्र स्वत: ही राजा बन जाता है. उसे कोई श्रम नहीं करना
पडता, स्वयं को किसी योग्य सिद्ध नहीं करना पडता, कुछ अर्जित नहीं करना पडता. ग्यान
से शुन्य होने पर भी वह ग्यानियों में श्रेष्ठ माना जाता है; बुद्धिहीन होकर भी बुद्धिमान
माना जाता है; वीरत्व से रिक्त होकर भी वीर होने का सम्मान पाता है.
रेल एवं हवाई जहाज से तो आपने बहुत यात्रायें की
होंगी, लेकिन क्या गाड़ी से भी लंबी यात्रायें की हैं? अपनी गाड़ी से यात्रा करने का
आनंद ही कुछ और है. लेकिन हाँ, गाड़ी की यात्रा आवश्यक नहीं की आरामदायक हो. यह एक
साहसपूर्ण, जोखिम भरा लेकिन आनंददायक है.
अगर मुझसे पूछा जाये और मेरे लिए संभव हो तो मैं सभी
यात्रायें गाड़ी से ही करूं. गाड़ी की यात्रा में मुझे सबसे बड़ा खलनायक लगता है – ड्राईवर. अत: सबसे अच्छा हो अगर
गाड़ी मैं खुद चलाऊं और साथ में कम से कम एक और चालक हो. ड्राईवर के रहने और न रहने
की अपनी अपनी अलग अलग खामियां एवं अच्छाइयां हैं. लेकिन ड्राईवर को हर समय जल्दी
रहती है, मूड के अनुसार रोकना, घुमाना, धीरे चलाना उसे पसंद भी नहीं और ये सब दिशा
निर्देश देना भी हर समय संभव नहीं होता है. अत: ऐसे प्राणी का साथ न होना ही अच्छा
है.
मैं जब गाड़ी से यात्रा पर निकलता हूँ तब यह निश्चित
करता हूँ की मुझे गंतव्य स्थल पर पहुंचने की कोई जल्दी नहीं है तथा शहर की लाल
बत्तियों को पार करते ही हमारा भ्रमण प्रारंभ हो जाता है. गाड़ी के सफर का आनंद
लेने के लिए कुछेक आवश्यक बातें.
प्रथम : समय एवं दूरी का लक्ष्य बहुत कम यानि आसान
रखें. इससे न तो गाड़ी तेज भगाने की आवश्यकता होगी और न ही रास्ते के आनंद को
नजरअंदाज करने की.
द्वितीय : रास्ते में जब, जहाँ, जितनी देर रुकने की
इच्छा हो बिना हिचकिचाहट के रुकें, आनंद लें और फिर आगे बढ़ें. कहीं मैंदान में
बच्चे क्रिकेट या फुटबल खेल रहें हों और आपको भी अपने हाथ या पैर आजमाने का मन हो
तो क्या हर्ज है. हो जाय दो दो हाथ या पैर. हरे भरे खेतों में टहलने का या पहाड़ी
पर चढ़ने का या इनके साथ फोटो सेशन करने का मन हो या फिर केवल ठंडी हवा लेने का, अवश्य
लें. गाड़ी भी आपकी, गार्ड भी आप और चालक भी आप. न किसी से पूछने जरूरत है और न
विचार करने की आवश्यकता? मवेशियों का झुण्ड मिल जाये तो उनके बीच खड़े होकर फोटो
खिचवाना न भूलें. पता नहीं फिर कभी मौका मिले या न मिले. सर नीचे और पैर ऊपर या
दुर्घटनाग्रस्त अवस्था में कोई गाड़ी मिले तो वहाँ तो ग्रुप फोटो होना ही चाहिए.
देर होने की चिंता न करें. हमने पहले ही लक्ष्य आसान रखा है, आराम से पहुँच
जायेंगे.
तृतीय : खाने का ज्यादा सामान साथ न लें. वही खाना है
जो रोज खाते हैं तो भ्रमण पर जाने की
दरकार ही क्या है? टेबुल कुर्सी लगी होटल में न घुसकर खाट वाले ढाबे में घुसें
जहाँ छायेदार पेड़ हों. वहाँ कम से कम पांच मिनट खटिया पर चुपचाप लेट कर आसमान को
निहारें. आपको महसूस होगा की बहुत ज़माने से आपने असमान को देखा ही नहीं है. उस
छाँहदार पेड़ के नीचे ठंडी हवा का झोंका आपको स्वर्ग का अहसास दिलाएगा. मैं तो कई
बार गर्मी के मौसम में ढाबे के कुँए पर बैठ कर ठन्डे पानी से नहाने का भी मजा ले चुका
हूँ. रस्ते में बाज़ार से ताजे फल या सलाद का सामान खरीदना, वहीँ धोना, काटना और
चलती गाड़ी में खाना. बताने की नहीं अनुभव की चीज है. तेज गति से गाड़ी जा रही हो और
अचानक झालमूढ़ी या गन्ने का रस दिखा लेकिन गाड़ी रोकते रोकते आगे निकल गई, रिवर्स
गीयर का प्रयोग करें, सोच विचार न करें.
चतुर्थ : गाड़ी में बच्चों के लिए चॉकलेट, टोफ़ी,
बिस्कुट, पेंसिल, कॉपियां, नए पुराने कपड़े, चद्दर, गमछे आदि साथ रखता हूँ. बच्चों
एवं गरीब बस्तियों में इन्हें बांटना नहीं भूलता. संतोष, सुकून एवं आनंद तीनों
मिलते हैं.
कुछ आवश्यक हिदायतें. रास्ते में आपात स्थितियों में
क्या करना है – जैसे
गाड़ी का खराब होना, दुर्घटना होना, बीमार पड़ना आदि तो क्या करना है, यह पहले से
निश्चित होना चाहिए औए कम से कम दो व्यक्तियों को मालूम होना चाहिए. इसका अर्थ यह
है कि किसे संपर्क करना है उसका नाम तथा फोन नंबर दोनों होने चाहिए और यह मालूम
होना चाहिए की उनसे क्या और कैसी सहायता मिल सकती है. इन्टरनेट के इस युग में यह
काम हम घर बैठे आसानी से कर सकते हैं. उदाहरणार्थ अगर हम मारुति गाड़ी में जा रहे
हैं तो रास्ते में कम्पनी के सब वर्कशोप्स की पूरी जानकारी उनके टेलिफोन नंबर सहित
होने चाहिए साथ ही मारुति का टोल फ्री नंबर भी होना चाहिए – कम से कम दो व्यक्तियों के फोन
में. अपनी पूरीधाम यात्रा के दौरान इन सूचनाओं के कारण हमें काफी सहूलियत रही.
हमारे पास रास्ते का मैप होना चाहिए. जी.पी.एस. हो तो और अच्छा है. रास्ते के सहायता
केंद्र के नाम और फोन नंबर भी होने चाहिए जैसे अस्पताल, थाना, परिचित आदि. निकलने
से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि कम से कम दो व्यक्तियों के पास ये सूचनाएं है.
अभी चल रहे माहौल में एक और घटना घाट सकती है – माओ, नक्सल या तालिबान अपहरण कर
लें. चिंता मत कीजिये, क्योंकि आप हिम्मत रखने के आलावा और कुछ नहीं कर सकते, जो
भी करना है वही करेंगें और छूट कर वापस आ गए तो आपको पता चलेगा कि मिडिया ने आपको
हीरो बना दिया है.
इतना कुछ कह गया, आप उत्सुक होंगे यह जानने के लिए कि
आखिर हम जा कहाँ रहे हैं? कहीं भी जा रहे हों इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. अगर साथी मन लायक हो तो जंगल में भी मंगल है,
अन्यथा मंगल में भी जंगल. खैर आपको जसीडीह यात्रा के बारे में बता दूं.
घर से निकल कर सबसे पहले एल्गिन रोड या थियेटर रोड
पर गर्म गर्म चाय की चुस्की लीजिए साथ में समोसा, गाठिया, निमकी, जलेबी जो मन करे,
से अपना उपवास तोड़िये. कोना एक्सप्रेस पकड़ कर एकदम सीधे पुल पर चढ़ कर दाहिने
दिल्ली रोड यानि एन.एच.२ पकड़ लीजिए. वातानुकूलित जलपान गृह चाहिए तो करीब ६०
कि.मी. पर बी.पी.सी.एल. पेट्रोल पम्प पर “देस्तिनेसन” में गर्म गर्म नास्ता कीजिए. वैसे मेरी सलाह माने तो यहाँ लौटते समय रुकिए. और थोडा आगे करीब १००
कि.मी. पर शक्तिगढ़ के नजदीक गर्म गर्म लैंग्चा, लुच्ची और चना दाल की सब्जी का
आनंद लीजिए. आगे पानागढ़ पार करते ही दाहिनी तरफ इल्लमबाजार कि ओर घूम जाइये. चौड़ी
सपाट सड़क, लंबे घने छायादार पेड़ आपकी आँखों को हरा, काया को शीतल तथा मन को लुभा
लेंगे. इल्लमबाज़ार से अगर आप सीधे निकल गए तो सिर्फ २० कि.मी. पर स्थित है
कविन्द्र रविन्द्र का शांतिनिकेतन. आप एक रात “मार्क एंड मिडोज” या “छुटी” में ठहर सकते है. नहीं तो
इल्लमबाज़ार से बाएँ ४० कि.मी. दुबराजपुर की तरफ बढ़ जाइये. दुबराजपुर से सिर्फ १३
कि.मी. पर स्थित है बकरेश्वर का गर्म पानी का झरना.अगर जाड़े का मौसम है तो स्वच्छ
गर्म पानी में स्नान कर तरोताजा हो कर आगे बढ़ जाइये, सूरी की तरफ. सूरी पार कर आप
पहुँच गए तिलपारा बैरेज पर. यहाँ से सीधे निकल गए तो ४४ कि.मी. पर है
तारापीठ.सच्चे मन से दर्शन कीजिये, पूजा कीजिये और मन हो तो एक रात आराम कीजिये.
अन्यथा तिलापारा से बाएं घूम जाइये ७० कि.मी. दूर दुमका कि तरफ. ध्यान रखिये इस
रास्ते में कोई पेट्रोल पम्प नहीं है तथा कई बस्तियों से गुजरना है.. ३५ कि.मी. पर
मेस्सेंजोर के बांध से आप बच नहीं पायेंगें. ठहरिये, झाल मूड़ी खाइए, बोटिंग
कीजिये, बल्कि मैं तो कहूँगा डाक बंगलो में एक रात रुकिए. रात को तारों से भरा
आस्मां और सुबह झील के किनारे ठंडी बयार का सुख लेने के बाद आगे बढिए. यहाँ से निकल
कर दुमका, जामा मोड, त्रिकूत पर्वत होते हुए आप सीधे पहुँच गए जसीडीह और वहीं
रेलवे स्टेशन के नजदीक सामने आ गया जसीडीह आरोग्य भवन. निकले थे सुबह ६ बजे और अभी
करीब ४ बज रहें है. यानि १० घंटे में ३८२ कि.मी. का सफर. रास्ते में गर्म तड़का
दाल, रोटी, भाजी, ताज़ा फल का जो आनंद लिया सो अलग.
आप भी ये सब कुछ या और बहुत कुछ कर सकते हैं, बशर्ते
आप अपनी गाड़ी में हों.
Are you going out on a vacation? Time is short and need to reach the destination fast and fund also permits? Take a flight. Not in that hurry, budget does not permit but want to reach fast, comfortably and a risk free journey, then the obvious choice is a train. But if you really want to enjoy your journey the moment you leave your city, time allows, like adventures, then take out your car. Still better, if you are behind the steering.
Do not pack much foodstuff. Keep a soft target of mileage or the time so that you do not feel heat of driving fast or rush through. Do not avoid stopping at the places you wish “ if I can stop”. Drive cautiously, comfortably and enjoy each and every moment, object, and scenery – natural or artificial. Do not switch on the deck or FM as a matter of fact manner. Resort to it, only if necessary or reasons for it. The moment you are out of city traffic and red lights, the mind becomes free and “mastee bhraa aalam chaa jaataa hai”. If you come across anything in route like “ganne kaa ras”, green cucumber, red tomato, “jhaal muri” or for that matter anything else any one in the vehicle feel like having apply breaks. If you realized it only after you drive past it, remember your car has back gear and also can take a U turn. Do it now. As your driving target is soft these stoppages are already built in. If there is any place in route, with little diversion, take diversions, but you need to know about it before hand. A rout guide map should be handy. If you find children playing cricket in the field, take a break. Have two over of batting and bowling. As a fees distribute, biscuits, chocolate, balloon, cloth, reading / writing materials between them before leaving. If you are crossing a village, having only huts, you can distribute the stuff there also. Keep stock of all these before you set out. If your car gets stuck in “maveshiyon ke jhund men”, get out of the vehicle and take photographs; you must be in middle of it. Found some vehicle badly damaged in accident in unrecognizable condition, this is another reason to take the snap with “as you like” pose. Stop at the roadside dhaba for tea and tadakaa, roti and bhaajaa. But all such dhaba must have two things. Shady tree with a “khaat” beneath it. Take a snap and smell the cool breeze. Are you enjoying? We do all these when we are on the highway. Even you may take bath on roadside well in summer.
Take a few precautions. At least two persons must know, before hand, what to do in case of emergency – like breakdown, accident and medical emergency. If you have driver, do not depend on his intelligence for these emergencies. You yourself must be equipped. Map your route. Take a note of all help lines and their numbers, and these must be there in the cell of both of you and also on a paper. There can be another emergency, attack of naxals, maoist, dacoit. Well don’t worry. You don’t have to do much. What is to be done will be done only by them. J And once they leave, you will have either of above three emergencies for which you are already equipped.
For all these enjoyment and adventure we travel on road and enjoy every moment out and in of the city. This was our third journey to Jasidih by road. We stop anywhere at a drop of a hat, too U turns and use back gear without hesitation. The hourly snap shot of the journey is as follows:
Place
Time
K.M
Remark
Kolkata
6.00 am
0
Had tea and left home
Singur
7.00 am
46
Paid toll at Rabindra setu and Dankuni
Shaktigarh
8.00 am
99
Paid toll at Palsit. Had breahfastTook right turn after Panagarh towards Shantiniketan. Road to shantiniketn bifurcates from here. Left four-lane road at Panagarh but road there after is wide enough and well maintained.
Ellumbazar
9.00 am
167
Road to Bakreshwar hot spring bifurcates from here. You do not need to turn back from Bakreshwar. The Bakreshwar road meets back to the main road.
Dubrajpur
10.00 am
206
Bakreshwar bye pass road meets back near here. After Suri take left from Sewarakuli after a small barrage. Straight road take to Tarapeeth. We erred here. Instead of taking left to bye pass road we drive around 8 km straight before realizing the error. Unfortunately there is no signboard here.
Suri
11.00 am
233
Can have rest at the dam site. There is no petrol pump on this bye pass road. Road is double, maintained and traffic is very little. A board tells us that we have crossed West Bengal to Jharkhand.
Messenjor
12.00 noon
275
Bye pass road ends. Bad main road starts.
Rampurhat
1.00 pm
307
Bad road continues. After Dumka, need to take left towards Jasidih / Basukinath. We again erred here and proceeded to Bhagalpur. When realized the error, we were told to proceed further and take left to through Basukinath town towards the destination road.
Dumka
2.00 pm
332
Good road. Had lunch in a dhaba
Trikut Parvat
3.00 pm
378
Taken recently started Ropeway. In a shabby condition. No facility at the top of the hill but very cool breeze.
Trikut Parvat
4.00 pm
383
Jasidih
5.00 pm
406
The destination
Had wasted around 25 – 30 kms because of errors.
Lastely, we had a special darshan on Holi Day at Baijnath dham. HariHar (Krishn Mahadev) darshan. This darshan is possible once in a year on Holi for an hour in the evening.
उसकी बातें सुन मैं तो स्तब्ध रह गया | किसी प्रकार
अपने आप को संभालते हुए मैं उठा और सम्मोहित सा धीरे धीरे चलता हुआ वहाँ से निकल
गया| निकलते –
निकलते मैंने उसे मानसिक प्रणाम किया| मैं सोच रहा था, यह क्या गिरधारी की छोटी ऊँगली
है जो गोकुलवासियों की रक्षा करने के लिए उठी थी या वाराह के नुकीले दांत जिसने
पृथ्वी का उद्धार किया था| उसकी सोच एक साधारण मानव कि तो नहीं हो सकती|
वह अक्सर मेरे घर पर आती है| घर – घर जाकर पर्सनल ग्रूमिंग का काम
करती है| अगर आप उसे नहीं पहचानते तो धोखा खा जायेंगे| घर पर काम करनेवाली आया सी
दिखती है| उम्र यही कोई ४०-४५| काया? फूंक मारो तो उड़ जाये| देखने में औसत से कम|
धर्म परायण औरत है| पांच वक्त की नमाज़ी तो नहीं लेकिन अल्लाह में पूर्ण आस्था एवं
विश्वास और संसार से जूझते हुए कम से कम एक वक्त की नमाज़ पढ़ने का समय तो निकाल ही
लेती है| न जाने कितने वर्ष हुए पति ने तलाक दे दिया| एक लड़का है अपनी नानी के पास
रहता है, और एक अदद माँ| अगर वह अपने माँ के घर पर है तो समझ लीजिए की आज रविवार
है| बड़ी हंसमुख, बातूनी, दयालू एवं किसी भी प्रकार की सहायता करने के लिए प्रस्तुत|
ऐसा नहीं है की वह कमाती नहीं| अच्छा कमा लेती है|
लेकिन मुसीबत यह, कि दुनिया ले जाती है| ले क्या जाती है, जैसा अपनी पत्नी के मुँह
से सुना, दुनिया उसे ठग लेती है| उसके किस्से सुन सुनकर जब मेरे कान पक गए तो
उसीका नतीजा यह निकला कि मैं उसके घर
पंहुच गया – नसीहत
देने| दूसरी मंजिल पर उसका फ्लैट, नहीं कमरा| पहुंचते ही मुझे ऐहसास हुआ की मुझे
नहीं आना चाहिए था| उसने मुझे बैठने के लिए जो चीज दी मैं उसका नाम नहीं जानता,
लेकिन हाँ, इतना जानता हूँ की अगर मेरे लिए संभव होता तो मैं उस पर नहीं बैठता|
मैं अपनी पत्नी से सुन चुका था कि उसे गर्मी का अहसास नहीं होता| अतः उसके घर पर
पंखा नहीं था| हमलोगों ने एक बार एक पुराना पेडस्टल फैन उसे दिया था, लेकिन कुछ ही
दिनों बाद उसके किसी दूर के रिश्तेदार की माँ की तबियत खराब होने के कारण वह मांग
कर ले गया और फिर कभी वापस नहीं आया| उसके रसोईघर में पानी की भी व्यवस्था नहीं
थी| नीचे से आवश्यकतानुसर रोज दो-चार बाल्टी पानी ले आती थी| चढती उम्र के कारण
चूँकि अब दिक्कत होने लगी, तब उसने अपनी रसोईघर में एक नल लगाव लिया है| वहाँ बैठे
बैठे मैंने देखा की हर १०-१५ मिनट में कोई-न-कोई पूरे अधिकार के साथ घुसा चला आ
रहा है, पानी भरने के लिए, गोया वह उसका निजी नहीं सार्वजनिक नल हो|
उसे और उसके कमरे को देख ऐसा लग रहा था की अभी सुबह
नहीं हुई है| शायद उसने मेरी नजर पढ़ ली| खुद ही बताना शुरु कर दिया| वैसे तो उसका
दिन सुबह ५-६ बजे शुरू हो जाता है लकिन आज बस अभी अभी ही उठी थी| हुआ यूँ कि कल का
दिन काफी व्यस्त था| अपने अंतिम ग्राहक से आते आते रात ११ से ज्यादा हो चुकी थी|
व्यस्तता के कारण सारे दिन नमाज़ भी अदा नहीं कर सकी थी| सोने के पहले की नमाज़ अदा
करते करते अचानक संदूक में साल भर से रखी एक नयी अच्छी साडी और रिश्तेदारी में एक
बहन का ख्याल आ गया –“यह साडी तो उसके पास होनी चाहिए!
उस पर सुन्दर भी लगेगी और वो खुश भी होगी|” लेकिन आधी रात से ज्यादा हो चुकी थी| “अभी अब क्या जाना, सुबह सबसे
पहले यही काम करुँगी”, यह
निश्चय कर बिस्तर में घुस गयी| लेकिन नींद नहीं आयी| करवटें बदलने लगी| तरह तरह के
विचार आने लगे| सुबह वह नहीं मिली तो? मुझे ही किसी कस्टमर के पास जाना पड़ा तो? और
तो और सुबह तक मुझे ही लालच आ गया और विचार बदल गया तो? नहीं, चाहे जो भी वक्त हुआ
हो, जैसे भी जाना पड़े, नमाज़ पढते पढते अगर यह ख्याल आया है तो यह काम अभी ही होना
है| और बगल में साडी दबाए, आधी रात को, आधे घंटे का सफर लगभग दौड़ते हुए तय कर उसने
अपने विचार को कार्य रूप दे दिया|
“तुम भी हद करती हो| देने कि कोई मनाही नहीं है| लेकिन यह
कोई तरीका है| आधी रात को यों पैदल जाकर, इस प्रकार से देने का?” तुम्हारा दिमाग फिर गया है?”– मैंने कहा.
“हाँ, दिमाग तो फिर हुआ ही है| सब यही कहते हैं| लेकिन इस
पागलपन में जो सुकून मिलता है, जो आनंद मिलता है शायद वो जन्नत में भी नहीं मिले| आज
रात जैसी नींद आई वैसी शायद इसके पहले कभी नहीं आई| मेरे पास कुछ भी ज्यादा आ जाता
है तो जैसे बदन में जलन होने लगती है|”
और फिर एक घटना बताने लगी| अभी कुछ दिन पहले, सर्दी
कि एक शाम, कहीं काम करके निकली थी| ग्राहक ने उपहार स्वरुप उसे एक गर्म शाल भी
दिया| लिफ्ट से उतरते उतरते बेचैनी शुरू हो गयी| “मेरे पास पहले से एक शाल है| कुछ एक साल हो गए हैं, लेकिन
अभी यह कई सर्दियाँ झेल सकती है| इस शाल का मैं क्या करुँगी? ना, इसे तो अभी ही
किसी को देना है|” काम्प्लेक्स
कि चाहरदिवारी से निकलते निकलते बेचैनी इतनी बढ़ चुकी थी कि बैग में रखी हुई शाल
उसके हाथों में आगई| गोया कहीं ऐसा न हो कि बैग से निकलते निकलते देर हो जाय और
मौका छूट जाये| सर्दी कि शाम – अच्छी ठंड पढ़ रही थी| सड़क पर सन्नाटा पसरा पड़ा था और
अँधेरा धीरे धीरे उतर रहा था| धुंधलके में कुछ साफ नजर नहीं आ रहा था| उस सुनसान
सड़क पर अचानक उसे सामने से कोई व्यक्ति आता नजर आया| उसने शाल को कस कर पकड़ लिया|
“यह शाल इसे ही देना है|”
लकिन जब व्यक्ति कि काया कुछ साफ हुई तो उसे समझते
देर नहीं लगी कि यह वह नहीं है जिसे वह खोज रही है| लेकिन उसकी बेचैनी सब सीमाएं
पार कर चुकी थी| हिम्मत बटोर कर हिचकिचाते हुए उसने कहा, “भाई साहब! मेरे पास यह एक गर्म
शाल है| मुझे यह अभी किसी को देना है| क्या आपकी नजर में कोई है?”
भद्र पुरुष ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा| उसके हाथ
में रखे शाल को देख कर उसे लगा नहीं कि इस औरत की ऎसी हैसियत है कि वह उस शाल को
किसी को दे सके| अतः उसने उससे पुछा कि क्या वह उस शाल को निश्चित रूप से किसी को
देना चाहती है?
“हाँ, अभी और इसी वक्त ”- बिना झिझके उसने तुरंत उत्तर दिया|
उस व्यक्ति ने उसे ठहरने का इशारा किया और कुछ ही
देर बाद एक बूढ़ी औरत के साथ आ पहुंचा| इससे पहले कि वह बूढ़ी औरत कुछ कहती, वह भद्र
इंसान कुछ बोलता उसके हाथ में उस शाल को रख वहाँ से भाग खड़ी हुई|
उसकी बातें सुन मेरे माथे पर पसीनें कि बूंदे आ
गयीं| मुझे लगा, अगर में और कुछ देर रहा तो मुझे चक्कर आने लगेगा| मैंने जल्दी
जल्दी अपनी बात समाप्त कर वहाँ से निकलने का फैसला किया|
“तुम इतना कमाती हो फिर भी कष्ट में रहती हो| लोग तुम्हारी
सरलता का लाभ उठा कर तुमसे उधार ले जाते हैं और फिर कभी वापस तो करते ही नहीं
बल्कि बार बार मांगने आते रहतें है और तुम हो कि हर बार उन्हें देती रहती ही| यह
सरासर नादानी है|”
“भैया! यह तो अपने अपने सोचने का ढंग है| मुझे तो लगता है कि
अल्लाह मुझे इसीलिए देता है कि मैं उसके भेजे हुए बन्दों को बिना कुछ पूछे देती
रहूँ|”
मुझे तैश आ गया, “अरे यह भी कोई बात हुई? एक ही आदमी कभी पढाई के लिए, कभी
धंधे के लिए, कभी बीमारी के बहाने तुमसे उधर मांग कर ले जाता है| अच्छा खासा कमाता
है, फिर भी कभी पैसे लौटने का नाम तक नहीं लेता| बल्कि बार बार मांगने चला आता है|
और बिना किसी हील हुज्जत के तुम उसे बार बार पैसे दिए जाती हो| यह तो बेवकूफी है|”
उसने मुझे समझाते हुए कहा, “मैं तो अपने आप को अल्लाह का
बैंकर समझती हूँ और कुछ नहीं|” मेरे चहरे पर एक बड़ा सा प्रश्न चिन्ह लटक गया| उसने अपनी
बात आगे बड़ाई, “आप
अपना पैसा बैंक में जमा करते हैं| और जब, जिसको, जितना चाहते हैं दे देते हैं|
बैंक आपसे कभी कुछ नहीं पूछता| अगर बैंक एक दिन भी पूछ लेगा तो आप अपना बैंक तुरंत
बदल लेंगे| अल्लाह ने अपना एकाउंट मेरे पास खोल रक्खा है| मैं कोई भी ऐसा काम
क्यों करूँ कि वह अपना एकाउंट मेरे पास से हटा कर और कहीं ले जाय?”
दुनिया
धर्मक्षेत्र है. पवित्र हृदय से बढकर और कोई प्रभुमूर्ति नहीं, सत्य ही अविनश्वर
धर्मग्रन्थ है. स्वार्थ बुद्धि की बलि ही सच्ची बलि है.
~~~~~~~~~~
इंसान
कमजोरियों का पुतला है इसलिए सिर्फ उसकी अच्छाइयों को ही देखना चाहिए. बुराइयां
पहले अपने में देखनी चाहिए.
~~~~~~~~~~
एक
अंग्रेजी कहावत के अनुसार ‘इतिहास में तारीखों के आलावा और सब कुछ गलत
होता है और उपन्यास में तरीखों के आलावा और सब कुछ सच’.
~~~~~~~~~~~
भीष्म सहनी
किसी भी
बात के लिए अधिक उत्साह नहीं दिखाना चाहिए. बहुत उत्साह दिखाओ तो ऊपर बैठे
भाग्य-देवता को अच्छा नहीं लगता.
(मय्यादास कि माढी)
~~~~~~~~~~
अपने
दिल की मुराद को मुहँ पर लेन से मुराद पूरी नहीं होती, मुराद को “हवा” लग
जाती है.
(मय्यादास कि माढी)
~~~~~~~~~~
हजारी प्रसाद द्विवेदी
इतिहास साक्षी है कि
देखी सुनी बात को ज्यों-का-त्यों कह देना या मान लेना सत्य नहीं है. सत्य वह है
जिससे लोक का अत्यधिक कल्याण होता है. ऊपर से वह जैसा भी झूठ क्यों न दिखाई देता
हो, वही सत्य है.
~~~~~~~~~~
खुशवंत सिन्घ
बुराई
के बारे में सजग होना अच्छाई के परिवर्धन की एक अनिवार्य शर्त है. पहले तल्ले की
कच्ची दीवारों पर दूसरी मंजिल उठाने का कोई तुक नहीं. बेहतर इसी में है कि उसे
गिरा दिया जाय.
(ट्रेन टू पाकिस्तान)
~~~~~~~~~~
डॉ. कुसुम असल
बहुत से सच ऐसे होते हैं उनको छुपा लेने में
ही भलाई है ...... नहीं तो इनसान पर से इनसान का ही नहीं, रिश्तों कि खूबसूरती का
भरोसा भी खत्म हो जायगा, हमेशा के लिए.
(उसके होठों का चुप)
~~~~~~~~~~
नरेन्द्र कोहली
यदि
पत्नी अपनी इच्छा का तनिक भी विरोध होने पर घर छोड़ कर जाने को तैयार बैठी हो तो
कैसा दांपत्य जीवन होगा.
(महासमर)
~~~~~~~~~~
शिव प्रसाद सिंह
आजकल साले नारे भी खूब निकले हैं. गुंडे
गुंडागर्दी के खिलाफ, बदमाश बदमाशी के खिलाफ, चोर चोरी के खिलाफ और जुल्मी जुलुम
के खिलाफ गला फाड़ फाड़कर चिल्लाते हैं.
(अलग अलग वैतरणी)
~~~~~~~~~~
पार्टी
नहीं लड़ती जुल्म के खिलाफ, आदमी लड़ता है. आदमी अगर खुद स्वार्थी, बदमाश और लुच्चा
होगा तो वह राम की ओर से भी लड़े तो उन्हें भी रावण बना कर दम लेगा.
(अलग अलग वैतरणी)
~~~~~~~~~~
उपेन्द्र नाथ अश्क
मनुष्य का मन अथाह समुद्र है. इसके गर्भ में
क्या है, यह सतह देख कर नहीं जाना जा सकता.
(गिरती दीवारें)
~~~~~~~~~~
यह कपट!
यह ऊपर से उतना कटु मालूम नहीं होता, पर जो व्यक्ति इस कपट का शिकार बनता है, जब
उस पर इसकी यथार्थता खुलती है तो उससे जो झटका लगता है, छले जाने को जो खेद उससे
होता है, वह हृदय में घाव बना देता है और वह घाव समय पा कर नासूर बन जाता है और
कपटी के क्षमा मांग लेने पर भी, उससे बदला ले लेने पर भी, नहीं मिटता.
(गिरती दीवारें)
~~~~~~~~~~
यशपाल
जब मनुष्य आभाव के गड्डे
में होता है, उसे असमर्थता कि दीवारें बंदी बनाये रहते हैं. उसे सफलता का कोई मार्ग
दिखाई नहीं दे सकता. साधनों कि सीढ़ी पा जाने पर मनुष्य कि दृष्टि आभाव के गड्डे से
ऊपर उठ जाती है. उसे सफलता के राजमार्ग दिखाई देने लगते हैं, महत्वाकांक्षा के शिखरों
पर चढ़ने की रहें भी दिखाई देने लगती हैं.