उपदेशों पर मैंने न कभी ध्यान दिया,
धर्मज्ञ थका कह,’ करो! सत्कर्म, स्वर्ग जाओ।‘
पर, नरक गया तो भी क्या भय ?
जब पहुंचूंगा, मित्रों का झुंड पुकारेगा,’ भाई! आओ, आओ।‘
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दिनकर
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लोग आहट से भी आ
जाते थे गलियों में कभी
अब जो चीखें भी तो
कोई घर से निकलता ही नहीं।
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महमूद शाम
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सामने आपके हम
खाएं वफा की कसमें
इससे बढ़कर कोई तौहिने वफा
क्या होगी
-ख़लिश देहलवी
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अब पता चला
आग को फूँक देने
वाला कोई नीर भी है।
जल को उड़ा
देनेवाली कोई आग भी है।
फूलों को उगनेवाले
शूल भी हैं।
शूलों से सवाल करनेवाले
फूल भी हैं।
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सी.नारायण रेड्डी
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सुबह
जितना शांत, एकाग्र, प्रसन्न मुख
होता है सूरज उगते
हुए
उतना ही खुश, सुकून भरा
खूब सूरत चेहरा
होता है उसका
शाम को डूबते हुए।
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दिनकर सोलवलकर
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अंदाज़ अपना देखते
हैं आईने में,
और यह भी देखते
हैं कि,
और कोई देख न रहा
हो।
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छोटा हूँ तो क्या
हुआ, जैसे आँसू एक
सागर जैसा स्वाद
है तू चख कर तो देख।
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शांडिल्य
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जो कहता मैं जानता, वो निकला अनजान।
जो कहता अनजान हूँ, वही सका कुछ जान।
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शांडिल्य
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मुझको था ये ख्याल
कि उसने बचा लिया
उसको था ये मलाल यह कैसे बच गया
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मंगल नसीम
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इसकी सलाह ले कभी उसकी सलाह ले
कर ली न तूने
जिंदगी अपनी तबाह, ले
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मंगल नसीम
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ठहरा दिया न तुझको
ही सबने गुनहगार
ले और अपने सर पर
तू सबके गुनाह ले
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मंगल नसीम
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कुछ लोग हैं की
वक्त के साँचे में ढल गये
कुछ लोग थे की वक्त के साँचे बदल
गए
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मख़मूर सईद
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साँप!
तुम सभ्य हुए तो
नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं
आया।
एक बात पूंछू-
उत्तर दोगे?
तब कैसे सीखा डसना
विष कहाँ पाया?
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अज्ञेय
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इक तुम हो कि
किश्ती को तूफान मे डुबो बैठे ।
इक हम है कि तूफान को किश्ती मे
डुबोते हैं।
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कहिए क्या लिखूँ?
कुछ लिखूँ, कैसे लिखूँ
महाराज कहिए क्या लिखूँ?
गिर रही सच पर चतुर्दिक
गाज़
कहिए क्या लिखूँ?
क्या लिखूँ गरदन कपोलों की मरोड़ी जा
रही
और पाले जा रहे हैं बाज़
कहिए क्या लिखूँ?
गीत गज़लों के शहर का हाल कुछ मत पूछिए
बज रहा है असलहों का साज
कहिए क्या लिखूँ?
प्यार को बाज़ार का
समान बनाते देखकर
रो रही है कब्र मेँ
मुमताज़
कहिए क्या लिखूँ?
हर गली हर मोड़ पर औंधा
पड़ा है आदमी
चल रहा है जानवरों
का राज
कहिए क्या लिखूँ?
खेत केशर के उजड़ कर
हो चुके निःशेष हैं
अब वहाँ बैठी हुई है प्याज
कहिए क्या लिखूँ?
नग्न कोई क्या करेगा
वे स्वयं ही हो रहे
ताख पर रख कर हया ओ
लाज
कहिए क्या लिखूँ?
कवि किसी कोने खड़ा
सिर धुन रहा है देखिये
चारणों के शीश पर है
ताज
कहिए क्या लिखूँ?
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बाल सोम गौतम
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