क्षणिकाएं, जीवन की
जीवन को उजागर करती ये
क्षणिकएं मेरी रचना नहीं हैं। इनके रचनकर कौन हैं, इसकी भी जानकारी
नहीं है। व्हाट्सएप्प पर कूड़ों का ढेर दिन
रात अबाध गति से आता रहता है। लेकिन उनमें कभी कभी मोती भी आते हैं। उन्ही ढेरों
से निकाल कर जमा किए गये हैं ये मोती के दाने। अभी तक केवल मैं ही इनका रंग देखा करता
था। लेकिन फिर अचानक अहसास हुआ कि मिल-बांटने से रंग में चमक भी आजाएगी। अत: हाजिर
हैं ये दाने – मोती के या कूड़े के यह आप समझें।
लेकिन ये यहाँ नहीं रुकेंगे। समय के साथ साथ इनकी संख्या निरंतर बढ़ती रहेगी।
*******************************************************
मंगलवार, 20 जून 2017
जिंदगी आसान नहीं होती,
इसे आसान बनाना पड़ता है......
...कुछ “अंदाज” से,
कुछ
“नजर अंदाज” से।
*****
पेड़ काटने आए हैं कुछ लोग
मेरे गाँव में,
“अभी धूप बहुत तेज है” कहकर,
बैठे हैं उसी की छाँव में।
*****
बहते पानी की तरह बहते जाओ
कचरा अपने आप किनारे हो जाएगा।
*****
मैं पेड़ हूँ ..... हर रोज गिरते हैं
पत्ते मेरे.....!
फिर भी हवाओं से बदलते नहीं रिश्ते मेरे....
*****
गलतफहमियों के सिलसिले आज
इतने दिलचस्प हैं....
कि
हर ईंट सोचती है ,
दीवार मुझ पर टिकी है.....
*****
एक अच्छा रिश्ता हमेशा हवा
कि तरह होना
चाहिए, खामोश मगर हमेशा आसपास।
शुक्रवार, 5 मई 2017
रिश्ते मौके के नहीं,
भरोसे के मोहताज होते हैं।
*****
फायदा, बहुत गिरी हुई चीज़ है,
लोग उठाते ही रहते
हैं।
*****
ये दबदबा, ये हुकूमत, ये नशा, ये दौलतें
सब किराएदार हैं, घर बदलते रहते हैं।
*****
किसी को
पुरखों की जमीन बेचकर भी चैन नहीं,
और कोई
गुब्बारे बेचकर भी सो गया चैन से।
*****
बीता
हुआ कल जा रहा है उसकी याद में खुश हूँ,
आने
वाले कल का पता नहीं, इंतजार में खुश हूँ।
*****
ताश का जोकर और अपनों की ठोकर
अक्सर बाजी घूमा देती है।
*****
घमंड
में अपना सर ऊंचा न कर,
जीतने वाले
भी अपना गोल्ड मेडल
सिर
झुका कर हासिल करते हैं।
*****
बहुत
सोचना पड़ता है अब
मुंह
खोलने से पहले,
क्यूंकि,
अब
दुनिया दिल से नहीं
दिमाग
से रिश्ते निभाती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें