शनिवार, 2 सितंबर 2017

सूतांजली, सितंबर २०१७

सूतांजली                                         ०१/०२                                          ०१.०९.२०१७
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गांधी हो या बुद्ध, राम हो या कृष्ण, सूर हो या तुलसीये कालजयी हैं। साहित्य एवं लोक में इनकी सकारात्मक पक्षका  ही गायन किया जाता  है। स्थापित वही होता है जिनके सकारात्मक पक्ष की ही बातें  सुनी और पढ़ी जाती हैं। तब  फिर हम प्रेम-कर्तव्य-त्याग सच्चाई-अहिंसा-अपरिग्रह-ईमानदारी की घटनाओं के बदले स्वार्थ- वैर-राग-द्वेष-झूठ-हिंसा की घटनाओं की बातें ही ज्यादा क्यों करते और सुनते हैं? समाज तो वैसा ही बनेगा जैसी हम चर्चा करेंगे?अगर हमने यही मन बना लिया है कि हमें ऐसा ही समाज बनाना है तब कोई बात नहीं। लेकिन अगर हम ऐसे समाज में रहने के लिए तैयार नहीं हैं तब यह बदलना पड़ेगा। हमें सकारात्मक घटनाओं और गुणों की ही बातें करनी होगी जिन्हे हम अपने इर्द गिर्द घटते हुवे देखना चाहते हैं। पड़ोसी की प्रतीक्षा न कर सूत्रपात हमें ही करना होगा। सूते को अंजलली भर बांटना होगा जिससे मनका मनका जोड़ कर माला पिरो सकें। यही है सूतांजली।


मैंने सुना
मुझे गांधी क्यों प्रेरित करते हैं?                    - कुमार प्रशांत (अधीक्षक, गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली)
1 मई 2017भारतीय संस्कृति संसद अनौपचारिक विमर्श      -पिछले पत्र से आगे
   
सबों को देखते हुवे एक ऐसी जगह पहुँच गए हैंहम सभी लोगसामूहिक रूप में जहां हम न खुद को सुरक्षित पा रहे हैं न अपने परिवार को। न अपने खुद के बारे में विश्वास के साथ कुछ कह पा रहे हैंन परिवार के बारे में। तो जिसे दिहाड़ी मजदूर कहते हैं वैसी जिंदगी गुजार रहे हैं। आज का दिन गुजर गया। बसअगला दिन कैसा होगा मालूम नहीं। अगला दिन भी गुजर जाएऐसा कुछ हो जाए तो चलो भगवान का भला अगला दिन भी निकल गया। ऐसे तो समाज नहीं चलता है। ऐसे तो समाज जीता भी नहीं है। इसीलिए हम जी नहीं पा रहे हैं। मुश्किल में पड़े हैं।

इतने सारे प्रतिद्वंद्वी खड़े कर लिए हैं हमने अपने अगल बगल कि लगता है कि हर समय कुरुक्षेत्र में ही खड़े हैं। कोई भी शांति के साथ जीवन का मजा नहीं ले रहा है। युद्ध कभी कभी होता है तो शायदअच्छा लग सकता है। लेकिन अगर २४ घंटे ही युद्ध होता रहे तो बोझ लगता हैमुश्किल हो जाती हैजीना कठिन हो जाता है।  अभी मैं भद्रक से आ रहा हूँओड़ीशा से। अभी १५-२० दिन पहले वहाँ एक बहुत बड़ा दंगा हुआ था वहाँ और तब से लगातार चल रहा है। वहाँ था मैं कुछ समय। कैसे शुरू हो गयाक्या बात हो गईकिसी नेजो एक नया संवाद का संसाधन निकला हैएस एम एसउसमें   सीता के बारे में थोड़ी गंदी सी बात लिख दी और उसके नीचे एक मुसलमान का नाम लिख दिया। यह बात फैली और वहाँ से विश्व हिन्दू परिषद ने इसे उठा लिया। इसके पहले कि यह समझ पाएँ कि यह सारा खेल क्या हुआ तब तक १५-२० मुसलमानो की दुकानों में आग लग गई। शाम को पुलिस सुपरिंटेंडेंट ने सभा बुलाई और कहा कि मैंने इस आईडी की जांच कारवाई है। यह एक बिलकुल गलत और भ्रामक आईडी है। ऐसी कोई आईडी है नहीं जिससे यह निकला हो।  अत: यह किसी बदमाश की कार्यवाही है। लेकिन तब तक तो परिस्थिति बदमाशों के हाथों मे चली गई थी। बदमाशों की  संख्या दोनों तरफ ही बराबर है। रात को पत्थर बाजी हुई मुसलमानों की तरफ से।

जब कभी ऐसा होता है आप क्या करते होयह साधारण सी बात मन में आती  है कि वहाँ पहुँच तो जाएँ और फिर देखें क्या होता हैहम,  जो भी १५-२० व्यक्ति थे पहूँचे। और तब से इस कोशिश में लगे हैं कि कोई रास्ता निकले। कुछ तो समझ बने लोगों के मन में। मैं बराबर लोगों से पूछता हूँ कि ऐसे ही रहने का इरादा हो कि आप भी रहते हो हम भी रहते हैं और बीच में पुलिस छावनी रहनी चाहिए। अगर यह पसंद है तो रहा जाए। मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मैं तो कुछ दिनों में यहाँ से चला जाऊंगा। भुगतना तो आप लोगों को ही पड़ेगा। लेकिन अगर आपको लगता है कि यह रहने का तरीका नहीं है तब ये पुलिस छावनी आपके बीच से हटेइसकी कोशिश आपको ही करनी पड़ेगी। मैं इस छावनी को नहीं हटा सकता। पुलिस मेरी बात मानेगी भी नहीं क्योंकि उसे मालूम है कि खतरा दोनों तरफ से है।इसमें पहला कदम कौन पीछे खींचता है वही सबसे समझदार आदमी है। आपने नियम ही यह बना दिया है कि कदम पीछे खींचना कायरता है। जब तक आप कदाम पीछे नहीं खींचतेकदाम ऊठेंगे नहीं। यह आप देख रहे हो। फिरकोई तो निर्णय आपको करना पड़ेगा। 

जब मैं यह बात सोचता हूँ तो मेरे लिए हिन्दू मुसलमान जैसी कोई बात रहती ही नहीं है। मैं सोचता हूँ हिन्दू हो,मुसलमान होक्रिश्चियन होपारसी होअगर रहना है तो रहने के लिए कुछ मूलभूत नियम तो बनाने ही पड़ेंगे।  क्योंकि हम में से कोई भी यह निर्णय नहीं ले  सकता है कि आज से इस देश में कोई मुसलमान नहीं रहेगाऔर मुसलमान नहीं रहेंगे। वे तो हैं। हमारे आप के चाहने या न चाहने के बावजूद हैं। और उनके चाहनेन चाहने  के बावजूद हम हैं। तब कैसे रहोगेइसको सोचना शुरू करोगे तब हम वहीं पहुंचेगे जहां पाकिस्तान बनने के पहले महात्मा गांधी पहुंचे थे। तो मेरे लिए महात्मा गांधी भगवान नहीं हैं। मैं उनकी पूजा नहीं करता हूँ। मैं जिन सवालों से परेशान हूँ उनका समाधान ढूँढता हूँ तो इसी आदमी के पास पहूंचता हूँ। तब सोचता हूँ कि कोई तो बात है भाई। इस आदमी के जवाब खत्म नहीं होते हैं। बस इतनी सी ही बात है जो मुझे प्रेरित करती है।

गांधी जयंती -१५० वर्ष
इस वर्ष गांधी की १५०वीं जयंती प्रारम्भ हो रही है। क्या उनकी जयंती किसी अलग ढंग से मनाई जा सकती है?कोई रचनात्मक कार्यों की परिकल्पना कर सकते हैंऐसे कार्य की  परिकपल्पना जो एक दिन और वर्ष भर के लिए भी हो। और हम चला भी सकें। आपके सुझावों का हम आदर करेंगे।


                                                               क्या पढ़ें 

सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ समय पहले सड़क दुर्घटनाओं के मद्देनजर देश की राष्ट्रीय सड़कों पर शराब की बिक्री पर रोक लगाई थी। न्यायालय के इस आदेश का पालन कैसे हुआ अपनी कमाई बनाए रखने के लिए सरकारें भी नियम कानून में छेद  ढूंढती हैं और अवशयकता पड़ने पर छेद करने में नहीं हिचकिचाती। अगर एक व्यापारी भी यही करता है और अपराधी है तब सरकार अपराधी क्यों नहीं?  पढ़ें – 
नशे की पोल लेखक चंद्रशेखर धर्माधिकारी। गांधी मार्ग अंक मई-जून २०१७ पृष्ठ ६०


पत्रिका के इसी अंक में एक और लेख पढ़ने योग्य है। मार्लो ब्रांडो होलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता थे। उन्हे ऑस्कर पुरस्कार से नवाजा गया था लेकिन उस पुरस्कार को लेने से इंकार कर दिया। ऑस्कर के मंच पर वे खुद उपस्थित नहीं थे। जब समारोह चल रहा था उस समय वे सुदूर वुंडेड नी में थे। समारोह में पढ़ने के लिए उन्होने आपना  व्याख्यान भेजा था। यह उसी व्याख्यान  के अंश हैं।
एक अधूरा भाषण” – मार्लो ब्रांडो



पत्रिका
गांधी मार्ग”  - संपादक श्री कुमार प्रशांत
 पूरी पत्रिका में कोई विज्ञापन नहीं है। कोई ऐसा अंक नहीं जिसमें कम से कम एक निबंध  ऐसा न हो जो दिल को न छू ले और सोचने पर मजबूर न कर दे।


एक अंक का मुखपृष्ट


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