शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2020

शुभकामनाएँ, नये अंदाज़ में

त्यौहारों का मौसम प्रारम्भ हो चुका है। सही कहा जाए तो इस वर्ष पितृ पक्ष के बाद अधिक मास या पुरषोत्तम मास के कारण त्यौहारों का मौसम एक माह बाद प्रारम्भ हुआ। नवरात्र प्रारम्भ हो चुका है, इसकी समाप्ती दशहरा के साथ और उसके बाद करवा चौथ, काली पूजा, दीपावली, भैयादूज, गोवर्धन पूजा, छठ पूजा, मुस्लिम त्यौहार, गुरुनानक जयन्ती, क्रिसमस; यानि एक के बाद एक अनेक त्यौहार आते रहेंगे। देश के अलग-अलग भागों में इन्हें मनाने का तौर तरीका अलग-अलग हो सकता है, मान्यता और अहमियत भी अलग-अलग त्यौहारों की अलग-अलग हो सकती है, लेकिन यह मौसम, पूरे देश में, शुभकामनाएँ देने और लेने का  है।

किसी जमाने में हम बधाई पत्र (ग्रीटिंग्स कार्ड) के जरिये अपनी भावनाओं को ज़ाहिर किया करते थे। लेकिन समय के साथ साथ ऐसे पत्र अतीत के गर्भ में समा गये। नई तकनीक और विचारों ने इस प्रथा को उजाड़ दिया। पहले इने-गिने त्यौहारों पर ही ऐसे संदेशों का आदान-प्रदान होता था। लेकिन अब हमारे हाथ में संदेशों की बाढ़ आती है, अबाध रूप से, हर छोटे बड़े त्यौहार पर। एक ही संदेश बार-बार, लगातार। उदाहरण, नवरात्रि का एक संदेश न आकर नौ दिन के नौ संदेश। दीपावली के भी तीन संदेश – धनतेरस, रूप चौदस और दिवाली।  ये  जैसे आते हैं, वैसे ही भेजे भी या आगे बढ़ाये जाते हैं। इनमें से किसी से भी मन का  जुड़ाव नहीं होता है, न पाने में न देने में। यही नहीं, ये संदेश हमारा होता भी नहीं है। इन्हें लिखा, सँवारा, सजाया किसी और ने है, किसी और के लिए। उस किसी और को न हम जानते हैं न वे हमें जानते हैं। ये सब केवल अंगुली के झटके हैं।तब जुड़ाव कैसा?

पिछले वर्ष, यानि 2019, में मैंने एक सुझाव दिया था। तकनीक अपनायेँ, लेकिन तरीका नसीफ हो। किसी और के संदेश को न भेज कर अपना संदेश खुद बनाएँ या किसी जानकार से बनवाएँ, सजवाएँ, सँवारे; पारिवारिक संदेश बनाएँ, जिसके भी पास जाए वह आपके परिवार का अपना संदेश हो, किसी और का नहीं। उस संदेश पर आपकी स्पष्ट छाप हो, जिसे दूसरा किसी और को भेज न सके। लेकिन, आपका पूरा परिवार उसे किसी को भी भेज सके। तब, नए, रंग-बिरंगे संदेश देखने मिलेंगे साथ ही विशिष्टता भी बनेगी, भावुकता का समावेश होगा, पहचान बनेगी और आपसी जुड़ाव की भी गुंजाइश होगी।  

इसी कड़ी में इस वर्ष एक और नया अंदाज़। कोरोना का समय है। अर्थ व्यवस्था प्रभावित हुई है। बहुत बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हुए हैं। तो आइए कुछ ऐसा करें कि अर्थ व्यवस्था को कुछ  प्रोत्साहन भी मिले, सकारात्मक संदेश भी जाए और आपके परिवार की एक विशेष छाप भी पड़े। शुभकामनाओं का संदेश भेजिये पुस्तक के माध्यम से

जी हाँ, पुस्तक भेजिये। अपना छोटा सा संदेश पुस्तक के पन्नों पर हाथ से लिखें या बड़ा सा प्रिंट करवाएँ या फिर पूरा एक रंग-रंगीला पन्ना प्रिंट करवा कर पुस्तक से संलग्न (स्टिक) करें। सबसे खास बात यह है  कि चाहें तो सबको एक ही पुस्तक भिजवाएं, परिवार विशेष को विशेष या कई पुस्तक भिजवायेँ, अलग अलग लोगों को अलग अलग भिजवायें। यह आपकी मर्जी पर निर्भर करता है। पत्र-पत्रिकाओं का वार्षिक चंदा भी बधाई के साथ साथ एक नायाब उपहार हो सकता है। यही नहीं, किसी भी भारतीय भाषा में हिन्दी, असमिया, बंगाली, उड़िया, तमिल, तेलगू, कन्नड, मलयालम, महाराष्ट्रियन, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी, किसी भी भाषा में। हिन्दी और अँग्रेजी तो है हीं।

नहीं मैं कोई बड़े बजट की बात नहीं कर रहा हूँ। भेजने लायक उत्तम पुस्तक तीन, जी हाँ तीन रुपये में भी मिलती हैं। अगर बजट दस – पंद्रह रुपये तक कर लें तब तो कहना ही क्या है। ऊपरी सीमा का तो कोई अंत ही नहीं है। सामान्यत: भेजने का खर्च, पोस्ट से भेजते हैं तो पाँच से पंद्रह रुपए और अगर कूरियर करना चाहते हैं तो दस से तीस रुपये। ऐसी पुस्तकें कई जगह मिलेंगी यथा गीता प्रेस, गोरखपुर की पुस्तकें गोविन्द भवन, कोलकाता में आसानी से उपलब्ध हैं। इसके अलावा चिन्मय मिशन, विवेकानंद केंद्र, श्री औरोबिंदो आश्रम और ऐसी अनेक संस्थाओं, एन बी टी प्रकाशन, सर्व सेवा संघ प्रकाशन, नवजीवन प्रेस  के अच्छे प्रकाशन बहुत सस्ते में उपलब्ध हैं। इन प्रकाशकों की पुस्तक की सूची इंटरनेट पर उपलब्ध है। इन्हें इंटरनेट पर खोजकर अपने शहर में प्राप्ति स्थान से या ऑन लाइन मँगवा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि इनमें केवल धार्मिक पुस्तकें ही मिलती हैं, विभिन्न विषयों पर रुचि के अनुसार पसंद कीजिये, मंगाइए और भेजिये। आपकी जानकारी के लिए ऐसी ही कुछ पुस्तकों की तस्वीर दे रहे हैं। अगर आपको और अधिक जानकारी चाहिए तो हमें अवश्य लिखें, हम यथा सम्भव उत्तर देंगे। 


ये पुस्तकें गीतप्रेस, चिन्मय मिशन, रामेश्वर टांटिया ट्रस्ट, विवेकानंद सेंटर द्वारा प्रकाशित हैं 

आपके पास भी अगर कोई नए अंदाज़ का सुझाव हो तो जरूर बताएं। हम उसे लोगों तक पहुचाएंगे। लीक पर न चलें, नयी लीक बनायेँ।

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