शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

जन्मदिन – क्यों और कैसे?

 आज से दुर्गापूजा या नव-रात्री प्रारम्भ है। पाठ शुरू हो रहा है। बड़ा त्यौहार है, अनेक कार्य करने हैं।

आज से सावन का सोमवार है, या शिवरात्रि है – शिव आराधना, रुद्राभिषेक या शिवजी को जल –दूध चढ़ाना है।

आज राम नवमी है।

आज सरस्वती पूजा है।

आज स्वाधीनता दिवस है।

अगर मैं इसकी सूचि बनाने बैठूँ तो न जाने कितने पन्ने लग जाएंगे। और अगर इसमें आकाश के नीचे समस्त प्रदेशों का समावेश करना चाहूँ तो?

यानि ऐसा कोई प्रदेश नहीं, संस्कृति नहीं, सभ्यता नहीं, धर्म नहीं जिसमें कई तिथि विशेष की अपनी कोई विशेषता न हो। और हम उसे उसी की विशेषता के अनुरूप उसी अंदाज़ में मनाते हैं। किसी दूसरे दिन भी मना सकते हैं, लेकिन फिर भी उसी दिन क्यों? राम नवमी पर सरस्वती की आराधना, दीवाली पर शिव रुद्राभिषेक, 15 अगस्त को गांधी का जन्मदिन वगैरह क्यों नहीं मनाते?  इसका उत्तर आपके पास है, आप जानते हैं। समयानुसार मनाने से उत्साह भी बनता है और समयानुकूल लगता है। लेकिन क्या केवल यही कारण है? नहीं, उस दिन हमारे और उनके बीच निकटता ज्यादा होती है, वे हमारे दुःख-दर्द को सुनने-समझने के लिए हमारे ज्यादा नजदीक होते हैं। उस दिन वार्तालाप ज्यादा सहज होता है। यह ठीक वैसे ही है जिसे, राजा से कभी भी मिलने का प्रयत्न किया जा सकता है लेकिन जब वे दरबार में हाजिर हों, सभासद मौजूद हों, मंत्रिमंडल उपस्थित हो, प्रशासन अधिकारी हाजिर हों, तो बात ज्यादा आसानी से बन जाती है। इन धार्मिक तिथियों के अलावा भी अनेक ऐसे दिन होते हैं जिन्हें हम ज्यादा उत्साह से मानते हैं, इतिहास को याद करते हैं।  

          इन विशेष तिथियों में एक दिन है हमारा अपना जन्मदिन। यह हमारा अपना भी हो सकता है, अपने परिवार के किसी सदस्य का, परिचित का, मित्र का, किसी महान  आत्मा का ........। आत्मा का? यह जन्मदिन होता क्या है? अगर इस पर जरा भी गहराई से विचार करें, तो बात तुरंत समझ आती है, जन्म आत्मा का। लेकिन आत्मा तो अमर है, अजन्मा है? फिर? हम जिसे अपना जन्म कहते हैं वह वास्तव में यह वह दिन है जिस दिन हमारी आत्मा को नया स्वरूप, नया प्रदेश, नए लोग, नया परिवेश, नया परिवार मिला। क्या इसका चुनाव हमने किया? आत्मा के लिए यह चयन परमात्मा ने किया। उसने यह चयन किस आधार पर किया? हमारे अपने कर्मों के आधार पर। बिना किसी पक्षपात के, बिना किसी भूल के। यानि यह वह दिन था जब हम परमात्मा के सम्मुख खड़े थे। यह वह दिन था जिस दिन हमने परमात्मा के  दर्शन किए। यह वह दिन था जिस दिन हमें परमात्मा से बातचीत करने का अवसर मिला। यह वह दिन है जिस दिन परमात्मा हमारे और दिनों की अपेक्षा ज्यादा नजदीक होते हैं। हम अपनी बात उन तक पहुंचा सकते हैं, उनकी बात सुन सकते हैं। यह दिन परमात्मा द्वारा हमें दिया जाता है, वर्ष में एक बार। जन्मदिन, वही दिन होता है जब हम फिर से, एक वर्ष बाद, मिलते हैं। इसके लिए हमें कुछ करना भी नहीं होता है, बस थोड़ा सा सजग। उन्हें सुनने के लिए उनसे मुखातिब होना और उनकी सुनने के लिए उनकी आवाज पर ध्यान देना। अगर चूक गए तो फिर वर्ष भर इंतजार।

          “हाँ, यह सचमुच व्यक्ति के जीवन में एक विशेष दिन है । यह वर्ष के उन दिनों में से एक है जब परम प्रभु हमारे अन्दर अवतरित होते हैं अथवा जब हम शाश्वत प्रभु के साथ आमने-सामने होते हैं उन दिनों में से एक, जब हमारी आत्मा शाश्वत प्रभु के सम्पर्क में आती है और, यदि हम थोड़ा सचेतन रहें, हम अपने अन्दर उनकी उपस्थिति को अनुभव कर सकते हैं। यदि हम इस दिन थोड़ा-सा प्रयास करें, तब हम अनेक जन्मों का कार्य मानों क्षणों में पूरा कर लेते हैं ... यह दिन सचमुच जीवन में एक अवसर है” – श्रीमाँ

          वे हमसे बातचीत करते हैं लेकिन हमारा ध्यान कहीं और रहता है, हम शोरगुल में डूबे रहते हैं, हमें उनकी आवाज सुनाई ही नहीं देती। यह आवाज बहुत महीन होती है लेकिन एक बार सुनने लगें  तो इससे स्पष्ट दूसरी आवाज नहीं।

          जन्म दिन मनाइए, शौक से मनाइए, जैसे आपका मन हो वैसे मनाइए, लेकिन दिन का प्रारम्भ कीजिये उस परमात्मा से मुखातिब होकर, उसे अपनी बात कहकर और उसकी बात सुनकर।

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