शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

त्रिविध परीक्षण


 

यूनानी दार्शनिक सुकरात से उनकी जान-पहचान का व्यक्ति एक दिन उनसे मिलने आया। वह सुकरात से कुछ कहने के लिए बड़ा उद्विग्न था। उसने छूटते ही सुकरात से कहा: "क्या बताऊं! आपके उस दोस्त के बारे में मैंने क्या सुना?"

उसकी बात पूरी होने के पहले ही सुकरात बीच में बोल पड़े “जरा ठहरो! तुम कुछ कहो, इससे पहले मैं तुम्हारी और तुम्हारी बात की जांच तो कर लूं!" दोस्त सुकरात को देखता रह गया, उसे सुकरात की बात समझ नहीं आई। खैर, सुकरात ने अपनी बात जारी रखी। "इससे पहले कि तुम इस दोस्त के बारे में कुछ बताओ, मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या तुम पूरी तरह आश्वस्त हो कि तुम जो कहने जा रहे हो वह सत्य है?"

हकलाते हुए रुक-रुक कर दोस्त ने कहा, "नहीं......., ऐसा तो मैं नहीं कह सकता! दरअसल मैंने ये सारी बातें किसी से सुनी हैं और चाहता हूं कि आपको भी बताऊँ।"

“वो तो ठीक है", सुकरात ने कहा, “ जिस बात की सच्चाई का तुम्हें भरोसा नहीं है वह बात तुम मुझसे बांटना चाहते हो तो बताओ, जो बात तुम मेरे दोस्त के बारे में कहने जा रहे हो क्या वह कुछ अच्छी, शुभ बात है?

"नहीं, बल्कि बात तो इसकी उलटी..."

सुकरात ने उसकी बात काटते हुए पूछा, अच्छा तो बात यह है कि तुम मुझे ऐसी बुरी बात बताने जा रहे हो जिसके बारे में तुम यह भी नहीं जानते कि वह सत्य है या नहीं, तो मुझे यह बताओ कि जो तुम मुझे बताना चाहते हो क्या वह मेरे लिए उपयोगी है?

सामने वाला आदमी थोड़ी परेशानी से बोला, “हां, नहीं... नहीं, कुछ खास उपयोगी तो नहीं..."

"अच्छा तो अब सुनो," सुकरात ने अपनी बात पूरी की, "तुम मुझे जो बात बताना चाहते हो वह न सत्य है, न अच्छी है और न उपयोगी ही है, तो उसे सुनने और उसे सुनाने में क्या लाभ?... हम वक्त क्यों जाया करें! आओ, मेरे साथ काम करो!"

सुकरात अपने काम में उसे आदमी को जोड़ कर व्यस्त हो गए। यह कथा संसार भर में 'सुकरात का त्रिविध परीक्षण' नाम से प्रचलित हुई। और सभी इसे अपनी-अपनी तरह से सुनाते हैं। लेकिन इस त्रिविध परीक्षण का सार तो हर कहीं एक ही है : जो व्यर्थ है उसे कहने सुनने में समय व्यर्थ न करो

(अगला कोई किस्सा कहने-सुनने, व्हाट्सएप्प किसी को भेजने के पहले इस त्रिविध परीक्षण को दुबारा पढ़ें और उसका त्रिविध परीक्षण करें। दूसरों की बात कहने के बजाय अपनी बात, अपना अनुभव साझा कीजिये। कबीर को याद कीजिये:

“सार-सार को गही रहे, थोथा देई उड़ाय”

तोड़ने की बात उड़ा दीजिये, जोड़ने की बात रख लीजिये। सत्य को रख लीजिये अफवाह को उड़ा दीजिये। अफवाहों को फैलाना बंद कीजिये। किसी की लिखी / पढ़ी / सुनी बात अच्छी लगे तो उसके साथ अपने विचार, अपने अनुभव भी जोड़ कर भेजिये। इससे आपका ही फायदा होगा क्योंकि:  

1। जो अच्छी बात आप आगे भेज रहे हैं, उसे पहले खुद को समझना होगा, उस पर मनन करना होगा, अपने अनुभव जोड़ने होंगे, और  

2। इस प्रकार छान कर भेजी हुए बात को पढ़ने वाला, सुनने वाला ज्यादा महत्व देगा।)

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शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

कैसे चढ़ें, सफलता की चढ़ाई

 निरंतर सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते चले जाना बड़ा आनंददायक होता है। लेकिन इसके लिए अथक परिश्रम और प्रयास ही नहीं बल्कि बड़ी सूझ-बूझ और समझदारी का हुनर भी आवश्यक होता है। मंजिल तक ले जाने वाला हमारा हर प्रयास महत्वपूर्ण होता है।  केवल प्रयास ही नहीं बल्कि विश्राम, धैर्य आदि का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। इन तथ्यों को सही ढंग से समझना और उन पर अमल करना जरूरी होता है। एक गलत कदम, हमें मंजिल से कोसों दूर ले जाता है। आज के इस आधुनिक युग में इस विषय पर बोलने वाले और लिखने वालों को भी कमी नहीं है। अपनी समझ, सहूलियत, संसाधन और ऊर्जा के अनुसार ही उन्हें अपनाना चाहिए। यह आवश्यक नहीं कि किसी की सफलता का राज आपके लिए भी कारगर साबित होगा। अतः अपना संतुलन रखते हुए ही निर्णय लेना उचित है। इस यात्रा के कुछ कम चर्चित अंग इस प्रकार हैं:

1.   लक्ष्य की स्पष्टता - मंजिल तक पहुँचने के लिए हर व्यक्ति को प्रयास करना पड़ता है, श्रम करना पड़ता है। ये सार्थक तब माने जाते है, जब इनसे हमें मनोवांछित परिणाम मिलते हैं या लक्ष्य हासिल होता है। बहुधा हमें अपने लक्ष्य के बारे में स्पष्टता नहीं होती। अतः कई बार मंजिल पर पहुंच कर भी लक्ष्य-भेदने से चूक जाते हैं लक्ष्य-भेदन का आनंद नहीं ले पाते। मार्ग और मंजिल को हम बहुधा एक ही मान बैठते हैं, ये दोनों अलग-अलग हैं। धन कमाना मार्ग भी हो सकता है मंजिल भी। लेकिन अगर यह मंजिल है और धन का माप निश्चित नहीं है तब यह जीवन पर्यंत मार्ग ही बना रहता है मंजिल कभी नहीं। अतः कितना धन चाहिए, यह स्पष्ट होना चाहिए। धन क्यों चाहिए – तब धन मंजिल नहीं मार्ग ही है, और इस क्यों में आपकी मंजिल छिपी है। धन चाहिए, रहने के लिए बंगले के लिए। कहाँ, कितना बड़ा। इसका एक मानसिक चित्र बनाइये और धन का अनुमान कीजिये। उतना धन मिल जाने पर लक्ष्य-भेदन कीजिये, बंगला खरीदिए और इसका जश्न मनाइए। अन्यथा कब मंजिल मार्ग में परिवर्तित हो गई पता ही नहीं चला। मार्ग पर चलने में इतने व्यस्त हो गए कि हमें मंजिल का ध्यान ही नहीं रहा और उसे पार कर गए। लक्ष्य-भेदन के बाद, उसका आनंद लीजिये और एक नई मंजिल तय कर फिर से चल पड़िये।

2.   विश्राम – जी हाँ। अथक प्रयास ही नहीं विश्राम की भी सफलता के मार्ग में बड़ी भूमिका है। इसकी चर्चा कहीं नहीं मिलती और प्रायः लोग इसे नज़र अंदाज़ भी कर देते हैं। लेकिन कई बार मंजिल के नजदीक पहुँच कर हाथ में आई हुई सफलता भी छूट जाती है। विश्राम न समय की बरबादी है न लक्ष्य से भटकाव। बल्कि पाँवों को भलीभाँति जमा कर आगे बढ़ने का कारगर सूत्र है। मार्ग में ईंधन के लिए रुकना आवश्यक है, अन्यथा मंजिल के करीब पहुँच कर भी, ईंधन की कमी के कारण, व्यक्ति लक्ष्य से वंचित रह जाता है। लक्ष्य तक पहुँचने के लिए जितना महत्व प्रयास व श्रम का है, उतना ही महत्व विश्राम का भी है। विश्राम करने से हमें थकान से राहत मिलती है और आगे बढ़ने के लिए मानसिक और शारीरिक ऊर्जा भी मिलती है। अति उत्साह और लालच का परिणाम नुकसानदायक व हानिकारक हो सकता है। इसलिए मंजिल तक पहुँचने के लिए उत्साह तो बनाए रखना चाहिए, लेकिन अति-उत्साह में अपना नियंत्रण नहीं खोना चाहिए। विश्राम के अभाव में अंतिम क्षणों में धैर्य छूटने लगता है, एकाग्रता भंग हो जाती है, ध्यान भटक जाता है, सांस टूट जाती है और हम गलती कर बैठते हैं,

3.   हर कदम महत्वपूर्ण – वर्ष में 12 महीने होते हैं और छः ऋतुएँ। क्या कोई बता सकता है कि कौन-सा महीना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है? अगर एक भी महीना बाद दे दें तो क्या वर्ष पूरा होगा? कौन-सी ऋतु खास है? सब ऋतुओं की अपनी अहमियत है, सब का अपना रंग है, किसी एक के न रहने से संतुलन बिगड़ जाएगा। इसी प्रकार जीवन में चलते हुए हर कार्य का अपना महत्व है, किसी भी कार्य को छोटा या बड़ा न समझें। जिस तरह एक-एक ईंट को कुशलतापूर्वक रखकर और जोड़कर ही किसी श्रेष्ठ भवन का निर्माण किया जाता है, एक-एक सीढ़ी चढ़कर ही किसी भवन की ऊपरी मंजिल तक पहुँचा जा सकता है- उसी तरह हमारे द्वारा किए जाने वाले छोटे-छोटे कार्यों द्वारा ही हम जीवन की बड़ी मंजिल को बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। छोटे-छोटे कार्यों की उपेक्षा करके अपनी महत्वाकांक्षाओं को सार्थक करने का स्वप्न देखना बहुत बड़ी भूल है।  छोटी-छोटी सफलताएँ प्राप्त करते हुए चलने से जीवन में बड़ी सफलताएँ स्वतः प्राप्त होती हैं। महात्मा बुद्ध के अनुसार-'आपके सामने जो कार्य हैं, उन्हें पूरे उत्साह एवं पूरी शक्ति के साथ करें। छोटा समझकर किसी कार्य की उपेक्षा न करें।'  हमारा प्रत्येक कदम लक्ष्य की प्राप्ति का सूचक है, इसलिए छोटे-छोटे कदमों की अवहेलना न करते हुए उन्हीं कदमों को आत्मसात करना चाहिए और स्वयं पर विश्वास रखना चाहिए।

4.   एक कदम पीछे – फूटबॉल का खेल हो या क्रिकेट, दंगल हो या कुश्ती, टैनिस हो या बैडमिंटन, हर जगह देखा होगा कि खिलाड़ी और कैप्टन अपनी रणनीति बदलते रहते हैं। कभी हमलावर, एटैकिंग, खेल खेलते हैं तो कभी रक्षात्मक, डिफ़ेन्स। इसमें न कोई बुराई है, न शर्मिंदगी और न ही अपमान का अनुभव। बल्कि युद्ध के मैदान में भी सेनापति अनेक बार पीछे लौट कर फिर से आक्रमण करता है। जब जीवन के अनेक स्थानों पर एक कदम पीछे की नीति सफलता पूर्वक अपनाते हैं तब अन्य अनेक जगहों पर एक कदम पीछे लेने से हम क्यों घबराते हैं, क्यों अपमानित अनुभव करते हैं, क्यों शर्मिंदगी अनुभव करते हैं? सफलता की ऊंचाइयों पर चढ़ते समय कई बार ऐसे संयोग बनते हैं जहां एक कदम पीछे लेने में कोई हर्ज नहीं बल्कि चोटी तक पहुँचने के लिए आवश्यक भी होता है। ऐसी अवस्थाओं में बढ़ाए हुए कदम को वापस खींचने में कोई हर्ज नहीं होता क्योंकि उस बढ़ाये हुए कदम में ही अंतिम सफलता की कुंजी होती है।

5.   लगातार प्रयास – लक्ष्य भेदने में असफल होने से निराश नहीं होना चाहिए। किए गए पूरे प्रयास को निरर्थक नहीं मानना चाहिए। प्रयास व श्रम - मनोवांछित परिणाम न मिलने पर भले ही निरर्थक प्रतीत हों, फिर भी इनका महत्व होता है; क्योंकि इनके कारण हम अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं, इनसे हमें अनुभव की प्राप्ति होती हैं, इनके कारण हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

          दुनिया में कोई भी कार्य एकाएक पूरा नहीं होता, लगातार प्रयास करने पर, निरंतर जुटे रहने पर, श्रम का सम्पुट जोड़ने पर कार्य पूरा होता है। जैसे कोई भी मकान एकाएक नहीं बन जाता है। पहले मकान का नक्शा बनाया जाता है, फिर नींव खोदी जाती है, मकान बनाने के लिए आवश्यक सामग्री जुटाई जाती है, फिर योजनानुसार धीरे-धीरे मकान बनकर तैयार होता है। यदि हमारे दस छोटे प्रयासों में से पाँच प्रयास असफल होकर हमें हतोत्साहित करते हैं, तो वे पाँच प्रयास जो सफल कदम हो गए हैं, हमें उत्साहित भी करते हैं।

          एक छोटा बालक जब चलना सीखता है, तो पहले वह घुटनों के बल चलता है, फिर किसी वस्तु का सहारा लेकर धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करता है, फिर डगमगाते कदमों से आगे बढ़ता है। खड़े होकर चलने के इस प्रयास में बच्चा कई बार गिरता है, उसे चोट लगती है, वह रोता भी है, लेकिन हार नहीं मानता। बार-बार प्रयास करता है और एक दिन वह अपने प्रयास में सफल होता है। फिर वह न केवल चलता है, बल्कि दौड़ता भी है।

6.   अध्यात्म को अपनायें – जी हाँ, यह आपको बड़ा अजीब लग रहा होगा, शायद इसे सिरे से खारिज कर दें। लेकिन ठहरिये, उपरोक्त पांचों में सबसे महत्वपूर्ण यही है। इसे पहले नंबर पर न रख कर यहाँ केवल इसलिये रखा हूँ क्योंकि अनेकों के मन में अध्यात्म के प्रति विरोध रहता है, इसे स्वीकार नहीं करते। लेकिन याद रखें जब बार-बार लगातार असफल हो रहे हों, निराश जो रहे हों, किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे हों, दुविधा में हों, कोई रास्ता न सूझ रहा हो तब यही सबसे बड़ा मित्र, सहायक और मार्ग दर्शक होता है। इसकी क्षमता अपरिमित है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। यह कैसे काम करता है, कोई नहीं जानता। इसकी सहायता कब, कहाँ, कैसे प्राप्त होगी यह भी कोई नहीं जानता। यह इतने चुपके से काम करता है कि हमें इसका भान तक नहीं होता, और यह अपना काम कर के निकल जाता है। इसे नजरंदाज मत कीजिये। आध्यात्मिक जीवन शैली में विश्वास रखिये। याद रखिए प्रत्येक रविवार को चर्च में जाना या मंदिर जाना या मस्जिद जाना या गुरुद्वारा जाना न धर्म है, न धार्मिकता न अध्यात्म। इसके बजाय, मेरी समझ से जीवन के प्रति समादरपूर्ण दृष्टि का होना ही धार्मिक या आध्यात्मिक होना है।

          कहने का तात्पर्य है कि जिन रास्तों पर हमें चलने का अभ्यास नहीं है, उन रास्तों में से आगे बढ़ने पर पहले हमारे कदम लड़खड़ाते हैं, धीरे-धीरे ही जब हम उन राहों पर चलना सीख जाते हैं, तब ही हम दौड़ पाते हैं। मंजिल तक पहुँच सकते हैं।

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शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

सूतांजली नवम्बर 2022

 सूतांजली के नवम्बर अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-



इस अंक में हैं:

१। अस्तित्व      

ईश्वर दिखते नहीं, तब हम कैसे स्वीकार करें उनका अस्तित्व।

और ईश्वर कहते हैं, ‘…अब अगर देखते हुए भी कहो कि नहीं दिख रहे हो, तो इसमें मेरा क्या दोष?

२। प्रकृति की शक्तियाँ 

क्या हमें प्रकृति की विशालता का अंदाज है? विज्ञान भी कहता है कि यहाँ तक तो हम जानते हैं, लेकिन इसके बाद और कितना? इसकी हमें जानकारी नहीं।

३। रहम के देवता

अगली बार कभी मन में ईश्वर की तलाश का प्रश्न उभरे तो किसी को माफ करके  देखिएगा, किसी रोते हुए के चेहरे पर हंसी की रंगोली बनाकर निहारिएगा, यकीनन जगदीश्वर आपकी आँखों के सामने होंगे।

 

यू ट्यूब पर सुनें : à

https://youtu.be/mrnEtYOCGJk

 

ब्लॉग  पर पढ़ें : à 

https://sootanjali.blogspot.com/2022/11/2022.html


शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022

जो दिलों को रौशन करे वही दीवाली

 

दीपावली के शुभ अवसर पर सबों को बधाइयाँ

और

दीपोत्सव के वंदन



दीपों की जगमगाहट के साथ जीवन को मिठास से भर देने की परम्परा का नाम ही दीपावली है। रौशनी के इस महापर्व की तैयारी भी शुरू हो चुकी है तो क्यों न इस बार रौशनी के पर्व की शुरुआत घर का अँधेरा मिटाने के अलावा मन का अँधेरा दूर करने से ही की जाये? इस बार उपहार के बहाने खुशियाँ बाँटी जायें? क्यों न इस बार मुँह के साथ जिंदगी को भी मीठा कर दें? क्यों न इस बार दीपों की जगमगाहट की तरह नई सोच को जीवन से जोड़ दिया जाए ताकि खुशियों को बाँटने की परंपरा जीवन में त्यौहार की तरह बस जाए।

          सवाल कई हैं और उनके जवाब भी हमारे पास हैं, हमारे खुद के पास, क्योंकि जब तक हम जिंदगी में कुछ सकारात्मक नहीं करेंगे, तब तक जीवन का अँधेरा सदा के लिए दूर करना मुश्किल है। हम इससे जीत नहीं सकते, इसलिए इस बार एक नई शुरुआत करते हैं, अँधेरे को हमेशा के लिए दूर करने की। घर की सफाई यदि हमने कर ली मगर कूड़ा मुहल्ले के किसी चौराहे पर फेंक आये, तो उससे तो परेशानी कई गुना बढ़ जाती है। हमें सोचना चाहिए कि इससे वहाँ रहने वाले लोगों को परेशानी होती है। इसलिए कचरे का सही तरीके से प्रबंधन करना सीखें।

          यदि हमारे शहर मुहल्ले में कूड़े का निस्तारण सही ढंग से नहीं हो रहा है तो इसकी शिकायत स्थानीय प्रशासन से करें और खुद भी सोचें कि कचरे का प्रबंधन कैसे हो? इस बार कोशिश करें कि गंदगी घरों से ही नहीं, बल्कि सड़कों व शहरों से भी दूर हो। एक स्वच्छ माहौल तैयार हो और खुशियों के आने का रास्ता पूरी तरह साफ हो।

          हर बार की तरह कोई कोना रोशनी से न बचने पाए, यह तो जरूर सोचा होगा। इस बार हमें यह भी सोचना चाहिए कि कहीं कोई कूड़ा-कचरा गंदगी को न बढ़ा रहा हो, साथ ही कोई हृदय अँधेरे से भरा न रहे  यह भी हमें सोचना चाहिए। इस बार रोशनी की जगमगाहट को हृदय से जोड़े रखिए, ताकि जीवन भर यह जगमगाहट हर कोने के साथ हर हृदय तक पहुँचे। सभी व्यक्तियों के साथ मुक्त हृदय से मिलिए। हृदय खोलकर मिलिए। मिठाइयाँ तो हर साल बँटती हैं, इस बार से खुशियों को बाँटने की परंपरा को और ज्यादा मजबूत और सशक्त बनाइए। सगे-संबंधी रिश्तेदारों और आस-पास के लोगों के बीच खुशियाँ इतनी बाँटी जाएँ कि घर से बाहर तक खुशियों का माहौल इस बार लंबे वक्त के लिए ठहर जाए। इस बार खुशियों को बाँटने में कोई कंजूसी नहीं हो, यह सोचकर हम दीपावली का त्योहार मनाएँ।

          मिठास जबान पर हो तो मन अच्छा हो जाता है और दिलों में हो, तो जिंदगी खूबसूरत। तो क्यों न इस बार जिंदगी को मीठा कर दिया जाए - प्रेम की बोली से, मनचाही कुछ बातों से, दुःख-सुख बाँटने के कुछ अच्छे लम्हों से, क्योंकि यह मिठास ऐसा धागा है जो जीवन में न सिर्फ मिठास ही बोलेगा, बल्कि दिलों को भी जोड़े रखेगा। नई शुरुआत जीवन की उन उलझनों को कहीं पीछे छोड़कर हो, जो लंबे समय से रुकी हुई है। नई शुरुआत उन रिश्तों की भी होनी चाहिए, जिन पर उदासी का रंग चढ़ गया है, ताकि एक नई उम्मीद के साथ फिर से जिया जा सके।

          हालांकि भारतीय दीपावली एकता के रंगों से जगमग होती रही है। इस सिलसिले को बनाए रखने के लिए और घर के माहौल के साथ पूरे परिवेश को खुशियों से भरने के लिए इसमें प्रेम की मिठास को घोलते रहना जरूरी है, ताकि विविधताओं से भरे इस देश में दीवाली हमेशा मनती रहे 'एकता की दीपावली ।'  कोई अकेला न रह जाए, इसलिए पास-पड़ोस के लोगों से मिलते रहने का बहाना ढूंढ़िए। घर की सजावट के लिए प्राकृतिक फूलों के बंदनवार, शुभ दीपावली, कंदील आदि बनाएं। इससे दीपावली पर हमारा घर प्राकृतिक एवं सकारात्मक ऊर्जा और खुशबू से महक उठेगा।

          इसके साथ ही हम ये भी सोचें कि सबसे बढ़कर अगर कोई उपहार है तो वह है जरूरत में काम आने वाली चीज। इसलिए इस बार उन घरों में भी झाँकिए, जहाँ रौशनी तो है मगर जरूरतें भी मौजूद हैं। हो सकता है हमारा कोई उपहार उन जरूरतों को पूरा करे। मिठाइयाँ तो सभी बाँटते हैं, इस बार जरूरतमंदों की जरूरत के मुताबिक उपहार बाँटिए। फिर इसकी जरूरत चाहे हमारे अपने घर के बुजुर्गों को हो, छोटों को या फिर आस-पास के माहौल में किसी को क्यों न हो, इस बार एक दीया जिंदगी की नई शुरुआत के नाम हमें जलाना ही चाहिए

(मधुसंचय पर आधारित)

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शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2022

धर्म से अर्थ तक यात्रा संस्मरण

 धर्म से अर्थ तक                                                                                                   यात्रा संस्मरण

          धर्म हमारे जीवन का एक आवश्यक अंग है। धर्म हमारे अ-नियंत्रित अर्थ और काम को नियंत्रित करती है, उस पर लगाम लगती है और हमें सत-पथ पर अग्रसर करती है। धर्म निम्न, कमजोर समुदाय को एक बड़ा आर्थिक संबल भी प्रदान करती है। एक बहुत बड़ा वर्ग धर्म के खिलाफ भी है क्योंकि उनका मानना है कि धर्म के नाम पर ही अवांछित युद्ध और नर-संहार हुए हैं। उस वर्ग का यह भी मानना है कि धर्म के नाम पर धन और संसाधनों को बर्बाद भी किया जाता है। उनका मानना है कि बड़े मंदिरों-मठों के निर्माण के बदले अस्पताल-विद्यालय-कारखाने आदि का निर्माण कर उन्नति के कार्यों में निवेश किया जाना चाहिए और जीवन के मौलिक आवश्यकताओं – रोटी, कपड़ा, मकान + इलाज, शिक्षा – आदि की समस्या के समाधान पर खर्च करना चाहिए। ऊपरी तौर पर देखने से यह तर्क बड़ा कारगर प्रतीत होता है लेकिन थोड़ा गौर करें और गहराई से जाँचे तो पाएंगे कि ये दोनों ही इल्जाम गलत और बे-बुनियाद हैं।

          युद्ध में हर-हर महादेव’, अल्लाहो अकबर का उद्घोष युद्ध की धार्मिकता का परिचायक नहीं है। हर धावक दौड़ शुरू होने के पहले अपने ईष्टदेव को याद करता है, व्यापारी धन-की-देवी को प्रतिष्ठित करता है, हर खिलाड़ी खेल प्रारम्भ होने के पहले अपने देव को याद करता है, हर विद्यार्थी परीक्षा में अपने भगवान को याद करता है, इस प्रकार वह उस शक्ति को याद करता है जहां से उसे ऊर्जा प्राप्त होती है। इतिहास उठा कर देखें तो युद्ध प्रायः सत्ता, धन और नारी के कारण हुए हैं। अंतिम दो विश्व युद्ध सत्ता और धन के कारण लड़ा गया न कि धर्म के कारण। विश्व में होने वाले धार्मिक दंगे-फसाद की जड़ भी राजनीतिक कारण हैं। ये दंगे हुए नहीं करवाए गए, एक दूसरे के विरुद्ध भड़का कर, राजनीतिक कारणों से सत्ता हथियाने या सत्ता बनाए रखने के लिए।

          धर्म के कारण न जाने कितने लोगों का घर चलता है, उन्हें दो  जून की रोटी मिलती है। पंडित-पंडों के विरुद्ध जहर उगलने वालों की भी कमी नहीं है। लेकिन क्या यही हाल दूसरे धंधों के दलालों का नहीं है। ऑनलाइन ठगी का धंधा कैसे चलता है? अच्छे और बुरे हर जगह हैं, सस्ते और महंगे कहाँ नहीं हैं? सवाल तो यह है कि आप उसे किस तरह नियंत्रित करते हैं, अच्छे और बुरे की आपको कितनी और कैसी पहचान है। आप सस्ते को रो रहे हैं या महंगे में फंसे हैं! आपको कितने सितारे की होटल या कैसी सेवा चाहिए। सबसे बड़ी बात यह है कि धर्म के नाम पर किये गए खर्च की कमाई का एक बड़ा हिस्सा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नहीं बल्कि भूमि-पुत्रों को जाता है। इसका बड़ा अच्छा उदाहरण मुझे जसीडीह में और वहाँ से आते वक्त मार्ग में मिला।

मोहन कोठी का नव निर्माण, नव निर्मित मोहन कोठी
पुनर्निर्मित गोकुल कुंज और 5 नंबर कोठी 

          

एक लंबे अंतराल के बाद हम फिर जसीडीह आरोग्य भवन पहुंचे। यह स्थान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक देवघर बाबा बैद्यनाथ धाम से मात्र 12 किमी की दूरी पर है। इसके नजदीक ही शिवजी का एक और प्रसिद्ध स्थान, बासुकीनाथ धाम है। इन दो पीठों के कारण इनके आस-पास के इलाकों में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। लोगों के सुझाव के कारण अपने परिचित मार्ग – बक्रेश्वर, सूरी, मेस्संजोर, दुमका, बसुकीनाथ  से न जा कर 

कोठियों का नव-निर्माण 
 

आसनसोल, चित्तरंजन, सरथ होकर गए। लेकिन मुझे यह रास्ता सही नहीं लगा, अतः वापसी अपने पसंदीदा मार्ग, मेस्सेंजोर-दुमका, से ही आए। जसीडीह आरोग्य भवन दशकों तक कोलकाता के यात्रियों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र रहा है। लेकिन फिर कालांतर में इसकी चमक धीरे-धीरे धुमिल हो गई। अब पूरे परिसर का नए सिरे से जीर्णोद्धार और नवीनीकरण द्रुत गति से हो रहा है और यह आशा की जा रही है कि 2023 के अंत तक यह कार्य पूरा कर लिया जाएगा। क्या यह अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर पाएगा? फिलहाल अभी इसका उत्तर नहीं दिया जा सकता लेकिन यह निश्चित है कि संस्था प्राण-प्रण से जुटी है इसे फिर से अपनी प्रतिष्ठा प्रदान कराने में। आशा और विश्वास तो है कि हमें फिर से नव-युग के मुताबिक छुट्टियाँ बिताने और स्वास्थ्य लाभ करने के लिए पूर्व-भारत में उचित व्यय पर लंबे समय तक रहने लायक एक स्थान मिल जाएगा।

          भवन के नजदीक ही पागल बाबा का मंदिर और आश्रम है। पिछले कई दशकों से यहाँ अखंड संगीतमय कीर्तन चल रहा है, 24 घंटे, बिना रुके। किसी पागल बाबा या लीलानंद ठाकुर ने इसकी कल्पना की और इसे मूर्त रूप दिया। उनके चलाये हुए ऐसे कीर्तन कई स्थानों पर अबाध रूप से चल रहे हैं। बाबा को ब्रह्मलीन हुए भी कई दशक हो चुके हैं। उन्होंने इसके लिए समुचित धन की  व्यवस्था भी की थी। लेकिन तब भी इस व्यवस्था को चलाने वाले तो इसके पीछे लगे हैं, अपना समय, कौशल लगा रहे हैं। शायद धन भी लगा रहे हों।

पागल बाबा आश्रम 

          
इस अखंड कीर्तन, धार्मिक कृत्य, के कारण मंदिर परिसर भी स्वच्छ रहता है, भक्त गण आते रहते हैं, उन के ठहरने की अच्छी व्यवस्था भी बन गई है। साथ-साथ मंदिर की अपनी गौशाला है। संस्था का विद्यालय है जिसमें छात्र-छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है। मंदिर प्रांगण में ही औषधालय है जहां बिना किसी भेद-भाव के निःशुल्क, दवा सहित, उपचार किया जाता है। ऐसी व्यवस्था देश के कई हिस्सों में हैं। कहीं कोई शिलालेख नहीं है जिसमें दाताओं के नाम उल्लखित हों। यह तो एक संस्था की बात हुई, ऐसी अनेक संस्था देश भर में कार्यरत हैं जो शांति से बिना किसी प्रकार का खुड़का किए सेवा कर रही हैं और लोगों का जीवन संवार रही है, इनका केंद्र बिन्दु है अखंड कीर्तन या ऐसा ही कोई संकल्प।

          लौटते समय हम बासुकीनाथ के नजदीक से गुजरे। दोनों तरफ पेड़ों की अनेक दुकानें और ठहरने की व्यवस्था की भरमार। सब स्थानीय लोगों की हैं। थोड़ा आगे बढ़ने पर एक बड़ी और साफ-सुथरी सी जगह देख हम चाय-नाश्ता करने रुके। मालिक बंगाल से था लेकिन उसका स्थान पूरी तरह से निरामिष था। पति-पत्नी कार्यरत थे। सब्जी-रोटी गरम और स्वादिष्ट थी। हम वहाँ काफी देर रुके खटिया पर आराम भी किए। लेकिन इस दौरान एक भी यात्री नहीं आया। सड़क पर यातायात भी नहीं के बराबर थी। बातचीत हुई। मैंने पूछा, यात्री तो है ही नहीं, गुजारा कैसे चलता है। पता चला एक लंबे समय से वे वहाँ रहते हैं। पहले गुजारा मुश्किल से चलता था। लेकिन अब वर्ष में सिर्फ एक माह काम चलता है। उस समय मुश्किल से 2 घंटे सोने मिलता है। कभी-कभी वह भी नहीं। बाबा की कृपा से उस एक माह में इतना बच जाता है कि साल भर निकल जाता है।

मामा लाइन होटल 

          

हमारे देश की अर्थ व्यवस्था टिकी हुई ही है ऐसे धार्मिक त्यौहार और अनुष्ठानों पर। देश के कोने-कोने में अलग-अलग नाम से इनका आयोजन होता रहता है और देश की बड़ी जनता इनमें उत्साह के साथ शरीक होती है। उनके मनोरंजन का साधन यही है और उनके कारण ही वहाँ के भूमिपुत्रों का गुजारा चलता है। वे अपने स्थानों पर बने हुए हैं, शहरों की तरफ नहीं दौड़ रहें हैं। यात्री इन्हीं का भोजन करते हैं, इन्हीं के घरों में ठहरते हैं और उनके कुएं का ही पानी पीते हैं। ये बिसलेरी, पिज्जा और अन्य ब्रांडेड वस्तुओं का प्रयोग करने वाले नहीं हैं।

          मुझे कई युवा मिले जिनकी राज-मार्ग पर पहली पसंद, खाट लगे ढाबा हैं। ये ढाबे एयर-कंडीशन्ड नहीं हैं, न ही वर्दी पहने बैरे यहाँ मिलेंगे। पूरा परिवार इसमें लगा होगा, एक पका रहा होगा, एक गल्ले पर बैठा होगा, एक खिला रहा होगा तो एक सफाई कर रहा होगा। युवा वर्ग का यह रुझान देश की अर्थ व्यवस्था को मजबूत कर रहा है। आप भी इनका हौसला बढ़ाइए, अनजाने में ही सही, इन्हें अपनी जमीन से जुड़े रहने में सहयोग दीजिये, देश को मजबूत कीजिये। महूसस कीजिये धर्म कहाँ-कहाँ, कैसे-कैसे सहयोग कर रहा है।

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आपने भी कहीं कोई यादगार यात्रा की है और दूसरों को बताना चाहते हैं तो हमें भेजें। आप चाहें तो उसका औडियो भी बना कर भेज सकते हैं। हम उसे यहाँ, आपके नाम के साथ  प्रस्तुत करेंगे।

यूट्यूब  का संपर्क सूत्र à

https://youtu.be/2lq2iyl85sQ



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शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022

सूतांजली अक्तूबर 2022



 सूतांजली के अक्तूबर अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-

इस अंक में हैं शिक्षा का परिणाम और उद्देश्य तथा क्या गांधी-वाद जैसा भी कुछ है?

१। पहली सीढ़ी...... शिक्षा का दायित्व....... वसंत मैंने पढ़ा

जेन गुरु की कहानी, हिटलर के गैस चैंबर की दास्तां और वसंत का आगमन

२। ....वाद पर विवाद                          मेरे विचार

मानव का मनोविज्ञान कहता है – हम जिसे सही जानते हैं, उसे सही मानते नहीं। हम जिसका आदर करते हैं, उसकी सुनते नहीं। हम मानते कुछ हैं, चाहते कुछ और, इस दोहरी जिंदगी से निजात पाना होगा।

 

यू ट्यूब पर सुनें : à

https://youtu.be/Uo7qA7aHNOA

 

ब्लॉग  पर पढ़ें : à 

https://sootanjali.blogspot.com/2022/10/2022.html