गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

मेरे विचार - हम, चुनाव और लोकतंत्र

हम, चुनाव और लोकतंत्र

तुलसीदास की रामायण क्या केवल एक भक्ति रचना है? एक आम आदमी भगवान कैसे बन सकता है यह हमें राम के चरित्र से ही पता चलता है। गांधी के राम राज्य की परिकल्पना भी तुलसीदास की ही देन है। राम एवं राम राज्य के आधार पर हम अपने दिमाग में, अपने चिंतन में एक भगवान एवं एक आदर्श राष्ट्र का निर्माण करते हैं। हम सब भारतवासियों के दिलों दिमाग में एक आदर्श राष्ट्र की रूप रेखा है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि हमें यह विशवास भी है कि वैसा राष्ट्र केवल कल्पना में हो सकता है यथार्थ में नहीं। हम यह गाते हैं कि " जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वह भारत देश है मेरा'। लेकिन यह गीत हम उस तोते की तरह दुहराते हैं "शिकारी आयेगा, जाल बिछायेगा, दाना डालेगा, फंसना नहीं" और झुंड के झुंड उस जाल में फंसते चले जाते हैं। चुनाव आने पर ये तथा कथित बुद्धीजीवी वर्ग हमें हमारी नागरिकता का अर्थ समझाते हुए हमें हमारे वोट की कीमत बताने लगते हैं और हमें अपना वोट डालने की याद दिलाने लगते हैं। जैसे कि हमारी नागरिकता पाँच वर्षों में केवल एक दिन के लिए ही आती हो। जैसे कि हमारी नागरिकता केवल एक वोट डालने तक सीमित हो। अरे आप समझते क्यों नहीं कि आप पाँचों साल, बारहों महीने, सातों दिन और चौबीसों घंटे भारत के नागरिक हैं। और जिस दिन आप यह समझ लेंगे राम राज्य अवतरित हो जायेगा। जैसे डाक्टर आपकी बीमारी पर और महात्मा आपके अज्ञान पर जीता है वैसे ही दुर्जन आपके भय, स्वार्थ एवं अलगाव पर जीता है। अगर हम जुड़ जाएँ तो ये भाग खडें हों। गांधी ने क्या किया? केवल हमारे डर को बाहर निकाल कर फ़ेंक दिया और हम सबों को एक दूसरे से जोड़ दिया। और इसका नतीजा - उस साम्राज्य में जिस में कभी सूर्यास्त नहीं होता था, सूर्य अस्त होने लगा।

हम क्यों अपना नेता संसद में ही ढूंढ रहे हैं? क्या यह आवश्यक है कि हमें नेतृत्व राज्य सभा से ही मिलेगा या फिर विधान सभा के रास्ते से ही निकल कर हमारा नेता आयेगा? हो सकता है इनमें कोई द्रोणाचार्य हो, भीष्मपितामह हो, कृपाचार्य हो। लेकिन इन सबों को कृष्ण ने मरवाया क्योंकि व्यक्तिगत रूप में ये सब चाहे जैसे हों लेकिन ये सब पापी के साथी थे। हो सकता है हमारे वर्तमान नेताओं में भी ऐसे लोग हों लेकिन उन सबों को मिटना होगा। पापियों का साथ देना वाला कभी भी जननेता नहीं बन पायेगा। हमें अपना नेता इन राजनीतिक दलों के बाहर से ही मिलेगा। और हमें उसे ढूढ़ना नहीं पड़ेगा उसका तेज, उसकी रौशनी हमें ख़ुद दिखाई देगी।

तो क्या हम चुप चाप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें? हर्गिज नहीं। हमें सचेत रहना होगा। विप्लवी विचारक Aby Hoffman ने कहा है,"Democracy is not something you believe in or a place to hang your hat, but its something you do, you participate. If you stop doing it, democracy crumbles and fails. If you participate, you win and the future is yours." अतः पाँच वर्षों में केवल एक दिन के लिए नागरिक बनने से नहीं चलेगा, हमें सतत नागरिक बने रहना होगा।

सही वक्त पर चुप्पी साधना मौत मरना है। अतः हमें मुखर होना होगा।

अन्धकार काले बादलों से नहीं, सूर्य के निस्तेज होने से होता है। अतः काले बादलों से बिना डरे सूर्य को अपना तेज बनाए रखना होगा।

जितने भी अवतार हुए, अवतरित होने से पूर्व ईश्वर के गण उनकी सहायता करने उनके साथ अवतरित हुवे थे। अतः उनके गणों की तरह हमें भी अपने हाथ और कंधे मजबूत रखने होंगे और छातियाँ चौड़ी ताकि आवश्यकता पड़ने पर हम मजबूती से हाथ थाम सकें, कन्धों पर उठा सकें और छातियों पर गोली खा सकें। और अगर हम ऐसा कर सके तो राम राज्य को कोई भी नहीं रोक सकता।



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