गुरुवार, 21 अगस्त 2014

राजस्थानी लोक साहित्य में प्रेम कथा



राजस्थानी प्रचारिणी सभा एवं भारतीय भाषा परिषद ने एक गोष्ठी का आयोजन किया है। गोष्ठी का विषय “राजस्थान के लोक साहित्य में प्रेम कथा” है। गोष्ठी में राजस्थान में प्रचलित प्रेम कथाओं पर चर्चा एवं उन पर आधारित लोक गीतों का गायन होगा। इस शृंखला में  राजस्थानी कहावतों पर एक गोष्ठी का  आयोजन पहले किया गया था।

ऐसी गोष्ठियों के आयोजन का उद्देश्य राजस्थानी भाषा, संस्कृति एवं समाज का प्रचार एवं प्रसार है।  
गोष्ठी 23 अगस्त 2014 को भारतीय भाषा परिषद के सभाकक्ष में 4.00 बजे से आयोजित है।



रविवार, 17 अगस्त 2014

ब्रेकिंग न्यूज़


ब्रेकिंग न्यूज़
आज १५ अगस्त २०१४। मोदी सरकार पाँच व्यक्तियों को भारत के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” से नवाजेगी। इन पाँचों में  से दो के नामों  का तो अनुमान लगा लिया गया है – भारत के पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी एवं स्वतन्त्रता सेनानी श्री सुभाष चन्द्र बोस।

इन दो नामों पर पत्र – पत्रिकाओं में, टीवी पर, नुक्कड़ों  पर चर्चाएं हो चुकी हैं। साक्षात्कार प्रकाशित एवं प्रचारित हो चुके हैं। विभिन्न राजनीतिक दल, उद्योगपति, सामाजिक संगठन  इसके पक्ष एवं विपक्ष में अपने अपने विचार, सहमतियाँ एवं असहमतियाँ जाहिर कर चुकें हैं। साथ ही यह  बताने से भी नहीं चूके के इन नामों के चयन में पक्षपात की गंध है। इनके अलावा अन्य तीन के नामों पर भी बहस जारी है। यानी, पूरा घमासान हो चुका है।

इसी सन्दर्भ में बोस परिवार का साक्षात्कार एवं उनका इस पुरस्कार को लेने से इंकार भी प्रसारित हो गया है। उनका विचार है कि श्री सुभाष चन्द्र बोस का व्यक्तित्व इस पुरस्कार से ज्यादा ऊँचा है अत: वे  इस सम्मान को स्वीकार नहीं करेंगे। यह एक अलग प्रश्न  है कि  उनके इस कथन का क्या अर्थ  है? क्या श्री सुभाष चन्द्र बोस का व्यक्तित्व उन सभी हस्तियों से ऊँचा है जिन्हे भारत रत्न दिया गया है अथवा वे यह चाहते हैं कि श्री बोस को एक ऐसा सम्मान मिलना चाहिए जो न तो पहले किसी को मिला और न आगे किसी को मिलेगा? ....न भूतो, न भविष्यतो!

बहरहाल पत्र पत्रिकाओं ने अपने अपने पन्ने रंग डाले। टीवी चैनलों  ने ढेर सारे साक्षात्कार प्रसारित कर दिये, और अब पूरा वातावरण शांत हो गया है। आज १५ अगस्त है। आज उन सब नामों की घोषणा हो जाएगी, और उसके साथ ही एक नया विवाद प्रारम्भ करने का मसाला मिल जाएगा। चाय की चुस्कियों पर, सुबह टहलते हुए, दोपहर को लंच-ब्रेक पर गरमा गरम बहस चलेगी। सब साँस रोके उस क्षण का इंतजार करते रहे लेकिन हाय रे दुर्भाग्य वैसा  कुछ भी नहीं हुआ। किसी के भी नाम कि घोषणा नहीं हुई। अब अखबारों को अपने पन्ने रंगने के लिये  कोई और कहानी लिखनी होगी। टीवी को नया कुछ नया सनसनी खेज गढ़ना होगा  ।


इस बीच, समाचार यह है कि  वे  पाँच मेडल्स मोदी सरकार ने नहीं बल्कि मार्च में यूपीए सरकार ने खरीदे थे क्योंकि राष्ट्रपति माननीय श्री प्रणव मुखर्जी  “राष्ट्रपति भवन संग्रहालय” में उन्हें रखना चाहते थे एवं गृहमंत्रालय के पास एक भी मेडल नहीं था। गृहमंत्रालय को ये पाँच मेडल्स जुलाई में मिले। उनमें से एक संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है एवं अन्य चार गृह मंत्रालय के पास सुरक्षित रखे हैं। खबर यह भी है कि  गृह मंत्रालय ने ३०० “पद्म” पुरस्कार के मेडल्स का ऑर्डर दिया है। पत्रकारों, संवाददाताओं, टीवी एंकरों  क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठे हो?  गरमा गरम खबर है। बस धंधे में लग जाओ, अटकलें लगाओ और लगवाओ, टीआरपी बढ़ाओ! ब्रेकिंग न्यूज़ बनाओ!  

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

राखी की राजनीति



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काठमांडू के  पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा की। मीडिया ने इसे बहुत अहमियत दी एवं इस घटना को प्रचारित एवं प्रकाशित भी किया। भारतीय संसद तक इसकी गूंज सुनाई दी।  विपक्ष ने मोदी की “पूजा” पर अंगुली उठाई और टिप्पणी की कि उनके पास पशुपतिनाथ में लंबी पूजा के लिए तो समय था लेकिन वे एक भी इफ्तार पार्टी के लिए समय नहीं निकाल सके।

यह हर्ष का विषय है की सांसदों के इस प्रश्न का मुस्लिम सांसदों ने ही विरोध किया एवं संसद के पास इससे ज्यादा महत्वपूर्ण विषय हैं, अत: इस “व्यक्तिगत विषय पर चर्चा कर संसद का समय नष्ट न करने का अनुरोध किया। उन्हों ने यह भी कहा की राजनेताओं का इफ्तार पार्टी में भाग लेना महज एक राजनीतिक कदम है। इस की शुरुवात 1970 में उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा ने की थी और काँग्रेस के साथ यह दिल्ली तक पहुँच गई। इन्दिरा गांधी ने इसे खूब हवा दी। 2009 में तो ऐसी राजनीतिक पार्टियों की इफ्तार पार्टियों के विरुद्ध फतवा भी जारी किया गया।  

यह बड़े दुख एवं दर्द का विषय है की धर्म, रीति – रिवाज एवं त्योहारों में राजनीतिक पहल बढ़ती जा रही है। भाई बहन के पवित्र रिश्तों के त्योहार, रक्षा बंधन पर अब राजनीतिक पार्टी की नजर है। यह एक सामाजिक व्यवस्था है, रीति रिवाज है, त्योहार है। इसमें कहीं भी राजनीति नहीं है।  राजनीतिक दलों से यह अनुरोध है की इसे राजनीति का जमा न पहनाएं।  इसे घर परिवार तक ही सीमित  रहने दें।