बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

कविता - छंद

                   फूल, डाली से गुंथा ही रह गया,
                        घूम आई गंध पर संसार में।

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ये ऐश के बंदे सोते रहे
फिर जागे भी तो क्या जागे
सूरज  का उभरना याद रहा
और दिन का ढलना भूल गए।

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मेरे घर की अगर उपेक्षा कर, तू जाए राही,
तुझ पर बादल बिजली टूटे, तुझ पर बादल बिजली।
मेरे घर से अगर दुखी मन हो, तू जाये राही,
मुझ पर बादल बिजली टूटे, मुझ पर बादल बिजली।
-    रसूल हमजातोव
(मेरा दगिस्तान)
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              ऐसा ही होता है, आती खुशी कभी
              उसे हटाकर एक तरफ,
                        दुख फिर से वापस आता।
-    रसूल हमजातोव
(मेरा दगिस्तान)
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अगर तुम आतीत पर पिस्तौल से गोली चलाओगे,
तो भविष्य तुम पर तोप से गोले बरसायेगा।
-     आबूतालिब
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अब उजालों को यहाँ वनवास लेना ही पड़ेगा
सूर्य के बेटे अँधेरों का समर्थन कर रहे हैं

एक भी कंदील तक जलती नहीं कोई शहर में
जुगुनुओं की रोशनी में काम चलता है शहर का
इस कदर अमृत सारे बाजार अपमानित हुआ है
बढ़ गया है भाव हर दुकान पर अब तो जहर का
लग रहा है यज्ञ नागों के लिए होगा फिर
रस-विधायक स्वर सपेरें का समर्थन कर रहे हैं
अब उजालों को यहाँ वनवास लेना ही पड़ेगा

हर तरफ आतंक ही आतंक है फैला  यहाँ पर
हर किसी के शीश पर तलवार इक नंगी खड़ी है
एक कब्रिस्तान की मानिंद है खामोश बस्ती
उल्लूओं की ही महज आवाज पेड़ों पर है जड़ी
नीड़ का निर्माण करते थे  कोयल के लिए जो
चील गिद्धों के बसेरों का समर्थन कर रहे हैं।
अब उजालों को यहाँ वनवास लेना ही पड़ेगा

जोड़ते थे जो सभी बिछड़े दिलों को
पाटते थे जो सभी की खाइयाँ
ईद, होली के मिलन त्योहार पर
जो बजाते थे मधुर शहनाइयाँ
आज वे ही लोग लेकर नाम मजहब का
बांटने वाली मुँडेरों का समर्थन कर रहे हैं
अब उजालों को यहाँ वनवास लेना ही पड़ेगा

था सुना हमने की जिनके खाँसने भर से
जागती थी किस्मत सोये ज़मानों की
और जिनके क्रोध की चिंगारियाँ छूकर
टूट जाती थीं सलाखें जेलखानों की
आज वे ही लोग पद के लोभ लालच में
देश के निर्मम लुटेरों का समर्थन कर रहे हैं
अब उजालों को यहाँ वनवास लेना ही पड़ेगा

-    गोपाल दस नीरज

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