सोमवार, 2 मार्च 2015

जरा सोचिए

जरा सोचिए !

हम सचमुच कैसे होते हैं?
उजालों में कुछ और
अंधेरे में कुछ और
रात और दिन के साथ
हम कितने बदल जाते हैं?
हम सचमुच कैसे होते हैं?

अच्छाइयों को अभी पूरा
पकड़ भी नहीं पाते हैं
तो बुराइयाँ जकड़ लेती हैं !

अंतर में बसे राम की आवाज
सुनते तो हैं, फिर
रावण के प्रभाव में
कैसे आ जाते हैं?
हम सचमुच कैसे होते हैं?

हमें कुछ बनना होगा
हमें कुछ करना होगा
आत्म-परीक्षण द्वारा
स्वयं को निहारना होगा
अंतर में बसे राम का रूप
और निखारना होगा!

अच्छाइयाँ हममें हैं
उन्हे बनाए रखना होगा
अंधेरे को उजाले की
शरण में लाना होगा
हम, जो दिन में हैं 
रात में भी बने रहना होगा।

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