बुधवार, 4 मार्च 2015

निर्मला पुतुल की लेखनी से



कहाँ गया वह परदेशी जो शादी का ढोंग रचाकर
तुम्हारे ही घर में  तुम्हारी बहन के साथ
साल-दो साल रहकर अचानक गायब हो गया?
उस दिलावर सिंह को मिलकर डूँडो चुड़का सोरेन
जो तुम्हारी ही बस्ती की रीता कुजूर को
पढ़ने-लिखने का सपना दिखा कर दिल्ली ले भागा
और आनंद भोगियों के हाथ बेच दिया
और हाँ पहचानो!
अपने ही बीच की उस कई – कई ऊंची सैंडल वाली
स्टेला कुजूर को भी
जो तुम्हारी भोली-भोली बहनों की आंखो में
सुनहरी जिंदगी का ख्वाब दिखाकर
दिल्ली की आया बनानेवाली फैक्ट्रियों में
कर रही है कच्चे माल की तरह सप्लाइ
उन सपनों की हकीकत को जानो चुड़का सोरेन
जिसकी लिजलिजी दीवारों पर पाँव रखकर
वे भागती हैं बेतहाशा पश्चिम की ओर।

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