परम्परा
परम्परा को अंधी लाठी से मत पीटो।
उस में बहुत कुछ
जो जीवित है,
जीवन-दायक
है।
जैसा भी हो,
ध्वंस से बचा रखने लायक है।
पानी का छिछला होकर
समतल में दौड़ना,
यह
क्रांति का नाम है।
लेकिन घाट
बांधकर
पानी को गहरा
बनाना,
यह परम्परा
का काम है।
परम्परा और क्रांति में
संघर्ष
चलने दो।
आग लगी है, तो
सूखी टहनियों
को जलने दो।
मगर जो टहनियाँ
आज भी कच्ची और हरी हैं,
उन पर तो तरस खाओ।
मेरी एक बात
तो तुम मान जाओ।
परम्परा जब लुप्त होती है,
लोगों के आस्था के आधार
टूट
जाते हैं।
उखड़े हुए पेड़ों के समान
वे अपनी जड़ों से छूट जाते हैं।
परम्परा जब लुप्त होती है,
लोगों
को नींद नहीं आती,
न नशा किये बिना
चैन या कल
पड़ती है।
परम्परा जब लुप्त होती है,
सभ्यता अकेलेपन के
दर्द
से मरती है।
क़लमें लगाना जानते हो,
तो
जरूर लगाओ,
मगर ऐसे कि फलों में
अपनी
मिट्टी का स्वाद रहे।
और यह बात याद रहे
कि परम्परा चीनी नहीं
मधु
है।
परम्परा को अंधी लाठी से मत पीटो।
उस में बहुत कुछ
जो जीवित है, जीवन-दायक है।
जैसा भी हो,
ध्वंस से बचा रखने लायक है।
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