सूतांजली ०१/०१ ०१.०८.२०१७
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विज्ञान ने हमारे हाथ में एक ऐसा संसाधन पकड़ा
दिया है जो हमारे लिए अनेक कार्य करता
रहता है, हम चाहें या न चाहें। इनमें से एक है हमारी बात दूसरों तक
और दूसरों की बात हमारे तक वक्त-बेवक्त
पहुंचाते रहना। इनमें ज़्यादातर वे तमाम बाते रहती हैं जो हम नहीं चाहते लेकिन
हमारे पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है। दूसरा रास्ता नहीं है। अन्यथा हम अभी तक या तो इस सुविधा को छोड़ चुके होते या ब्लॉक कर दिये होते या इसका
प्रयोग नहीं करते। कितने लोगों ने ऐसा किया? कुछ लोगों की तो मजबूरी है। वे इसका प्रयोग करना जानते नहीं। इसलिए इसका होना न होना उनके लिए बराबर है। अब, इससे आने और जाने वाली बातें दोनों प्रकार की हैं –
सकारात्मक और नकारात्मक। अच्छी बातें या
तो हम पढ़ते ही नहीं या फिर भुला देते हैं। बाकी बची बुरी बातें, उनसे होने वाली तबाही, तांडव और वैमनस्य तो हम प्राय: रोज ही सुन या पढ़ लेते हैं। सुतांजली ने सोचा
कि इस आधुनिक पद्धति को छोड़ हम अपनी प्राचीन पद्धति को अपनाएं। देखें इसका
क्या असर होता है? बातें इतनी ज्यादा न हो कि पढ़ी ही न जाय, इतनी कम भी नहीं
कि ध्यान ही न जाए। और इस लिए
प्रारम्भ हुई सुतांजली। । सूते को अंजलि भर बांटना, जिससे मनका मनका जोड़ कर माला पिरो
सकें। यही है सुतांजली।
कोहरे से एक अच्छी बात सीखने मिलती है कि जब
जीवन में रास्ता न दिखाई दे रहा हो तो बहुत दूर देखने की कोशिश व्यर्थ है। एक एक कदम चलते चलो, रास्ता खुलता जाएगा ....
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मैंने
पढ़ा
स्वच्छता की ओर एक कदम
विदेशों में घूम कर आए भारतीय विदेशी स्वच्छता और देशी
गंदगी की बहुत बात करते हैं। देश में फैली गंदगी को ध्यान में रखते हुवे सरकार ने
“स्वच्छता अभियान” की शुरुआत की और देश वासियों से सहयोग का अनुरोध भी किया। हमने
सरकार के इस पहल पर टीका-टिप्पणी तो बहुत की लेकिन क्या कभी यह भी सोचा कि हमने इस
ओर क्या कदम उठाया?
फरवरी के दूसरे सप्ताह में खानपाड़ा, गुवाहाटी में स्वच्छता पर आयोजित असम
सम्मेलन के उदघाटन के अवसर पर जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद-ए-मदनी
ने कहा,”हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में शौचालय की शर्त को मुसलमानों की शादी के लिए
अनिवार्य कर दिया गया है और जल्द ही देश के अन्य सभी राज्यों में लागू किया जाएगा।“ मौलवियों और मुफ़्तियों ने फैसला किया है कि वे ऐसे मुस्लिम लड़कों का निकाह
नहीं कराएंगे जिनके घरों में शौचालय नहीं है। पूर्व राज्य सभा सदस्य मदनी ने कहा
कि उन्हे लगता है कि देश के सभी धर्मों के
धार्मिक नेताओं को भो ऐसा फैसला करना चाहिए।
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स्वदेश, इंदौर, २० फरवरी २०१७ का अंश |
मैंने सुना
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मुझे गांधी
क्यों प्रेरित करते हैं?
- कुमार प्रशांत
(१.५.१७, भारतीय संस्कृति संसद अनौपचारिक विचार विमर्श)
कठिन काम
को करना आपकी हिम्मत का काम है। उसे करना एक चुनौती होती है। लेकिन एक
असंभव कार्य को संभव बनाने का प्रयत्न करना आपकी मूर्खता का प्रमाण है। जो
कार्य संभव नहीं है वह कार्य आप करने की कोशिश कर रहे हैं। यानि, आप एक ऐसे समाज में सुख और शांति खोजने
की कोशिश कर रहे हैं जिसका कोई भी सिरा सुख और शांति से जुड़ा हुआ नहीं है।
उसमें आप एक कल्पना कर रहे हो कि कुछ तो ऐसा हो जाएगा कि आप एक अच्छा जीवन जीने
लगेंगे, एक शांति का जीवन व्यतीत करने लगेंगे। जिसको आनंद
कहते हैं, वह आनंद का जीवन मिल जाएग। मैं परेशान इस बात से
हूँ।
यक्ष ने युधिष्टिर से पूछा कि दुनिया का सबसे
बड़ा आश्चर्य क्या है? तो उसने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य
यह है कि हर आदमी यह जानता है कि उसका अंत होने वाला है लेकिन वह जीने की कोशिश
में लगा है। यही दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है। कुछ इसी तरह का यह सवाल है कि आप
जो भी चीज खोज रहे हो समाज में, चाहे जिस भी नाम से खोज रहे हो, चाहे जिन भी सवालों के द्वारा खोज रहे हो वह है नहीं और आप
पाने की कोशिश में लगे हो। और बड़ी आशा से लगे हुवे हो। किसी को लगता है कि बहुत सा पैसा कमा लेंगे तो
सुख मिल जाएगा। कुछ सोचते हैं कि बहुत सा ज्ञान कमा लें तो उसमें से कुछ निकल
आयेगा। नये नये आविष्कार हो रहे हैं। नई-नई तरह-तरह की तकनीक सामने आ रही हैं वे
हमारा काम बहुत आसान कर रही हैं। जिस काम के लिए बड़ी मशक्कत लगती थी वह काम अब बड़ी
आसानी से हो रहा है। लेकिन जो हो रहा है उसमें से वह चीज नहीं निकल रही है जो
हम चाहते थे। यह अपने आप में ही एक बड़े कौतुक का सवाल है। तब, मेरी चिंता इस बात पर है कि यह बात
कैसे समझी जाए और कैसे समझाई जाये? समझना एक चीज़ है और समझाना एक अलग चीज़ है।
मैं एक बात कहता हूँ अपने साथियों से कि “तुमने कोई बात समझ ली है” इसकी कसौटी क्या है? “हाँ हाँ हम यह बात समझ गए हैं। गांधी का क्या विचार है हम समझ गए है।” लेकिन
आप समझ गए हैं इसकी कसौटी क्या है? इसकी एक बहुत साधारण सी कसौटी है। क्या यह बात तुम दूसरे को समझा सकते हो? अगर तुम दूसरे को समझालोगे तो तुमने बात समझ ली है। और नहीं तो, एक गजल है:
कभी कभी हमने भी
ऐसे अपना दिल बहलाया है,
जिन बातों को हम खुद नहीं समझे
औरों को समझाया है।
ज्यादा कर हम ऐसी ही बाते करते हैं। ज़्यादातर
हम उन बातों को समाज के नये नवजवानों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं जिनकी
समझ हमको ही नहीं होती है। एक, हमारी भाषा भी काम नहीं करती है। दूसरे, हमारे पास तथ्य नहीं है उन बातों को करने के लिए, हम उनकी भी बातें करते
हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जो बात तुम समझा रहे हो उसमें तुम्हारा खुद का विश्वास
नहीं है। तो तुम्हारी बात तुरंत नकली हो जाती हैं।
ये सारी
चीजें हैं जिनके बीच में से तुमको खोजना है, जिसे हम चाहते हैं। तो गांधी वान्धी को छोड़ कर अगर हम अपनी चिंता थोड़ी ज्यादा
करने लगें तो शायद हम अपने सवालों के जवाब
के नजदीक पहुँच पायेंगे। क्योंकि एक बड़ा लंबा जीवन आप सब लोगों ने जीया है, अपनी
अपनी तरह से। अपने अपने विचार, अपने साधन, अपना परिवार। इन सबों को देखते हुवे एक
ऐसी जगह पहुँच गए हैं, हम सभी लोग,
सामूहिक रूप में जहां हम न खुद को सुरक्षित पा रहे हैं न अपने परिवार को। न अपने
खुद के बारे में विश्वास के साथ कुछ कह पा रहे हैं, न परिवार
के बारे में।
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