शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

अहिंसा का पराक्रम और शौर्य

आप पहचानते हैं चंद्रशेखर आजाद को, भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, राजगुरु और इन जैसे अनके स्वतन्त्रता संग्रामियों को। उनके बलिदान को याद करते हैं और उनके स्मारकों पर फूलों की माला भी चढ़ाते हैं। लेकिन हमने, विद्यालय के छात्र, जिनकी अभी तक मूंछे भी नहीं आई हैं, बापू के आवाहन पर अहिंसा पर डटे रह कर अपना बलिदान दिया उसे भूल गए? मैं, उमाकांत प्रसाद सिन्हा, राम मोहन रॉय सेमीनरी कक्षा ९ का छात्र। मुझे उस दिन का एक एक क्षण याद है। ८ अगस्त को बापू ने भारत छोड़ो का नारा दिया। करेंगे या मरेंगे के संकल्प के साथ अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के आवाहन पर १४ अगस्त १९४२ के दिन, हम पटना में विद्यालय के ६००० छात्र, सुबह सुबह पटना सचिवालय के सामने खड़े थे। हमारा एक ही उद्देश्य था, सचिवालय पर तिरंगा फहराना, बिना किसी जान व माल की हानि के। जिलाधीश आरचर के नेतृत्व में ब्रिटिश इंडियन मिलिट्री पुलिस हमें रोकने खड़ी थी और उनके सामने हम निहत्थे विद्यार्थी तिरंगा फहराने के लिए कटिबद्ध। इस जद्दोजहद में दोपहर के दो बज गए। लेकिन हम टस से मस नहीं हुए। आरचर परेशान। छात्रों ने न पुलिस पर हमला किया न किसी भी प्रकार की हिंसात्मक कार्यवाही। आखिर आरचर से रहा नहीं गया। तंग आकर उसने गोली चलाने का हुक्म दिया। लेकिन यह क्या? बिहार और राजपूत पुलिस ने अहिंसा पर अडिग निहत्थे विद्यार्थियों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया।  आरचर ने विवश हो कर उन्हे हटा कर गोरखा सैनिकों को खड़ा किया।

झण्डा मेरे, उमाकांत प्रसाद सिन्हा के  ही हाथ में था। ठाँय ..... बंदूक की गोली सनसनाती हुई मेरे सीने को चीरती हुई चली गई। मैं लड़खड़ा गया।  भारत माता की जय...देखो झण्डा गिरने न पाये।   मैं गिर पड़ा लेकिन हमारा झण्डा नहीं गिरा मेरी ही सहपाठी रमानन्द सिंह ने उसे थाम लिया। और एक गोली चली – ठाँय। जय हिन्द। रमानन्द गिर पड़ा और इस बार झंडे को पकड़ा कक्षा १०  पटना कोलेजियट विद्यालय के छात्र सतीश प्रसाद झा ने।  फिर एक गोली ........सतीश गिर पड़ा लेकिन गिरते गिरते झण्डा थमा दिया बिहार राष्ट्रीय कॉलेज के २रे वर्ष के विद्यार्थी जगतपति कुमार को। जगतपति के चेहरे पर जरा भी भय नहीं, दृड़ निश्चय के साथ झण्डा हाथ में लिए आगे बढ़ा। और तभी ढिशूम ....... अब झंडे को थामा देवीपद चौधुरी, मिल्लर हाइ इंग्लिश स्कूल के कक्षा ९ के छात्र ने। गोली भी खाएँगे, झण्डा हम लहराएँगे।  और हाँ, ठाँय ..... उसके सीने को भी एक गोली भेदती हुई चली गई। उसके पीछे खड़ा राजेंद्र सिंह जरा भी नहीं घबराया और झंडे को पकड़  लिया। महात्मा गांधी की जय..... ठाँय, और राजेंद्र भी शहीद हो गया। अब बारी थी पुनपुन इंग्लिश हाइ स्कूल के कक्षा ९ के छात्र राम गोविंद सिंह की। उस झंडे को हाथ में उठाए दौड़ पड़ा अपने लक्ष्य की तरफ। ठाँय.... अगली गोली ने उसे भी नहीं छोड़ा। देखते ही देखते ७ छात्र शहीद हो गए। लेकिन छात्रों ने हार नहीं मानी। देश और गांधी की लाज रखते हुए,  अहिंसा पर डटे, छात्रों ने आखिरकार सचिवालय पर झण्डा फहरा ही दिया। यह है दास्तान विद्यालय के ७ छात्रों की जिन्होने कुर्बानियाँ दी और अमर हो गए।


जहां स्वतन्त्रता के लिए अनेक क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया वहीं बापू के आवाहन पर, अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए, अपने सर्वस्व – जान, माल एवं ज्ञान को लुटाने वाले लाखों में हैं। उनके बारे में केवल उनके परिवार, गाँव वाले ही जानते हैं। उनका नाम इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है। न कवियों ने उनके गीत गए, न कहानिकारों ने उनकी कहानी लिखी, न उनका स्मारक बना, न सभाएं हुईं, न तमगे मिले, न पेंशन, न स्वतन्त्रता संग्रामी का खिताब। एक व्यक्ति के आवाहन पर लाखों की संख्या में अहिंसात्मक तरीके से अपना सर्वस्व लुटाने की ऐसी मिसाल विश्व इतिहास में कहीं नहीं है।

शहीद स्मारक, पटना

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