शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

एक बार आजमाइए

एक बार आजमाइए                                                                      

कहीं आप भी अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए ऐसा ही कोई रास्ता तो नहीं अपना रहे?

इसके बावजूद कभी न कभी तो यह हो ही जाता कि एकाध फ़ाइल उन्हे निपटानी पड़ ही जाती। तब वे अपने नोट में इतने सारे
·        यदि,
·        परन्तु,
·        लेकिन,
·        अर्थात,
·        जैसा कि चाहा गया है,
·        गो कि,
·        जहां तक इसका प्रश्न है तो,
·        अनुमान है,
·        जैसा प्रतीत होता है,
·        सम्भव है,
·        विवेचना के बाद ही
जैसे वाक्य डाल देते कि उस नोट के आधार पर कोई निर्णय लिया जाना असम्भव होता या जो लेता वही फंस सकता था।                                                       (ज्ञान चतुर्वेदी से प्रेरित)


जिम्मेदारियों से घबराएँ नहीं। उन्हे टालने के बदले आगे बढ़ कर लें। ज़िम्मेदारी ले नहीं सकते तो कम से कम उनका साथ दीजिये, जो जिम्मेदारियाँ लेते हैं। टांग खींचना बहुत आसान है, लेकिन बोझ उठाना बहुत कठिन। टांग खींचना अशान्ति उत्पन्न करता है और बोझ उठाना शांति। एक बार आजमाइए।  



कोई टिप्पणी नहीं: