एक जमींदार ने अपने बगीचे
की देखरेख ले लिए दो माली रखे। दोनों क्रम से एक-एक दिन छोड़ कर आते थे। दोनों में
बगीचे के रखरखाव पर मत भेद था। एक जमीन जोतता तो दूसरा अगले दिन आकर उसका काम बिगाड़
देता। ऐसा महीनों तक चलता रहा। बगीचा उजाड़ पड़ा रहा। राजनीतिक दल आज ऐसा ही कर रहे
हैं।
मंत्री का पद जनता की सेवा
के लिए है न कि ताकत पर अभिमान करने के लिए। जब सत्ता का प्रयोग समाज सेवा के लिए
न करके निजी सुख के लिए या प्रतिष्ठा बनाने के लिए किया जाता है तो पूरे समाज में भ्रष्टाचार
फैलता है, विकास रुक जाता है और नैतिक पतन होता है। मंत्री पद कोई भोग विलास नहीं।
उसे त्यागना कोई बड़प्पन नहीं बल्कि अपने पवित्र कर्तव्य को छोड़ना है। किसी को
मंत्री पद प्रदान करने का मतलब ही उससे सर्वोत्तम सेवा की मांग करना है, न कि उसे पुरस्कृत करना।
जनसेवा के लिए किसी भी
गद्दी या दर्जे की आवश्यकता नहीं है। बिना किसी औपचारिक पद के
कहीं बेहतर सेवा कर सकते हैं जैसा कि महात्मा गांधी ने किया। अक्सर शासक
सुधारक नहीं होता और सुधारक शासक नहीं होता।
निरक्षरता के कारण जनता का
मुख्य प्रेरणा स्त्रोत उसकी भावना होती है। अपने छोटे छोटे फ़ायदों के लिए राजनीतिक
दल व धार्मिक नेता जनता की भावुकता का गलत इस्तेमाल करते हैं। अधिकांश नेता सच्ची
सेवा की शिक्षा से वंचित हैं। दूसरे व्यवसायों की भांति हमें अपने नेता को
भी शिक्षा देने की एक प्रणाली बनानी होगी। ज़िम्मेदारी का भार उठाने के लिए
एक न्यूनतम स्तर की सामाजिक शिक्षा और परिपक्वता आवश्यक है। ‘वसुधैव
कुटुंबकम’ – ‘सम्पूर्ण विश्व एक परिवार
है’ की भावना को फैलाने की अभी बहुत आवश्यकता है। मंत्रियों
को सही-गलत को पहचानने में सक्षम होना पड़ेगा।
आज कल किसी उच्च ध्येय के
बजाय एक सामान्य राजनीतिक विरोधी का सामना करने के लिए राजनीतिक गठबंधन बन रहे
हैं। इन गठ बंधन का मूल उद्देश्य भय, घृणा और स्वार्थ है। ऐसी
राजनीति का अंत होना चाहिए।
श्री श्री रवि शंकर से
प्रेरित एवं कल्पवृक्ष से संकलित
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