शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2018

संस्कार – कहाँ और कैसे

संस्कार देने और लेने की अलग से कक्षा नहीं होती। यह न पाठशाला में पढ़ने की है न घर पर।  न विश्वविद्यालय में सीखा जा सकता है  न पुस्तकालय में प्राप्त है। न बचपन में सीखते हैं, न जवानी में। न मंदिर में, न मस्जिद-गिरजा-गुरुद्वारा में। न घाटियों में, न पहाडों  की चोटियों पर। न कन्दराओं में, न नदी के किनारे । इनमें से कहीं भी और किसी से भी नहीं लेकिन इन सबों से और हर किसी से। बशर्ते हमारी आँखों को देखना आए और कानों को सुनना आए। मस्तिष्क में ग्रहण करनी की शक्ति होनी चाहिए, उसे स्वीकार करना आना चाहिए।  शायद इसीलिए कहा जाता है कि हर समय  शुभ बोलना चाहिए, निर्माण की बात करनी चाहिए। क्या पता कब कौन कहाँ संस्कारित हो जाए?

राजेंद्रलहरिया अपनी एक पुस्तक में लिखते हैं:  
पाठशाला का वह मेरा प्रथम दिन था। टाटपट्टी की खाली जगह की ओर इशारा करते हुए मास्साब ने कहा, “यहाँ बैठो” , और पूछा, “क्या नाम है तुम्हारा”?
“किसना”, मैंने धीरे से अपना नाम बताया।
“किसना .....नहीं.....” वे बुदबुदाये थे, “किशनलाल......रामकिशन.....” फिर मेरी तरफ देख कर कहा था, “किसना नहीं, तेरा नाम  रामकिशन है आज से!.....  क्या है”?   वे मेरी ओर देख रहे थे।
“रामकिसन” मैंने जैसे तैसे उच्चारा था।
“रामकिसन नहीं, रामकिशन! श सीटी वाला!” उन्होने कहा था।
आगे चलकर मुझे पता लगा था कि मास्साब का उस दिन का सिटी वाला ही हिन्दी भाषा विज्ञान में ‘तालव्य’ श कहलाता है।

अनुपममिश्र के संपर्क में आए हर व्यक्ति ने यह अनुभव किया है कि वह पारस के संपर्क में आ गया है। और वे इस पारस की अनुभूति अपनी करनी से करवाते थे। एम्स के डॉक्टर प्रसून चक्रवर्ती अनुपम मिश्र को याद करते हुए लिखते हैं-
उनसे मिलने और उन्हे जानने के बाद मुझे अपने अस्तित्व का अंदाजा हुआ। हम कितने पानी में हैं, इस 
अनुपम मिश्र
ब्रह्मांड में कितनी लघुतम स्थिति है हमारी, और ऐसा उन्होने कह कर नहीं बल्कि अपने जीने से, व्यहवार से जताया। उस दिन उनका पेट-स्कैन करना था। इसके लिए मरीज को टेबल पर लिटाना पड़ता है। एक के बाद एक मरीज को हम लिटाते जाते हैं और स्कैन करते जाते हैं। अनुपमजी से पहले जिस मरीज को हमने लिटाया था, उसने टेबल से उतरते हुए उस पर बिछी चादर को नीचे गिरा दिया था। अनुपमजी आए तो पहले उस गिरी चादर को उठाई, प्रेम से उसे हिलाया, ठीक से फैला कर टेबल पर बिछाया और चारों कोने बराबर कर, उस पर लेट गए। इस काम को करने के लिए जो आदमी था, उसके आने का इंतजार नहीं किया। उनका स्कैन हो गया तो टेबल से नीचे उतरते ही पहले चादर ठीक की, सलवटें हटाई और संभाल कर बिछाया और फिर बाहर गए। ...... उससे वातावरण पर कैसा असर होता है!
   

अपनी कथनी और करनी पर नजर रखिए। आप सबसे पहले अपने ही परिवार को संस्कारित कर रहे हैं जिनमें हैं आपके बच्चे, आपके पति / पत्नी, भाई बहन आदि। और उसके बाद वे सब जिनसे आप सम्पर्क में आते हैं।  


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