अपनी तकदीर
हम लिखा कर लाये हैं या हम खुद लिखते हैं? “गुड लक” और “बैड
लक” क्या है? किसी और के द्वारा हमारी ज़िंदगी में धकेली हुई
घटना या फिर ये हमारी खुद की कमाई है? प्राय: हम ऊपरी तड़क -
भड़क, शान - शौकत, बढ़ बोली बातों में भ्रमित होकर सच्चाई समझ ही नहीं पाते हैं?
हमारा गुड
लक हमारे या हमारे पूर्वजों और परिवार
वालों के सत्कर्मों का ही फल होता है। और ठीक इसके विपरीत उनके दुष्कर्मों का फल
हमारे बैड लक के रूप में ही हमारी जिंदगी में आता है।
एक धन बटोर
कर खुश होता है। दूसरा धन बाँट कर खुश होता है। वह यही मानता है कि वह धन उसका
नहीं, देने वाले ने किसी और को देने के लिए ही उसे दिया है। दोनों हाथों से
समेटने वाले की तुलना में दोनों हाथों से बाँटने
वाला ज्यादा आनन्द पाता है। दोनों अपनी तकदीर खुद ही लिखते हैं।
एक गरीब
लकड़हारा दिनभर मेहनत करता, इसके बावजूद उसे आधा पेट भोजन भी नहीं मिलता। एक दिन उसकी मुलाक़ात एक
साधु से हुई, उसने पूछा कि महाराज, आप
तो सबकुछ जानते हैं, मुझे मेहनत और ईमानदारी के बाद भी आधा
पेट भोजन मिलता है, क्यों? साधु ने
आँखें बंद कर कुछ सोचा फिर कहा, “तुम अपने आधे पेट के भोजन में से एक रोटी रोज किसी भूखे को दान कर दिया
करो”। गरीब लकड़हारे को आश्चर्य हुआ, सोचा आधे पेट का भोजन, उसमें भी एक रोटी दान करना बड़ी कठिन बात है। लेकिन उसे साधू पर भरोसा था, सो उसने एक रोटी किसी गरीब को देना का नियम बना लिया। आधे पेट वैसे ही
भूखे रहने की आदत थी सो एक रोटी और कम सही। कुछ दिन इसी प्रकार बीत गए। एक दिन
लकड़हारा जंगल में लकड़ियाँ काट रहा था, तब उसे अचानक कुछ
चन्दन के पेड़ मिल गए। वह चंदन की लकड़ियाँ काट कर, उसे शहर
में लाकर बेचने लगा। उसके पास इतना धन हो गया कि उसे आधे पेट भोजन करने की जरूरत
नहीं रही। मगर भोजन करने के पहले वह भूखे
मनुष्यों को भोजन कराना नहीं भूलता। एक दिन उसकी मुलाक़ात फिर उसी साधू से हो
गई। उसने साधू को सिर नवाया और फिर बोला, “महाराज, आपकी कृपा से मेरी सारी गरीबी दूर हो गई, अब मैं भर
पेट भोजन करता हूँ”। साधू मुस्कुराए और बोले, “भाई, इसमें मेरी कोई कृपा नहीं है, दरअसल तुम भूखों को
भोजन देते हो, उनके आशीर्वाद का ही नतीजा है कि तुम्हारी
लकड़ियों में चंदन की सुगंध आ जाती है
हमने जो
दिया वो हमें मिला, जो हमने रखा वो हमने
गंवाया।
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