शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

सत्य बोलना चाहिये – हाँ? या ना?

एक यूनिवर्सिटी में एक धर्मगुरु ने आकर विद्यार्थियों को कुछ पर्चे बांटे। एक प्रश्नावली (क्वेस्चनेयर) था और उसमें पूछा गया था कि तुम दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक कौन सी समझते हो? विद्यार्थियों की सुविधा के लिए विभिन्न भाषाओं की अनेक पुस्तकों का नाम भी संलग्न किया गया था। लेकिन विद्यार्थियों को इस बात की छूट थी कि वे उनके अलावा भी किसी भी पुस्तक का नाम लिख सकते हैं।  किसी ने लिखा बाइबिल, किसी ने लिखा कुरान, किसी ने लिखा झेंदावेस्ता, किसी ने लिखा गीता, किसी ने लिखा ताओ। किसी ने ऑस्कर वाइल्ड तो किसी ने रवीन्द्र नाथ टैगोर का नाम दिया तो किसी ने लिखा शेक्स्पीयर का। यानि जिसकी जो पसंद थी उसने उसका नाम दिया। सारे इकट्ठे करके उसने उन विद्यार्थियों से पूछा कि तुमने जो-जो किताबें लिखीं, इनको तुमने पढ़ा? उन्होने कहा, “नहीं, हमने पढ़ा नहीं है, लेकिन ये श्रेष्ठ किताबें हैं। इन्हे पढ़ता कोई भी नहीं है। जो किताबें हम पढ़ते हैं, वे दूसरी हैं। पर उनके बाबत आपने जानकारी नहीं चाही। आपने पूछा था, दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक”।

असल में, श्रेष्ठ किताब की परिभाषा यही है कि जब उस किताब का नाम सब को पता हो जाए और कोई उसे न पढ़ता हो, तो समझना कि वही श्रेष्ठ किताब है। जब तक उसे कोई पढ़ता हो, तब तक वह श्रेष्ठ नहीं है, पक्का समझना।

जहां व्यवस्था की जरूरत है, वहाँ कोई व्यवस्था नहीं है जहां पुलिस की जरूरत है चोरी रोकने के लिए, वह समाज चोरों का है। और जहां कारागृहों की जरूरत है अपराध रोकने के लिए, वह अपराधियों की जमात है। लेकिन जहां कोई कारागृह नहीं हो, और जहां कोई पुलिस वाला खड़ा नहीं करना पड़ता हो? जहां साधू-संतों को लोगों को यह समझाते फिरना नहीं पड़े  कि चोरी मत करो, बेईमानी मत करो, यह मत करो, वह मत करो? जहां इसकी चर्चा ही नहीं चलती वहीं व्यवस्था है वही ईमानदारों की जगह है, वही सज्जनों का समाज है।

मुझे याद है, भारत में  टीवी आए कुछ वर्ष हो चुके थे। हमें टीवी खरीदना था। दोस्तों से बात करने पर पता चला कि भारत सरकार की  ईसी (EC) टीवी सबसे बढ़िया है। लेकिन कइयों ने शंका खड़ी कर दी, सरकारी टीवी है सर्विस का भरोसा नहीं। बात जँची। एक मित्र जिसके पास ईसी टीवी थी संपर्क किया। उसने टीवी की प्रशंसा की। लेकिन जब सर्विस बाबत पूछा तब उसने बताया कि उसे इस बाबत उसे कोई जानकारी नहीं है क्योंकि पिछले पाँच वर्षों में उसे किसी भी प्रकार की सर्विस की आवश्यकता नहीं पड़ी। अगर वस्तु अच्छी हो तो सर्विस की क्या आवश्यकता?

“सत्य बोलना चाहिए?” 
हाँ” 
“बोलते हो” 
“....... !!!” 


क्यों, सत्य बोलना मजबूरी है या मजबूती ?

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