वसंत।
ऋतुराज वसंत। कवियों, लेखकों, गायकों, साहित्यकारों
ने न जाने कितने पन्ने रंगे होंगे इस वसंत की महिमा के गायन में। हमने भी, चाहे जहां भी रहें हों वसंत का अनुभव किया है, देखा
है। लेकिन जब वसंत धीरे धीरे हमारे चारों
तरह, दबे कदमों अवतरित होता है तो उसका शोर आँख से और नाक
में सुनता है। उसके आगमन से हम अछूते नहीं रह पाते। वसंत को देखना और वसंत को आते
हुए देखना दो अलग अलग
अनुभव हैं। पतझड़ के बाद श्री हीन हुई प्रकृति, आहिस्ते आहिस्ते अंगड़ाई लेते हुए रंग बदलने लगती है। चारों तरफ हरियाली
छाने लगती है। घास, फूस, पत्तों को रंग
बदलते देखना, कलियों को पनपते हुए निहारना और फिर उसका फूल
बनना, पूरा वातावरण इंद्रधनुषी हो उठता है। पूरी प्रकृति मचलते
हुए ऐसे उठ खड़ी होती है जैसे सोया बच्चा उठ कर माँ के सहलाने से अंगड़ाई लेते हुए आंखे
खोल मुस्कुराता हुआ माँ से लिपट जाता है। प्रात: चिड़ियों की किल्लोल से आँखें खुलती
हैं आर रात झींगुर की लोरियाँ सुला देती हैं। पूना से लगभग 45
किलोमीटर की दूरी पर, कोलवान के नजदीक, अध्यात्म,
संस्कृति और अध्ययन के इस केंद्र चिन्मय विभूति (चिन्मय आश्रम) में मैं इसी वसंत के आगमन को देख
देख कर आह्लादित हो रहा हूँ।
चिन्मय विभूति में वसंत |
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एकड़ पर बने इस केंद्र के प्रवेश द्वार पर ‘मारुति मंदिर’’ से ही इस केंद्र का निर्माण
कार्य प्रारम्भ हुआ। केंद्र सहयाद्रि पर्वत शृंखला की गोद में बसा हुआ है। तीन
दिशाओं में पर्वत शृंखला और चौथी खुली हुई
दिशा जैसे कि प्रवेश स्थान हो। ऐसा लगता है जैसे सहयाद्रि ने चिन्मय विभूति को
अपनी अंजुली में भर रख
हो। रोज प्रात: पूर्व दिशा से इसी सहयाद्रि के पीछे से धिरे
से झाँकता हुआ सूर्य चिन्मय विभूति में प्रवेश करता है। और फिर हर संध्या पश्चिम
में इसी सहयाद्रि के पीछे विलीन हो जाता है। केंद्र के अंतिम छोर की पहाड़ी पर
विराजमान हैं विघ्नहर्ता ‘प्रणव गणेश’। दोनों मंदिरों के मध्य की दूरी है 1.5
कि.मी.। दोनों ही मंदिरों का प्रांगण विशाल है और यहाँ की पूजा, अर्चना, आराधना, आरती वैदिक
तरीके सम्पन्न होती है। इस केंद्र में एक से दो हजार व्यक्ति तक एक साथ रह सकते
हैं, विचार विमर्श कर सकते हैं, सभा और
राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन कर सकते हैं। यह केंद्र मिशन के अन्य सभी
केन्द्रों से भिन्न है। इसका उद्देश्य साथ रहना नहीं बल्कि नई दृष्टि से देखना, नए युवा-स्वामी तैयार करना और नई स्फूर्ति पैदा करना है।
प्रणव गणेश मंदिर से सूर्योदय एवं सूर्यास्त |
मारुति एवं प्रणव गणेश मंदिर |
अत्याधुनिक
सुधर्मा (सभागार) में 1000 व्यक्ति
बैठ सकते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम, कार्यशाला, सेमिनार आदि का आयोजन पूरी सुविधा और बिना किसी व्यवधान के सुचारु रूप से
किया जा सकता है। ध्वनि प्रणाली (sound
system)
बोस का है। बिजली जाने की अवस्था में पूरा सुधर्मा जेनेरेटर से चलाया जाता है। मंच, मंच की बत्तियाँ, माइक एवं अन्य उपकरण के साथ यूपीएस
(UPS) लगा
होने के कारण किसी भी कार्यक्रम में कोई व्यवधान नहीं होता। इस बड़े सभागार के
अलावा दो और छोटे सभागार ‘विनय मंदिर’ 200
और ‘विद्या मंदिर’ 80
व्यक्तियों के लिए हैं।
इस केंद्र
में आयोजित शिविर में शिक्षा, ज्ञान तथा प्रशिक्षण के लिए आने
वाले प्रतिनिधियों एवं मेहमानों के आवास की समुचित एवं सुंदर व्यवस्था है। कमरे हवादार
हैं तथा भरपूर प्राकृतिक रौशनी है । कमरे बड़े बड़े हैं जिनमें 5
व्यक्तियों तक के एक साथ रह सकने की व्यवस्था है। कमरों की बनावट ऐसी है कि बिना
एक
दूसरे की प्रतीक्षा किए कई लोग एक साथ तैयार हो सकते हैं। गरम पानी की व्यवस्था सौर-ऊर्जा से है और उबलता हुआ मिलता है। सभी आवासीय घरों के नाम भारत की महान माताओं के नाम पर हैं यथा - अंजनी, कौसल्या, यशोदा, सुमित्रा, देवकी, वैदेही, सुमित्रा आदि।
अत्याधुनिक यंत्रो से सुसज्जित सुधर्मा, सभागार |
आवास |
दूसरे की प्रतीक्षा किए कई लोग एक साथ तैयार हो सकते हैं। गरम पानी की व्यवस्था सौर-ऊर्जा से है और उबलता हुआ मिलता है। सभी आवासीय घरों के नाम भारत की महान माताओं के नाम पर हैं यथा - अंजनी, कौसल्या, यशोदा, सुमित्रा, देवकी, वैदेही, सुमित्रा आदि।
अन्नश्री |
मिलता है। सबसे बड़ी बात रसोई घर को पूरी ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती है, यानि सौर-ऊर्जा का प्रयोग होता है। पूरे केंद्र में कहीं से किसी प्रकार का तरल या ठोस कूड़े का निष्कासन नहीं होता है। पूरा परिसर आवास, भोजनालय, कार्यालय, रास्ते, खुली जगह सब साफ सुथरे और स्वच्छ हैं। कहीं कोई गंदगी नहीं दिखती।
इनके अलावा
इस केंद्र में हैं :
1. चिन्मय
जीवन दर्शन – जिसमें चिन्मय मिशन के प्रवर्तक, गुरुदेव स्वामी चिन्मयानंदजी का सम्पूर्ण जीवन संवादात्मक (interactive) चित्रों एवं 10’X15’
के मुराल के जरिये दर्शाया गया है। स्वामीजी की मोम तथा क्रिस्टल की प्रतिमा भी
है।
2. स्वानुभूति
वाटिका निश्चित रूप से वाटिका ही
है लेकिन इस वाटिका के नाम में स्वानुभूति का विशेष महत्व है। यह कोई उद्यान मात्र
नहीं है बल्कि खुद का खुद से परिचय कराने का प्रयत्न है। इस के बारे में बताया नहीं
जा सकता अनुभव ही किया जा सकता है। आयें, देखें और अनुभव
करें।
3। चिन्मय
नाद बिन्दु – में भारतीय शास्त्रीय संगीत, नृत्य तथा गायन की शिक्षा
दी जाती है। इसका उद्देश्य है – ‘स्वर से ईश्वर’ और ‘नर्तन से परमात्मनम’।
इस पूरे
केंद्र की कल्पना पूज्य स्वामी तेजोमयानंदजी की है। किसी भी संस्था को दीर्घ कालीन
तक चलाने के लिए यह आवश्यक है कि नए नए लोग उस संस्था से नि:स्वार्थ भावना से
जुड़ते चलें। साथ ही ये नए लोग प्रशिक्षित हों और संस्था के ध्येय से अच्छी तरह
परिचित हों। इसी उद्देश्य से स्वामीजी ने स्वामियों के निवास के लिए नहीं बल्कि नए
और वर्तमान स्वामियों को समुचित प्रशिक्षण देने हेतु इसका निर्माण करवाया। यहाँ
निरंतर श्रद्धालुओं, बच्चों, युवा के अलावा स्वामी एवं स्वामिनियों के
लिए आध्यात्मिक शिविर तथा अध्यापन का कार्य होता रहता है। नए इच्छुक व्यक्तियों को
‘स्वामी’ की शिक्षा और सन्यास की
दीक्षा दी जाती है।
एक अद्भुत
केंद्र जहां मानसिक एवं आध्यात्मिक शांति का प्राप्त होना निश्चित है।
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