भारत में
राम कथा अनेक ऋषियों, मुनियों, मनीषियों और विद्वजनों ने लिखी हैं। इनमें
प्रमुख हैं अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस, संस्कृति में महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण और तमिल में कम्बर रचित
रामावतरम। साधारण जनों में ये ग्रंथ क्रमश: मानस, रामायण और
कम्ब रामायण के नाम से जानी जाती हैं। सरल अवधी भाषा में होने के कारण उत्तर भारत
में तुलसी कृत मानस और तमिल में होने के कारण दक्षिण भारत में कम्ब रामायण ज्यादा
लोकप्रिय ग्रंथ रहे। इन तीनों ग्रन्थों में प्रमुख घटनाओं का विवरण एक ही जैसा है
लेकिन तीनों में फर्क हैं। जब अंग्रेजों ने, बंधुआ मजदूर के
रूप में बड़ी संख्या में भारतीयों को भारत के बाहर विदेशों में भेजा उस समय उस अनजान
प्रदेश में हमारे इन पूर्वजों का एक बड़ा सहारा यही ‘मानस’ था। सब अपने साथ इस ग्रंथ को लेकर गए थे, कइयों को
तो पूरा ग्रंथ कंठस्थ था। यही उनकी पूजा थी, यही उनका संबल
था, यही उनका मनोरंजन और यही वह कड़ी थी जिसके सहारे वे सब एक
दूसरे से जुड़े थे।
गोस्वामी तुलसीदास |
वाल्मीकि |
कम्ब |
10
जनवरी से 5 फरवरी 2019, 27 दिन
व्यापी इसी सम्पूर्ण मानस पर प्रत्येक दिन 4 घंटे
सिलसिलेवार चर्चा की चिन्मय मिशन के स्वामी श्रद्धेय श्री तेजोमयानन्दजी ने। रामकथा
पर कई प्रवचन सुना हूँ, लेकिन यह एक अनोखा और अलग ही अनुभूति थी जिसमें स्वामीजी ने श्रोताओं को
अभिभूत और भाव विभोर कर दिया। स्थान भी अनुपम था। पूना से 45
कि.मी. पर कोलवान में चिन्मय विभूति। रहने और भोजन की उत्तम व्यवस्था के अतिरिक्त सहयाद्रि पर्वत की घाटी
में प्रकृति के मध्य, सुहावने मौसम में अत्याधुनिक सभागार में।
क्या मानस
केवल एक राम कथा है? राम की कहानी?
चलते फिरते हम तुरंत सिर हिलाकर कह देते हैं हाँ हाँ हम जानते हैं राम सीता की
कहानी बहुत बार बहुतों से सुनी है और पढ़ी भी है। क्या सचमुच सुना और पढ़ा है?
राम कथा सुनी होगी, राम पर प्रवचन भी सुने होंगे। रमानन्द सागर द्वारा रचित ‘रामायण’ सीरियल भी देखा होगा। लेकिन क्या मानस बस केवल
एल कथा मात्र है? नहीं, मानस केवल यही नहीं है। यह कथा के साथ साथ एक अनुपम साहित्य है जिसमें कथा के साथ ज्ञान है, विवेक है, हमारे प्रश्नों के उत्तर हैं, रामराज का अर्थ है, मानव से ईश्वर तक की राह है। लोगों की सुनी सुनाई बात पर न जाकर इसे पढ़ें और
समझें तब दिखेगा भी और सुनेगा भी। अन्यथा एक सैलानी जो दुर्गम पहाड़ों पर घूमने जाता
है, सूर्योदय भी देखता है लेकिन हर समय कानों में हेड फोन
लगा है और आँखें एल्क्ट्रोनिक डिवाइस पर गड़ी हैं। लौट कर आकर वहाँ की प्रकृति के सौंदर्य
का और सूर्योदय का वर्णन किया और लोगों ने उसे ही सत्य भी मान लिया।हम भी वैसा ही करते
हैं।
इस वृहद ग्रंथ
में वैसे तो बताने के लिए बहुत कुछ है लेकिन फिलहाल मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा
मानस की स्तुतियों की तरफ। मानस के पन्नों में अनेक स्तुतियाँ बिखरी पड़ी हैं। उन्ही
में से कुछ एक के संदर्भ मैं देना चाहूँगा। बाकी तो आप खुद पढ़ें और उचित मौकों पर उनके
पाठ भी कीजिये-गाइए ताकि औरों को भी इसका पता चले :
बालकांड
दोहा 185 के
बाद – देवताओं द्वारा स्तुति
जय जय सुरनायक
जन सुखदायक प्रनतपाल भगवन्ता। .......
दोहा 191 के
बाद – भगवान राम के जन्म पर
भए प्रगट कृपाला
दीनदायाला कौसल्या हितकारी। .......
अरण्य कांड
दोहा 3 के
बाद। अत्री मुनि द्वारा स्तुति
नमामि भक्त
वत्सलम। कृपालु शील कोमलम॥ .....
दोहा 31 के
बाद। जटायु द्वारा स्तुति
जय राम रूप
अनूप निर्गुन सगुन गुन प्रेरक सही। ......
लंका कांड
दोहा 112 के
बाद। देवताओं द्वारा स्तुति
जय राम सोभा
धाम। दायक प्रनत विश्राम॥ ......
दोहा 114 के
बाद। उमापति महादेव की स्तुति
मामभिरक्षय
रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक॥ .....
उत्तर कांड
दोहा 12 के
बाद। वेदों द्वारा स्तुति
जय सगुन निर्गुन
रूप रूप अनूप भूप सिरोमने। .....
दोहा 13 के
बाद। महेश द्वारा स्तुति
जय राम रमारमनं
समनं। भवताप भयाकुल पाहि जनं॥ .....
दोहा 107 के
बाद
नमामीशमिशान
निर्वाणरूपं। विभुं व्यापाकं ब्रह्म वेदस्वरूपं॥
......
और अंत में
मैं यही कहना चाहूँगा:
जिन खोजा तीन
पाइया, गहरे पानी पैठ
मैं बपुरा बूडन
डरा, रहा किनारे बैठ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें