शुक्रवार, 8 मार्च 2019

गांधी जी का सेव


वर्धा के गांधी आश्रम में बुनियाद शिक्षा का मसौदा बन रहा था। डॉ. जाकिर हुसैनके.टी.शाहजे.बी.कृपलानीआशा देवी आदि कई लोग मौजूद थे। बापू ने पूछा, “के.टी. अपने बच्चों के लिए कैसी शिक्षा तैयार कर रहे हो?” सब चुप रहे। सब समझ गए कि गांधीजी के मन में कुछ है। के.टी. ने पूछा, “बापूआप ही बताइये कि कैसी शिक्षा हो?” बापू ने कहा, “के.टी.अगर मैं किसी भी कक्षा में जाकर पूछूं कि मैंने एक सेब चार आने में खरीदा और उसे एक रुपए में बेचा दिया तब मुझे क्या मिलेगा? मेरे इस प्रश्न के जवाब में अगर पूरी कक्षा यह कहे कि आपको जेल मिलेगीतब मानूँगा कि आजाद भारत के बच्चों के सोच के मुताबिक शिक्षा है।” बापू के इस सवाल पर सब दंग रह गये। वास्तव में किसी व्यापारी को यह हक नहीं कि वह चार आने के चीज पर बारह आने लाभ कमाये। इस प्रकार बापू ने एक प्रश्न के जरिये नैतिक शिक्षा का संदेश बिना बताये ही दे दिया।


एक विश्लेषण के अनुसार भारत की  प्रथम १०० कंपनियों (निजी एवं सरकारी मिलाकर) का वर्ष २०१६ में शुद्ध लाभ ३,७४,५५७.८१ करोड़ थायानि औसतन प्रति कंपनी ३७४५.५८ करोड़ रुपये। इन आंकड़ों के अनुसार तालिका का सबसे नीचे के १००वें प्रतिष्ठान का दैनिक लाभ १० करोड़ रुपये हुआ।  इन आंकड़ों को गांधी के विचारों के साथ जोड़ कर  समझने की आवश्यकता है। यह न किसी सरकार से संभव है न किसी कानून के तहत। गांधी की  आर्थिक आजादी तो जागरूकता के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। देश में फैली मंहगाई असली मंहगाई नहीं है, यह तो असीमित लालच का परिणाम भर है। एक के पास अकूत धन है, दूसरे के पास खाने को रोटी नहीं।

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