कठिन काम को करना आपकी हिम्मत का काम है।
उसे करना एक चुनौती होती है। लेकिन एक असंभव कार्य को
संभव बनाने का प्रयत्न करना आपकी मूर्खता का प्रमाण है। जो कार्य संभव नहीं है वह कार्य आप करने की कोशिश कर रहे हैं। आप एक ऐसे
समाज में सुख और शांति खोजने की कोशिश कर रहे हैं जिसका कोई भी सिरा सुख और शांति
से जुड़ा हुआ नहीं है। उसमें आप एक कल्पना कर रहे हो कि
कुछ तो ऐसा हो जाएगा कि आप एक अच्छा जीवन जीने लगेंगे, एक
शांति का जीवन व्यतीत करने लगेंगे। जिसको आनंद कहते हैं, वह आनंद का जीवन मिल जाएग। मैं परेशान इस बात से हूँ।
यक्ष ने युधिष्टिर से पूछा कि दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? तो उसने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि
हर आदमी यह जानता है कि उसका अंत होने वाला है लेकिन वह जीने की कोशिश में लगा है।
यही दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है। कुछ इसी तरह का यह सवाल है कि आप जो भी चीज खोज रहे हो समाज में, चाहे जिस भी
नाम से खोज रहे हो, चाहे जिन भी सवालों के द्वारा खोज
रहे हों, वह है नहीं और आप पाने की कोशिश में लगे हो। और बड़ी आशा से लगे हुवे हो। किसी को लगता है कि बहुत सा पैसा कमा लेंगे तो
सुख मिल जाएगा। कुछ सोचते हैं कि बहुत सा ज्ञान कमा लें तो उसमें से कुछ निकल
आयेगा। नये नये आविष्कार हो रहे हैं। नई-नई तरह-तरह की तकनीक सामने आ रही हैं वे
हमारा काम बहुत आसान कर रही हैं। जिस काम के लिए बड़ी मशक्कत लगती थी वह काम अब बड़ी
आसानी से हो रहा है। लेकिन जो हो रहा है उसमें से वह चीज नहीं निकल रही है जो हम
चाहते हैं। यह अपने आप में ही एक बड़े कौतुक का सवाल है।
तब, मेरी चिंता इस बात पर है कि यह
बात कैसे समझी जाए और कैसे समझाई जाये? समझना एक चीज़ है
और समझाना एक अलग चीज़ है। मैं एक बात कहता हूँ अपने साथियों से कि “तुमने कोई बात समझ ली है” इसकी कसौटी क्या है? “हाँ हाँ हम यह बात समझ गए हैं। गांधी का क्या विचार है हम समझ गए है।”
लेकिन आप समझ गए हैं इसकी कसौटी क्या है? इसकी एक बहुत साधारण सी कसौटी है। क्या
यह बात तुम दूसरे को समझा सकते हो? अगर
तुम दूसरे को समझालोगे तो तुमने बात समझ ली है। और नहीं
तो, एक गजल है:
कभी कभी हमने भी, ऐसे अपना दिल बहलाया है,
जिन बातों को हम खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है।
ज्यादा कर हम ऐसी ही बाते करते हैं। ज़्यादातर हम उन बातों को समाज के नये
नवजवानों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं जिनकी समझ
हमको ही नहीं होती है। एक, हमारी भाषा भी
काम नहीं करती है। दूसरे, हम उनकी भी बातें करते हैं जिन
बातों को करने के लिए, हमारे पास तथ्य नहीं है । सबसे बड़ी
बात यह है कि जो बात तुम समझा रहे हो उसमें तुम्हारा खुद का विश्वास नहीं है। तब
तुम्हारी बात तुरंत नकली हो जाती हैं।
ये सारी चीजें हैं जिनके बीच में से तुमको खोजना है, जिसे हम चाहते हैं। तो
गांधी वान्धी को छोड़ कर अगर हम अपनी चिंता थोड़ी ज्यादा करने लगें तो शायद हम अपने
सवालों के जवाब के नजदीक पहुँच पायेंगे। क्योंकि एक बड़ा लंबा जीवन
आप सब लोगों ने जीया है, अपनी अपनी तरह से। अपने अपने विचार, अपने साधन, अपना परिवार। इन सबों को देखते हुए एक
ऐसी जगह पहुँच गए हैं, हम सभी लोग, सामूहिक रूप में जहां हम न खुद को सुरक्षित पा रहे हैं न अपने परिवार को।
न अपने खुद के बारे में विश्वास के साथ कुछ कह पा रहे हैं, न परिवार के बारे में। तो जिसे दिहाड़ी मजदूर कहते
हैं वैसी जिंदगी गुजार रहे हैं। आज का दिन गुजर गया। बस, अगला दिन कैसा होगा मालूम नहीं। अगला दिन भी गुजर जाए, ऐसा कुछ हो जाए तो चलो भगवान का भला अगला दिन भी निकल गया। ऐसे तो समाज
नहीं चलता है। ऐसे तो समाज जीता भी नहीं है। इसीलिए हम जी नहीं पा रहे हैं।
मुश्किल में पड़े हैं।
इतने सारे
प्रतिद्वंद्वी खड़े कर लिए हैं हमने अपने अगल बगल कि लगता है कि हर समय कुरुक्षेत्र
में ही खड़े हैं। कोई भी शांति के साथ जीवन का मजा नहीं ले रहा है। युद्ध कभी कभी
होता है तब, शायद, अच्छा लग सकता है। लेकिन अगर २४ घंटे ही युद्ध होता रहे तो बोझ लगता है, मुश्किल हो जाती है, जीना कठिन हो जाता है।
इसमें पहला
कदम कौन पीछे खींचता है वही सबसे समझदार आदमी है। आपने नियम ही यह बना दिया है कि
कदम पीछे खींचना कायरता है। जब तक आप कदम पीछे नहीं
खींचते, औरों के कदम ऊठेंगे नहीं। यह आप देख रहे हो।
फिर, कोई तो निर्णय आपको करना पड़ेगा।
जब मैं यह
बात सोचता हूँ तो मेरे लिए हिन्दू, मुसलमान, क्रिश्चियन, सिक्ख, फारसी जैसी
कोई बात रहती ही नहीं है। मैं सोचता हूँ कि अगर रहना है
तो रहने के लिए कुछ मूलभूत नियम तो बनाने ही पड़ेंगे। तब कैसे रहोगे? इसको सोचना शुरू करोगे तब हम
वहीं पहुंचेगे जहां महात्मा गांधी पहुंचे थे। तो मेरे लिए महात्मा गांधी भगवान
नहीं हैं। मैं उनकी पूजा नहीं करता हूँ। मैं जिन सवालों
से परेशान हूँ उनका समाधान ढूँढता हूँ तो इसी आदमी के पास पहूंचता हूँ। तब सोचता हूँ कि कोई तो बात है भाई। इस आदमी के जवाब खत्म नहीं होते हैं, हमारे प्रश्न खत्म हो जाते हैं। । बस इतनी सी ही बात है जो मुझे परेशान प्रेरित
करती है, प्रेरित करती है।
कुमार प्रशांत
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