अपने जीवन
काल में गांधी ने अनेक उपवास किये। कुल 17 उपवास और 145
दिन। पहला उपवास दक्षिण अफ्रीका के फीनिक्स सेट्टल्मेंट में 7
दिन का किया था। यह उपवास आश्रम के ही एक निवासी की गलती के कारण आत्मशुद्धि के
लिए किया गया था। इसके लिए गांधी ने अपने
आप को दोषी माना था। और अंतिम उपवास बिड़ला भवन, दिल्ली में
हिन्दू-मुस्लिम दंगों को रोकने को लिए किया था। यह उपवास अनिश्चित काल के लिए थे। यह
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दिन चला था।
उनका यह
उपवास ‘अंतिम उपवास’ के नाम से जाना जाता है और प्राय: सबसे
महत्वपूर्ण उपवास समझा जाता है। गांधी के भरसक कोशिशों और अथक प्रयासों के बावजूद
भी जब दिल्ली के दंगे नहीं रुक रहे थे
तब उन्होने इस उपवास की घोषणा की थी। सबों
के लिए यह अप्रत्याशित तो था ही साथ ही गांधी
के लिए जानलेवा भी। हालत इतने बदतर थे कि खुद गांधी भी इस बात से आश्वस्त नहीं थे
कि उनका यह उपवास सफल होगा। वे मृत्यु के लिए तैयार थे। लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से
केवल भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान में भी इसका व्यापक असर हुआ। दोनों देशों के
नागरिकों ने परस्पर भाईचारे और सौहार्द का परिचय दिया। दंगे बंद हो गए। जनता ने
साथ साथ रहने की प्रतिज्ञा की। गांधी पाकिस्तान और सिंध जाने की तैयारी में जुट गए
लेकिन अपने इस महत कार्य को अधूरा छोड़ कर बीच में ही उन्हे जाना पड़ा।
जब गांधी
यह उपवास कर रहे थे, उस समय देश के अनेक घरों में चूल्हे नहीं जले। जनता उनके साथ साथ उपवास
कर रही थी। इनकी संख्या की कोई अधिकृत जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन अनुमान लगाया
जाता है लाखों देशवासी इसमें शरीक थे। उनके इस उपवास पर और इसकी सफलता पर
देश-विदेश से अनगिनत प्रतिक्रियाएँ प्राप्त
हुईं।
‘दिस्टेट्समैन’ के संपादक आर्थर मूर इन उपवासों में न तो विश्वास करते थे और न ही उचित
मानते थे। लेकिन उन्होने भी लिखा कि गांधी का यह उपवास उचित है। इतना ही नहीं उन्होने
भी गांधी के साथ साथ उपवास प्रारम्भ कर दिया था। और गांधी के साथ ही अपना उपवास
तोड़ा था।
पाकिस्तान
में सेवा का अद्भुत कार्य कर रही श्रीमती मृदुला साराभाई ने तार से सूचित किया कि वहाँ लोग उनसे पूछ रहे हैं कि ‘गांधीजी के प्राण बचाने के लिए वे क्या कर सकते हैं’? काहिरा से आए
संदेश में ‘विभिन्न समुदायों की शांति,
धार्मिक सहिष्णुता, और भातृभाव’ के
प्रति समर्पण के लिए प्रार्थना की बात की।
इन्डोनेशिया के उपाध्यक्ष मुहम्मद हाता ने इसे ‘प्रकाश स्तम्भ’ कि संज्ञा दी। चीनी गणतन्त्र के ताई चि-ताओ ने लिखा कि ‘चीनी प्रजा
गांधीजी कि सारी बातों का हृदय से समर्थन करती है। रेवरेंड माइकेल स्कॉट ने
न्यू यॉर्क से कहा ‘सत्याग्रह विजयी सिद्ध होगा’। लंदन टाइम्स
ने ‘साहसपूर्ण अदर्शवाद’ और न्यूज़
क्रोनिकल ने लिखा कि गांधी ने ‘सिद्ध कर दिया कि
उपवास में अणुबम से ज्यादा शक्ति है’। ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने नेतृत्व की शिक्षा के शीर्षक से एक बहुत भावपूर्ण टिप्पणी
की। लेकिन इन सब के बावजूद गांधी अपना कार्य पूरा नहीं कर सके। हिंसा से उन्मुक्त
युवक ने बहकावे में आकर उनके प्राण ले लिए। गांधी आधी पारी खेल पाये। अगर पूरी
पारी खेल लेते तो परिस्थितियाँ कुछ और ही होतीं जिसका अनुमान नहीं लगाया जा
सकता।
विशेष : सब लिंक प्यारेलल की पुर्णाहुती - खंड 4 की हैं
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