जब सनातन धर्म आडम्बर और कर्मकांड के दल दल में फंसा पाताल
में धँसता जा रहा था उसी समय आचार्य शंकराचार्य का, सूर्य के सदृश्य, भारत के क्षितिज पर
आगमन होता है। अपने ज्ञान और कौशल से वे सिर्फ सनातन धर्म की पुनर्स्थापना ही नहीं
करते बल्कि आर्यावर्त को संगठित कर उसके संचालन की भी व्यवस्था करते हैं। देश के
चारों कोनों में चार धाम की स्थापना करते हैं, चार
देवी-देवता, चार वेद, चार महा मंत्र
तथा चार आचार्यों को प्रतिष्ठित करते हैं और उनके भविष्य में सुचारु रूप से चलते
रहने का भी सुप्रबंध करते हैं।
आचार्य शंकर ने देश को संगठित करने के लिए देश के चारों
कोनों में एक-एक मठ की स्थापना की। सबसे पहले उन्होने दक्षिण में तुंगभद्रा नदी के
तट पर शृंगेरी मठ की स्थापना की। यहाँ के देवता आदिवाराह, देवी शारदाम्बा, वेद
यजुर्वेद और महावाक्य ‘अहं
ब्रह्मास्मि’ (मैं ब्रह्म
हूँ, बृहदारण्यक उपनिषद १.४.१०,
यजुर्वेद) है। सुरेशाचार्य को मठ का अध्यक्ष नियुक्त किया। इसके बाद उन्होने उत्तर
दिशा में अलकनंदा नदी के तट पर बदरिकाश्रम (बद्रीनाथ) के पास ज्योतिर्मठ की
स्थापना की जिसके देवता श्रीमन्नारायण तथा देवी श्रीपूर्णगिरि हैं। यहाँ के
संप्रदाय का नाम आनंदवार, वेद अथर्ववेद तथा महावाक्य ‘अयमात्मा ब्रह्म’ (आत्मा ब्रह्म है,
मांडूक्य उपनिषद १.२ अथर्ववेद), है। मठ का अध्यक्ष
तोटकाचार्य को बनाया। पश्चिम में उन्होने द्वारकापुरी में शारदा मठ की स्थापना की
जहां के देवता सिद्धेश्वर, देवी भद्रकाली, वेद सामवेद और महावाक्य ‘तत्वमसी’ (तू वही
है, छांदोग्य उपनिषद, ६.८.७, साम वेद) है। इस मठ का अध्यक्ष हस्तमानवाचार्य को बनाया। उधर पूर्व दिशा
में जगन्नाथपुरी के पास महानदी के तट पर गोवर्धन मठ की स्थापना की जहां के देवता
जगन्नाथ, देवी विशाला, वेद ऋग्वेद और
महावाक्य ‘प्रज्ञान ब्रह्म’ (ज्ञान ब्रह्म है, ऐतरेय
उपनिषद ३.३, ऋग वेद) है। यहाँ उन्होने हस्तामलकाचार्य को मठ
का अध्यक्ष बनाया। इस प्रकार शंकराचार्य ने अपने सांगठिक कौशल से सम्पूर्ण भारत को
धर्म एवं संस्कृति के अटूट बंधन में बांध कर विभिन्न मत-मतांतरों के माध्यम से
सामंजस्य स्थापित किया और एक सूत्र में पिरोया।
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