शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

जैसे हैं वैसे दिखें

एक सीधी साधी आसानी सी जिंदगी को हमने कितना दुरूह, जटिल और तनाव पूर्ण बना लिया है। हम जैसे हैं वैसा दिखना नहीं चाहते और जैसा दिखना चाहते हैं वैसा हो नहीं पाते। वैसा बनने की  कोशिश में ज़िंदगी का कचरा कर लेते हैं। बात बस इतनी सी ही है। यह हम समझते भी हैं, जानते भी हैं, लेकिन मानते नहीं। एक बच्चा यह समझता नहीं है, जानता नहीं है लेकिन मानता यही है। इस कारण उसकी जिंदगी न दुरूह है, न जटिल है और न तनावपूर्ण। हमें देख, धीरे धीरे वह भी इन सबों में फंस जाता है। हम बच्चों को समझाने की कोशिश करते हैं जब कि हमें बच्चों से समझने की कोशिश करनी है।

एक आडंबर पूर्ण जीवन जीने के चक्कर में हम अ-सम्मान, पाप और तनाव बटोरते रहते हैं। इसके विपरीत हम जैसे हैं वैसा ही दिखने में, गौरव अनुभव करने से सम्मान, स्नेह और शांति बटोरते हैं।  जिंदगी सहज हो जाती है। अपने दोष को स्वीकार करने से हम दोष मुक्ति की तरफ अग्रसर होते हैं।  वहीं उसे नकारने से दोष के दलदल में धँसते जाते हैं।

भारत के प्रधान मंत्री रूस जाने की तैयारी कर रहे थे। उनके साथ उनकी पत्नी, ललिताजी को भी जाना था।  ललिताजी एक सीधी सादी भारतीय महिला थीं। प्रधान मंत्री की पत्नी के रूप में विदेश जाने से बहुत घबड़ा रही थीं। पता नही कौना क्या पूछ लेगा? मैं सही ढंग से जवाब दे पाऊँगी या नहीं? देश और प्रधानमंत्री के गौरव तथा सम्मान की रक्षा कर पाऊँगी या नहीं? विदेशी तौर तरीके न जानने के कारण उपहास का कारण बन जाऊँगी?” ललिता जी ने अपनी दुविधा अपने पति और देश के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को बताई तथा उन्हे साथ न ले जाने का अनुरोध किया।
 
लाल बहादुर एवं ललिता शास्त्री
शास्त्रीजी ने उन्हे समझाया, “तुम यह सोचकर चलो कि तुम प्रधानमंत्री की पत्नी नहीं, बल्कि भारत के एक नागरिक की पत्नी हो। यह सोच, तुम्हें एकदम सहज कर देगा। तुम्हें अपने को कुछ विशेष रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। तुम जैसी हो उसीमें गौरव महसूस करने की आवश्यकता है”। ललितजी ने उनकी बात को समझा और वैसा ही आचरण किया। वहाँ के लोगों से उन्होने सादगीपूर्ण भारतीय जीवन के विषय में बात की और अपने उत्तरों से सबको संतुष्ट कर दिया। जैसे हैं उसीमें गौरव अनुभव करने से कोई असुविधा नहीं होती। लोग उनके कायल भी होते हैं और वे सम्मान के हकदार भी होते हैं।   

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