सन १९२१
में काँग्रेस का अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ था। कोलकाता से एक कार्यकर्ता श्री बर्ड
गो-रक्षा में बहुत दिलचस्पी लेते थे। वह भले और सच्चे व्यक्ति थे। जिस समय
महासमिति की बैठक हो रही थी, किसी ने गो-हत्या बंद करने के
संबंध में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया। अध्यक्ष पद पर हाकी अजमल खाँ विराजमान थे और
गांधीजी उनकी मदद कर रहे हे। उन्होने राय दी, यह प्रस्ताव
काँग्रेस में लाना ठीक नहीं होगा।
लेकिन बर्ड
साहब इस बात पर तुले हुए थे कि यह प्रस्ताव पेश होना ही चाहिए। अध्यक्ष महोदय ने
बार-बार बैठ जाने की प्रार्थना की, लेकिन वह टस-से-मस
नहीं हुए। तब विवश होकर अध्यक्ष बोले, “आप मेरा आदेश नहीं
मानते है, तो सभा छोड़कर चले जाइये”।
बर्ड साहब
ने उत्तर दिया, “मैं नहीं जाऊंगा”।
अब तो सभा
में हलचल मच उठी। आखिर क्या किया जाय? क्या इन्हे पकड़कर
हटाया जाय या पुलिस को बुलाया जाय? किन्तु गांधीजी ने एक नया
उपाय खोज निकाला। खड़े होकर बोले, “मैं सब सदस्यों से अनुरोध
करता हूँ कि यदि बर्ड सभा-स्थान से नहीं हटते, तो हम सब यहाँ
से हट जाएँ”।
बस दूसरे
क्षण सभी लोग वहाँ से उठाकर चले गए। अकेले बर्ड साहब हतप्रभ से वहाँ खड़े रहे।
कुछ नया सोचें, शालीन सोचें।
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