भाग्य-रेखा
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
संस्करण : 1953 1ला
1997 राजकमल का 1ला
2013 4था
मूल्य
: 195 रुपए
पृष्ट
: 124
संकलन में लेखक
की 14 छोटी कहानियाँ हैं :
1। जोत
2। अशांत रुहें
3। शिष्टाचार
4। अनोखी हड्डी
5। तमगे
6। क्रिकेट
मैच
7। मुर्गी की
कीमत
8। नीली आँखें
9। ऊब
10। गंगो का
जाया
11। भाग्य-रेखा
12। घर-बेघर
13। खून के
छींटे
14। घर की इज्जत
पहली कहानी
‘जोत’ जहां रूढ़िवाद और आधुनिकता के मध्य गाँव के किसान
की कहानी है तो अंतिम कहानी ‘घर की इज्जत’ इस रूढ़िवाद सोच का शालीनता से विरोध की घटना है। जानकू मेहनत करता है लेकिन
उसका श्रेय देवता को देता है वहीं सुनन्दा बिना किसी प्रत्यक्ष संघर्ष के शालीनता से
विरोध कर श्वसुर की उपस्थिती में सार्वजनिक नाटक में मुख्य भूमिका निभाती है। गाँव
गंवाई के गंवार हेतू का ‘शिष्टाचार’ देख
कर ‘श्रीमान, स्तब्ध और हैरान उस
उजड्ड, गँवार के मुंह की ओर ताकने लगे’। ‘अनोखी हड्डी’ सुझाता है कि सही
तरीके से उपदेश देने पर उसका असर भी होता है और सामर्थ्यवान भी अनुकरण करते हैं। ‘ऊब’ देश की शिक्षा के ऊबाऊपन की चर्चा करता है तो गरीबी
पर कटाक्ष भी। शेष कहानियाँ भी समयानुकुल समाज का बिम्ब प्रस्तुत करती हैं।
इस पुस्तक के
अब तक पाँच संस्कारण पाठकों के पास पहुँच चुके हैं। यह अपने आप में इसकी लोकप्रियता
का प्रमाण है। संकलन की सभी कहानियाँ पठनीय हैं और यह चरितार्थ करती है कि साहित्य
समाज का दर्पण है। मुझे विश्वास है आप को संग्रह की कहानियाँ पसंद आएँगी।
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