शुक्रवार, 26 जून 2020

नज़रिया

 मैं अपने कमरे में बैठा सोच रहा था –  मेरी जिंदगी का यह साल कितना बुरा है –

१।  मेरा औपरेशन हुआ और मेरा गोलब्लाडर निकाल दिया गया। इस औपरेशन के कारण बहुत लंबे समय तक बिस्तर पर रहना पड़ा।

२। मैं ६० वर्ष का हुआ और मेरी पसंदीदा नौकरी चली गयी। मैं सेवा-निवृत्त हो गया। जब मैंने उस संस्था को छोड़ा तब मुझे उस कम्पनी में काम करते हुए ३० साल हो गए थे ।

३। इसी साल मेरे पिता की मृत्यु भी हो गई। मुझे उनकी मृत्यु का दुःख भी झेलना पड़ा।

४। इसी साल मेरा बेटा कार एक्सिडेंट हो जाने के कारण मेडिकल की परीक्षा में फेल हो गया क्योंकि उसे बहुत दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। कार की टूट फूट का नुकसान अलग हुआ।

५। कोरोना के कारण घर से नहीं निकल पाया। किसी से मिलना-जुलना असंभव हो गया। न ही कहीं शहर के बाहर घूमने जा पाया। घर पर ही कैद हो गया। सबसे कट गया।

वाकई बुरा साल था।

 मेरी पत्नी जब मेरे कमरे में आई तो उसने देखा कि मैं बहुत दुखी और बीमार सा पड़ा हूँ। माथे पर चिंता की  लकीरें हैं और अपने ही विचारों में खोया हुआ हूँ। पूछने पर मैंने उसे बताया। वह चुपचाप कमरे से बाहर गई और थोड़ी देर बाद एक कागज़ के साथ मुस्कुराती हुई वापस लौटी और मेरे हाथ में वह कागज़ थमाया। कागज़ पर कुछ लिखा हुआ नजर आया, उसे पढ़ने लगा-

 मेरा यह वर्ष कितना खूबसूरत है -

१। मुझे उस गोलब्लाडर से छुटकारा मिल गया जिसके कारण मैं कई सालों से परेशान था।

२। इसी साल मैं ६० वर्ष का होकर स्वस्थ दुरस्त, बिना किसी दाग के, अपनी नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ। अब मैं पूरा ध्यान लगाकर शान्ति के साथ अपने समय का उपयोग और परिवार के लिये बढ़िया कुछ कर पाऊँगा।

३। इसी साल मेरे ९५ वर्ष के पिता, बगैर किसी पर आश्रित और बिना गंभीर बीमार हुए, परमात्मा के पास शांति से चले गए।

४। इसी साल भगवान् ने एक्सिडेंट में मेरे बेटे की रक्षा की। कार चूर चूर हो गई, लेकिन मेरा बच्चे की जिन्दगी बच गई। उसे नई जिंदगी तो मिली ही, हाँथ पाँव भी सही सलामत हैं।

५। कोरोना के कारण अब मैं अपना बहुत समय अपने परिवार को दे रहा हूँ। अपने परिचितों-दोस्तों से टेलीफोन पर लंबी बातें कर रहा हूँ। पढ़ने और लिखने भी लगा हूँ। वे सब काम, जो अपनी ६० साल की जिन्दगी  में नहीं कर पाया था अब कर रहा हूँ। प्रकृति से भी जुड़ाव हो गया है।

अंत में लिखा था,

इस साल भगवान की हम पर बहुत कृपा रही, साल अच्छा है।

मित्रों, मानव-जीवन में अनेक घटनाएँ घटती हैं, अनेकों परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। घटना, चाहे कैसी भी हो, सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होती। घटना सिर्फ एक घटना होती है।  उसे सकारात्मक या नकारात्मक हमारी सोच बनाती है।  किसी घटना / परिस्थिति का प्रभाव, क्या, कैसा और कितना पड़ेगा, यह पूरी तरह हमारे सोचने के तरीके पर निर्भर करता है। चीजें वही रहती हैं पर नजरिया बदलने से पूरा अर्थ बदल जाता है।

जीवन को बदलना है, सफल बनाना है, आनंदमय बनाना है तो सकारात्मक नजरिया रखें।

 (सोशल मीडिया से प्रेरित)

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शुक्रवार, 19 जून 2020

माता या पिता?

माँ! माता! शक्ति स्वरूपा! वात्सल्य की अधिष्ठात्री देवी! प्रेम से परिपूर्ण! जन्म से मृत्यु पर्यन्त हमारे जीवन को स्पर्श करती-सजाती-संवारती।

माँ, हमें आँखों से देखती है – ममता भरी आँखों से, वात्सल्य से परिपूर्ण।

माँ, कानों से हमें सुनती है – हमारे दु:ख दर्द को।

माँ, हमें सूँघती है – हमारी आवश्यकता को, अनकहे कष्ट को, व्यथा को।

माँ, हमें लोरी सुनाती है, आशीर्वाद देती है, व्रत रखती है, ईश्वर से प्रार्थना करती है – हम कैसा भी व्यवहार करें उसका यह कार्य अनवरत रूप से चलता ही रहता है।

माँ, हमें अपनी बाहों में भरती है, अपनी छाती से लगाती है।

क्या नहीं करती है माँ?

माँ ९ महीने  हमारा बोझ उठाए रहती है, बिना किसी वेतन के निरंतर हमारा काम करती रहती है, हमारे लिये खाना पकाती है, व्यंजन बनाती है, हमारे कपड़ों का ध्यान रखती है, हमारे घर का ध्यान रखती है, हमारे बच्चों को संभालती है, हमारी गंदगी सफाई करती रहती है। माँ, तरल है, मृदु है, लचीली है। 


पिता! बाबा! बाप! बाबू! बापू! अभिभावाक! कर्मठ! शासक! प्रशासक! रक्षक! ज्ञानी!

पिता, न देखता हुए भी सब देखता है।

पिता, न सूंघता हुआ भी सब सूँघता है।

पिता, न बोलता हुआ भी सब बोलता  है।

पिता, न स्पर्श करता हुआ भी सब स्पर्श करता है।

पिता, न अनुभव करता हुआ भी सब अनुभव करता है।

पिता, शुष्क सा दिखता लेकिन रस से भरा।

पिता, रीढ़ की हड्डी की तरह व्यर्थ-सा, कठोर-सा, शुष्क-सा, बेजान-सा लेकिन पेड़ के तने की तरह वृक्ष  को सँभाले हुए।


क्या हमें माँ चाहिये? बाप नहीं! हमें पेड़ चाहिए, जो फल-फूल-पत्ते-छाँह-हवा-बसेरा दे? तना  नहीं,  जो पूरे पेड़ को पानी और भोजन दे!

माँ हमारी आँख है, कान है, नाक है, स्पर्श है, रस है, जीवन है; पिता शरीर के पिछले भाग में खामोश मजबूती से खड़ा रीढ़ की हड्डी है।

........ आखिर बेटे ने पिता को वृद्धाश्रम (ओल्ड एज होम) में छोड़ने का निश्चय किया। बेटा आश्रम में आवश्यक कार्यवाही पूरी कर रहा था, तब तक आश्रम के संचालक वहाँ पहुँच गए और पिता से बातें करने लगे। बेटे को आश्चर्य हुआ, क्या आप इन्हें जानते हैं”? पिता की तरफ इशारा करते हुए उसने पूछा। संचालक ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ, आज इनसे लगभग तीस वर्षों के बाद मुलाक़ात हो रही है। ये सज्जन एक अनाथ बच्चे को हमारे यहाँ से गोद ले गए थे। .......


माता और पिता दोनों का अपना महत्व है। दरअसल हमें वह आँख, कान, नाक, स्पर्श और रस चाहिए  जो दोनों के योगदान को समझ सकें।

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शुक्रवार, 12 जून 2020

योग हमेशा अपने साथ रखें

प्रश्न : (1) तनाव, दबाव और यातना  - हर इंसान को इस समस्या का सामना करना पड़ता है। इनसे कैसे बचें?

(2) विवाह करके योग की तरफ चलते हुए मंजिल तक पहुंचना या फिर बिना विवाह किये योग की तरफ चलना; कौन सा तरीका सबसे अच्छा है? 

 श्रद्धेय श्री सद्गुरु जी का उत्तर : आप तनाव और दबाव की समस्या को सार्वजनिक और सार्वभौमिक  क्यों मान रहे हैं? आप तनाव और दबाव में हैं।

 क्या आपने अपनी पत्नी और बच्चों के नाम दबाव, तनाव और यातना रखे हैं? पत्नी और दो बच्चे और उनके नाम दबाव, तनाव और यातना, क्यों? यही तो! मैं नहीं चाहता कि आप योग के रास्ते पर चलें। आप जिस भी राह पर चलें अपने साथ योग को लेकर चलें। योग उस रास्ते को खूबसूरत और आसान बना देगा। आप चाहे उत्तर की ओर जाएँ या दक्षिण की ओर। अगर अंधेरा होता है तब आप टॉर्च लेकर जाते हैं। उत्तर की ओर जाने वाले टॉर्च लेकर चलते हैं और दक्षिण की ओर जाने वाले अंधेरे के साथ चलते हैं; क्या ऐसा होता है? नहीं।

 आप शादी करते हैं, अपनी जरूरतों की वजह से। आप अपनी पत्नी के साथ पैदा नहीं हुए थे। हुए थे क्या? नहीं। आप इस तरह पैदा हुए थे, एक सम्पूर्ण मनुष्य के रूप में। चूंकि आपकी कुछ जरूरतें हैं; शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक शायद आर्थिक भी हो सकती हैं। इस प्रकार कई जरूरतें हो सकती हैं। आम तौर पर शादी को एक ऐसा पैकेज माना जाता है जो इन सभी जरूरतों को पूरा करता है। शारीरिक जरूरतें, मानसिक जरूरतें, भावनात्मक जरूरतें, सामाजिक जरूरतें और कभी कभार आर्थिक जरूरतें भी। तो यह एक व्यापक पैकेज है। जब आप शादी करते हैं तब ये सारी समस्याएँ एक साथ सुलझ जाती हैं। कभी कभार आपकी कुछ जरूरतों को पूरा करने से इंकार भी कर दिया जाता है। इसलिए आप दवाब, तनाव और यातना महसूस करते हैं। मैं आपको समझाना चाहता हूँ, आपने अपनी भलाई के लिए शादी की थी। किसी और के लिए कोई बलिदान नहीं किया था! आपने, अपनी जरूरतों और अपनी भलाई के लिए ही शादी की थी। आपको जिंदगी भर यह याद रखना चाहिए। आपने शादी करके एक दूसरे इंसान को अपने साथ बांध लिया है; अपनी जरूरतों के कारण। आपने ऐसा दूसरे इंसान के लिए नहीं किया है। है कि नहीं? सच यही है न! यह याद रखिए, अगर आप यह याद रखेंगे तो आप आभारी होकर जीवन जियेंगे। अपनी पांचों जरूरतें न भी सही, कम से कम मेरी दो जरूरतों को तुमने पूरा कर दिया इसके लिए बहुत धन्यवाद। है न? सभी पांचों जरूरतों को, हो सकता है उन्होने ठीक तरह से पूरा नहीं किया, लेकिन कम से कम दो या तीन तो आपके पति या पत्नी पूरा करते / करती हैं। है न? उन्होने किया की नहीं किया? अगर उन्होने कुछ भी पूरा नहीं किया होता तब मुझे नहीं लगता कि आप अब भी उनके साथ होते। है कि नहीं? वे कुछ जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। हो सकता है कुछ जरूरतों को वे पूरा नहीं कर पा रहे हैं। आपके साथ भी यही है। आप भी दूसरे व्यक्ति की हर जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। कुछ को आप भी पूरा कर रहे हैं, कुछ को नहीं। ऐसा है कि नहीं? तो यह दबाव, तनाव और यातना इसीलिए बन गया है। अभी तक आपने उसे चाहे जैसा भी बना दिया हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर आप चाहें तो तीन दिनों में, चाहे आपकी परिस्थिति कितनी ही बुरी क्यों न हो, तीन दिनों में आप उसे शांति पूर्ण अवस्था में ला सकते हैं। अगर प्यार नहीं, अगर आनंद नहीं, तो कम से कम एक शांतिपूर्ण स्थिति तो आप तीन दिनों के अंदर ला सकते हैं, अगर आप इसके लिए सौ फीसदी इच्छुक हों तो। है कि नहीं? आप कम से कम चुप तो हो ही सकते हैं। साधारण सी बात है, चाहे कुछ भी हो जाये, चुप। शांति छा जाएगी और हो सकता है कि उन्हे यह बात पसंद भी आ जाये!

अकेले चलना फायदेमंद है या लोगों के साथ चलना? अफ्रीका में एक कहावत है; वो कहते हैं कि अगर आप तेजी से  चलना चाहते हैं तब आप अकेले चलिये, लेकिन अगर आप लम्बे समय के लिए चलना चाहते हैं तब आप लोगों के साथ चलिये। अगर आप लम्बा सफर कर रहे हैं, तो साथ बेहतर है। अगर आप छोटी दूरी तय कर रहे हैं, तब आपको अकेले जाना सबसे बढ़िया है। है न? .....

गौतम ने दूसरी बात कही थी, जब किसी ने उनसे यही सवाल पूछा। तब वे बोले, किसी मूर्ख के साथ चलने से अकेले चलना बेहतर है। क्योंकि आपको देख कर उन्हे साफ हो गया कि और कौन आपके साथ शादी करेगा। तो यह गौतम के काम करने का तरीका था। वे हमेशा लोगों को किसी का साथ लेने के लिए मना करते थे। उनका कहना था ये जीवन एक छोटा सा सफर है। आपको साथ किसलिए चाहिये? जब आप इस शरीर को छोड़ेंगे, तब वह एक लम्बा सफर है, वहाँ मैं रहूँगा। यह उनकी पेशकश है। लेकिन आगर आपको लगता है कि जीवन लम्बा है इसलिए आपको साथ की आवश्यकता  है,  यह आपकी धारणा है, और अगर आप ऐसा मानते हैं तब आपको साथ की  जरूरत है। लेकिन आप इस साथ को कैसे निभाते हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है।


तब, आप योग के रास्ते पर मत चलिये, आप अपने साथ योग को लेकर चलिये। अगर आप योग को अपने साथ लेकर चलते हैं तो योग आपके रास्ते को रौशन कर देगा। चाहे आपने कोई भी रास्ता चुना हो; आपने अपना रास्ता अपनी जरूरतों के कारण चुना है। ..... ..... मुद्दा यह नहीं है कि आप क्या कर रहे हैं, मुद्दा यह है कि आप उसे कैसे कर रहे हैं। आप क्या करते हैं यह आपकी जरूरतों से तय होता है लेकिन उसे  कैसे करते हैं यह आपके जीवन  की प्रकृति तय करती है।

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शुक्रवार, 5 जून 2020

सूतांजली, जून 2020


सूतांजली के जून अंक में निम्नलिखित दो विषयों पर चर्चा है:
१। क्या आप कुछ करती हैं?
“क्या आप काम-काजी महिला हैं?”
मैं पिछले वर्ष हिमालय की गोद में बसे खूबसूरत नगर नैनीताल के वन-निवास, श्री अरविंद आश्रम के एक साप्ताहिक शिविर में गई थी। जैसी रमणीक जगह वैसे ही खुश मिजाज लोग।  इसी शिविर में थे एक सज्जन बुजुर्ग, ९० वसंत देख चुके थे। फिर भी गज़ब की स्फूर्ति, सेहत और वर्तमान ......
-      रश्मि करनानी की रचना
२। चिंता ही तरक्की है?
जो यह कहते हैं कि चिंता चिता है’, उन्हे तरक्की की न तो जानकारी है न ही उन्हे हमारी तरक्की की चिंता है। हमने माना “चिंता चिता है”; हमने चिंता न करने की सलाह दी, उपदेश दिया।  इसीलिये हमारी  तरक्की बंद हो गई। जबसे हमने चिंता करना सीख लिया तब से हमारी तरक्की शुरू हो गई। विश्वास कीजिये हम जितनी ज्यादा चिंता करेंगे हमारी तरक्की भी उसी अनुपात में बढ़ती जाएगी, क्योंकि चिंता ही तरक्की का मूल है, चिंता ही हमें तरक्की करने के लिये बाध्य करती है। बाजार पुर-जोर इसी कोशिश में लगा है कि हम चिंता करना छोड़ न दें। बस ऐसा ही समझना चाहिए कि ......

जून अंक का संपर्क सूत्र (लिंक) नीचे दिया हुआ है: