शुक्रवार, 5 मार्च 2021

सूतांजली मार्च २०२१

 सूतांजली के मार्च अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-

इस अंक में दो विषय, एक लघु कहानी एवं कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी धारावाहिक का तीसरा अंश है:

१। कैसा जीवन चाहिये? गुलाम का या मालिक का?

कैसा जीवन खोजते हैं आप? – एक गुलाम जैसा या एक मालिक जैसा! बड़ा बेहूदा सा प्रश्न प्रतीत होता है। यह भी कोई पूछने वाली बात है! गुलामी का जीवन भी कोई जीवन है? गुलामी में तो जीवन केवल जाता है, आता नहीं। गुलामी का जीवन बस एक आभास होता है, सपना होता है,.....

२। सुखी जीवन, आपकी मुट्ठी में

एक बड़ी कंपनी में कार्यरत महिला लिखती हैं:

उस वर्ष कंपनी में अनेक उठा-पटक हुए। अब कंपनी के कर्मचारियों का वार्षिक मूल्यांकन चल रहा था। सभी बेहद तनाव में थे। चाय पर, भोजन पर, गलियारों में, आते-जाते सब केवल इसी की चर्चा कर रहे थे। कौन रहेगा, कौन जाएगा, किसकी तरक्की होगी, किसकी अवनति होगी? जितनी मुंह उतनी बातें। मैं उस तनाव को झेल नहीं पा रही थी। अत: हरिद्वार एक आश्रम में  ध्यान- .......

३। गुरु पर भरोसा

भयानक कार दुर्घटना में अपना बायाँ हाथ खो चुकने के बाद भी १० वर्षीय जतिन की जूडो सीखने की तीव्र इच्छा थी। एक दिन वह एक बूढ़े जापानी जूडो गुरु के पास पहुंचा। साहस जुटाकर उसने उनसे जूडो सीखाने का आग्रह किया। गुरु ने उसे अपने शिष्यों में शामिल कर लिया। अगले दिन से वह नियमित अभ्यास में शामिल होने लगा। वह खूब मन लगाकर अच्छी तरह से सीख रहा था। लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि पिछले तीन महीने से वह एक ही पैंतरा .........

४। कारावास की कहानी – श्री अरविंद की जुबानी

पांडिचेरी आने के पहले श्री अरविंद कुछ समय अंग्रेजों की जेल बंद में थे। जेल के इस जीवन का, श्री अरविंद ने कारावास की कहानी के नाम से, रोचक वर्णन किया है। अग्निशिखा में इसके रोचक अंश प्रकाशित हुए थे। इसे हम जनवरी माह से एक धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। इस कड़ी में यहाँ इसका तीसरा अंश है।

 

संपर्क सूत्र (लिंक): -> https://sootanjali.blogspot.com/2021/03/2021.html

 

ब्लॉग में इस अंक का औडियो भी उपलब्ध है।

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

अति सर्वत्र वर्जयेत

 जब जनता भ्रमित हो, दो खेमों में बंटी हो, तर्क-कुतर्क के सहारे अपने को सही और दूसरे को गलत सिद्ध करने पर तुली हो, दोनों पक्ष असत्य-अर्धसत्य का सहारा ले रहे हों, दोनों पक्षों में अच्छाइयाँ और बुराइयाँ हों,  तब विद्वानों-मनीषियों का यह उत्तरदायित्व बनता है कि वे किसी भी एक पक्ष के  हिमायती न बन कर अच्छे को अपनाने और बुरे को निकालने,  चाहे जिस पक्ष में हो, की पैरवी कर दोनों पक्षों में शांति पैदा करने की कोशिश करें, एक स्वस्थ्य वातावरण तैयार करें, एक अनुकरणीय आचरण करें, न कि पक्ष-विपक्ष में बंट कर अशांति को बढ़ायेँ।

पूरे विश्व में  बहुत कुछ घटित हो रहा है। हमें, हमारे देश की ज्यादा जानकारी है। अत: हमें यहाँ की घटनाओं का ज्यादा पता है और वे हमें ज्यादा उद्वेलित करती हैं। हम अपने देश के भूत, वर्तमान तथा भविष्य से जुड़े हैं, अत: अपने देश की घटनाएँ हमें ज्यादा विचलित करती हैं।  पूरा देश, ऐसा प्रतीत होता है अंध लोगों से भरा है और दो खेमों में बंटा है – एक है अंध भक्तों का और दूसरा है अंध विरोधियों का। ये दोनों ही खतरनाक हैं। एक को कोई बुराई नहीं दिखती और दूसरे को कोई भलाई नहीं नजर आती। एक को लगता है कि सब ठीक और सही है तो दूसरे खेमे को सब बुरा और गलत नजर आता है।  जहां एक खेमा जिन नियमों, क़ानूनों, संविधान और महापुरुषों की बातों और कार्यों से सही सिद्ध करता है तो दूसरा उन्हीं की दुहाई दे कर तर्कों से उन्हें गलत बताता है। यही नहीं दोनों एक दूसरे को सहन भी करते नजर नहीं आ रहे। हमने अंग्रेजों को भी सहन नहीं किया और उन्हें देश से चले जाने को कहा, लेकिन वे अंग्रेज़ थे, विदेशी थे। लेकिन इनका क्या करें? ये तो इसी देश के हैं। क्या वे भी देश छोड़ कर चले जाएँ? क्या यह उनका देश नहीं है? कहाँ जाएँ? जिस डॉ. अंबेडकर ने हमें संविधान दिया और उसके अंतर्गत हमें मौलिक अधिकार प्रदान किए उन्हीं डॉ. अंबेडकर ने यह भी कहा था, “अब जब हमारा देश स्वतंत्र हो गया है, हमारे पास अपना संविधान है, कानून है, न्यायालय हैं, हमें सत्याग्रह और हड़ताल का परित्याग कर, अपने न्यायालयों या अन्य संवैधानिक तरीकों से, समस्या का हल शांतिप्रिय तरीकों का उपयोग कर निकालना चाहिए लेकिन नहीं, कोई न समझने को तैयार न सुनने को। दोनों की एक ही जिद पंचों की आज्ञा सर-माथे, लेकिन नाला यहीं खुदेगा।  दोनों खेमों में हर मुद्दे पर जोरदार बहस, धरना, विरोध  चलता ही रहता है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह हमारी नहीं किसी विदेशी कि सरकार है। तर्क, वितर्क, कुतर्क सभी का ज़ोर रहता है। किंकर्तव्यविमूढ़ जनता एक खेमे की बात सुनकर खुश होती है, नारे लगाती है, जयजयकार करती है वही जनता दूसरे खेमे में भी वही करती है। पहलवानों की कुश्ती देखने से जनता को जैसे उत्तेजना मिलती है, ठीक वैसी ही उत्तेजना चारों तरफ फैली हुई है। वास्तविक तथ्य जानने की  न किसी को परवाह है न फुर्सत। न्याय शास्त्र में जितने प्रकार के छल, कपट, वितण्डावाद  आदि बताए गए हैं उन सबका दांव-पेंच की तरह दोनों खेमे के लोग कर रहे हैं।  दोनों खेमों में युधिष्टिर की तरह अर्ध-सत्य कहने वाले और असत्य कहने वालों की कमी नहीं। हाँ, सत्य कहने वाले भी हैं लेकिन उनकी बात न कोई करना चाहता  है और न सुनना। बात उत्तेजना से आगे बढ़ कर हिंसा, विद्वेष, तिरस्कार, नफरत तक चली जाती है।

बात यहीं तक होती तो फिर भी संतोष कर लिया जाता। दर्द और चिंता की बात तो यह है कि देश के बहुतायत मनीषी, विद्वान, संत  ने भी अपने को बाँट लिया है और जनता को बांटने में लगे हैं। गांधी ने देश के विभाजन का पुरजोर विरोध किया। अंत तक स्वीकार भी नहीं किया। लेकिन जब देश के विभाजन का निर्णय हो गया तब विभाजन के निर्णय के विरुद्ध सत्याग्रह न कर उन्होंने अपनी पूरी ताकत दोनों खेमों के बीच सौहार्द-प्रेम-प्यार-भाईचारा स्थापित करने में लगा दिया। और इसी कारण दोनों खेमों के अनेक लोग उन्हें संदिग्ध नजरों से देखने लगे। दोनों तरफ के लोग उन्हें दूसरे खेमे का समर्थक मानते रहे और अंत में, अहिंसा का पुजारी अपने ही लोगों की हिंसा का शिकार हो गया।  

दु:ख होता है जब देखता हूँ कि उनके ही अनुयायी, उनके ही नाम पर एक को दूसरे के विरुद्ध उकसा रहे हैं। दोनों ही खेमों में अपनी अपनी अच्छाइयाँ और बुराइयाँ हैं। ऐसा नहीं है कि एक दूध का धोया है और दूसरा काजल की कोठरी है।  बुद्धिजीवियों को खेमों में बंटने के बजाय दोनों को सही मार्ग दिखाना है, उनमें सामंजस्य पैदा करना है, भाईचारे की प्रवृत्ति पैदा करनी है। गांधी की ही बात मानें तो बुरे को नहीं बुराई को त्यागना है। आखिरकार दोनों तरफ के लोग इसी देश के नागरिक हैं, हमें साथ-साथ ही रहना है। तब फिर एक से प्यार और दूसरे से नफरत क्यों?

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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

मधुर गालियाँ

गालियाँ और मधुर? नहीं मैं शादी-विवाह में दी जाने वाली सीठनों (गालियों) की बात नहीं कर रहा जहां वधु पक्ष की औरतें वर पक्ष को मधुर गीतों में खरी-खोटी सुनाती हैं। मैं बात कर रहा हूँ वास्तविक गालियों की, श्राप की। देखिये कुछ मधुर गालियों की बानगी:

१। उसके घर में न तो बड़े रहें, जो अक़्लमंद नसीहत दे सकें और न छोटे रहें, जो उन नसीहतों को सुन सकें।

२। भगवान करे कि

·        तुम्हारी जबान सूख जाए,

·        तुम अपनी प्रेमिका का नाम भूल जाओ,

·        जिस आदमी के पास तुम्हें काम से भेजा जाये, वह तुम्हारी बात को सही ढंग से न समझ सके,

·        जब तुम दूर-दराज़ का सफर करके लौटो, तो गाँव वालों को अभिनंदन के शब्द कहने भूल जाओ,

·        तुम्हारे  बच्चों को उससे महरूम कर सकें जो उन्हें उनकी जुबान सीखा सकता हो,

·        तुम्हारे बच्चों को  उससे मरहूम करे, जिसे वे अपनी जबान सीखा सकते हों।

ये हैं कुछेक ऐसी गालियाँ जिन्हें समझने के लिए इन्हें फिर से पढ़ना पड़ सकता है। ये हैं साहित्यकारों की साहित्यिक गालियाँ, शरीफ़ों की शरीफ गलियाँ। दरअसल ये हैं एक रूसी लेखक रसूल हमज़ातोव की 



मेरा दागिस्तान से लिया गया अंश। दागिस्तान रूस के उस गाँव का नाम है जहां रसूल का जन्म हुआ था। उन्हें अपनी मातृभूमि और मातृभाषा से बेहद लगाव था। उपन्यास में उनके इस लगाव की स्पष्ट झलक मिलती है, और साथ ही पता चलता है अपनी भाषा के महत्व का।

संचय के नुकसान

अब दूसरी बानगी देखिये टोल्स्टोय की शैतान यह सब सुनते ही चुस्त-दुरुस्त सरकारी हकीमों की भाषा में बदतमीज, नालायक, बेहूदा, कमीना, चुगद ....... आदि की बौछार करते हुए सख्ती से पेश आया और कहा – अगर तूने तीन बरस में मेरा काम नहीं किया तो तुझे गंगा-स्नान की सख्त सजा देनी पड़ेगी, और रामनाम जपने, तुलसीदल खाने, गंगाजल पीने की यंत्रणा भी दी जाएगी। 

यह उनकी एक बड़े मजेदार कहानी का अंग है। कहानी कुछ इस प्रकार है कि एक गाँव में एक बड़ा मेहनती और ईमानदार किसान रहता था साथ ही बुराई से डरता था। शैतान से यह बरदास्त नहीं हुआ। उसने अपने अनुचर को उसे पदभ्रष्ट करने भेजा। बेचारे कई चालें चला लेकिन अपने कार्य में सफल नहीं हो पाया। हार कर वह शैतान के पास लौट आया और बताया कि वह उनका काम नहीं कर सका। यह जान कर ही शैतान ने उसे ऊपरी बातों से सुशोभित किया। बेचारा वापस चला आया और विचार करने लगा कि क्या किया जाये? आखिर उसे एक अच्छा उपाय सूझा। उसने एक गरीब किसान का रूप बनाया और उसके यहाँ नौकरी करने लगा। अब उसने किसान को सलाह देनी शुरू की। उसकी सलाह से किसान को प्रचुर फायदा और गाँव वालों का नुकसान होने लगा। गाँव के लोग गरीब होते चले गये और वह बड़ा सेठ बन गया, और प्रचुर मात्रा में धन जमा होने लगा। किसान उस पर फिदा हो गया और उसकी हर सलाह मानने लगा। और जब उसके पास बेशुमार दौलत जमा हो गई। तब उसने किसान को चावल सड़ा कर शराब बनाने की विधि सिखाई और फिर पीना भी सीखा दिया। बस फिर क्या था दावतें होने लगीं, महफिलें जमने लगीं। मेहनत, ईमानदारी हवा हो गई और बुराई तथा बेईमानी ने अपने पाँव पसार लिए। ऐसी ही एक महफिल में जिसमें यार दोस्तों के साथ उनकी पत्नियाँ भी थीं अनुचर ने शैतान को अपनी सफलता दिखाने बुला लिया। उसने देखा उनके बीच नि:संकोच बेशरमी से सब चल रहा था। पहले लोमड़ी की तरह गली-गलौच, बेईमानी और धूर्तता की बातें, फिर भेड़िये की तरह गुर्राना और हाथा-पाई और अंत में वहीं गंदी नाली में गिर कर वहीं सूअरों की तरह सो गये। शैतान बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा यह केवल शराब का कमाल नहीं है बल्कि जरूरत से ज्यादा संचय करने का कमाल है। ऐसी कोशिश करो की दुनिया के लोग दूसरों से छीन कर संचय करने लगें। तब वे छीना-झपटी और संचय की होड़ में फंस जाएंगे और तब दुनिया से उस दुष्ट ईश्वर का राज्य उठ जाएगा और सब मेरी प्रजा बन जाएगी।

गांधी ने तीन बातें कही थीं – संयम करो, अपरिग्रह करो तथा आलस्य त्याग कर परिश्रम करो। गांधी के अनुयायी नेहरू ने केवल एक बात अपनाई – आराम है हराम। पहले औद्योगिक क्रांति हुई। फिर हरित क्रांति हुई। और फिर श्वेत क्रांति भी हुई। लेकिन 100 में से 90 की थाली में कुछ नहीं आया, एक बूँद दूध का नहीं पहुंचा। जब हम अधूरी बात मानते हैं तब हमारी मंशा भी अधूरी ही फलित होती है। अर्जन के साथ वर्जन, ग्रहण के साथ अपरिग्रह को जोड़ना जरूरी है अन्यथा संयम संभव नहीं। मद धन में नहीं संचय में है। जब तक हमारा मन अ-प्रमाद के साथ-साथ दम और त्याग को मंजूर नहीं करता, सारी क्रांतियाँ निरर्थक हैं।

(पत्र मणिपुतुल के नाम पर आधारित)

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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

सूतांजली, फरवरी २०२१

 सूतांजली के फरवरी अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-

इस अंक में तीन विषयों पर चर्चा है:

१। यक्ष प्रश्न 

यक्ष ने अगला प्रश्न किया, “संसार में दु:ख क्यों है?”

“लालच, स्वार्थ, भय संसार के दु:ख के कारण हैं”, युधिष्ठिर ने बताया।

“तब फिर ईश्वर ने दु:ख की रचना क्यों की?”

“ईश्वर ने संसार की रचना की। और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दु:ख और सुख की रचना की”।   ..........................

२। अंधेरा

·          अंधेरा, अंधकार, अँधियारा, तमस, रात, तम, तिमिर

·          अज्ञानता, मतिभ्रम, निराशा, अवसाद, रहस्य, अप्रसिद्धि, अपमान, मृत्यु

·          दिन में सूर्य प्रकाशित होता है तो रात्रि में चाँद, तारे, दीपक, मोमबत्ती, मशाल, बिजली अंधेरे का नाश करते हैं

·          जरा ठहरो, यानि प्रकाश के लिये किसी का होना आवश्यक है! चाहे वह सूर्य हो या चाँद-तारे, या दीपक, बिजली या कुछ और! ...................

३। कारावास की कहानी

पांडिचेरी आने के पहले श्री अरविंद कुछ समय अंग्रेजों की जेल बंद में थे। जेल के इस जीवन का, श्री अरविंद ने कारावास की कहानी के नाम से, रोचक वर्णन किया है। अग्निशिखा में इसके रोचक अंश प्रकाशित हुए थे। इसे हम जनवरी माह से एक धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। इस कड़ी में यहाँ इसका दूसरा अंश है।

 

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ब्लॉग में इस अंक का औडियो भी उपलब्ध है।

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

काम या नाम

आज हर कोई, हर संस्था, राजनीतिक दल हो या राजनीतिक संगठन। सामाजिक कार्यकर्ता हों या सामाजिक संस्था। सामाजिक आंदोलन के प्रणेता या धार्मिक संस्थान, सब हिमालय जैसी भूलें कर रहे हैं, पर इनमें से एक भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं।

इन सब से अलग एक व्यक्ति था, इन सब से अलग था, अनूठा था। जो बातें उन्हें अलग और अनूठा  बनाती थीं, वे थीं:

१। उन्हें मृत्यु का भय नहीं था,

२। पराजय का भय नहीं था,

३। कहीं कोई उन्हें मूर्ख न मान ले – इसका डर नहीं था,

४। सबसे महत्वपूर्ण बात, उन्हें अपनी गलती स्वीकार करने में डर नहीं लगता था।

इनके अलावा एक और विशिष्ट बात थी – कड़ुवे सच सुनने और समाज को कड़ुवे सच सुनाने का साहस था।

आज इन बातों को अगर हम मापदंड के तौर पर लें और पूछें कि कौन है जो इन मापदंडों पर खरा उतरता है, तो बहुत कम लोग मिलेंगे। यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। इसे हम चाहे कुछ भी नाम दें, शक्ति कहें, ताकत कहें, आदत कहें या तकनीक कहें या कुछ और। उस व्यक्ति का नाम बताऊँ तो शायद आपके मुंह: का स्वाद खराब हो जाएगा। क्योंकि दुष्प्रचार, भ्रामक और झूठी बातें फैला कर सोशल मीडिया और खुद गर्ज़ लोगों ने हमारे दिल में उनके लिए नफरत भर दिया है। लेकिन कोई उनसे पूछे कि अगर ऐसा ही था तब, जब वे थे, पूरा भारत उनके पीछे क्यों चला, पूरा विश्व उनका लोहा क्यों मानता था, बिना कोई प्रश्न किए? खैर, अभी मुद्दा कुछ और है। वैसे भी, आप समझ ही गए होंगे मैं जिनकी बात कर रहा हूँ वे थे मोहनदास करमचंद गांधी।

हमें जब भी किसी राजनीतिक दल, राज्य या केंद्र सरकार की किसी गलती को खोज निकालने में मजा आए तो हमें खुद से भी पूछ लेना चाहिये क्या इस गलती को करने में हमारी अपनी भी कुछ भूमिका थी?’ हम ऐसा नहीं करने वाले। और राजनीति में जो लोग हैं, वे भी हमसे ऐसा करने को कहने वाले नहीं।  कोई यह कहने को तैयार नहीं कि मैं हारूँ तो हारूँ, मैं अपना स्नेह लुटा दूँ तो लुटा दूँ लेकिन मैं सच जरूर कहना चाहता हूँ। एक आम नागरिक  की तरह भी हमने अपने देश को नीचा दिखाया है – यह आज कोई कहने को तैयार नहीं। लेकिन इसके विपरीत इस पीड़ा को, इस दर्द को, इस घाव को दूर करने के लिए कई लोग ठोस काम कर रहे हैं। वे अपने आप को गांधीवादी नहीं बताते हैं। पर वे काम कर रहे हैं। उनकी संख्या कम है। उनके नामों से भी हम परिचित नहीं हैं। गांधी का जो भी काम देश में हो रहा है, वो खासकर उन्हीं लोगों से हो रहा है जो कि अपने काम को गांधी का नाम नहीं दे रहे हैं। उन्हें नाम से मतलब भी नहीं है। उन्हें केवल काम से मतलब है और वे सिर्फ अपने काम में रत हैं।

अब कुछ नाम और काम प्रकाश में आए हैं लेकिन उनकी चर्चा कहीं नहीं है। सुहासिनी माइती ने भीख मांग कर हयूमैनिटी अस्पताल खड़ा कर दिया, हरेकाला हजब्बा  ने संतरे बेच कर प्राथमिक विद्यालय की  स्थापना की,  बिहार के बेतहारवा गाँव में स्वाधीनता के बाद से आज तक न एक भी एफ़आईआर दाखिल हुई और न ही कोई केस दर्ज हुआ, अनेक सरकारी अधिकारी स्थानांतरण के जुल्म झेलते रहे लेकिन सत्य से नहीं डिगे,  नदिया जिले के अभयनगर में प्राथमिक विद्यालय के प्राध्यापक ने रोज पूरे गांववासियों को राष्ट्रगान पर सब काम छोड़ कर खड़े होने की प्रेरणा दी। इनमें से कोई भी नाम के पीछे नहीं गया, ये सब काम के भूखे हैं, इनमें एक जज़बा है। और सबसे खास बात ये है कि ये समाज के उस तबके से हैं जिन्हें हम कमजोर वर्ग का मानते हैं। उनपर न हमारी नजर पड़ती है और न हम उनकी परवाह करते हैं। दुनिया में जो थोड़ी बहुत अच्छाई बची है, इंसानियत बची है, वह शायद ऐसे ही लोगों के कारण बची है जो काम में विश्वास रखते हैं। वे न नाम की परवाह नहीं करते और न ही संसाधनों का इंतजार।  वे बिना किसी संसाधन के, अपने आप में समस्त  संसाधनों से युक्त पूर्ण संस्थान हैं। 

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शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

डॉ एल पी तेस्सीतोरी

 विदेशी मनीषियों, साहित्यकारों, विद्वानों का हमारी संस्कृति, आस्था, साहित्य और भाषा के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान रहा है। उनके यात्रा विवरणों से विश्व को हमारे एवं हमें अपने इतिहास, देश-काल, संस्कृति, सभ्यता  और समाज का पता चलता है। इसके अलावा हमारे कई अनमोल ग्रन्थों का भी उन्होंने ही उद्धार किया है । इसमें एक नाम है जर्मनी के श्री मैक्स मुलर का। हम यह जानते हैं कि हमारे वेदों को विलुप्त होने से बचाने में मैक्स मुलर का ही हाथ था। ये मैक्स मुलर ही थे जिनके प्रयास से विलुप्त होते हमारे चारों वेद प्रकाश में आये, उनकी छपाई हुई तथा अनेक भाषाओं में उनका अनुवाद भी हुआ। इस प्रकार ये हमारे अनमोल आधारशिला ग्रंथ विलुप्त होने से बचे।

 ऐसे ही इटली के भाषाविद थे डॉ एल पी तेस्सीतोरी। इटली में ही रहते हुए उन्होंने रामायण और राम चरित मानस पढ़ा, उसका अध्ययन किया और फिर ग्रियर्सन के अनुमोदन पर कोलकाता के एशियाटिक सोसाइटी में आये। यहाँ आकार उन्होंने राजस्थानी भाषा पर काम प्रारम्भ किया। राजस्थानी सीखी और राजस्थान को अपना कर्म क्षेत्र बनाया। विपरीत हालातों और मौसम की परवाह न कर ऊंटों पर सवारी कर पूरे राजस्थान का भ्रमण किया और दूर-दराज के गाँव-गाँव में घूम-घूम कर राजस्थानी साहित्य की पांडुलिपियाँ जमा कीं, उनको छपवाया और अन्य भाषाओं में  उनका अनुवाद भी किया और करवाया। उन्हीं के प्रयास से राजस्थानी के अनेक ग्रंथ विलुप्त होने से बचे।

 डा. तेस्सितोरी का संक्षिप्त परिचय – 13 दिसम्बर 1887 को इटली के उदीने शहर में जन्मे डा. तेस्सितोरी करीब 100 साल पहले भारत आए थे। 1910 में विदेशी भाषाओं के प्रति रुचि रखने वाले तेस्सितोरी ने फ्लोरेंस विश्व विद्यालय से संस्कृत में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वे भारत में रहकर राजस्थान के राजपुताना के इतिहास को 1914 में लिपिबद्ध किया। इस प्रयास में भाषाविद जार्ज ग्रियर्सन ने भाषाई सर्वेक्षण कराने के लिए उन्हें भारत आमंत्रित किया था। उन्होंने तेस्सितोरी को तत्कालीन एशियाटिक सोसाइटी के स्कालर के तौर पर राजपुताना की भाषाओं पर शोध करने के लिए आमंत्रित किया था। तब कोलकाता देश की सांस्कृतिक व बुद्धिजीवियों का शहर माना जाता था। तेस्सितोरी ने जयपुर, जोधपुर व बीकानेर को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाया तथा गहरी मेहनत के साथ ही इन्हें सोसाइटी में लिपिबद्ध किया। सोसाइटी ने इनमें से काफी तथ्यों का सिलसिलेवार प्रकाशन करवाया जिसमें तेस्सितोरी की हस्तलिपी भी संरक्षित है।

ग्रिर्यसन का तेस्सितोरी पर निर्भता इसी बात से समझा जा सकता है कि फ्लोरेंस यूनिवर्सिटी के विद्वान ने संस्कृत, प्रकृत व पाली में शीर्ष डिग्री प्राप्त की। उन्होंने न केवल रामयाण पढ़ी बल्कि संस्कृत में लिखे बाल्मिकी रामायण तथा अवधी में तुलसीदासकृत राम चरित मानस के तुलनात्मक अध्ययन पर शोध कर शोध पत्र भी लिखा। तेस्सितोरी ने राजपुताना की भाषा व संस्कृति के विकास क्रम को लिपिबद्ध किया। राजस्थान में उनके महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि राजस्थान की कई सड़कों व संस्थानों का नामकरण उनके नाम पर हुआ है। उन्होंने राजस्थान प्रवास के दौरान, यहाँ न केवल सघन दौरा किया, बल्कि तपते रेगिस्तान तथा झुलसा देने वाली धूप की भी परवाह किए बगैर राजस्थानी भाषा व संस्कृति के विकास व समृद्धि के लिए काम किया। हालकृत सतसई, नासकेतरी कथा, इंद्रिय पराजय शतकम और आजाद वक्त की कथा आदि कृतियों का इतालवी भाषा में अनुवाद करके जहाँ, वहाँ के लोगों को भारतीय साहित्य से परिचित कराया, वहीं इतालवी साहित्य की भी श्री वृद्धि करके अपनी मातृभाषा की सेवा भी की।

मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में 22 नवंबर 1919 को बीकानेर में माँ भारती का यह चितेरा उसकी गोद में सदा के लिए सो गया। बिकानेर के राजकीय संग्रहालय के प्रांगण में उनकी मूर्ति लगी है और इसी के नजदीक कब्रगाह में उनका मकबरा सुरक्षित है।

राजस्थानी प्रचारिणी सभा, दी एशियाटिक सोसाइटी के साथ हर वर्ष डा तेस्सितोरी की याद में व्याख्यान का आयोजन करती है। इस वर्ष यह आयोजन शनिवार, 9 नवंबर को संध्या 7.00 बजे से ज़ूम पर आयोजित है जिसमें उदीने, इटली के भाषाविद भी भाग ले रहे हैं। कार्यक्रम की पूरी जानकारी तथा ज़ूम सभा की पूरी सूचना नीचे संलग्न है। हम ऐसी सभाओं में उपस्थिती दर्ज करा कर अपनी जानकारी बढ़ा सकते हैं साथ ही इससे आयोजकों का उत्साहवर्धन भी होता है। अत: प्रयत्न कर इस आयोजन का हिस्सा बनें।

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राजस्थानी प्रचारिणी सभा एवं दी एशियाटिक सोसाइटी आपको आमंत्रित करती है ज़ूम सभा में

विषय : डॉ. एल पी तेस्सितोरी  - व्याख्यानमाला 2020

समय : शनिवार, जनवरी 9, 2021, 07:00 संध्या, कोलकाता, भारत

 ज़ूम सभा का लिंक

https://us02web.zoom.us/j/6106781034?pwd=ZkwzNHU1SytvaXBlV3dKSmFBWjVPZz09

 सभा संख्या : 610 678 1034

पासकोड : tessitori

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शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

सूतांजली, जनवरी २०२१

 सूतांजली के जनवरी अंक का संपर्क सूत्र नीचे है:-

इस अंक में कई विषयों पर चर्चा है:

१। ध्यान कैसे करें?

कैसे करें, से पहले यह समझें कि ध्यान क्या है और क्यों करना है। अगर यह क्या और क्यों समझ आ जाए तो कैसे बेहद सरल हो जाता है।

२। बोध कथा

क्या होती हैं बोध कथाएँ’? क्या उद्देश्य होता है इन कथाओं का? कहाँ मिलेगा बोध कथाओं का खजाना? क्या सम्पर्क है इनका हमारी भाषा, सभ्यता और संस्कृति से? इन सब के उत्तर आपको मिलेंगे एक ही पुस्तक में। पढ़ें-पढ़ाएँ, सुने-सुनाएँ और पुस्तकालयों में बांटें।

३। जनसम्पर्क

जीवन में सफलता के लिए, लोक प्रिय बनने के लिए यह आवश्यक है कि आपका जनसम्पर्क मजबूत हो। कैसे बनाएँ ये जनसम्पर्क?

४। कारावास की कहानी

पांडिचेरी आने के पहले श्री अरविंद कुछ समय अंग्रेजों की जेल बंद में थे। जेल के इस जीवन का, श्री अरविंद ने कारावास की कहानी के नाम से, रोचक वर्णन किया है। अग्निशिखा में इसके रोचक अंश प्रकाशित हुए थे। इसे हम इस माह से एक धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। यहाँ इसका पहला अंश है।

संपर्क सूत्र (लिंक): ->  https://sootanjali.blogspot.com/2021/01/blog-post.html

ब्लॉग में इस अंक का औडियो भी उपलब्ध है।