गालियाँ और
मधुर? नहीं मैं शादी-विवाह में दी जाने वाली ‘सीठनों’ (गालियों) की बात नहीं कर रहा जहां वधु पक्ष की औरतें वर पक्ष को मधुर
गीतों में खरी-खोटी सुनाती हैं। मैं बात कर रहा हूँ वास्तविक गालियों की, श्राप की। देखिये कुछ मधुर गालियों की बानगी:
१। उसके घर
में न तो बड़े रहें, जो अक़्लमंद नसीहत दे सकें और न छोटे रहें, जो उन
नसीहतों को सुन सकें।
२। भगवान
करे कि
·
तुम्हारी जबान सूख जाए,
·
तुम अपनी प्रेमिका का नाम भूल जाओ,
·
जिस आदमी के पास तुम्हें काम से
भेजा जाये, वह तुम्हारी बात को सही ढंग से न समझ सके,
·
जब तुम दूर-दराज़ का सफर करके लौटो, तो गाँव वालों को अभिनंदन के शब्द कहने भूल जाओ,
·
तुम्हारे बच्चों को उससे महरूम कर सकें जो उन्हें उनकी
जुबान सीखा सकता हो,
·
तुम्हारे बच्चों को उससे मरहूम करे, जिसे वे अपनी जबान सीखा सकते हों।
ये हैं
कुछेक ऐसी गालियाँ जिन्हें समझने के लिए इन्हें फिर से पढ़ना पड़ सकता है। ये हैं
साहित्यकारों की साहित्यिक गालियाँ, शरीफ़ों की शरीफ
गलियाँ। दरअसल ये हैं एक रूसी लेखक रसूल हमज़ातोव की
‘मेरा
दागिस्तान’ से लिया गया अंश। दागिस्तान रूस के उस गाँव का
नाम है जहां रसूल का जन्म हुआ था। उन्हें अपनी मातृभूमि और मातृभाषा से बेहद लगाव
था। उपन्यास में उनके इस लगाव की स्पष्ट झलक मिलती है, और साथ
ही पता चलता है अपनी भाषा के महत्व का।
संचय के नुकसान
अब दूसरी
बानगी देखिये टोल्स्टोय की ‘शैतान यह सब सुनते ही
चुस्त-दुरुस्त सरकारी हकीमों की भाषा में बदतमीज, नालायक, बेहूदा, कमीना, चुगद .......
आदि की बौछार करते हुए सख्ती से पेश आया और कहा – अगर तूने तीन बरस में मेरा काम
नहीं किया तो तुझे गंगा-स्नान की सख्त सजा देनी पड़ेगी, और
रामनाम जपने, तुलसीदल खाने, गंगाजल पीने
की यंत्रणा भी दी जाएगी।
यह उनकी एक
बड़े मजेदार कहानी का अंग है। कहानी कुछ इस प्रकार है कि एक गाँव में एक बड़ा मेहनती
और ईमानदार किसान रहता था साथ ही बुराई से डरता था। शैतान से यह बरदास्त नहीं हुआ।
उसने अपने अनुचर को उसे पदभ्रष्ट करने भेजा। बेचारे कई चालें चला लेकिन अपने कार्य
में सफल नहीं हो पाया। हार कर वह शैतान के पास लौट आया और बताया कि वह उनका काम
नहीं कर सका। यह जान कर ही शैतान ने उसे ऊपरी बातों से सुशोभित किया। बेचारा वापस
चला आया और विचार करने लगा कि क्या किया जाये? आखिर उसे एक अच्छा
उपाय सूझा। उसने एक गरीब किसान का रूप बनाया और उसके यहाँ नौकरी करने लगा। अब उसने
किसान को सलाह देनी शुरू की। उसकी सलाह से किसान को प्रचुर फायदा और गाँव वालों का
नुकसान होने लगा। गाँव के लोग गरीब होते चले गये और वह बड़ा सेठ बन गया, और प्रचुर मात्रा में धन जमा होने लगा। किसान उस पर फिदा हो गया और उसकी
हर सलाह मानने लगा। और जब उसके पास बेशुमार दौलत जमा हो गई। तब उसने किसान को चावल
सड़ा कर शराब बनाने की विधि सिखाई और फिर पीना भी सीखा दिया। बस फिर क्या था दावतें
होने लगीं, महफिलें जमने लगीं। मेहनत,
ईमानदारी हवा हो गई और बुराई तथा बेईमानी ने अपने पाँव पसार लिए। ऐसी ही एक महफिल
में जिसमें यार दोस्तों के साथ उनकी पत्नियाँ भी थीं अनुचर ने शैतान को अपनी सफलता
दिखाने बुला लिया। उसने देखा उनके बीच नि:संकोच बेशरमी से सब चल रहा था। पहले
लोमड़ी की तरह गली-गलौच, बेईमानी और धूर्तता की बातें, फिर भेड़िये की तरह गुर्राना और हाथा-पाई और अंत में वहीं गंदी नाली में
गिर कर वहीं सूअरों की तरह सो गये। शैतान बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा यह
केवल शराब का कमाल नहीं है बल्कि जरूरत से ज्यादा संचय करने का कमाल है।
ऐसी कोशिश करो की दुनिया के लोग दूसरों से छीन कर संचय करने लगें। तब वे छीना-झपटी
और संचय की होड़ में फंस जाएंगे और तब दुनिया से उस दुष्ट ईश्वर का राज्य उठ जाएगा
और सब मेरी प्रजा बन जाएगी।
गांधी ने
तीन बातें कही थीं – संयम करो, अपरिग्रह करो तथा आलस्य त्याग
कर परिश्रम करो। गांधी के अनुयायी नेहरू ने केवल एक बात अपनाई – ‘आराम है हराम’। पहले औद्योगिक क्रांति हुई। फिर हरित
क्रांति हुई। और फिर श्वेत क्रांति भी हुई। लेकिन 100 में से 90 की थाली में कुछ
नहीं आया, एक बूँद दूध का नहीं पहुंचा। जब हम अधूरी बात
मानते हैं तब हमारी मंशा भी अधूरी ही फलित होती है। अर्जन के साथ वर्जन, ग्रहण के साथ अपरिग्रह को जोड़ना जरूरी है अन्यथा संयम संभव नहीं। मद धन
में नहीं संचय में है। जब तक हमारा मन अ-प्रमाद के साथ-साथ दम और त्याग को मंजूर
नहीं करता, सारी क्रांतियाँ निरर्थक हैं।
(‘पत्र मणिपुतुल के नाम’ पर आधारित)
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