बुधवार, 3 नवंबर 2021। रोज की तरह एक नई सुबह, फर्क केवल इतना है कि इस वर्ष आज छोटी दीवाली भी है। आज भी, माधुरी सुबह-सुबह फिर सैर पर निकली। सुबह बस हुई ही है। गर्मी जा रही है ठंड दस्तक दे रही है। मौसम सुहावना है, सुहाती ठंडी बयार चल रही है। हमारा कोलकाता जल्दी उठने वाले शहरों में है। उस पर भी श्यामनगर, बांगुड़ के इलाके में दिन जल्दी हो जाता है। लोग घूमते-फ़िरते दिखते हैं। इलाका सुनसान नहीं रहता।
माधुरी के कई संगी-साथी हैं जो साथ-साथ
घूमते हैं। लेकिन आज वह अकेली है, उसकी एक भी संगी-साथी उसके साथ
नहीं है। लेकिन ऐसा कई बार होता है। माधुरी नि:शंक प्रसन्नचित्त सैर करती है, दशकों से। त्यौहार पर बहुत व्यस्तता है, दिन भर
क्या-क्या करना है इस पर चिंतन चल रहा है। तभी, एक मोटर साइकिल
उसके समीप आती है, उस पर सवार सिरफिरे युवा उसके हाथ से फोन
छिन लेते हैं। जैसे ही वे भागने को उद्यत होते हैं, माधुरी
उनसे हाथापाई करने लगती है। उनमें से एक माधुरी को ज़ोरों का धक्का देता है, वह गिर पड़ती है। लेकिन फिर तुरंत खड़ी होकर उनकी मोटर साइकिल का रास्ता
रोक कर खड़ी हो जाती है। सवार तेजी से उसकी तरफ अपनी मोटर साइकिल बढ़ाता है। माधुरी
रास्ता नहीं छोड़ती। मोटर साइकिल उसके नजदीक आती जा रही है और उसकी गति (स्पीड) भी बढ़ती जा रही है। माधुरी समझ लेती है
कि अगर वह नहीं हटी तो वे उसे मोटर साइकिल से कुचलते हुए भागेंगे। वह हट जाती है, पूरे ज़ोर से चिल्लाती भी है लेकिन किसी के भी कानों पर जूँ नहीं रेंगती।
न कोई उसे उठाने आया, न किसी ने भी सहायता की, न किसी ने भागते मोटर साइकिल को रोकने की चेष्टा की। सब निर्विकार बुत
बने खड़े रहे।
माधुरी थाने पर पहुँचती है। अधिकारी उसे
ज्ञान देते हैं - उनसे ‘हाथापाई’ नहीं करनी चाहिए, वे
जो मांगे दे देना चाहिए। ऐसी घटनाएँ बहुत हो रही हैं, फोन
हाथ में नहीं रखना चाहिए, अकेले नहीं घूमना चाहिए……… । और अंत में FIR में खो जाने (लॉस्ट) की बात दर्ज करते है, छिनताई (स्नैचिंग) दर्ज से
मना कर देते हैं। माधुरी मगजपच्ची कर, हल्ला मचाकर चली आती
है, थाने वाले टस-से-मस नहीं होते। और इस प्रकार हुआ
पटाक्षेप इस घटना का।
लेकिन बात यहाँ समाप्त नहीं होती। सही
बात तो यह है कि बात यहाँ से शुरू होती है। यह घटना तो सिर्फ उसके बाद का परिणाम
मात्र है। केवल पत्तों, डालों, काँटों को काटने-उखाड़ने से कुछ हासिल नहीं
होता। पेड़ को जड़ समेत उखाड़ना होगा। हमें पहुँचना होगा इसकी जड़ तक और उपचार वहाँ
करना होगा। चेष्टा करें जड़ तक पहुँचने की। कहाँ और कौन है जड़:
मोटर साइकिल
में सवार युवा? : नहीं, समाज
ने उन्हें न सुरक्षा दी न सही शिक्षा
प्रशासन? : नहीं, जैसे विधायक हैं, समाज है वैसा ही प्रशासन
तब क्या विधायक? : नहीं, उन्हें चुना तो समाज के लोगों ने ही
हम / समाज? : विचार
करें, शायद ये ही हों
घटना के बाद
मित्र, परिचित, सम्बन्धी जिसको भी इसकी जानकारी मिली सब ने एक ही बात कही ‘समय बहुत खराब, तकदीर अच्छा है केवल एक फोन पर संकट टला, वे लोग छुरा
मार सकते थे, गोली चला सकते थे, हड्डी-वड्डी
टूट सकती थी, ये अकेले-दुकेले नहीं होते, इनका पूरा गैंग होता है, प्रतिरोध तो करना ही नहीं
चाहिए, जो मांगे चुपचाप देकर जान छूटा लेनी चाहिए.......’। पूरे डरपोक और नपुंसक समाज ने मिल कर फिर एक बार:
राम, कृष्ण, अर्जुन का पक्ष त्याग दिया
रावण, कंस, दुर्योधन के पक्ष में खड़ा हो गया
भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद, नेताजी,
गांधी को भुला दिया
हम जब डरपोक और निष्क्रिय हो जाते हैं, समाज में ऐसे लोग ही बहादुर और सक्रिय हो जाते हैं। भले ही हम करोड़ हों और वे लाख।
यह प्रसन्नता की बात है कि सिर्फ माधुरी के पति ने ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की, बल्कि उसने कहा कि ऐसी अवस्था में उसकी आँखों पर हमला करना चाहिए, परिणाम चाहे जो हो।
क्या ये लोग
47 के पहले के प्रशासकों-विधायकों से ज्यादा ताकतवर हैं?
या हम, उस समय के लोगों के जैसे ताकतवर नहीं रहे?
या हम कमजोर हो
गए?
या फिर स्वार्थी
हो गए हैं?
कहाँ है इसकी
जड़?
कौन है दोषी?
क्या हम
उपचार करना चाहते हैं?
(आइए
अब एक सपना देखते हैं – “फोन छिन कर भागने पर माधुरी चिल्लाई ‘उन्हें पकड़ो-पकड़ो’। कोई नहीं हिला। एक अधेड़ –
बुजुर्ग सब देख रहा था। किसी को कुछ भी न करते देख उसने तुरंत झुक कर हाथों में
पत्थर उठा लिए और डट कर खड़ा हो गया। मोटर साइकिल सवारों को कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि उन्होंने मोटर साइकिल की गति और तेज कर दी। अधेड़ ने अंदाज से पूरे
ताकत से पत्थर उठा कर उन पर मारा, चालक को लगा, डगमगाया, पिछली सवारी गिर पड़ी। अधेड़ ने एक और पत्थर
दे मारा। इस बार निशाना तो चूक गया लेकिन अब दर्शकों में जान आई और चालक भाग खड़ा
हुआ, सवार भीड़ के हत्थे चढ़ गया। जनता ने पहले उसकी धुनाई की, फिर थाने पहुँचे, फोन मिल गया और छिनताई (स्नैचिंग)
की कोशिश की FIR दर्ज कर ली गई। न विधायक आड़े आया न प्रशासन।
कार्य किया जागरूक समाज ने। सपना यहाँ समाप्त नहीं हुआ, डरपोक
लोगों ने पूछना शुरू किया इसके बाद क्या हुआ? उन्हें तो तभी
संतोष होगा जब गुनहगार जीतेगा और निरपराधी भोगेगा। आप विरोध नहीं कर सकते हैं तो
कम-से-कम पाप का विरोध करने वालों का साथ तो दीजिये! )
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सकते हैं।