गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

सकारात्मक सोच

आज के अख़बार में एक notice पढ़ा - भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में। भ्रष्टाचार को बढ़ने की नहीं, उसे कम या मिटाने की कोशिश । भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए पुरस्कार की घोषणा थी। भ्रष्टाचार की ख़बर दीजिये और पुरस्कार पाइये खुदा - न - खास्ता अगर आरोप सिद्ध हो गया और सरकार को अतिरिक्त आमदनी हुई या खर्चा बचा तो आप को भी अतिरिक्त पुरस्कार मिलेगा। यह notice भारत सरकार की नहीं बिहार सरकार की थी।

Notice ने सोचने पर मजबूर कर दिया। पढ़ने पर पहले तो अच्छा लगा लेकिन धीरे धीर जैसे कि मुंह खट्टा हो गया। सोचने लगा, यह notice भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए है या आसन्न चुनाव के मद्दे नजर केवल चुनावी स्टंट है? क्या इस notice के आधार पर कोई भी नागरिक सही जानकारी देगा? अगर किसी ने जानकारी दी भी, तो क्या उस जानकारी पर action होगा? क्या दोषी को सजा और सूचक को इनाम मिलेगा? या अपराधी सूचक को अपने ही ढंग का "पुरस्कार" प्रदान कर भ्रष्टाचार की सहायता से मामले को रफा दफा कर और शक्तिशाली भ्रष्टाचारी बन जाएगा? भारत की गणना विश्व के अधिकतम भ्रष्ट देशों में की जाती है। बिहार का स्थान इस भ्रष्ट देश के सर्वाधिक भ्रष्ट राज्यों में है। अतः
सरकार की इस विज्ञप्ति को किस रूप में आँका जाय - भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कटिबद्ध सरकार या भ्रष्टाचार को मिटाने की ओट में भ्रष्टाचार को पनपाने का एक और नया हथकंडा? इस पर विचार करने या अपना मत बनाने के पूर्व कुछ और मसलों पर विचार करते हैं |

एक सरकारी council है 'The Advertising Standards Council of India' | यह council झूठे या गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर नजर रखती है और आवश्यकता अनुसार कार्यवाही भी करती है | आपत्तिजनक विज्ञापन की सूचना मिलने पर उस पर भी कार्यवाही करती है | देश का एक लोकप्रिय multiplex निरंतर यह विज्ञापन देता रहा जिसके अनुसार वे शुक्रवार को भी weekend मानते रहे | मैंने इस काउंसिल का ध्यान इस और आकृष्ट किया | परिषद् ने तुंरत कार्यवाही की और यह भ्रामक विज्ञापन बंद हुआ |

कोलकाता पुलिस समय समय पर यह विज्ञापन देती रहती है की अगर नागरिक किसी ऐसे वाहन को देखती है जो polution फैला रहा हो तो उन्हें फ़ोन २४८६४२१० पर सूचित करें | मैंने ऐसी एक सूचना इस फोन पर दी | पुलिस उप महानिर्देशक, Dy. Commissioner of Police, ने लिखित रूप में उस सूचना पर कार्यवाही की ख़बर दी |

कुछ समय पहले लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने लोकसभा में एक विवादास्पद निर्णय लिया। यह निर्णय लोकसभा की गरिमा के अनुरूप था साथ ही संवैधानिक दृष्टिकोण से भी उचित था | लेकिन उनकी राजनितिक पार्टी के सिद्धान्तों के विरुद्ध था | लेकिन श्री चटर्जी, लोकसभा की गरिमा को ध्यान में रखते हुए, अपने निर्णय पर अटल रहे और अपनी पार्टी की आज्ञा की अवहेलना की। अपने इस निर्णय के कारण उन्हें कथित पार्टी ने अपनी पार्टी की सदस्यता से निष्कासित भी कर दिया लेकिन वे चट्टान की तरह अडिग रहे | अपने कुछ मित्रों से इस घटना पर चर्चा हो रही थी एवं हम सब एक मत से सोमनाथ चटर्जी के पक्ष में थे तथा उनके कदम की प्रशंसा कर रहे थे। तभी एक मित्र ने फिकरा कस दिया की यह और कुछ नहीं केवल पैसों का खेल है। किसी दूसरी पार्टी ने बहुत पैसा खिला दिया इसलिए अपनी पार्टी की परवाह न कर के सोमनाथ चटर्जी ने यह कदम उठाया उनकी यह फब्ती सुन कर ऐसा लगा जैसा किसी ने असमान से जमीं पर पटक दिया हो। हमें अपने विचारों को प्रगट करने का अधिकार प्राप्त है इसका यह अर्थ तो नहीं की बे सिर पैर की अनर्गल बकवास करें। कुछ का कुछ बोलें। कुछ बोलना जरुरी तो नहीं। चुप ही रहें। एक कवि ने कहा है -
" यों तो कुछ भी बोल पर, कुछ का कुछ मत बोले |
नांदा है तो मौन रह पीट न अपना ढोल ||"
किसी की जान लेने के लिए "सुपारी " ले ली तो उस के विरुद्ध तो बोलने की हिम्मत नहीं लेकिन किसी ने जान न्योछावर करने की बात कर ली तो उसमें सौ सौ अपराध ढूढ़ने लगे। दुर्भाग्य है यह हमारा की हमारे पास ऐसे लोगों की एक पूरी जमात है जो अन्धकार के विरुद्ध बोलने का साहस नहीं रखती लेकिन दीपक पर उल्टे सीधे लांछन लगाने से नहीं चूकती। इस प्रकार अपने इस कृत्य से अंधकार का साहस बढाती है और दीपक के मनोबल को तोड़ती है।

हमने बात प्रारभं की थी भ्रष्टाचार उन्मूलन की एक notice से। हथियार का काम है प्रहार करना । लेकिन प्रहार किस पर करना है, कब करना है, कितनी ताकत से करना है इस का निर्णय हथियार नहीं लेता, व्यक्ति लेता है। हथियार को दोषी और निर्दोष में भेद करना नहीं आता। यह भेद तो आदमी ही कर सकता है। सरकार ने यह notice चाहे जिस उद्देश्य से दी हो, उसने हमें एक प्रकार का हथियार ही तो दिया है। आवश्यकता है इस का सदुपयोग निर्भय हो कर किया जाय। केवल यही एक कारगार उपाय है इस notice को सही अंजाम देने का।

कोई टिप्पणी नहीं: