गुरुवार, 29 सितंबर 2016

दास्ताने चन्दन नगर  

अक्तूबर २०१५ में तीन महीनों के लिए हम सिडनी गए थे। वहाँ से जनवरी २०१६ में आने के बाद से ही ऐसा संयोग हुआ कि हर महीने शहर के बाहर जाना हो रहा था। लग रहा था कि सितम्बर का महीना  सूखा ही जाएगा। अत: सितंबर में भी कहीं बाहर जाने की इच्छा हो रही थी। मेरे पास दो विकल्प थे – ऐतिहासिक नगरी चन्दननगर या पारिवारिक भूमि धनबाद।

चन्दन नगर क्यों?
यह तो निश्चत था कि कहीं दूर नहीं ही जाना है। हिन्दी कि पत्रिका “अहा!ज़िंदगी” के स्तम्भ  “याद नगर” में डॉ.जयश्री पुरवार का लेख “चन्दन नगर” पढ़ा था।
डॉ जयश्री का लेख
पता चला कि चन्दननगर एक ऐतिहासिक जगह है जो किसी समय फ्रांसीसी उपनिवेश था। इस क्षेत्र के बारे में और छान बीन करने से बंदेल के चर्च और बांसबेरिया के मंदिर की भी जानकारी मिली। इसी समय कोलकाता के दैनिक पत्र “द टेलीग्राफ” ने “मेट्रो” के पूरे मुख पृष्ठ को समर्पित किया फ्रांस से आए पर्यटक एवं पुरस्कृत गणितज्ञ विलानी कि चन्दन नगर यात्रा का सविस्तार वर्णन करने में। तब चन्दन नगर  जाने कि इच्छा तीव्र हो गई।
मेट्रो का मुखपृष्ठ
उधर धनबाद में मेरे जीवन की बहुत सी यादें सुरक्षित हैं। परिवार के सबसे बुजुर्ग सदस्य मेरे चाचा एवं चाची कुछ समय के लिए वहाँ आते हैं। कई वर्षों से उनसे मुलाक़ात नहीं हुई थी। वे भी सितंबर में ही धनबाद पहुँच रहे थे। अब इस कश्मकश में था कि कहाँ जाऊँ
? धनबाद, अपनी यादें ताजा करने और परिवार के बुजुर्ग को नमन करने या चन्दननगर से साक्षात्कार करने। समस्या का समाधान स्वत: ही हो गया। चाचा-चाची का कार्यक्रम टल गया है और मेरा चन्दन नगर जाना निश्चित हो गया। एक रविवार सुबह सुबह हम चन्दन नगर के लिए घर से निकल पड़े।

कैसे जाएँ? कहाँ ठहरें?
चन्दन नगर कोलकाता से लगभग ५० कि.मी. हुगली नदी के तट पर बसा है। बस, ट्रेन या गाड़ी तीनों साधन उपलब्ध हैं। हमारा विचार शुरू से ही गाड़ी से ही जाने का था। सेल फोन के जी.पी.एस. ने तीन अलग अलग रास्ते सुझाए। दुर्गपुर एक्सप्रेस वे से सिंगूर होकर, स्टेट हाइवे ६ से या फिर ग्रांड ट्रंक रोड से। फोन, सिंगूर के रास्ता को कि.मी. से दूर पर समय में नजदीक बता रहा था। फिर भी, २ दिन पहले सिंगूर में हाइवे पर ममता की विशाल रैली को ध्यान में रखते हुवे मैंने स्टेट हाइवे ६ से ही जाना ज्यादा निरापद समझा। रास्ता प्राय: अच्छा है। इस सड़क को ४ लेन ड्राइव में परिवर्तित किया जा रहा है। इस कारण कहीं कहीं सड़क के मरम्मत का कार्य चल रहा है। हम आराम से धीरे धीरे, १ घंटा ४५ मिनिट में चन्दननगर पहुँच गए। वहाँ ठहरने के लिये स्ट्रैंड पर चन्दन नगर नगरपालिका के अतिथि भवन रवीन्द्र भवन पर ही सीधे पहुंचे।
रवीन्द्र भवन अतिथि गृह
विचार था कि अगर ठहरने की जगह मिले तो आराम से घूमा जाय अन्यथा घूम-घाम कर रात तक वापस अपने घर। नगरपालिका ने १२ बजे से कमरा देने का वादा किया
, हम निश्चिंत हो गए। हमें अच्छा कमरा दिया गया जो दूसरे तल्ले पर था, एसी भी था। बड़े से स्वच्छ कमरे में सोने के लिए मचान, अलमारी, छोटा सा दर्पण और दो प्लास्टिक की कुर्सियाँ थीं। हमारे लायक खाने पीने की सुविधा नहीं थी। १५०० रुपये में मुझे महंगा लगा।

कहाँ और क्या खाएं?
बंगाल में पर्यटकों के लिए यह एक समस्या है। कुछ एक जगहों को  छोड़कर प्राय: बंगाल में रहने और खाने की समुचित व्यवस्था नहीं है। दोनों में स्थानीयता की स्पष्ट छाप है। शाकाहारियों के लिए खाने की विशेष असुविधा है तथा भोजन का स्तर भी साधारण है। प्राय: हर जगह निरामिष भोजन ही ज्यादा है। मिठाइयों की अनेक दुकाने हैं। इनमें मिठाई के अलावा बंगाली समोसा, खस्ता कचोरी, सब्जी कचोरी, राधावल्लभी-आलूदाम मिल जाती हैं। यहाँ की मिठाई “जल भरा संदेशका नाम तो बहुत सुना, लेकिन हमें विशेष पसंद नहीं आया।  डोमिनो पीज़ा
भी उपलब्ध है। “रेड चिली”  में चाइनीज के अलावा उत्तर भारतीय भोजन भी उपलब्ध है। स्ट्रैंड के अंतिम कोने में “रसोई” भी है। लेकिन, मिठाई की दुकान के अलावा सब जगह निरामिष ही ज्यादा है।

क्या देखें?
शहर घूमने के लिए हमने वहीं का साइकिल रिक्शा किया। शहर घूमते हुवे कहीं यह अनुभव नहीं होता है कि हम एक ऐतिहासिक नगर में घूम रहे हैं। रिक्शेवाले ने भी बड़ी पीड़ा से बताया कि पुरानी इमारतों का रख रखाव करने के बजाय सरकार भी उन्हे गिरा / उपेक्षा कर नई इमारत बनाने में लगी है। उदाहरण के लिए चन्दन नगर पुस्तकालय है।
पुस्तकालय की पुरानी इमारत
सरकार को जर्जर अवस्था में पुस्तकालय की ऐतिहासिक इमारत का पुनरुद्धार करने के बजाय नई इमारत बनाना सुगम  लगा। ऐतिहासिक सिमेट्री को बचा कर रखा गया है। नन्द दुलाल का राधा कृष्ण का ऐतिहासिक मंदिर
, जिसका निर्माण १७७० में हुआ था, अच्छी अवस्था में है।  फ्रेंच कॉलोनी में अब नाम के अलावा उस समय का कुछ भी नहीं बचा है। फ्रांस के समय की थोड़ी बहुत यादें  स्ट्रैंड (नदी किनारे) पर है जिसके एक छोर में फेरी घाट है और दूसरे छोर पर “पाताल घर” जो किसी समय कविन्द्र रवीन्द्र का निवास स्थान भी था। अब उनके वंशज वहाँ रहते हैं।  इस पूरे करीब आधे-पौना कि.मी. में सिमटा हुआ है फ्रांसीसी चन्दन नगर।
स्ट्रैंड

स्ट्रैंड पर नगर पालिका की आधुनिक इमारत “रवीन्द्र भवन” के अलावा सब इमारतें ऐतिहासिक हैं और फ़ांसीसी उपनिवेशवद का इतिहास बयान करती है। एक पंक्ति से चन्दन नगर न्यायालय, कारागार, विद्यालय, पुलिस स्टेशन, विश्वविद्यालय, सेक्रेड हार्ट चर्च (२०० वर्ष प्राचीन), म्यूजियम, पाताल घर हैं। म्यूजियम में बंगला और अँग्रेजी के अलावा फ्रांसीसी में भी विवरण दिये हुवे हैं। स्ट्रैंड पर हुगली के किनारे बेंच पर बैठे या टहलते हुवे घंटे बिताये जा सकते हैं।
सेक्रेड हर्ट चर्च

म्यूजियम, जो किसी समय डुप्ले का निवास स्थान था, चन्दन नगर के वास्तुशिल्प, कारीगरी, वस्त्र आदि का इतिहास बताता है। चित्रों एवं प्रतिरूपों (मॉडेल्स) कि सहायता से नगर का भूगोल, इतिहास और अंग्रेजों के आक्रमण की दास्तान भी बयान करता है। डुप्ले द्वारा व्यवहार में लायी गई वस्तुएँ, लकड़ी की सोफा, टेबुल, पलंग आदि प्रदर्शित हैं। अगर इतिहास में रुचि हो तो यहाँ कुछ समय बिताया जा सकता है।
म्यूजियम जो कभी डुप्ले का निवास स्थान था

सभ्य एवं स्वच्छ
संकड़ी गलियाँ एवं सड़कें आशा से ज्यादा साफ और अच्छी अवस्था में हैं। अड्डेबाजी की जगह की कमी नहीं है फिर भी कहीं भी अड्डे बाजी नहीं है। लोग शांत, सौम्य एवं सभ्य हैं। दो पहिये की सवारी की भरमार होने के बावजूद कहीं भी तनाव, हल्ला सुनने को नहीं मिला। जितने भी लोगों के संपर्क में हम  आए, नगरपालिका के कर्मचारी और अधिकारी सहित, सभी सहायक और मैत्री पूर्ण भाव से मिले। रविवार और साथ ही विश्वकर्मा के विसर्जन का भी दिन होने के कारण स्ट्रैंड बच्चे, युवा, बुजुर्ग, महिलाओं से भरा था। कहीं भी बैठने, खड़े रहने, चलने में किसी भी प्रकार का भय या तनाव नहीं। खोमचे वालों की भरमार थी, लेकिन क्या मजाल कहीं भी कचरा दिख जाए। सुबह उठ कर घूमने नीचे आए तो आभास नहीं हुआ कि रात को यही जगह खोमचे वालों से भरी थी। शहर भर में सड़कों पर खाने–पीने की दुकाने हैं, लेकिन गंदगी कहीं नहीं। लगता है कि चन्दननगरवासियों ने सफाई का पहला पाठ, गंदगी न करना, अच्छे से पढ़ा और गुना है। वे ठीक से जानते हैं कि सरकार केवल सफाई का प्रबंध कर सकती है। स्वच्छता तो नागरिकों का ही उत्तरदायित्व है और वे उसे बखूबी निबाह रहे हैं। कोलकातावासियों कि तरह गंदगी फैलाना अपना अधिकार नहीं समझते। कोलकाता एवं चंदननगर वासियों के शिष्टाचार, आचरण और व्यवहार में बुनियादी फर्क साफ परिलिक्षत होता है।  चन्दननगर जाने और देखने लायक है, अपने आप में एक अनुभव है, वहाँ के निवासियों से सीखने कि जरूरत है।

स्ट्रैंड पर टहलने के बाद आराम 

स्ट्रैंड पर गप शप

स्ट्रैंड पर ओरियंटल बत्ती


बन्देल
इमामबाड़ा
हुगली नदी के किनारे चन्दननगर से सिर्फ ८ कि.मी. पर है बन्देल का १८४० मेँ बना इमामबाड़ा
इसका निर्माण हाजी मुहम्मद मोहसीन ने करवाया था। इसकी दीवालों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं और इसमें १०८ कमरे हैं। क्या यह हिंदुओं का प्रभाव है, या इत्तिफ़ाक, या मुसलमानों में भी १०८ की महत्ता है?  किसी समय सोने चाँदी से सजा हुआ था।   लेकिन अब माली आर्थिक अवस्था के कारण मरम्मत का कार्य भी नहीं हो रहा है। सरकार ने मरम्मत के लिए ५ करोड़ रुपये दिये हैं, लेकिन जरूरत ५०० करोड़ रुपये की है। इमारत के पीछवाड़े मेँ सूर्य घड़ी है। मुख्य द्वार पर विशालकाय घड़ी है जो प्रत्येक १५ मिनट में घंटा बजाती है। वहाँ के गाइड, मिर्जा मुल्ला अली, ने बताया कि घंटा ४० मन का है, लंदन की ब्लैक एंड मर्रे कंपनी से ११,७२१ रुपये में १८५२ में खरीदा गया था।
घड़ी का रख रखाव कोलकाता की दत्ता कंपनी करती है। समय को ठीक से चलते रहने का उत्तरदायितत्व वे पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं। घड़ी तक पहुँचने के लिए करीब डेढ़ सौ सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। यहाँ के प्रमुख त्यौहार, मुहर्रम शोक का और इमाम का जन्मदिन उल्लास का है।

बेसिलिका चर्च
१५९९ में पुर्तगालियों द्वारा निर्मित यह ऐतिहासिक चर्च अपनी पूरी शान-शौकत से खड़ा है। रख रखाव के अलावा, देख कर ही लगता है कि समय समय पर इसका विस्तार भी होता रहा है। श्रद्धालुओं और पर्यटकों का निरंतर आवागमन है। भव्य
इमारत, नक्काशीदार स्टेन ग्लास की खिड़कियाँ, ईसा मसीह के जीवन प्रसंग की मूर्तियाँ और साथ मेँ बड़ा सा बगीचा चर्च की खूबसूरती की कहानी कहती हैं।

हंसेश्वरी देवी का मंदिर
माँ काली ही सहस्त्र दल पर हंसेश्वरी के नाम से यहाँ विराजमान हैं। यहाँ के जमींदार ने १७८८ में “वासुदेव” के मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर की दीवारों पर आज भी खूबसूरत नक्काशी मौजूद है। सुरक्षा के अभाव मेँ वासुदेव का ऐतिहासिक विग्रह चोरी हो गया। इसी के बगल मेँ, कई वर्षों  बाद,  हंसेश्वरी देवी के विशाल मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर मेँ नियमित रूप से पूजा होती है। दोनों मंदिर भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के संरक्षण मेँ है। मंदिर देखने योग्य है।


वापस सिंगूर हो कर आना था। लेकिन वहीं पता चला कि मंदिर के बगल से ही हुगली पर ईश्वर गुप्ता सेतु पार कर कल्याणी एक्स्प्रेस वे से कोलकाता एयर पोर्ट होकर रास्ता अच्छा भी है और नजदीक भी। अत: इसी रास्ते से वापस आए। गर्मी और अद्रता ने परेशान किया, अन्यथा भ्रमण ज्ञानवर्धक और आरामदायक रही।


अन्य फोटो,डॉ.जयश्री का लेख एवम मेट्रो का मुख पृष्ठ

टेलीग्राफ कोलकाता मी एक रिपोर्ट जनवरी 2018 मेन प्रकाशित हुई

कोलकाता के दैनिक पत्र टेलीग्राफ ने रविवार 31 दिसंबर 2017 को पूरा एक पेज चंदरनगर पर निकाला। उसमें प्रकाशित कई फोटो यहाँ देख सकते हैं।

1 टिप्पणी:

Jayshree Purwar ने कहा…

आज ही मैंने चंदन नगर पर आपका ब्लॉग पढ़ा. ब्लॉग कंकरीटों से पूर्ण और अच्छा लगा . आपने'अहा ज़िन्दगी' में प्रकाशित मेरे छोटे से लेख का संदर्भ दिया इसके लिए आभार. चरण नगर में मेरा बचपन बीता है इसलिए इस शहर से गहरा लगाव है .