शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

रावण में भी तमोगुण नहीं था!


हम, हिन्दुओं को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि सत, रज, तम क्या हैं? ये शब्द हम सबों ने कभी-न-कभी, किसी-न-किसी से कहीं-न-कहीं सुना जरूर है। और हम इनसे बहुत ऊब भी चुके हैं। अगर मैं यह कहूँ कि मैं अभी उनके बारे में ही बताना चाहता हूँ, तब आप अभी यहीं डिलीट या नेक्स्ट दबा कर आगे बढ़ जाएंगे। ठीक है, मैं विषय बदल देता हूँ। जरा आप बताएँगे कि यह अप्रवृत्ति: का क्या अर्थ है और यह कौनसे गुण में आता है?

विद्वानों के अनुसार अप्रवृत्ति का अर्थ है -
सब प्रकार के उत्तरदायितत्वों  से बचने या भागने की प्रवृत्ति, किसी भी कार्य को करने में स्वयं को अक्षम अनुभव करना तथा जगत में किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न और उत्साह का न होना – ये सब अप्रवृत्ति शब्द से सूचित किये गए हैं। इस प्रवृत्ति या अप्रवृत्ति के प्रबल होने पर सब महत्वाकांक्षाएं क्षीण हो जाती हैं। मनुष्य की शक्ति सुप्त हो जाने पर मात्र भोजन और शयन, ये दो ही उसके जीवन कें प्रमुख कार्य रह जाते हैं। इस सबके परिणामस्वरूप वह अत्यंत प्रमादशील हो जाता है। उस अपने अंतरतम का आवाहन भी सुनाई नहीं देता। और वस्तुत:, वह रावण के समान अत्याचारी भी नहीं बन सकता है। क्योंकि दुष्ट बनने के लिए भी अत्यधिक उत्साह और अथक क्रियाशीलता अवश्यकता होती है। यानि रावण में यह तमोगुण यानि अप्रवृत्ति नहीं थी।

गीता (14.13) में अप्रवृत्ति को तमो गुण का लक्षण बताया गया है। केवल अशुभ कार्य का न करना ही नहीं बल्कि शुभ कार्य का न करना भी तमोगुण के लक्षण हैं। क्योंकि इस प्रकार हम शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के कार्यों को करने में असमर्थ हो जाते हैं।

तब अशुभ कार्य का न करना ही यथेष्ट नहीं है, शुभ कार्य का करना आवश्यक है। अपने आज कौनसा शुभ कार्य किया?  

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

मानस की स्तुतियाँ


 भारत में राम कथा अनेक ऋषियों, मुनियों, मनीषियों और विद्वजनों ने लिखी हैं। इनमें प्रमुख हैं अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस, संस्कृति में महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण और तमिल में कम्बर रचित रामावतरम। साधारण जनों में ये ग्रंथ क्रमश: मानस, रामायण और कम्ब रामायण के नाम से जानी जाती हैं। सरल अवधी भाषा में होने के कारण उत्तर भारत में तुलसी कृत मानस और तमिल में होने के कारण दक्षिण भारत में कम्ब रामायण ज्यादा लोकप्रिय ग्रंथ रहे। इन तीनों ग्रन्थों में प्रमुख घटनाओं का विवरण एक ही जैसा है लेकिन तीनों में फर्क हैं। जब अंग्रेजों ने, बंधुआ मजदूर के रूप में बड़ी संख्या में भारतीयों को भारत के बाहर विदेशों में भेजा उस समय उस अनजान प्रदेश में हमारे इन पूर्वजों का एक बड़ा सहारा यही मानस था। सब अपने साथ इस ग्रंथ को लेकर गए थे, कइयों को तो पूरा ग्रंथ कंठस्थ था। यही उनकी पूजा थी, यही उनका संबल था, यही उनका मनोरंजन और यही वह कड़ी थी जिसके सहारे वे सब एक दूसरे से जुड़े थे।
गोस्वामी तुलसीदास

वाल्मीकि

कम्ब


10 जनवरी से 5 फरवरी 2019, 27 दिन व्यापी इसी सम्पूर्ण मानस पर प्रत्येक दिन 4 घंटे सिलसिलेवार चर्चा की चिन्मय मिशन के स्वामी श्रद्धेय श्री तेजोमयानन्दजी ने। रामकथा पर कई प्रवचन सुना हूँ, लेकिन यह एक अनोखा और अलग ही अनुभूति थी जिसमें स्वामीजी ने श्रोताओं को अभिभूत और भाव विभोर कर दिया। स्थान भी अनुपम था। पूना से 45 कि.मी. पर कोलवान में चिन्मय विभूति। रहने और भोजन की उत्तम  व्यवस्था के अतिरिक्त सहयाद्रि पर्वत की घाटी में प्रकृति के मध्य, सुहावने मौसम में अत्याधुनिक सभागार में।

क्या मानस केवल एक राम कथा है? राम की कहानी? चलते फिरते हम तुरंत सिर हिलाकर कह देते हैं हाँ हाँ हम जानते हैं राम सीता की कहानी बहुत बार बहुतों से सुनी है और पढ़ी भी है। क्या सचमुच सुना और पढ़ा है? राम कथा सुनी होगी, राम पर प्रवचन भी सुने होंगे। रमानन्द सागर द्वारा रचित रामायण सीरियल भी देखा होगा। लेकिन क्या मानस बस केवल एल कथा मात्र है? नहीं, मानस केवल यही नहीं है। यह कथा के साथ साथ एक  अनुपम साहित्य है जिसमें कथा के साथ  ज्ञान है, विवेक है, हमारे प्रश्नों के उत्तर हैं, रामराज का अर्थ है, मानव से ईश्वर तक की राह है।  लोगों की सुनी सुनाई बात पर न जाकर इसे पढ़ें और समझें तब दिखेगा भी और सुनेगा भी। अन्यथा एक सैलानी जो दुर्गम पहाड़ों पर घूमने जाता है, सूर्योदय भी देखता है लेकिन हर समय कानों में हेड फोन लगा है और आँखें एल्क्ट्रोनिक डिवाइस पर गड़ी हैं। लौट कर आकर वहाँ की प्रकृति के सौंदर्य का और सूर्योदय का वर्णन किया और लोगों ने उसे ही सत्य भी मान लिया।हम भी वैसा ही करते हैं।  

इस वृहद ग्रंथ में वैसे तो बताने के लिए बहुत कुछ है लेकिन फिलहाल मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा मानस की स्तुतियों की तरफ। मानस के पन्नों में अनेक स्तुतियाँ बिखरी पड़ी हैं। उन्ही में से कुछ एक के संदर्भ मैं देना चाहूँगा। बाकी तो आप खुद पढ़ें और उचित मौकों पर उनके पाठ भी कीजिये-गाइए ताकि औरों को भी इसका पता चले :
बालकांड
दोहा 185 के बाद – देवताओं द्वारा स्तुति
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवन्ता। .......
दोहा 191 के बाद – भगवान राम के जन्म पर
भए प्रगट कृपाला दीनदायाला कौसल्या हितकारी। .......
अरण्य कांड
दोहा 3 के बाद। अत्री मुनि द्वारा स्तुति
नमामि भक्त वत्सलम। कृपालु शील कोमलम॥ .....
दोहा 31 के बाद। जटायु द्वारा स्तुति
जय राम रूप अनूप निर्गुन सगुन गुन प्रेरक सही। ......
लंका कांड
दोहा 112 के बाद। देवताओं द्वारा स्तुति
जय राम सोभा धाम। दायक प्रनत विश्राम॥ ......
दोहा 114 के बाद। उमापति महादेव की स्तुति
मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक॥ .....
उत्तर कांड
दोहा 12 के बाद। वेदों द्वारा स्तुति
जय सगुन निर्गुन रूप रूप अनूप भूप सिरोमने। .....
दोहा 13 के बाद। महेश द्वारा स्तुति
जय राम रमारमनं समनं। भवताप भयाकुल पाहि जनं॥ .....
दोहा 107 के बाद
नमामीशमिशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापाकं ब्रह्म वेदस्वरूपं॥  ......

और अंत में मैं यही कहना चाहूँगा:
जिन खोजा तीन पाइया, गहरे पानी  पैठ
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

मेरी नाकामियाँ


बहुत नाकामियों पर आप अपनी नाज़ करते हैं
 अभी देखी कहां है, आपने नाकामियां मेरी

जी हाँ, कभी कहीं असफलता हाथ लगी और रास्ता बदल लिया या फिर हाथ पर हाथ रख कर बैठ गए। किसी ने प्रोत्साहित करने का प्रयत्न किया तो दो टूक जवाब दे दिया – “तुम्हें क्या पता, क्या हुआ”? लेकिन क्या आपने कभी किसी भी सफल व्यक्ति की आत्मकथा पढ़ी है? क्या आपने कभी उसकी नाकामियों का लेखा जोखा देखा है? एक बार जोड़-घटा कर देखें, तब पता चलेगा कि अगर वे भी हिम्मत हार गए होते तो वहाँ नहीं पहुँच पाते जहां वे पहुंचे। जावेद अख्तर साहिब ने भी बहुत ठोकरें खाईं तब वे वहाँ हैं, जहां अब दिख रहे हैं। वे तो अभी स-शरीर हैं, पूछ लीजिये या उनका लिखा पढ़ लीजिये। उनकी नाकामियों का दर्द ही तो छिपा है उनके इस शेर में – बहुत नाकामियों पर आप अपनी नाज़ करते हैं, अभी देखी कहाँ है अपने नाकामियाँ मेरी।

आइए आपके लिए मैं एक लेखा जोखा एक ऐसे ही व्यक्ति का दिखाता हूँ। अमेरिका के कई राष्ट्रपतियों का नाम पूरा संसार आदर से लेता है और उनका कायल है। उनमें से एक हैं  अब्राहिम लिंकन।

21 वर्ष की उम्र में व्यापार किया और असफल रहे
22 वर्ष की उम्र में एक चुनाव हारे
24 वर्ष की उम्र में फिर व्यापार में असफल रहे
26 वर्ष की उम्र में उनकी पत्नी का देहांत हो गया
27 वर्ष की उम्र में मानसिक संतुलन खो बैठे
34 वर्ष की उम्र में काँग्रेस का चुनाव हार गए
45 वर्ष की उम्र में सीनेट का चुनाव हार गए
47 वर्ष की उम्र में उपराष्ट्रपति बनने में असफल रहे
49 वर्ष की उम्र में सीनेट का चुनाव हार गए
52 वर्ष की उम्र में अमरीका के राष्ट्रपति चुन लिए गए

आपकी नाकामियाँ इनसे तो कम ही रही होंगी। तब, फिर उठिए और फिर से शुरू हो जाइए।