शहर के
प्रतिष्ठित हिन्दी अखबार में आज सुबह यह समाचार पढ़ा ‘इंफ़ोसिस फ़ाउंडेशन का पंजीकरण रद्द’। मेरी आंखे ठिठक
गई। विश्वास नहीं हुआ। इंफ़ोसिस की अपनी एक अलग पहचान है,
प्रतिष्ठा है, कार्य करने का तरीका है,
उसके अपने उसूल हैं, बहुतों का प्रेरणास्त्रोत है। अगर
उन्होने ऐसा किया या उनके साथ ऐसा हुआ तब फिर तो कहने, करने
और सोचने का कुछ बचता ही नहीं।
पूरी बात
समझने के लिए अखबार में छपी खबर पूरी पढ़ी। पहली बात जो साफ हुई वह यह कि फ़ाउंडेशन का
‘FCRA’
का पंजीकरण रद्द हुआ है। दूसरी बात जिसे खबर के अंत में लिखा था ‘इंफ़ोसिस फ़ाउंडेशन ने गृह मंत्रालय से FCRA पंजीकरण रद्द करवाने के लिए आवेदन किया था। ...... फ़ाउंडेशन के जन संपर्क
अधिकारी ऋषि बसु ने बताया कि 2016
के संशोधन के बाद उनका फ़ाउंडेशन इस अधिनियम के दायरे में नहीं आता है’। मुझे
थोड़ी राहत मिली, यह नियम का उल्लंघन नहीं है। लेकिन बेचैनी कम होने के बजाय बढ़ गई। मीडिया
ने एक आम प्रक्रिया को सुर्खियों में नकारात्मक तरीके से दंड के रूप में पेश किया था।
पूरा संतोष
नहीं हुआ। इंटरनेट में इस समाचार की जांच पड़ताल करने बैठा। पाया कि सबों ने एक ही
स्वर में ‘पंजीकरण रद्द’ होने की ही बात मोटे अक्षरों में लिखी है। केवल एक ने
लिखा कि पंजीकरण ‘उल्ल्ङ्घन (violation) के कारण नहीं बल्कि ‘स्वयं समर्पण (volition)’ के कारण किया गया है। क्या मीडिया को ‘रद्द (cancel / violation)’ और ‘समर्पण (surrender / volition)’ में कोई अंतर नहीं दिखता? एक दंड है नियम का उल्लंघन करने के कारण और दूसरा नियम के अंतर्गत पंजीकरण
को वापस करने की एक प्रक्रिया। हो सकता है मीडिया तर्क दे कि तकनीकी रूप से इसे ‘रद्द’ करना ही कहते हैं। कहते होंगे, लेकिन मीडिया ने इसे सुर्खियां बटोरने के लिए लोगों की धारणा तो यही बनाई
कि यह ‘एक दंड’ है। जबकि सच्चाई
यह नहीं है। यह एक वैध प्रक्रिया है।
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