शुक्रवार, 31 मई 2019

हाँ, हम कर सकते हैं

 राजनीति ने देश को भ्रष्टाचार और धर्मनिरपेक्षिता इन दो अवगुणों के आधार पर बंटा दिया है। आप दोनों को नहीं छोड़ सकते। हाँ आप को इन दोनों में से किसी एक को अपनाने की छूट है। एक धर्मनिरपेक्षिता की बात करता है और दूसरा भ्रष्टाचार की। तब इन दोनों में से एक तो रहना ही है। हम यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसमें किसी एक को रखना दोनों को रखना है। लेकिन किसी एक को छोड़ना दोनों को छोड़ना नहीं है।

अभी कुछ समय पहले नोटबंदी पर बहुत गरमागरम बहसें हुईं। खूब राजनीति की गई। सामूहिक रूप से लोगों ने पक्ष और विपक्ष में अनेक तर्क-वितर्क किए। लेकिन जब भी किसी से व्यक्तिगत प्रश्न किया गया क्या तुम काला धंधा नहीं करते’? तब इसके दो ही उत्तर मिले। या तो आक्रामक क्या तुम नहीं करते’? या फिर रक्षात्मक क्या करें उपाय नहीं है। यानि मैं काला धंधा इसलिए करता हूँ क्योंकि तुम करते हो। या दूसरों ने विवश किया है।

इंफ़ोसिस के संस्थापक एवं भूतपूर्व निर्देशक श्री नारायण मूर्ति  लिखते हैं मैं चाहता था कि इंफ़ोसिस का प्रयोग भारतीयों और इंडस्ट्री के लोगों को दिखा दे कि ....... भारत में जायज और नीतिगत तरीके से पैसा कमाया जा सकता है, कि यहाँ (भारत में) भी कॉर्पोरेट, बिजनेस्स के बेहतरीन उसूलों पर चल सकते हैं, ...... श्री मूर्ति आगे लिखते हैं रॉबर्ट केनेडी ने जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के शब्द को उधर लेते हुए इस चुनौती को बेहतरीन ढंग से कहा था –कुछ लोग चीजों को उस तरह से देखते हैं जैसी वो होती हैं और उन पर प्रश्न करते हैं, मैं उन चीजों का सपना देखता हूँ जो नहीं होती हैं और पूछता हूँ कि क्यों नहीं है?


यस, वी कैन। हाँ, हम कर सकते हैं। हाँ, हम करेंगे। हाँ, इन सबका यही एक उत्तर है।  

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